रविवार, सितंबर 06, 2009

ब्लॉगर और वर्डप्रेस के आगे जहाँ और भी हैं...

अपना माइवेबदुनिया भी हिन्दी चिट्ठाकारों से अंटा पड़ा है. हाथ कंगन को आरसी क्या? आइए देखते हैं कि कौन कौन यहाँ अड्डा जमाए हुए हैं. चलिए, कुछ हालिया बेतरतीब चिट्ठों पर नजर मारते हैं-

 

शेफाली अपने बच्चों की ओर मुखातिब हो रही हैं -

 

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चुनमुन और रिमझिम

 

मेरे बच्चों,

किस नाम से पुकारूं तुम्हें? किमी, अवि या वो नाम जो मैंने तुम दोनों को बचपन में दिए थे..... लेकिन सिर्फ़ कुछ लोगों के कारण ज़िद में आ कर बदलना पड़े थे... और वो नाम थे "चुनमुन" और "रिमझिम"...

किमी, आज से तुम्हें फिर चुनमुन कह के पुकारने का मन है| जानती हो जब तुमने यहाँ विनय के घर उनके बड़े भाई के रुप में जन्म लिया था तब तुम्हें सब "चुन्नू" के नाम से ही पुकारते थे...

और अपने संस्मरण के अंत में वे आशीर्वाद देती हैं -

 

मेरे बच्चों मेरा आशीर्वाद है कि तुम भी प्रेम के उस मुकाम को छू लो जहां पर प्रेम परमात्मा हो जाता है.....

 

खोरेन्द्र कुमार ने अपने ब्लॉग पर जेन्नी शबनम की ग़ज़ल पेश की है –

 

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आँखों में इश्क भर क्यों नहीं देते हो...
*******

दावा करते तुम, आँखों को मेरी पढ़ लेते हो,
फिर दर्द मेरा तुम, समझ क्यों नहीं लेते हो !

बारहा करते सवाल, मेरी आँखों में नमी क्यों है,
माहिर हो, जवाब ख़ुद से पूछ क्यों नहीं लेते हो !

कहते हो कि समंदर सी, मेरी आँखें गहरी है,
लम्हा भर उतर कर, नाप क्यों नहीं लेते हो !

तुम्हारे इश्क की तड़प, मेरी आँखों में बहती है,
आकर लबों से अपने, थाम क्यों नहीं लेते हो !

हम रह न सकेंगे तुम बिन, जानते तो हो,
फिर आँखों में मेरी, ठहर क्यों नहीं जाते हो !


पूरी ग़ज़ल यहाँ पढ़ें

 

संजय की दुनिया बहुत ही रंग रंगीली है. पढ़िये उनकी एक चुटकी –

 

मन राखी सावंत का बहुत रहा है डोल




मन राखी सावंत का बहुत रहा है डोल
दूल्हे के प्रति दोस्तो बदले उनके बोल
बदले उनके बोल, हो रही है यह चर्चा
उठा न पायेगा इलेश दुल्हन का खर्चा
दिव्यदृष्टि पहले वह ढूंढ़े कोई 'खोली'
तभी चढ़े बारात सजे शादी की डोली

 

दीप रिजवी कहते हैं – हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है

 

खो मित्रो ! अब हम बोलें भी तो क्या बोलें। क्यों बोलें ?! देखो न कुछ लोग बोलते हैं सुनते नहीं और कुछ लोग सिर्फ बोलते हैं सुनते नही और कुछ कुछ भी बोले बिना सिर्फ सुनते जाते हैं .यूं की बोलने वालों पे हम क्या बोलें ,कुछ क्यों बोलें ?
इस तथ्य से तो आप सुधि जन विदित हों गे की आज कल बोलना एक फैशन हो चला है । आप चाहो तो धाराप्रवाह दहेह पर बोलो किंतु मात्र बोलना , कहीं आप ने आपने भाषण का अल्पांश भी अपना लिया तो समझना की गयी भैंस पानी में । आप अपनी बिटिया की शादी के समय यथोचित भाषण को मूर्त रूप दे सकते हैं किंतु अपने बेटे की शादी के समय हरगिज़ नही । अब बेटे बहु को जो जो मिल रहा है वो तो स्नेह्सुमन हैं दहेज तो नही है न ? दहेज तो तब होता अगर आप को देना पड़ता।...

 

तनहाई में ये शब्दों की दुनिया शीर्षक से कविता है जो हर रचनाकार के लिए क्या फिट नहीं बैठती?

 

कभी कहते हैं
अच्छा लिखती हो...
कभी कहते है
ये क्या लिखा है???
मुझे पढ़ने वालों ने कभी
सोचा नही मेरे बारे में
बस,
जिन शब्दों को मैंने चुना
कभी उन्हें
अच्छा
कभी
बुरा करार दे देते है
और
खड़ा कर देते है वो
मुझे
मेरी हर प्रविष्टि के बाद
अपने कटघरे में....

