- बहुत से प्रसन्न चित्त लोग इठलाते मिल जायेंगे जो गर्व से कहते हैं कि यार हमें परेशान रहना पसंद नहीं. हम तो परेशानी में भी मस्त रहते हैं. उनसे मेरा कहना है कि मित्र वक्त से डरो. कब कौन परेशानी चली आयेगी बिन बुलाए, जान भी न पाओगे. समीरलाल
- प्रतिष्ठित संस्थानों में आर्थिक अथवा अन्य सुविधाओं का प्रलोभन देकर, अधिक समय तक काम लेने की प्रवृत्ति ने अधिकारी-कर्मचारियों को भी खास तरह के नशे का शिकार बना दिया है। उनमें से तो अनेक न केवल इसे उचित मानते हैं बल्कि उन्हें लगता है कि इससे उन्हें कुछ धनलाभ हो रहा है, वह बरकरार रहना चाहिए। यह अतिरिक्त आय का नशा है जिसमें वे भूल जाते हैं कि इस तरह वे रोज-रोज `कम मनुष्य´ (less human) हो रहे हैं और उन सब नकारात्मकताओं और मुश्किलों की जकड़न में आ रहे हैं जिनका कुछ विवरण ऊपर दिया गया है। कुमार अम्बुज
- हमें विश्वास नहीं होता सहसा,
पेड़ों का इतिहास जानकर कि
समस्त प्राणियों का भार
वहन करने वाली धरती
टूट रही है धीरे-धीरे अब। सुशील कुमार - मैं लगभग रोज लिखता रहा। ये एक ऐसा दौर था जब काम के स्तर पर पूरी तरह बेराजगार था। ये अलग बात है कि जिस दिन से मैंने नौकरी छोड़ी,उसी दिन से ही फैलोशिप के पैसे जोड़कर मिलने की बात से पैसे को लेकर इत्मिनान हो गया। लेकिन सत्रह-अठारह घंटे की व्यस्तता के बीच अचानक ब्रेक आ जाने से ब्लॉगिंग करने के अलावे मेरे पास कोई दूसरा ठोस काम नहीं था। विनीत कुमार
- मुझे झूठ सख्त नापसंद है। यदि वह किसी को, किसी निरीह को भारी मुसीबत से बचाने के लिए न बोला गया हो। अब आप पूछेंगे कि मैं वकालत कैसे करता हूँ? तो कह रहा हूँ कि सच बोल कर अधिक अच्छी वकालत की जा सकती है। दिनेश राय द्विवेदी ताऊ से बतियाते हुये
- घंटी, आरती और भजन के शोर में चुपचाप
जाने कब निकला वह मनुष्य की नज़रें बचाकर
समा गया कुदाल-फावड़ों ,
आरी-बसूलों और छेनी-हथौड़ों में । शरद कोकास - पूरी भरने से पहले ही गगरी छलक गई
बैरिन लट गुंथने के पहले औचक उलझ गई।अमिताभ श्रीवास्तव - धरती का श्रृंगार अमर है पेड़ों की हरियाली से,
कदम-कदम पर ये जीवन में काम हमारे आते हैं।डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक - ब्लोगवाणी में अपने ही ब्लोग को क्लिकिया क्लिकिया कर 'आज अधिक पसंद प्राप्त' और 'आज अधिक पढ़े गये' वाली संख्याओं को बढ़ा देने से क्या ब्लोग पॉपुलर हो जाता है? नहीं होता भइया, इतना तो समझना चाहिए कि पीतल पर सोने का पानी चढ़ा देने से पीतल सोना नहीं हो जाता। वो कहते हैं ना "हर जो चीज चमकती है उसको सोना नहीं कहते"।जी.के. अवधिया
- स्वादिष्ट भोजन बना कर मित्रों को खिलाना और साथ खाने के आनंद का कोई सानी नहीं। नगरीय जीवन में यह आनंद बहुत सीमित रह गया है। दिनेशराय द्विवेदी
- अल्बर्ट आइन्स्टीन अपनी जिस थ्योरी के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है उसका नाम है सापेक्षकता का सिद्धांत। लेकिन यह बहुत कम लोगों को मालूम है कि जिस गणितीय मॉडल यानि डिफ्रेंशिअल ज्योमेट्री (Differential Geometry) की सहायता से आइन्स्टीन ने अपनी थ्योरी डेवलप की, उसका जन्मदाता था जर्मन गणितज्ञ बर्नहार्ड रीमान।जीशान हैदर जैदी
- लकडी की बड़ी आलमारियों में चीज़ें ठुँसी पड़ी थीं । उनकी दराज़ों में गये दिनों की महक कैद थी , समय रुका जमा था । बाबा की वर्दी , बर्मा से लाई गई काही खोल वाली मिलिट्री थर्मस , कोई ऐयरगन , भारी बूट , छर्रे , शेफील्ड नाईव्स , मोटे चमड़े के बेल्ट । रसोई की जाली वाली खिड़की से पनडुब्बी चिड़ियों का शोर सुनाई देता । दो ईंटे जोड़ कर खड़े होने से बाहर का नज़ारा सही सही दिखता । अँधेरे में रौशनी का एक टुकड़ा । मुन्नी दी की हँसी भी तो रौशनी का एक टुकड़ा थी । प्रत्यक्षा
- रोज दिखावे करते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर,
ज़ख़्मों पे मरहम धरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिरविनोद कुमार पाण्डेय - जो चली इश्क़ की पुरवाई
सिंदूरी शाम हौले मुस्कुराई
इस अदब से बाहों में कैद किया
खिली रजनीगंधा ,महकी शरमाई MEHEK - ना नींद रहे ना चैन रहे , कुछ समझ ना मन को आये !
