शुक्रवार, जुलाई 25, 2008

भूलेगा नहीं उतरते वक्त कुरते का कील पर अटक कर फट जाना

डील डील

खबर है कि:
१. उड़नतश्तरी ने अपनी एक पोस्ट पर टिप्पणियों का सैकड़ा पूरा किया।

२.आकाशवाणी मुम्बई केन्द्र ने अपनी स्थापना के ८१ वर्ष पूरे किये।

३.ज्ञानदत्त जी का गूगल रीडर भ्रष्ट हो गया है।

४. पल्लवी आंग्लभाषा की जय बोलती पायी गयीं।

५. कनाडा से मानसी ने राग मुल्तानी पेश किया। वे इस बात से खफ़ा भी हैं कि ब्लाग एग्रीगेटर उनके संगीत ब्लाग को दिखाने से परहेज कर रहे हैं।

६. संसद में एक करोड़ के नोट तो दिखे लेकिन करोड़ों की पुर्जिया गायब। अनिल रघुराज का खुलासा।

७.आलोक पुराणिक के हीरो को हैजा हो गया। अस्पताल में
नर्सों की स्माइल की रकम भी मय सर्विस टैक्स के बिल में ठुकी।

८. प्रभाकर पाण्डेय ने भैंसाडाबर के मुस्लिम लड़के की शायरी का खुलासा किया।

९. तीसरे मोर्चे की हवा निकली। पंचर का अंदेशा।

१०. विवाह, नौकरी और धंधे में कपट का खुलासा।

अब समाचार तनिक फ़ैला के मतलब विस्तार से।

अभिषेक ओझा ने बताया कि गणित का एक सवाल है जिसका हल १००० पन्नों में निकला। समय लगा केवल सात साल।

सारी दुनिया को पता है कि ज्ञानदत्त जी रेलवे में अधिकारी हैं। सैलून से ब्लाग लिखते हैं। लेकिन इत्ते से पता नहीं चलता था कि वाकई वे करते क्या हैं। आज उन्होंने अपने काम का विस्तार से हवाला दिया। उन्होंने बताया कि उन्होंने एक दिन में दफ़्तर में दस-पन्द्रह मक्खियां मारी और उपलब्धि के एहसास से लबालब भर गये। उनको इस काम के लिये रेलवे से तन्ख्वाह के अलावा एयरकंडीशनर, डीजल जनरेटर और एक आफ़िस की सुविधा मुहैया करायी गयी है। अपनी उपलब्धि के बारे में विवरण देते हुये ज्ञानजी ने बताया:
मैने अपनी पोजीशन के कागज का प्रयोग बतौर फ्लाई स्वेटर किया। एक दिन में दस-पंद्रह मक्खियां मारी होंगी। और हर मक्खी के मारने पर अपराध बोध नहीं होता था - एक सेंस ऑफ अचीवमेण्ट होता था कि एक न्यूसेंस खत्म कर डाला।


ज्ञानजी की प्रगति को देखते हुये आशा की जाती है कि अगर वे मन से लगे रहे तो दो दिन में तीसमार खां बन जायेंगे।

हर्षवर्धन त्रिपाठी के ब्लाग का जिक्र अमर उजाला में हुआ। खुशी है हमको भी।

इरफ़ान के आर्ट आफ़ रीडिंग ब्लाग के मुरीद बढ़ते जा रहे हैं। आज उन्होंने ज्ञानरंजन के कबाड़खाना के अंश सुनवाये हैं।सुनिये न! सराहिये भी।

अशोक पाण्डेय अपना मत बताते हुये कहते हैं कि किसान कर्ज माफी में ही दे दिया गया था बेईमान बनने का संदेश |

एक खास लेख

अभय तिवारी आजकल कम लिखते हैं लेकिन पढ़ते बराबर रहते हैं। अपने पिछले लेख में उन्होंने हिंदू और हिंसा पर विस्तार से विचार किया। उन्होंने इस धारणा कि हिंदू सहनशील और हिंसा विरत रहता है पर सवाल उठाया और कहा:

हमारे भारत देश में साधु और शस्त्र का बड़ा लम्बा नाता रहा है। वैदिक काल में ऋचाएं रचने वाले ऋषिगण सरस्वती के किनारे लेटकर गाय चराते हुए सिर्फ़ ऊषा और पूषा की ही वन्दना नहीं करते थे। बड़ी मात्रा में वैदिक सूक्त इन्द्र के हिंसा-स्तवन में रचे गए हैं। बाद के दौर में हमारे ब्राह्मण-पूर्वज हाथ में परशु लेकर बलिवेदी पर पशुओं का रक्तपात करते रहे हैं। परशु की चर्चा आते ही परशुराम को कौन भूल सकता है जो इस पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रिय-शून्य कर गए थे।