 

ऋषिकेश जोशी कमीने के बहाने अपने संस्मरण बता रहे हैं –


इसी पर बचपन की एक घटना याद आ गई। छोटे से कस्बे में पाँचवी की हिन्दी मीडियम में पढ़ाई कर शहर आया था। अगर कोई छात्र क्लास में टीचर के बाद आता तो अंगरेजी में कुछ कहता, जो कमीन सरपर खत्म होता। टीचर भी उसे कमीनकहते और क्लास में आने देते।

ऐसे ही एक दिन कारपेंट्री की क्लास थी और में लेट हो गया, लिहाजे मेंने भी बाकी लोगों की नकल कर टीचर से पूँछा कमीन सर”? टीचर ने नाराजी से पूँछा, क्या कह रहे हो? मेंने दोहराया कमीन सर। बस क्या था, टीचर को कमीनकहते हो! यह लेकर उस टीचर ने मेरी धुलाई कर दी। (उन दिनों स्कूल में पिटाई आम थी)।

अगले ही दिन मेंने एक सहपाठी को पकड़ कर पूरा वाक्य लिखवाया। तब पता चला कि वे “may I come in sir” कहते थे और टीचेर उसके जवाब में “come in” कहते थे। उस दिन की धुलाई ने मेरी अंगरेजी सुधार दी। पर कमीनशब्द का उपयोग न करने की ठान ली, क्या करता दूध का जला जो था। उस दिन से अभी अभी तक, इस शब्द से में जरा बच कर ही निकलता था।

 

सवितांश भारती बता रही हैं कि हम भारतीय किसी से कम नहीं:

 

दुनियाभर के प्रतिभाशाली बच्चों में भारत के बच्चों की भी बड़ी संख्या है और यहां के बच्चे टैलेंट के रिकॉर्ड को तोड़ते जा रहे हैं। यही हुआ, जब पिछले साल ही दक्षिण भारत के शहर मदुरै की चौथी कक्षा की 9 साल की लड़की लवीनश्री ने माइक्रोसॉफ्ट की परीक्षा पास कर रिकॉर्ड बनाया। लवीनश्री ऐसा करने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की माइक्रोसॉफ्ट सर्टिफाइड प्रोफेशनल बन गई! इसी साल मध्य प्रदेश के बैतूल में शासकीय उत्कृष्ट उच्चतर माध्यमिक विघालय में कक्षा 12 में पढ़ने वाले सागर बोडखे ने गणित में 100 में 100, रसायनशास्त्र में 100 में 98 और संस्कृत में 50 में 49 अंक प्राप्त किए। इसी साल एक और 6 साल के भारतीय अमेरिकी बच्चे प्रणव वीर ने सबको चौंका दिया। इस बच्चे का आईक्यू लेवल 176 मापा गया। सनद रहे कि महान वैज्ञानिक आइंस्टीन का आईक्यू लेवल 160 माना जाता है।

 

चलते चलते –

 

अरे! ये क्या! सुरेश चिपलूणकर यहाँ भी अड्डा जमाए बैठे हैं तो इधर बामुलाहिजा कीर्तीश भट्ट भी!

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13 टिप्‍पणियां:

  1. यह भी सही है, अच्छी चिठ्ठाचर्चा।

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  2. एक नए जगत से मिलवाने के लिए आभार।

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  3. आप जब भी चर्चा में आते हैं, कुछ तो नया ले कर आते हैं।

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  4. गज़ब है जी ...हमेशा की तरह नयी जानकारियां.....अब ये दुनिया दिखा दी है ..तो घुस के देखना ही पडेगा...बढिया चर्चा....

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  5. चिट्ठों की दुनिया बहुत ज्यादा फैली हुई है. कई अन्य साइटों पर भी ब्लॉग लिखे जा रहे हैं.

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  6. "मेरे बच्चों मेरा आशीर्वाद है कि तुम भी प्रेम के उस मुकाम को छू लो जहां पर प्रेम परमात्मा हो जाता है..."

    हां जी, जब तक बच्चे हैं, प्रेम से ही रहेंगे। बडे़ होंगे तो ,,, हर बात पर झगड़ना हि तो रहेगा:(

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  7. ओह् काफ़ी चर्चाये हो चुकी है और मेरी फ़ीड १६ अगस्त से अपडेट नही हुइ...कोइ समस्या है क्या चिठ्ठाचर्चा की फ़ीड से??

    एक बार देखे..

    धन्यवाद!!

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  8. ब्लॉगर और वर्ड प्रेस कवर करते ही बैण्ड बज जाता है, ये एक और. अब बिग अड्डा वाले लाईयेगा. :)

    आभार एक गठरी और देने का... :)

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  9. चिट्ठाकारी ने अनगिन स्थानों तक अपने पैर फैला रखे हैं । सब की यहाँ उपस्थिति होनी ही चाहिये । आपका आभार ।

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  10. अजी वेब दुनिया पर तो हम भी मौजूद है.. यही नहीं कम से कम चालीस से ज्यादा ब्लॉग बनाने वाली साईट्स पर हमारा ब्लॉग मौजूद है.. पर सुविधाओ की दृष्टि में ब्लोगर और वर्डप्रेस बेहतर है.. वेब दुनिया में कई समस्याए है..

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  11. मायवेबदुनिया की तो अपनी एक अलग ही दुनिया है. बीच बीच में भ्रमण जरूरी है.

    शुक्रिया

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  12. रीडिफ़ , सिफी , याहू के भी कदम हैं यहाँ

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