जब एक झलक की आस लिए दिल नाम वही दोहराये !शुभा्शीष पाण्डेय - गए दिनों, ‘यौन शिक्षा’ को लेकर हमारे यहाँ बहुत बड़ा बवण्डर उठा था और लगा था मानो हमारी संस्कृति पर प्रलय आ गया है। यौन शिक्षा के नाम पर छिटकने वाले तमाम लोगों को यह किताब अवश्य पढ़नी चाहिए। इस विषय को यदि इस किताब की तरह प्रस्तुत किया जाए तो बारहवीं कक्षा के बाद बाद वाली कक्षाओं में यह विषय आसानी से, बहुत ही सहजता/सरलता से पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है।विष्णु वैरागी:
एक लाईना
- परेशान हो जाता हूँ मैं.. : बिना किसी वजह के!
- पोस्ट हिट कराने के पांच फंडे :अपने जोखिम पर ही अमल में लायें!
- बीच का पुल :किसी किनारे से देखिये!
- बाप रे !! मैं तो सचमुच की ज्योतिषी हो गयी !! इष्टदेव से बातचीत करके
- बे-बहर ख्याल : को गुरुजी ही बहर में ला सकते हैं
- तेरे मासूम सवालो से परेशान हूं मै! : खुद भी कभी यही किया है वो भूल गये
- आज साईज़ बडा है...कई चिट्ठों को पढा है :मामला पाकेट साईज़ से बढ कर थाली साईज़ पर अड़ा है
- स्वादिष्ट भोजन बना कर मित्रों को खिलाने और साथ खाने का आनंद :प्रदान करने हेतु अगली गाड़ी से कोटा पधारें
- हाय गज़ब ! कहीं तारा टूटा : अब डांट पडे़गी
मेरी पसन्द
तुमने लिखी
धरती
और वह हरी हो गई
तुमने आकाश लिखा
और वह नीला हो गया
तुमने सूरज लिखा
और वह छुप गया बादलों की ओट
तुमने चाँद लिखा
वह मुस्कराता रहा रात भर
तुमने हवा लिखी
नहा लिया उसने चंदन पराग
तुमने मुझे ही तो लिखा
बार-बार
लगातार
सुशीला पुरी
और अंत में
आज चर्चा की जिम्मेदारी शिवकुमार मिश्र की थी। वे न जाने कहां व्यस्त हो गये आज! लिहाजा हमने सोचा हम ही कर डालें चर्चा।
अब चर्चा कर डाली तो पिछली पोस्ट के सवालों के कुछ जबाब भी दे दिये जायें। मैंने अपनी पिछली चर्चा में खुशदीप सहगल के ब्लाग पर विवेक सिंह के बारे में हुई एक टिप्पणी का उल्लेख किया था और अपनी राय व्यक्त थी कि विवेक के बारे में की गयी टिप्पणी हटा दी जानी चाहिये।
उस मसले पर अन्य साथियों के अलावा आशीष खण्डेलवाल, ताऊ रामपुरिया और समीरलाल जी के कुछ सवाल हैं। समझाइस भी। मैं उनके सवालों पर संक्षेप में अपनी बात रखना चाहता हूं।
आशीष खण्डेलवाल ने यह जानना चाहा है कि
अगर ब्लॉग के पाठक का सम्मान बचाने के लिए फुरसतिया जी ब्लॉग से टिप्पणी मिटाने के पक्ष में हैं तो चिट्ठाचर्चा की इस पोस्ट पर मेरे सम्मान को निशाना बनाने वाली छह टिप्पणियां पिछले करीब डेढ़ महीने से मौजूद क्यों है?
आशीष वे टिप्पणियां वहां इसलिये मौजूद हैं कि मेरी समझ में उनमें आपके सम्मान को निशाना बनाने जैसी बात नहीं लगी। किसी ब्लागर की टिप्पणी आपने प्रकाशित नहीं की उसने अपनी बात वहां रखी और आपने बाकयदा उनके जबाब दिये। आपने अपना पक्ष बताया उसने अपना अपना रखा। न आपने और न उसने एक दूसरे खिलाफ़ बेहूदगी की बातें की। जबकि यहां एक अनाम ब्लागर ने विवेक को धूर्त , मक्कार और (याद नहीं मुझे क्या और कहा था....) बताया था। दोनों स्थितियां भिन्न हैं मेरी समझ में। किसी बात पर आपसे सवाल किया जाना और आपको सीधे मक्कार, धूर्त बताकर आपका बहिष्कार करने की बात कहना -मेरी समझ में दो अलग बातें हैं। अगर आप अपने से सवाल किये जाने को अपना असम्मान समझते हैं तब फ़िर बात ही अलग है।
समीरलालजी ने समभाव का अभाव की बात कही। आशीष और विवेक के मसले अलग-अलग हैं मेरी समझ में। एक में सवाल-जबाब हैं दूसरे में एक तरफ़ा धिक्कार और थू-थू। क्या दोनों भाव समभाव हैं?
