जी हाँ, बिग अड्डा पर और भी अड्डे हैं, और खालिस हिन्दी में हैं. क्या हुआ जो बिग-बी वादा करने के बाद भी हिन्दी में नहीं लिख पा रहे हैं. और, बिग अड्डा पर हिन्दी की एक पोस्ट है – आपने सही कयास लगाया - धार्मिक किस्म की पोस्ट है, जिस पर 643 टिप्पणियाँ दर्ज हैं!
जब बिग-अड्डा की शुरूआत हुई थी, तो जोर शोर से इस ब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म को प्रमोट किया गया था. मैंने भी एक खाता जांच-परख के लिए खोला था, परंतु कुछ ही समय में इसकी अपेक्षाकृत (अन्य ब्लॉग प्लेटफ़ॉर्म की तुलना में) बेकार और एकदम सड़ेली सुविधाओं के कारण दुबारा वहां रूख नहीं किया. बिग-बी के अलावा कुछ प्रतिबद्ध और कुछ नौसिखुओं किस्म के हिन्दी चिट्ठाकार अभी भी बिगअड्डा में गाहे बगाहे लिखते रहते हैं. कुछ खोजबीन करते हैं –
शुरुआत करते हैं रवि कवि (ये मैं नहीं हूं!) की एक हास्य-व्यंग्य कविता से:
पैसे की नींव पर इलेक्ट्रोनिक मीडिया…..
देख झगड़ते दो बन्दर
बिल्ली ने तिकड़म लगाईं
बना के खुद को ही जज
खा गयी सबकी मलाई
ये घटना कोई किस्सा नहीं है
है एकदम सच्ची बात
बिल्ली से ही प्रेरणा पाके
आज की इलेक्ट्रोनिक मीडिया (व्यापार) अस्तित्व में आई है
नाम खबर है पर
भर भरके मसाला
बाँट रहे है यह सब जग को
चिंगारी को आग बना के
डरा रहे है यह सबको
मामूली से मामूली घटना
होती है बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़
खुद को बनाके उपदेशी... (आगे पढ़ें...)
अमितसिंह कुशवाहा बिग-अड्डा के अपने चिट्ठे पर लिखते हैं -
“...विकलांगों को सहानुभूति नही, समानुभूति की दरकार है
प्रकृति ने जिनके शरीर में कोई कमी छोड़ दी उन्हें विकलांग कहकर उनके दुर्भाग्य के लिए प्रकृति के अन्याय को दोषी माना जाया है। लेकिन सच तो यह है की प्रकृति ने इनके साथ जितना बड़ा अन्याय किया उससे कहीं बड़ा अन्याय हमारा समाज करता है।
वे अपनी एक छमता खोकर भी शेष छमताओं से अपना भाग्य संवार सकते हैं लेकिन समाज उन्हें दया का पात्र बनाकर रखने पर मानो आमादा रहता है। उन्हें कमजोर और नकारा समझा जाता है।
परिवार और समाज का नजरिया विकलांगों के प्रति गैर जिम्मेदाराना होता है। उन्हें दरकिनार और शोषित किया जाता है।....”
इधर चैतन्य तीर्थ पूछते हैं –
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा .
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा .
जीवन का एक ऐसा साथी है ,
जो दूर हो के पास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
हवा का एक सुहाना झोंका है ,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा .
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा .
कवि दीपक शर्मा का चिट्ठा तो कविताओं से अच्छा खासा सम्पन्न है. एक कविता पढ़ते हैं –
ना जाने क्यों तेरी आवाज़ सुकुन देती है बहुत
ना जाने क्यों तेरे ख्याल से दिल हो शादाब जाता है
जब भी सोचता हूँ तन्हाई मे जिंदगी की बाबत
चेहरा तेरा मुस्कुराता नज़र के सामने आता है
मुझे मालूम नहीं क्या है तेरा मेरा रिश्ता क्यों कर
तेरी आवाज़ जिस्म से रूह तक उतरती जाती है
बिग-अड्डे में थोड़े आगे बढ़े तो अमलेन्दु उपाध्याय के ब्लॉग से परिचय हुआ. नाम कुछ जाना पहचाना सा लगा. अमलेन्दु के एक पुराने आलेख में बताया गया है कि बहन जी (मायावती, जो अपनी, अपने चुनाव चिह्न इत्यादि की मूर्तियाँ स्थापित करवाने के चक्कर में अभी फिर चर्चा में हैं) को गुस्सा क्यों आता है-
“...मायावती क्या अपनी करतूतों का बचाव कर पाएंगी? विगत दो वर्ष में प्रदेश रसातल में पहुंच चुका है। सारे माफिया, बडे अपराधी और चोर उचक्के बहन जी के कारवां की शोभा बढा रहे हैं। बहन जी भी पूरी तल्लीनता से अपनी और अपने आराध्य कांशीराम की पत्थर की मूर्तियां लगवाने में ही प्रदेश का सारा धन और मशीनरी फूंक रही हैं। क्या तमाशा है कि जब एक दलित महिला से बलात्कार हो जाता है तब प्रदेश का पुलिस महानिदेशक हैलीकॉप्टर से पीडत के घर जाता है और लोगों को इकठ्ठा करके धमकी देता है कि किसी ने भी इस घर की तरफ ऑंख उठाकर देखा तो खैर नहीं। अब उस बहादुर पुलिस महानिदेशक, जिसकी बहादुर फौज को एक अकेला डकैत सिर्फ एक राइफल से ५२ घंटों तक टक्कर देता है और चार जवान की बलि ले लेता है, से सवाल पूछा जाए कि महोदय आफ बहादुरी भरे वक्तव्य का क्या मतलब है और क्या पच्चीस हजार रुपये से किसी दलित की इज्जत वापिस लौट आएगी? जाहिर है कि इस वक्तव्य से सिर्फ मायावती का वोट पक्का होगा और कुछ नहीं और इसके लिए मायावती पूरा प्रयास भी कर रही हैं...”
