दुरुपयोग है संसाधन का ऐसा कुछ मुझको लगता है
और व्यर्थ के जो विवाद का झंडा लेकर घूमा करते
उन चिट्ठों की चर्चा से मेरा यह कुंजीपट बचता है
उंगलियों ने मेरी थाम ली तूलिका, चित्र बनने लगे हर दिशा आपके
चूम ली जब कलम उंगलियों ने मेरी नाम लिखने लगी एक बस आपके
पांखुरी का परस जो करेम उंगलियां, आपकी मूर्ति ढलती गई शिल्प में
किन्तु गिन न सकीं एक पल, उंगलियां जो जुड़ा है नहीं ध्यान से आपके
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चूम ली जब कलम उंगलियों ने मेरी नाम लिखने लगी एक बस आपके
पांखुरी का परस जो करेम उंगलियां, आपकी मूर्ति ढलती गई शिल्प में
किन्तु गिन न सकीं एक पल, उंगलियां जो जुड़ा है नहीं ध्यान से आपके
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जो मुझको चर्चा के काबिल लगे, उन्ही की है ये चर्चा
मुझे विदित है कुछ पाठकगण मुझसे यहां असहमत होंगे
पर खयाल है अपना अपना औ; पसन्द भी अपनी अपनी
जो मैने देखा उससे कुछ भिन्न आप निश्चित देखेंगे
पीएचडी न मिले न सही, शोध पत्र तो लिख डाला है
फ़ुटपाथों पर संडे को देखें क्या क्या मिलने वाला है
मदन मोहन की मादक धुन को सुनिये आप यहां पर जाकर
कोई कल्पना के अंबर में आज पुन: उड़ने वाला है
बात चली जब उड़ने की तो उड़ी गगन में उड़नतश्तरी
रसभीनी संध्या यादों की, मिलने के पल रँगी दुपहरी
जल-प्रपात के दॄश्य सजाकर रखे हुए चिट्ठे पर लाकर
गीतकार की कलम,एक बस मुक्तक पर जाकर है ठहरी
जातिवाद के, क्षेत्रवाद के अनुभव हैं काकेश बताते
ई-पंडितजी पाडकास्ट की गहरी गुत्थी को सुलझाते
रचनाकार कहानी लेकर नई नई अवतरित हुआ है
वानर-सेना की बातों को पंकज बेंगाणी बतलाते
सुनिये सड़कें क्या कहती हैं मस्ती की बस्ती में जाकर
दिनचर्या को देखें कैसे होती आप यहाँ पर आकर
दिल के दर्पण में आशा के साथ निराशा भी दिखती है
लुभा रहे रंजन प्रसाद जी टूटे हुए शब्द बिखराकर
पल भी जब अनंत हो जाते, शब्द भ्रमित करते रहते हैं
क्या होगा ? बस इसी सोच में अब प्रतीक उलझे रहते हैं
कुछ चुनौतियों वाले पढ़िये याहाँ उद्धरण, आप क्लिक कर
बढ़ी भीड़ में कैसे कैसे दिल्ली के वासी रहते हैं
अपने मैं को हैं तलाशती, यहाँ साध्वी रितु रह रह कर
शीत लहर ऐसे भी आती, पढिये सुन्दर एक कहानी
टुटी हुई और बिखरी सी यादें लाये हैं सहेज कर
वह संगीत बिना नामों के दुनिया थी जिनकी दीवानी
दिल की बात रह गईं दिल में और नहीं कुछ हम कह पाये
ऐसा ही था कोई कारण, इसीलिये मैं मौन रह गया
बाकी चिट्ठे आप जानते नारद पर सारे हैं हाजिर
आप वहाँ जाकर पायेंगे, क्या कुछः कैसे कौन कह गया
और व्यर्थ के जो विवाद का झंडा लेकर घूमा करते
जवाब देंहटाएंउन चिट्ठों की चर्चा से मेरा यह कुंजीपट बचता है
ये आपने सही कहा..बांकी चर्चा मस्त रही ..हम कवर हो गये और हमारे मित्र भी ..खुशी हुई...
बहुत खूब चर्चा की राकेश भाई, बधाई कहता हूँ.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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जवाब देंहटाएंविषय को प्रस्तुत करने ले लिए आप जो सृजनात्मक तरीके प्रयोग में लाते है, उसके लिए बधाई हो
जवाब देंहटाएंक्षमा चाहता हूँ रचनाजी, गलती हुई लिंक देने में
जवाब देंहटाएंभूल सुधार किन्तु कर डाली, अब यह लिंक सही जाता है
तकनीकी गलियों में घूमा करता एक कटोरा लेकर
एक भिखारी हूँ,जब तब कुछ अंश ज्ञान का मिल जाता है