ताऊ रामपुरिया के सवाल मैंने समझा था कि शायद ब्लाग वकील के ही होंगे लेकिन ताऊ जी ने बताया कि वे उनके ही सवाल हैं। सारे सवालों का लब्बो-लुआब यह है कि मैं विवेक के पक्ष में क्यों हूं और दूसरे के खिलाफ़ क्यों? देने को मेरे पास सभी सवालों के जबाब हैं लेकिन वो केवल नहले पर दहला मारने वाली बात होगी। मैंने विवेक के खिलाफ़ हुई टिप्पणी की बात हटाने की बात क्यों की और आशीष खण्डेलवाल की बताई टिप्पणियां क्यों नहीं हटाईं वो मैं बता ही चुका। इससे अधिक सफ़ाई देना मैं जरूरी नहीं समझता।
समीरलालजी का मन इस मसले पर कुछ अधिक ही उतावला है। और वे जानना चाहते हैं:
चाँद के पास वो जो सितारा है
वो न मेरा है और न तुम्हारा है
फिर ऐसी भी क्या कशिश है उसमें
कि वो तुमको यूँ जान से प्यारा है
यह मासूम सवाल बिना किसी खास मकसद के पूछा गया है लेकिन बता देना जरूरी है क्योंकि आपकी उतसुकता बनी रहेगी अन्यथा:
चांद के पास जो सितारा है
वो हमें जान से प्यारा है
चांद कलायें भले अनगिन दिखलाये
रोशनी हित सितारे का ही सहारा है।
बात विवेक सिंह की हो रही है और ताऊ/समीरलाल ने सवाल किये तो कहना चाहूंगा कि विवेक सिंह मुझे इसलिये प्रिय हैं कि उनके जैसी मौलिक सोच वाली कविता /तुकबंदी और कोई किसी के यहां नहीं दिखती मुझे। बहुत कम शब्दों में बिना तामझाम के बात कहने का सलीका विवेक जैसा मुझे और नहीं दिखता फ़िलहाल। विवेक की टिप्पणियां बहुत सटीक लगती हैं मुझे शायद इसलिये उनकी टिप्पणियां सभी टिप्पणियों से अलग होती हैं। वो हमारे पसन्दीदा चिट्ठाकार हैं , शिवकुमार मिश्र के चेले कहलाते हैं लेकिन हमारे या शिव कुमार मिश्र के भी ब्लाग पर उनकी टिप्पणी वाह वाही वाली न होकर खास टाइप की होती है।
विवेक से हमारा परिचय साल भर का होगा। जब हम उनको जानते भी न थे तब उन्होंने मुझसे नियमित चर्चा करने का अनुरोध किया था:
आज की चिट्ठाचर्चा पढकर हम अनूप जी से रिक्वेस्ट कर रहे है कि अपना कुछ लिखने का आपको पूरा अधिकार है . पर चिट्ठा चर्चा की कीमत पर नहीं . चिट्ठा चर्चा के लिये तो आपको अपने कीमती समय में से थोडा सा निकालना ही पडेगा .आप निकालेंगे कैसे नहीं आखिर हम रिक्वेस्ट कर रहे हैं .आज भी मैं उस समय के नये चिट्ठाकार के कहने पर ऐसा करने का कम से कम प्रयास करता हूं। अपनी पोस्ट चाहे न लिखूं लेकिन प्रयास करता हूं कि चर्चा न छूटने पाये! विवेक की उनकी मौलिक सोच मुझे आकर्षित करती है। इसीलिये वो सितारा मुझे प्यारा लगता है!
विवेक के लेखन के अलावा टिप्पणी करने के अपने अन्दाज हैं! हम उसमें क्या दखल दें। वसीम बरेलवी का शेर है:
नये जमाने की खुदमुख्तारियों को क्या समझायें
कहां से बच निकलना है कहां जाना जरूरी है।
तो यह विवेक को खुद समझना होगा कि कहां लोग उनकी बात किस रूप में लेते हैं। एक समर्पित ब्लाग पर लड़कपन करने के अपने उतावलेपन पर कैसे नियंत्रण रखना है!
वैसे यह देखकर अच्छा लग रहा है कि ताऊजी और समीरलालजी जो किसी विवाद में कुछ कहने से आम तौर पर बचते हैं यहां बार-बार सवाल पूछ रहे हैं ।
ताऊजी और समीरलालजी ब्लाग जगत के बेहतरीन प्रशंसको की जमात वाले लोग हैं। ऐसा मौका तो कभी नहीं आयेगा कि आपको कोई इस तरह की बातें कहे लेकिन अगर कभी ऐसा होगा तो उसका विरोध करने के लिये मैं वहां मौजूद रहूंगा। फ़िर कोई ऐसा पूछेगा कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं तो मैं उसका भी ऐसा ही जबाब दूंगा। और यह मैं आपके लिये नहीं करूंगा बल्कि अपने सुकून के लिये करूंगा।
यह सवाल मैं ताऊजी और समीरलालजी से पूछता हूं कि क्या विवेक सिंह धूर्त और मक्कार हैं? क्या उसको धूर्त और मक्कार कहे जाने वाली टिप्पणी को हटाने की गुजारिश करना गलत है?
क्या सच में आशीष खण्डेलवाल द्वारा बताई टिप्पणियां जिनमें उनके सवाल-जबाब हैं और विवेक सिंह को धूर्त और मक्कार बताने वाली बात एक ही है?
फ़िलहाल इतना ही। मजे में रहें!
बहुत अच्छी चर्चा। आज आप पुराने रंग में नजर आए। विवेक सिंह के मामले पर आप के तर्कों से सहमत हूँ। वाद विवाद बुरी बात नहीं, उस से कुछ न कुछ नया जन्म लेता है। लेकिन एक दूसरे के सम्मान को ठेस पहुंचाना ठीक बात नहीं। यदि लोग नहीं समझेंगे तो खुद छंट जाएंगे।
जवाब देंहटाएंअच्छी लगती है आपकी चर्चा शैली अनूप जी.
जवाब देंहटाएंसुशीला पुरी की कविता बहुत पसन्द आई.
कवि के मन के भाव, जब वह रचना रच रहा हो, ज्यूँ के त्यूँ पाठक के भाव हों, जब वो रचना पढ़ रहा हो-यह कम ही होता है और मेरी लेखनी में तो वो ताकत और मौलिकता भी नहीं, वरना आप कभी तो कुछ रिकनाईज़ करते. :)
जवाब देंहटाएंरचना प्रस्तुत करते हुए मैने स्पष्ट कहा था कि कोई खास मकसद नहीं है. :)
फिर भी आज के शीर्षक में और फिर आपके व्यक्त्तव्य में वही रचना दिखी, आपका आभार इसे संज्ञान में लेने का.
रही आपके सितारे की बात. हर व्यक्ति को अधिकार है कि किसे चाहे, किसे न चाहे. सो आपका भी है. मुझे क्या आपत्ति हो सकती है. ऐसा मेरे लेखन या टिप्पणी से कभी लगा हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ.
इस बात से आप निश्चिंत रहें कि ब्लॉग की किसी भी विषय से मुझमें उतावलापन आयेगा. आपके स्नेह से उतना अनुभव तो है ही. फिर भी अगर कहीं उतावलापन दिखा हो कुछ जानने का तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ.
