हमारे टिप्पणी पीर होने की चर्चा तो NCR ब्लॉगर मीट तक में हो गई. और तो और, घुघूती बासूती जी ने तो हमारे लिये अलग से नारद पर आरक्षण की माँग तक कर दी है. परेशान है तो इस तरह की माँग कर बैठीं. मगर की शांति से, न कोई तोड़ फोड़, न दंगा जैसा कि बाकि परेशान जनता करने लगती है. यही तो अंतर करता है आम परेशान जनता में और एक कविता वाले ब्लॉगर में. नमन करता हूँ उनकी शांति प्रियता को. पक्षी का नाम पक्षी का काम.
पक्षी की जगह हाथी होता, तो देता डंडे ही डंडे. मजाक नहीं कर रहा, सच में खबरची ने बताया है. बताने को तो अमित भी ब्लॉगर यात्रा और जुलाई ब्लॉगर भेंटवार्ता के बारे में बता गये और दीपक जोशी जी ने देखा कि सब हिमाचल की तरफ ही आ रहे हैं तो बता गये कि कहाँ ठहरे हिमाचल में. अब जब बतिया ही जा रहा है तो क्यारी भी बतियाये कॄषक आमिर के बारे में और रामा जी बतियाये कि अपराध और मौसम में गहरा रिश्ता है और हमारे राजेश रोशन तो अमर सिंग का शीर्षक देख कर ही प्रसन्न हुये जा रहे हैं. हम भी जाकर प्रसन्नता जता आये. आज कवितायें भी खूब आई. मगर हमारे गीत सम्राट राकेश खंडेलवाल जी परेशान हो उठे और लगे हैं कि एक दिन गीत लिखूँगा. अरे भाई, एक दिन क्या, रोज रोज लिखो. आपके गीतों के हम दीवाने हैं, मगर वो इतना व्यस्त हैं कि बस कहते ही चले गये कि एक दिन गीत लिखूँगा. खैर, हम भी आज ही नारा बुलंद किये दे रहे हैं कि एक दिन गीत पढ़ूँगा-तब तक बस ऐसे ही पढ़ता रहूँगा. :)
आज जीतू ने घोषणा की कि उनके परिवार में नया सदस्य जुड़ गया है. हम भी सोचे, यह बंदे को क्या हुआ. इस उम्र में जाकर यह उदंडता और उस पर खुशी खुशी घोषणा भी कर रहा है. शरमाते हुये चटकाये तो नजारा कुछ और ही निकला, नई कार खरीद लाये हैं और उसी का फोटो लगा कर सबको चमका रहे हैं. ऐसा चमकाये कि हमारे प्रमोद भाई तो काम्पलेक्स में ही आ गये.
अतुल श्रीवास्तव जी कहे कि आओ, बेहतरीन कहानी सुनायें. बड़ी सस्पेंस थ्रीलर टाईप कहानी सुनाये भाई- वो कौन थी. अब क्या जबाब दें, मिले तुम, खेले तुम, हम कैसे जानें कि कौन थी.
ब्लॉगर भेंटवार्ता तो ऐसी चल रही हैं कि जितने ब्लॉगर नहीं उससे ज्यादा भेंटवार्ता. हमारे परम शिष्य (नये वाले) संजीत त्रिपाठी ने भी बम्बई में भेंटवार्ता की रिपोर्ट पेश की बड़े चकाचक अंदाज में. मजा आ गया, आखिर हमारा शिष्य जो है, कोई यूँ ही थोड़े. अब जब शिष्य की सुनी गई तो गुरु कम थोड़े हैं तो हमारे गुरुवर आलोक पुराणिक को भी सुनो: हे प्रेम के गब्बरसिंह, हे च्यवनप्राश के मिसयूज-कर्ता.
अरुण की कथा दुम वाली कल ही कवर हो गई थी इसलिये आज नहीं कवर कर रहे. वरना पंगा हो जायेगा.