लेख आप खुद बांचिये और अपनी प्रतिक्रिया दीजिये। अभय का सवाल भी मौजूं है:

अभी तो बस इतना ही कि गाँधी की अहिंसा किसी भी कोण से 'हिन्दू' नहीं है वो जैन है.. 'हिन्दू' साधु का अहिंसा से दूर-दूर तक रिश्ता नहीं रहा, कभी नहीं। क्या आप किसी ऐसे 'हिन्दू' देवता को पहचानते हैं जो अस्त्र/शस्त्र धारण नहीं करते? सरस्वती जैसी एकाध देवी आप को मिल भी जायँ तो भी वे अपवाद ही रहेंगी।


एक खास कविता
तोषी (विद्या सौम्या) शायद पाकिस्तान गयीं थीं। उनके ब्लाग पर पाकिस्तान से जुड़ी कई यादे हैं। सब रोमन में लिखीं। उनके ब्लाग की ही एक कविता का देवनागरी में प्रस्तुतिकरण बेटियों के ब्लाग पर हुआ। देखिये।
रिक्शेवालों से गुफ़तगू
अपनापन सा लगना
इंडिया की बातें
उनकी आंखों का चमकना
उनकी आवाज़ की उठान
मंजिल पहुँचते-पहुँचते दोस्ती हो जाना
शुक्रिया मेहरबानी का छिडकाव
ये सब तो याद आएगा ही
भूलेगा नहीं उतरते वक्त कुरते का कील पर अटक कर फट जाना


फिलहाल इतना ही। आगे की खबरों के लिये देखते रहिये चिट्ठाचर्चा।

मेरी पसन्द



तुमको बस देखूं, तुम्हारी आँख में तारे पढूं
मुश्किलों के दिन, दियों की जोत के बारे पढूं

बन में परेशां परकटे, बादल उतर आएं जहाँ
बिजलियों के बीच बहकर, धीर के धारे पढूं

धूल उड़ बिछ जाएगी, थोड़ा सफ़र है गर्द का
ग़म समय में याद करके, याद के प्यारे पढूं

राहत मिले फ़ुर्सत करूं, फ़ुर्सत मिले राहत करूं
उलझ के ज्वर जाल टूटें, प्यार के पारे पढूं

क्या करूं क्या ना करूं, किस बात की तौबा करूं
सबसे बड़े गुलफ़ाम, तुमके नाम के नारे पढूं

इस बार से, उस पार से, हर जन्म से, अवतार से
मांग लूँ हर बार, सुख दुःख संग सब सारे पढूं

जोशिम

Post Comment

Post Comment

7 टिप्‍पणियां:

  1. ()^..^()

    हज़ूर..दस कि पन्द्रह ?


    ऎसे नहीं , खुलासा कीजिये, ज़नाब !


    मेरा मशवरा यह होता कि चलो आज एक पोस्ट न सही
    15-20 और मार लेते तो एकबारगी तीसमार न हो जाते ?


    ब्लागर पर क्या धरा है..अगड़म बगड़म, उड़न तश्तरी, फ़ुरसतिया,निट्ठल्ला,कहाँ तक गिनायें ? यह मोहल्ला ही पंगेबाज़ों का है ।

    थोड़ा टिराई करते तो आज तीसमार विभूषित होते, खेद है !

    जवाब देंहटाएं
  2. जल्द ही आने वाला है एक और नया हिन्दी ब्लाग "तीसमार खाँ"

    जवाब देंहटाएं
  3. हा हा ! तीसमारखां वाली बात जम गई !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूब और जबरदस्त.
    अति आनंदम.
    :) :) :)

    जवाब देंहटाएं
  5. जमाये रहिये जी मौज-चर्चा! रोज तीस ब्लॉगर धराशायी करते रहिये! हम नहीं तो आप ही तीसमारखां बन लीजिये! :)

    जवाब देंहटाएं
  6. are aapne to pure hindi blogger world ki jankri de dali.. bahut khoob aur yeh tees markha wala idea bhi acha raha

    New Post :
    School Days Flashback - Memories Revisited



    Online IITJEE Preparation

    जवाब देंहटाएं
  7. आनन्द आ गया. बहुत शुक्रिया. आपको चर्चा वीर चक्र से नवाजा जायेगा साल के अंत में. :)

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Google Analytics Alternative