मुझे समभाव का आभाव नजर आया तो मैने कहा. आपने स्पष्ट कर दिया कि समभाव का आभाव नहीं है, मैने मान लिया. मैने अपनी बात कही और आपने अपनी बात कही. किन्तु मेरे कहने से अगर आपको ठेस पहुँची हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ.
बात विवेक सिंह की कर रहे थे आप, मैने नहीं की थी, तो वो मुझे भी अन्य ब्लॉगर्स की तरह प्रिय हैं किन्तु इसलिये नहीं कि उनके जैसी मौलिक सोच वाली कविता /तुकबंदी और कोई किसी के यहां नहीं दिखती मुझे बल्कि इसलिए कि वो एक साथी ब्लॉगर हैं, सक्रिय हैं और उनके लेखन में विविधता है. अगर आपको मेरी बातों से ऐसा लगा कि आपका प्रिय ब्लॉगर जो आपसे नियमित चिट्ठाचर्चा का अनुरोध करता है, मुझे अप्रिय है तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ.
एकलव्य प्रकरण में जिस तरह से आपने मेरा नाम जोड़ दिया है, उससे भी मुझे कोई आपत्ति नहीं है और न ही मैं कोई विरोध दर्ज कर रहा हूँ. ब्लॉगजगत में आप मेरे वरिष्ट और मुझसे ज्यादा अनुभवी हैं अगर आपको ऐसा लगता है तो ठीक ही होगा, मुझे कोई आपत्ति नहीं. मेरी किसी भी बात में विरोध का स्वर झलका हो तो मैं उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.
मेरी वजह से आपको इतना कुछ लिखना पड़ा, एक कविता भी रचनी पड़ी, आशीष, ताऊ और मुझे एक साथ एक ही विषय पर संबोधित करना पड़ा, भविष्य में आत्म संतुष्टि के लिए हमारा साथ देने का वादा करना पड़ा-इन सब बातों के लिए आपने जो तकलीफ उठाई उसके लिए आपसे क्षमाप्रार्थी और विश्वास कायम रखने के लिए हृदय से आभार.
मैं इस विषय पर अब आगे बात नहीं करना चाहूँगा. आप करना चाहेंगे तो मैं बस इतना ही सकता हूँ:
’अनूप जी, मैं पूर्ववत क्षमाप्रार्थी हूँ.’
बस, चलते चलते यूँ ही बशीर बद्र जी याद हो आये, कोई खास मकसद नहीं पुनः,
खुदा हमको ऐसी खुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
खतावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी जियादा सफ़ाई न दे
अफ़सोस की चट्टानें दरक रही हैं ! मंगल भवन अमंगल हारी..........! विवेक की बडाई करें मगर दूसरों की उपेक्षा करके नहीं !
जवाब देंहटाएंचर्चा अंशत: ही समझ में आयी. क्योंकि मुझे आशीष और विवेक जी वाला लफड़ा तो समझ में आने से रहा.
जवाब देंहटाएंहाँ एक बहुत बड़ी बात पता चली कि "समीर जी" का दूसरा नाम आदरणीय "क्षमाप्रार्थी" है.
नाम बदल लिया? पहले विमर्श किया तो होता.
वैसे नाम अच्छा है. हिन्दी ब्लॉग में प्रसिद्ध होने के बाद यदि आप को विवाद अप्रिय है तो यह नाम सबसे सार्थक भी लगता है.
वैसे एक और विवाद समाचार में हैं. परमाणु परीक्षा जिसके दम पर हम बिन मतलब फूल रहे थे, टाँयं-टाँयं फिस्स थी. उसके लिये कोई क्षमाप्रार्थी नहीं है. समीर जी को ही जिम्मेदार ठहरा देते हैं. तड़ से क्षमा माँग लेंगे. :D
जवाब देंहटाएंपरमाणू परीक्षण के असफल होने के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ. :)
जवाब देंहटाएंआगे से ध्यान रखूँगा कि सही विस्फोट हो. :)
किसी भी संवाद में संवाद की प्रकृति व सही विनिमय की भी अपनी एक भूमिका होती है । आशीष जी के ब्लॉग पर आयी हुई टिप्पणी और उस टिप्पणीकार से हुए संवाद में मंतव्य सही संप्रेषित हुआ हो - मुझे ऐसा नहीं लगता । मुझे यह भी नहीं लगता कि आप सायास की गयी उन टिप्पणियों को और उन पर अपनी सैद्धान्तिक प्रतिबद्धता जताने वाली झुंझलाकर की गयी आशीष जी की जवाबी टिप्पणियों को संवाद मानते होंगे(या उन्हें संवाद कहा जाना उचित होगा) । इस बहाने तो संवाद की वास्तविक प्रकृति पर भी कुछ बात की जानी चाहिये ।
जवाब देंहटाएंविवेक जी की अनलंकृत मौज का शिकार सभी होते हैं- पर यह जरूरी नहीं कि वह स्बभाव हो! अलंकार न होना स्वाभाविक हो जाना है, जरूरी तो नहीं ।
समीर जी की टिप्प्णी का सौन्दर्य और उसकी मौलिकता तो निरखिये !