मगर ज्ञानदत्त जी की पोस्ट क्या केवल जुनून काफी है जीने के लिये को कवर करना जरुरी है, ऐसा उपर से आदेश आया है, भले ही पंकज बैगाणी की नई शुरु साईट शटर स्पीड छोड़ दें. क्या डिजाईन है भाई, मान गये. मगर छोड़ ही देते है उसको और विकास को भी जिसे सिंगल होने का घाटा हो रहा है. दोनों अपने बंदे हैं कि बुरा नहीं मानेंगे. रंजना भाटिया रंजू जी को भी छोड़ देते है जो स्मरण शक्ति के बारे में गरिमा जी के विचार बता रहीं हैं.
कविता के पसंदगारों के लिये गुरनाम सिंग जी खूब सारी कवितायें एक के बाद एक ले आये हैं और मोहिन्दर भाई भी कवि कुलवंत जी की और तुषार भाई की तरह लाये हैं. जब सब देखे हो तो हिन्द युग्म भी देख आओ.
अब थक गये, जितने कवर हुये कर लिये ऐसे ही बेतरतीब तरीके से..अब चलते है और आप पढ़िये अतुल अरोरा का अब तक छप्पन और सुषमा कौल जी की छोटी छोटी बतिया में बड़ी बड़ी बतिया.
अब हम चलते है. भूल चूक लेनी देनी.
स्पीड देख कर लगता रेलवे स्टेशन पर बैठ कर ट्रेन की इन्तजार करते हुये लिखा है,बीच मे बार बार उचक उचक कर ट्रेन तो नही आ गई का आभास हो रहा है कृप्या चरचा फ़ुरसत से लिखा करे चाहे तो ठेके पर भी लिखवा सकते है बंदा हाजिर है
जवाब देंहटाएंभूल लेनी चूक देनी.. बाकि चकाचक. बहुत बढिया.
जवाब देंहटाएंआपको सलाह देने वाले नालायक का नाम सार्वजनिक किया जाए अथवा सामाजिक बहिष्कार किया जाए.. :) भला यह भी कोई बात हुई!!!
मौका अच्छा है, अरूणजी को धर लें. बन्दा खुद फँस रहा है. :)
जवाब देंहटाएं"...विकास को भी जिसे सिंगल होने का घाटा हो रहा है. दोनों अपने बंदे हैं कि बुरा नहीं मानेंगे."
जवाब देंहटाएं"Udan Tashtari द्वारा June 06, 2007 को प्रकाशित
आपका क्या कहना है?."
अब इतना सुनने के बाद हमे कहने की क्या आवश्यकता है...? सबकुछ अन्तर्निहित है। :)
बहुत सुन्दर ! जब जब आपकी चिट्ठा चर्चा में मेरा नाम दिखता है, आपकी चिट्ठा चर्चा गजब की सुन्दर लगने लगती है । तभी यह भी समझ आने लगता है कि आप सबके पसन्दीदा चिट्ठाकार क्यों हैं ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
पुनश्च कुछ चिट्ठे मैं खोल नहीं पा रही थी पर आपके चिट्ठे से क्लिक करने पर खुल गये । धन्यवाद ।
घुघूती बासूती
शुक्रिया समीर भाई बहुत अच्छी चर्चा रही है आपका हम सबको आशीर्वाद एसे ही मिलता रहे....
जवाब देंहटाएंसुनीता(शानू)
आप एक दिन क्यों रोज गीत लिखिए । हां ! पंगेबाज जब तैयार हैं तो गले डाल ही दीजिए
जवाब देंहटाएंआपके चिट्ठे की तो बात ही क्या। हर बार नया अंदाज।
जवाब देंहटाएंयों तो समय नहीं था, फिर भी थोड़े निमिष चुरा लाये हैं
जवाब देंहटाएंयही देखने को , लालाजी, चर्चा में क्या बतियाये हैं
चलो आपके साथ पढ़ेंगे हम भी, एक रोज़ फिर लिख कर
भाग रहे हैं, मीटिंग वाले हमको फिर से बुलवाये हैं
आपके प्रयास देखकर प्रसन्नता हो रही है-दीपक भारतदीप
जवाब देंहटाएंसमीर भाइ चार वोट मिल गई अब दे ही दो एडवांस बाकी क्वालिटी की अपनी कोई गारंटी नही
जवाब देंहटाएं:)