ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत के लिंक पर कुछ छोटे बड़े शब्द साइड में दिखाई देते रहते हैं.... सोचा क्यों न उनमें किसी भी शब्द को क्लिक करके उसी पोस्ट को पढ़ा जाए ...एक दो ब्लॉग पढ़ने के बाद फिर चंचल मन इधर उधर दौड़ने लगा.... अपने रीडर में से भी कुछ पोस्ट पढ कर चिट्टाचर्चा करने बैठ गए.....
सपनों की दुनिया में महफूज़ अली....
ख़्वाबों की दुनिया में जीना कितना अच्छा लगता है,
होता है वहाँ बिल्कुल
वैसा जैसा कि
हम सोचते हैं।
समय ओर
समाज की परतो में
दबा
प्रेम
मज़बूरी
की कार्बनयुक्त
काली
चट्टानों के बीच
कराहता
है।
राजतंत्र में रामराज्य की बात हो रही है जो सच में हैरानी की बात है....
क्या आप अपने देश में एक ऐसे गांव की कल्पना कर सकते हैं जहां पर अपराध न होता हों, न कोई शराब पीता हो, और जहां कभी पुलिस के पांव भी न पड़े हों। आपको कल्पना करने की जरूरत नहीं है हम आपको हकीकत में एक ऐसे गांव के बारे में बताने वाले हैं जो अपराध से अब तक अछूता है।
द्विवेदीजी कुछ और ही बयान कर रहे हैं , उनकी बात को भी नकारा नहीं जा सकता....
आज के युग ने व्यक्ति को कितना आत्मकेन्द्रित और स्वार्थी बना दिया
है।
बेटियां आदमी को इंसान बनाती हैं...और मकान को घर ....
मैं खुश हूँ के तुने मुझे हाशिये में रक्खा है
कम-से-कम वो जगह तो पूरी की पूरी मेरी है ...
श्राद्ध पक्ष चल रहा है। हमें वे बुजुर्ग याद आ रहे हैं, जिनकी ऊंगली थामकर हम जीवन
की राहों में आगे बढ़े। उनकी प्रेरणा से आज हम बहुत आगे बढ़ गए हैं, लेकिन हमारी इस
प्रगति को देखने के लिए आज वे हमारे बीच नहीं हैं।इस विषय पर एक गम्भीर और लम्बी चर्चा हो सकती है॥ लेकिन उससे पहले एक वृद्धाश्रम में जाकर कुछ बुर्ज़ुगों से बात करने की इच्छा है.... तभी किसी ठोस नतीजे पर पहुँच कर ही चर्चा की जा सकती है...
इस कविता के भाव अंर्तमन को भा गए.....
आज है बेचैन मन कुछ बात करने को प्रिये !एकरस इतनी विलम्बित मौनता अब हो रही है भार,जब सतत लहरा रहा शीतल रुपहला स्निग्ध पारावारहै बेचैन मन उन्मुक्त मिलने को प्रिये !शुष्क नीरस सृष्टि में जब छा गये चारों तरफ़ नव बौरभाग्य में मेरे अरे ! केवल लिखा है क्या अकेला ठौर ?हो रहा बेचैन मन कुछ भेद कहने को प्रिये !
आज की चर्चा में कुछ तकनीकी खराबी दिख रही है लेकिन फिर भी आज की ही तिथि में पब्लिश कर ही दी :)
सबका दिन मंगलमय हो.... !
जवाब देंहटाएंआज है बेचैन मन कुछ और.. कुछ और पढ़ने के लिये
तकनीकी खराबी तो बहाना है,
लगता आपको कहीं और भी जाना है !
अच्छे लिंक.. पर प्यास नहीं बुझी..
पाठको को चर्चा पर डाइटिंग करवाये जाने का आभास हो सकता है ।
उनको न हो, मुझे तो हुआ !
achhi chithaa charcha
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा है आभार्
जवाब देंहटाएंचर्चा अच्छी है
जवाब देंहटाएंअमर जी सही कह रहे है:)
चलिये, जितनी भी की, कर तो दी और वो भी बढ़िया. आभार.
जवाब देंहटाएं"बचपन में नानी के कहने पर जब कभी भागवत गीता पढ़ने को दी जाती..."
जवाब देंहटाएंनानी की कहानी खत्म होती तो बच्चे कहते... आगे क्या हुआ... तब नानी कहती- रात बहुत हो गई अब सो जाओ...
चर्चा पढ़कर कुछ वैसा ही अनुभव हुआ:)
सब कुछ ठीक ठाक नहीं है ...क्योंकि आज 9 सित होने बावजूद चिट्ठाचर्चा की फीड 16 अगस्त की पोस्ट दिखा रही है ये तो भारत की गति को भी मात दिये दे रही है...
जवाब देंहटाएंbahut bahut acchi lagi aapki chittha charcha..
जवाब देंहटाएंaabhar..
आपकी चर्चा पढ़कर एक विचित्र आत्मीय भाव जागता है । ऐसा लगता है कि प्रत्येक प्रविष्टि स्नेहाभिभूत होकर पढ़ती हैं आप फिर उसे दुलराने के लिये यहाँ चर्चा में उनका उल्लेख कर दिया करती हैं ।
जवाब देंहटाएंआभार ।
चिट्ठा चर्चा का एक और वस्तुनिष्ठ तरीका !
जवाब देंहटाएंअच्छा तरीका है चर्चा करने का
जवाब देंहटाएंअब कोई अपनेपन का आरोप
नहीं लगा पाएगा
लगाएगा तो लिंक में अपना
नाम न आने का ही आरोप
लगा पाएगा।
ACHEE CHARCHA HAI ... KAVITA KE BAHOOT CHITHE EK SAATH .....
जवाब देंहटाएंना रही नानी , ना रही कहानी
जवाब देंहटाएंअब तो सब कम्प्यूटर ही सुने सुनाये कहानी