चर्चा बेहतर रही । चिट्ठों के अंश देकर चर्चा करना प्रीतिकर है । आभार ।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी को है पर ऐसी भी क्या स्वतंत्रता जिससे किसी की अस्मिता पर प्रश्नचिह्न लगे । न्याय जरूरी है, उसे पारदर्शी होना ही चाहिए |
जवाब देंहटाएंबहौत ध्यान से पूरा मामला देखा।
जवाब देंहटाएंसमीर जी जैसा व्यक्तित्व तो शायद ही इस ब्लोगजगत में कोई मिले।
आप लोगों के द्वारा उन्हें भटकाने के प्रायास के बाद भी उनकी इस टिप्पणी को पढ़ कोई भी साजिशकार शर्मसार हो जायेगा अगर उसमें जरा भी मानवता होगी। कितनी विनम्रता है उनके व्यक्तित्व में, शायद इस टिप्पणी को पढने के बाद यह बताने की जरुरत तो मुझे नही लगती है।
उनकी रचनाधर्मिता का कोई जबाब नही है।
आप सब लोगों से हाथ जोड़ कर निवेदन है कि उनके द्वारा हिन्दी के बढावे के लिये हो रहे योगदान में अगर साहयता नहीं कर सकते हैं तो अपनी साजिशों और नाम के लिये किये गये षणयंत्रों से उनकी इस यात्रा में बाधा न डालें।
आपसे सविनय प्रार्थना है।
पढ़ लिया जी...।
जवाब देंहटाएंकुछ बोलने से परहेज करना चाहता हूँ।
विवेक के लेखन के अलावा टिप्पणी करने के अपने अन्दाज हैं! हम उसमें क्या दखल दें।
जवाब देंहटाएंthen why tell others also how to comment and what to comment and what to delete
क समर्पित ब्लाग पर लड़कपन करने के अपने उतावलेपन पर कैसे नियंत्रण रखना है!
oh a father of two children is still a child how will he take to grow up ???
क्या उसको धूर्त और मक्कार कहे जाने वाली टिप्पणी को हटाने की गुजारिश करना गलत है?
how many times have you read other comments where many others have been called with even dirtier names , why you never raised any objections then
क्या सच में आशीष खण्डेलवाल द्वारा बताई टिप्पणियां जिनमें उनके सवाल-जबाब हैं और विवेक सिंह को धूर्त और मक्कार बताने वाली बात एक ही है?
why make a hue and cry about a blogger , this platform is meant for blogs and not bloggers
if a child is not willing to grow up then lets not forget "spare the rod and spoil the child "
i am sure your favorite child will grow up in your patronage as they say like father like child so till then
happy parenting
विवेक सिंह मुझे इसलिये प्रिय हैं कि उनके जैसी मौलिक सोच वाली कविता /तुकबंदी और कोई किसी के यहां नहीं दिखती मुझे। बहुत कम शब्दों में बिना तामझाम के बात कहने का सलीका विवेक जैसा मुझे और नहीं दिखता फ़िलहाल।
जवाब देंहटाएंwow
can we PLEASE have your qualifications in hindi language and literature so that we know how qualiified are you ? to judge so many ILLITERATES blogging in hindi .
this quote of yours should be an eye opener for all otherswho clap hands on this platform or comment
अनूप जी नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंपहले तो मै भी अपना ब्लागिंग का अनुभव बता दू मुझे भी लिखते करीब ३ महीने ही हुआ है लेकिन आप सब को पढ़ते लगभग नहीं पूरे सही सही २ साल हो गया .
२ साल के अन्दर आप सब ने जहा जहा जो जो लिखा है पढा है और टिपियाया है सब अक्षरशः याद है और उन सब में सिर्फ ३ लोगो का नाम हमेशा विवाद में रहा है आर शिकार सभी बड़े छोटे मझले ब्लॉगर हुए है .
इस तरह के बर्ताव से तो मुझे अपने यहाँ किसी शादी विवाह में काम कर रही नाइ और उसकी बीबी और बच्चे की याद दिलाते है , जिसके यहाँ बरात होती है उसका लड़का खराब रहता और नाइ का लड़का स्मार्ट लेकिन नाइ के लडके के उपेक्षा होती है और नाइ और उसकी बीबी फिर भी दात निकाल के हस देते है बस क्युकी कोई चारा नहीं रहता है
इतनी बड़ी कहानी बताने का मतलब सिर्फ ये है कि यहाँ सब बरात और लडके वाले ही है नाइ और उसका लड़का कोई नहीं इसीलिए किसी और के बारे में टिप्पणी करने से पहले काफी कुछ सोचना पङता है .
ये कोई सफाई देने की बात नहीं है कि विवेक जी अच्छे है वो तो सब जानते है कि कैसे है .
और रही बात लिखने पदने की तो मै तो यही कहूगा कि कौन अच्छा लिखता है इसका अन्दजा तभी लगाया जा सकता है जब सबका पढा जाए
एक साथ समीर जी ताऊ जी औ आशीष जी को जव्वाब देना मुझे उचित नहीं लगा .
अगर कुछ गलत हो तो मै पूर्ववत क्षमाप्राथ्री
ye vivad ho kis kis ke madhya raha hai bhai...???
जवाब देंहटाएंचर्चा में बहुत अच्छे लिंक्स दिए गए है.. बढ़िया रही..
जवाब देंहटाएंइस विवाद पर हम इसलिए कुछ नहीं बोलेंगे क्योंकि जिन लोगो का नाम है.. हमने उन्हें किसी विवाद में कुछ बोलते नहीं देखा.. :)
बहुत ही बढि़या चिठ्ठा चर्चा, सुशीला पुरी जी की कविता बहुत ही सुन्दर लगी, बधाई ।
जवाब देंहटाएंलगता है चिट्ठाजगत की ग्रहदशा कुछ ठीक नहीं चल रही है...:))
जवाब देंहटाएंफुलछतिया चचा.. आपकी मीठी गोली छानदाल लगी.. यमी यमी..
जवाब देंहटाएंआज एक ब्लॉग की किसी पुरानी पोस्ट पर वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार कन्हैया लाल नंदन जी का यह कथन पढ़ रहा था-
“अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरूपयोग जो करता है सबसे अधिक खामियाजा उसे ही भुगतना पड़ता है.”
