अब हुआ कुछ यूँ कि ऊद़्अनतश्तरी के फ़्यूल टेंक में प्लाज्मा की कमी होने के कारण वातावरण के हितेषियों की बात सुन कर e-85 का ईंधन डालागया. टैंक को पूरा भर दिया गया ये बिना सोचे कि आखिरकार E-85 में एल्कोहोल की मात्रा ही अधिक होती है. बस यही कारण था कि जो सन्देश वहाँ से चल कर आया वो यों था
निनाद गाथा के इज़हारे चिन्तन को सुन कर
बस एक घटा रो गई. रचनाकार ने
दर्द के मारे कोई भी
रचना करने से इंकार कर दिया और हम कुछ भी
देखने सुनने से वंचित रह गये जो
परीक्षण का प्रतीक था वह पर्यावरण के रंग में घुल गया
बाकी जोकुछ है वो
नारद जी की वीणा में समाहित है
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e ८५ के असर में बगैर होशो हवास वाह वाह, आह आह!! आभार सूचित करने का.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप ने मेरे शब्दो को अपने ब्लोग पर फिर जगह दी
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