इधर खुशाल स्वर्णबेर एक पड़ताल कर रहे हैं कि भारत की आजादी के 62 साल की उपलब्धि है नकली सामान. उनकी फेहरिस्त यूँ है-
क्या-क्या नकली-
नोट- 100, 500, 1000 के नकली नोटों का जाल
खाद्य पदार्थ- तेल, घी, दूध, मक्खन, खोवा, आइसक्रीम, बिस्किट, चॉकलेट।
कई प्रकार की दवाईयां
आटोमोबाइल में टू-व्हीलर,फोर व्हीलर के तमाम नकली पार्ट्स
इलेक्ट्रीकल्स, इलेक्ट्रानिक्स की तमाम चीजों के नकली माल बाजार में उपलब्ध
ब्रांडेड कंपनियों के नकली कपड़े
विभिन्न यूनिवर्सिटी/ कालेजों के नकली मार्कशीट
टू-व्हीलर/ फोर व्हीलर के ड्राइविंग लायसेंस एवं कागजात
चेहरे पर लगाने वाले क्रीम, पाउडर, हेयर आयल इत्यादि।
और, अंत में –
आपको बिग अड्डा का एक अंग्रेज़ी का ब्लॉग पढ़वाते हैं. फ़िल्मकार विवेक शर्मा की ये ब्लॉग प्रविष्टि जरूर पढ़ें. इसमें उन्होंने चूही चावला के बारे में एक छोटा सा टुकड़ा लिखा है और ये भी लिखा है कि किस तरह से वो खुद झोपड़ पट्टी में रहते हुए, भूखे पेट रहते हुए, बेस्ट की बसों और लोकल ट्रेन के धक्के खाते हुए एक सफल फ़िल्मकार बने –
“...I told her that I have stayed in jhopad-patti… walked from Worli to Bandra… starved for days but it was my passion for cinema which kept me alive in this field. And of course self-motivation. She was amazed and happy that I have gone through so much in life and never went wrong.
When we get this power of self motivation no power on earth can stop us to achieve what we desire.
We don’t need any Guru as our own inner strength is our Guru.
We generally look for someone who can push us or to motivate us. I have lived whole my life alone and fixed my own deadline to complete any work with success. Trust me. It’s just self motivation which keeps you alive and aggressive to keep going.
The way Juhi Ma conducts her life and remains happy always I feel we also can achieve that state of mind with little self motivation.
Hai na… ...”
जी हाँ, विवेक, आपने सही फरमाया.
चलते चलते –
उस चिट्ठे की चर्चा जिसकी चर्चा शुरूआत में ही की गई थी.
राजेन्द्र जोशी के पोस्ट गंगोत्री यानी गंगा का मायका में 643 टिप्पणियाँ दर्ज हैं. और, हाँ जी, ये पोस्ट हिन्दी में ही है. इस लिहाज से तो यह किसी भी हिन्दी चिट्ठे की सर्वकालिक सर्वाधिक टिप्पणियाँ प्राप्त करने वाला ब्लॉग पोस्ट होगा? शायद हाँ, शायद नहीं. आपका क्या खयाल है? नीचे स्क्रीनशॉट पर नजर मारें:
टिप्पणी मॉडरेशन का मजाक उड़ाने वालों का ऐसे हमलावरों से सामना, ईश्वर करे जल्द ही हो...
बिग अड्डा पर हमने भी अपना एक अड्डा बनाया था, पर जमा नहीं । खैर वह मेरी प्रतीक्षा में होगा । बिग अड्डा के अड्डों के बारे में चर्चा सुखकर है । आभार ।
जवाब देंहटाएंबिग अड्डा पर हम भी गए थे एक चिटठा बनाया जाँच पड़ताल की और वापस अपने घर (ब्लॉगर ) पर लौट आये !
जवाब देंहटाएंबिग अड्डा पर जाने की सोची थी फिर सोचा बकबास है अपना शहर जबलपुर ही सबसे अच्छा अड्डा है .
जवाब देंहटाएं“...I told her that I have stayed in jhopad-patti… walked from Worli to Bandra… starved for days .."
जवाब देंहटाएंमुम्बई की मायानगरी में यह कोई अजूबा नहीं है। नौशाद भी कोलाबा से दादर तक पैदल चल कर आते थे!!!!!
चिट्ठा चर्चा बढ़िया रही,
जवाब देंहटाएंचिट्ठाकारी में एक से बढ़कर एक अड्डे हैं।
सही ही फरमाया है
ये बहुत पहले की बात है कि बिग अड्डा पर हमने अपना एक ब्लॉग बनाया था पर ब्लॉगस्पोट में जल्द आसानी और सुविधाओं के चलते वहां से हम विमुख हो गए। विवेक शर्मा जैसा साहस हर किसी के पास हो। और चलते-चलते कई बार सोचा है कि मॉडरेशन करू पर पता नहीं क्यों रुक जाता हूं।
जवाब देंहटाएंफ़िल्मकार विवेक शर्मा की ये ब्लॉग प्रविष्टि जरूर पढ़ें. इसमें उन्होंने चूही चावला के बारे में एक छोटा सा टुकड़ा लिखा है
जवाब देंहटाएंसरजी, ये कौन सी हिरोईन आगई?:)
रामराम.
हिन्दी हर भारतीय का गौरव है
जवाब देंहटाएंउज्जवल भविष्य के लिए प्रयास जारी रहें
इसी तरह जानकारी पूर्ण चर्चाएँ ,लिखते रहें