इसी ब्लॉग की एक अन्य पोस्ट पर यह भी लिखा था कि कन्हैया लाल नंदन जी फुरसतिया चचा के मामाजी हैं :)
हैपी ब्लॉगिंग
Thax aashish your comment does throw light on the self appointism as literary head
जवाब देंहटाएंसमीरलालजी, इस ब्लाग पर माडरेशन लगे न होने का फ़ायदा आपने उठाया और इत्ती सारी क्षमा रेल यहां ठेल दी। माडरेशन होता तो आपकी सारी क्षमा छांट के आपको वापस भेजकर तब टिप्पणी प्रकशित की। आपने अपने क्षमा बम बरसाते हुये जो भी बातें लिखीं वे हमारे तर्कों की विनम्रतापूर्वक धज्जियां उड़ाने वाली हैं।
जवाब देंहटाएंइस तरह की शानदार क्षमा आपै मांग सकते हो जी कि क्षमा-क्षमा करते जा रहे हैं और धांस-धांस के तर्क तराजू से तौल के विनम्रता बम बरसाते जा रहे हैं।
एकलव्य की सहज चुहल को आप प्रकरण बताकर उस पर एतराज न जताकर जो वीरता आपने दिखाई और जिस तरह उसका गाना गया उससे आपके प्रति श्रद्धा उमड़ रही है। लेकिन यह भी लग रहा है कि ये बबुआ समीरलाल का हास्य बोध इत्ता चिरकुट कैसे हो गया कि ऐसी-वैसी बात को प्रकरण बताने लगे और उसका भी धांस के बाजा भी बजा रहे हैं क्षमा बैंड के साथ।
एक सीधा सवाल हमने पूछा था कि एक कोई अनामी किसी को सीधे-सीधे धूर्त और मक्कार बता रहा है क्या उसका विरोध करना गलत है? इस बात को छोड़कर आप बाकी सब बातों के जबाब दे दिये।
जो बिना किसी खास मकसद के इत्ती सारी बातें आप लिखे और बशीर बद्र साहब को खड़ा कर दिया बस यूं ही याद आ जाने पर तो भैये बचपना करने के लिये और कोई अन्दाज विकसित किया जाये! हमारे यहां भी बहुत सारी गजल और कविता-फ़विता की किताबें धरी हैं। कहो तो दो चार शायर और कवियों को बशीर साहब से भिड़ा दें।
शुरुआत मौज लेते हुये करने के बाद आखिर तक आते आते सेंटिया गये। कोई एक भाव निर्वाह तो कायदे से किया करो जी।
भावुक होना , विनम्र होना और संवेदनशील होना बहुत अच्छी बात है। लेकिन विनम्रता को अद्धे-गुम्मे की तरह चलाने की आदत अच्छी नहीं है। हम बुरा मान सकते हैं।
और क्या कहें? सबेरे जब कमेंट लिख रहे थे तब आपसे बतियाते हुये कमेंट ही उड़ गया। अब पोस्ट कर रहे हैं।
अभी तो सो रहे होगी। थोड़ा मुस्कराते हुये सोइये तो सपने में जिन सुन्दरियों से बतिया रहे हैं होंगे वे कम से कम क्यूट तो कहें!
बोल्ड काली सारी क्षमा प्रार्थना को वापस भेज रहे हैं गुलाबी कलर में लपेट के। इनको अपने पास रख लेना आगे कभी काम आयेंगे जब किसी पर विनम्रता बम बरसाने का मन करे।
अरे बाप रे आज तो यहां फ़ुलझड़ियाँ चल रही हैं और बम फ़ूट रहे हैं, दिवाली आ गयी का?……॥:)
जवाब देंहटाएंक्युं कि हमें इस विवाद के बारे में जानकारी नहीं इस लिए इस समय कुछ कहना मुनासिब नहीं। पर इस बात से सहमत हैं कि लड़कपन कहां दिखायें और कहां नहीं ये जानना बहुत जरूरी है।
@डा.अरविन्द मिश्र, चट्टानो का दरकना तो सहज प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसमें अफ़सोस की क्या बात? बात विवेक की बढ़ाई से नहीं और कहीं से शुरू हुई है। थोड़ा देख लीजिये। बाकी उपेक्षा कौन कर रहा है किसी की!
जवाब देंहटाएं@ हिमांशु, विवेक की अनलकृत मौज का शिकार लोग होते रहेंगे तो एक दिन विवेक सबकी उपेक्षा का शिकार हो जायेंगे। समीरलाल जी की टिप्पणी का सौन्दर्य और मौलिकता दर्शनीय च वंदनीय है। हर वाक्य से क्षमा फ़ूट-फ़ूटकर बह रही है। कोई भी संवेदनशील व्यक्ति उनके इस क्षमा तालाब में डूबने-उतराने लग सकता है। समीरजी की इस सौन्दर्य प्रियता और मौलिकता पर कौन न रीझ जाये।
@ राजेश स्वार्थी (अनामी) ब्लाग बनाने के बाद एकाध पोस्ट तो लिख लिये होते। भगे चले आये टिपियाने के लिये।
@सिद्धार्थ,सही किया। परहेज बहुत जरूरी है स्वास्थ्य के लिये।
@ रचनाजी, आपको फ़िर से टिप्पणी करते देख बहुत खुशी हो रही है। आपकी किसी बात का जबाब मैं नहीं दे रहा सिवाय इसके कि लड़कपन एक भाव होता है। इसका उमर और एक-दो-चार बच्चों के बाप-मां होने न होने से कोई संबंध नहीं होता।
@कंचन, ये विवाद-फ़िवाद नहीं है जी। ये तो ब्लागर-टिप्पणीकार विमर्श चल रहा है।
@ पंकज मिश्र,
एक साथ समीर जी ताऊ जी औ आशीष जी को जव्वाब देना मुझे उचित नहीं लगा इसके बाद आपने केवल समीरलालजी की तरह क्षमा प्रार्थना की। ताऊ की तरह राम राम और आशीष की तरह हैप्पी ब्लागिंग भी कहना चाहिये न! वैसे आपको यह बात उचित नहीं लगी यह बताकर अच्छा किया। आगे से सबको अलग-अलग जबाब देने का प्रयास करूंगा। वैसे आप इसकी निन्दा भी कर सकते हैं।
@कुश की टिप्पणी के बारे में हम कुछ न कहेंगे।
@ शर्माजी, चिट्ठाजगत की ग्रहदशा टनाटन है।
@ आशीष, उन दोनों के पोस्ट के लिंक फ़िर से देने के लिये शुक्रिया।
द्विवेदीजी, मीनू खरे, सदाजी, हेमन्त, दरभंगियाजी और अन्य सभी ब्लागर साथियों को भी उनकी टिप्पणी के लिये आभार!
गुरुवर अमर कुमार जी का आर्शीवाद लेते हुए टिपिया रहे है..
जवाब देंहटाएं"यम्मा यम्मा.. यम्मा यम्मा"
ये खूबसूरत समां...
बस आज की रात है ज़िन्दगी.. कल हम कहाँ तुम कहाँ... ?...."
ओह!
जवाब देंहटाएंअब समझ में आया कि विवेक सिंह, 'विनम्र' कैसे हो गए!!
यहाँ आने से पहले हम उनसे पूछ चुके थे कि
ये क्या हो गया? कब हो गया? कैसे हो गया? क्यों हो गया?
इन प्रश्नों के उत्तर दिए जाएँ :-)
उत्तर मिल गया, लगता है।
बी एस पाबला
लड़कपन एक भाव होता है।
जवाब देंहटाएंoh really thanks for telling me this because bhavc is infact a emotion and if some someone does not grow up then he is retarded and not emotional . we need to find a doctor because retardation in growth can be cured
and if you say its a emotion then
धूर्त और मक्कार are merely adjectives which have various emotions in it
sly
Showing 1-5 of 5 results. [Show Transliteration]
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sly adj कपटी
sly adj गुप्त
sly adj धूर्त
sly adj मक्कार
sly adj सयाना
धूर्त और मक्कार are also used when we want to call "over smart " or सयाना
and it really is fine to say
आपकी किसी बात का जबाब मैं नहीं दे रहा because some questions on qualifications {to correct every blogger's hindi , judge their works and pass comments on their calibre as you have done when comparing them with your favorite blogger } cant be answere as qualifications are always backed by documentory evidence .
self appointism to judge others "caliber" without any pre requiste qualification in hindi literature or language i can only say keep avoiding this question but one day YOU will have to answer it
एक आदमी कहीं की यात्रा पर था. रास्ते मे रात होगई. एक घर के समने रुका और रात विश्राम करने की इच्छा जताई. घर की मालकिन एक वृद्धा थी, बडी खुशी से उसको रुकाया और बढिया खाना खिलाया.
जवाब देंहटाएंसुबह वो आदामी रवाना होने लगा तो उसके ध्यान मे आया कि घर के दरवाजे बहुत छोटे हैं तो अम्मा से बोला - अम्मा, तेरे घर के दरवाजे बहुत छोटे हैं अगर तेरी भैंस मर गई तो उसकी लाश कैसे बाहर निकालोगी?
अब बुढिया उस बेवकूफ़ का मूंह ताकती रही कि जिस भैंस का मीठा दूध इसने रात को पीया और अब उसके मरने की कल्पना कर रहा है. बुढिया स्वभाविक रूप से उसे मारने दौड पडी.
बस मुझे तो इस कहानी का स्मरण हो रहा है. और काश की विवेक जितना आपका वरद हस्त हमारे ऊपर भी होता?:)
@ कुश : लगता है आज फ़िर कोई स्ट्रिंग आपरेशन होगया? देखते हैं कल किसका नम्बर है? क्या पता हमारा ही ना हो?:)
रामराम.
are yaha vivad nahi ho raha to itna halla kahen macha hai bhai....! aur ye to batao mujhe kis ki tarf se bolna hai..??
जवाब देंहटाएंसंवाद...!
जवाब देंहटाएंविवाद...!!
प्रतिवाद...!!!
"चिट्ठा-वाद" या "चर्चा-वाद"...???
लीजिये इस तमाम ’वाद" में सुशीला पुरी जी की ये अद्भुत अनूठी नज़्म रह ही गयी। दिनों बाद एक कोई प्रेम-कविता एकदम से मन की गहराईयों तक उतरती हुई....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया देव, दिल से, इस नज़्म को पढ़वाने के लिये!
टिप्पणियां संवाद कायम करने का और उस संवाद की रक्षा करने एक माध्यम हैं. अब टिप्पणियां होंगी तो प्रति टिप्पणियां भी होगीं. श्री न्यूटन जी ने यह बात बहुत पहले कह दी थी. तो इसमें कोई बहुत बड़ी बात नहीं है. दुनियाँ में छ सौ पचास करोड़ से ज्यादा लोग हैं जी. जब एक-दूसरे से चेहरे नहीं मिलते तो विचार कैसे मिलेंगे? इसी बात को ध्यान में रखकर ब्लॉग की परिकल्पना की गई थी. और हम उस परिकल्पना को सिद्ध कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंसंवाद, वाद, विवाद, प्रतिवाद, अनुवाद, समाजवाद, मार्क्सवाद, इनसब के ऊपर है ब्लॉगवाद. इसकी रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है.
ब्लागवाद जिंदाबाद.
अमदावाद की ट्रेन कित्ते बजे है जी..?
जवाब देंहटाएंAnup ji, bahut dhanywaad aapne meri jikr bhi kar dali..bahut achchi prstuti..gaagar me sagar bharane wali jaankari di aapne sab suchana ek jagah jo jise chahe use padhe..bahut badhiya badhayi..
जवाब देंहटाएंक्युं कि हमें इस विवाद के बारे में जानकारी नहीं इस लिए इस समय कुछ कहना मुनासिब नहीं। पर इस बात से सहमत हैं कि लड़कपन कहां दिखायें और कहां नहीं ये जानना बहुत जरूरी है।
जवाब देंहटाएंइस पूरी प्रेमकहानी में चिटठा चर्चा का जो सबसे आवश्यक तत्व है वो पीछे छूट गया है ....इस लिए यहाँ कुछ लिंक दे रहा हूं जो पढने जैसे है ......उन्हें जरूर पढियेगा .
जवाब देंहटाएंप्रमोद जी का परिचय पोस्टर
प्रत्यक्षा जी का मै बहुत बड़ा फेन हूं ....देखिये वो कैसे तारा तोड़ रही है
तीसरी पोस्ट है ....नीरा जी की ...उसकी नीली आंखो में अनगिनत किरणों की रोशनी
एक ओर पोस्ट है देवेश वशिष्ठ की .....देखिएगा ..यहाँ .
उम्मीद करता हूं इस प्रेम कहानी का अंत सुखद होगा
जवाब देंहटाएंकल देर रात तक चर्चा प्रतीक्षीत रही, क्योंकि " इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त थीं "
मैं सँतोषपूर्वक सो गया कि, कुछ अच्छा ही पकाया जा रहा होगा,
गरमागरम परोसे जाने पर सुबह मज़ा लीजियेगा ।
पर यहाँ मामला बेमजा दिक्खे है, उसने मेरी पेन्छिल तोड़ दी मैं उसकी टँगड़ी तोड़ दूँगा सरीखा क्या नहीं क्या क्या पढ़ना पड़ा ।
एक कत़आत़ दोहराने का मन कर रहा है, फिलवक़्त तो यहाँ अभिव्यक्ति की आज़ादी कायम ही है, सो... अर्ज़ है,
ख़ुद ही इशारा भी किया, ख़ुद ही सहारा भी दिया
जो कदम किसी और ने बढ़ाया तो बुरा मान गये
यह कुछ अधूरा सा लग रहा है, अतः दो और लाइनें भी बर्दाश्त करें
वो चाँद तारों से सजाते रहें हैं जो अपनी महफ़िल
एक दिया किसी और ने जलाया तो बुरा मान गये
"ब्लोगवाणी में अपने ही ब्लोग को क्लिकिया क्लिकिया कर 'आज अधिक पसंद प्राप्त' और 'आज अधिक पढ़े गये' वाली संख्याओं को बढ़ा देने से क्या ब्लोग पॉपुलर हो जाता है? नहीं होता भइया, इतना तो समझना चाहिए कि पीतल पर सोने का पानी चढ़ा देने से पीतल सोना नहीं हो जाता। वो कहते हैं ना "हर जो चीज चमकती है उसको सोना नहीं कहते"
जवाब देंहटाएंBadhiya....
chalo koi to aisa maanta hai...
Badhiya Charcha ...
Sabhi links behterin the....
सिर्फ इतना ही कहंूगा समीर जी उम्दा लिखते हैं। हमेशा पढ़ कर लिखते हैं। उनका नाम किसी अनर्गल विवाद में जोडऩा ही तुच्छ सा काम लगा।
जवाब देंहटाएंआशीष जी का ब्लॉगर्स को सपोर्ट करने, सहयोग करने, अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त ब्लॉगर्स के लिए निकालने का कोई सानी नहीं। वे अपने से ज्यादा हिंदी ब्लॉगर्स के लिए सोचते हैं।
...और ताऊ सबके ताऊ हैं। ताऊ का मतलब ही सम्मानस्वरूप भाव लिए घर का बड़ा सदस्य होता है। ताऊ ने अपने दिलचस्प ब्लॉग से ब्लॉगर्स को एक मंच पर जोड़ा है। उन्हें प्रोत्साहित और सम्मानित किया है। नए आईडिया, नए अंदाज पर ब्लॉगर्स को सोचने काम करने का अवसर दिया है।
इन तीनों सुलझे लोगों को शब्दों, गडे मुर्दों, बेमतलब की बातों में उलझाने का प्रयास मेरी नजर में तो हलकी कोशिश है। बाकी ब्लॉगर्स सब के सब मुझसे ज्यादा समझदार हैं। भैया सीधी सी बात है कितने ही लांछन लगाओ, पब्लिक सब जानती है। समीर जी, आशीष जी और ताऊ जी आपका ब्लॉगिंग में बड़ा योगदान है। आप तीनों को सलाम। ऐसी ओछी हरकते होती रहती हैं। लोड मत लो...। बस हैप्पी ब्लॉगिंग करते रहो। आप तीनों हमेशा मार्गदर्शन करते हैं, आगे भी करते रहिएगा।
क्षमा करें, लगता है आज तो जैसे ब्राडबैण्ड वाले ही आवाँछित टिप्पणियाँ न जाने देने के लिये कटिबद्ध हैं ।
जवाब देंहटाएंख़ैर अब उनकी कृपा होती दिख रही है..
जरा एक ज़ायज़ा यह भी लिया जाये
पहली बात पाण्डेय जी की तारीफ में जोकि मैं पहले भी ...
21 November 2008, PM 04:00:00 | noreply@blogger.com (विवेक सिंह)
पहली बात पाण्डेय जी की तारीफ में जोकि मैं पहले भी कह चुका हूँ ये मेरी कोई टिप्पणी रोकते नहीं और सबको पब्लिक के सुपुर्द कर देते हैं फिर चाहे इनकी खिंचाई ही क्यों न हो .इसीलिए तो कुशभाई मैं भी सहमत हूँ कि मै ज्ञानदत्त नाम पढता हूँ यहाँ होने वाली बहस की रौनक का मजा लेता हूँ न कि मानसिक हलचल को जोकि मेरी समझ में कम आता है . देख रहा हूँ कि तेल लगाने वालों की संख्या ज्यादा है फिर भी कहूँगा कि बेशक स्टिंग ऑपरेशन करा के देख लो . इनकी रचना को नए ब्लॉग पर डाल दो . दो धेले में नहीं बिकेगी . आज ज्ञानदत्त नाम बिक रहा है . यही बात मैं भाभी जी से कह रहा था . वैसे आलोक पुराणिक का बदला मुझसे क्यों लिया गया . मैनें तो आजतक सबको यही बताया कि मैं जाट हूँ फिर कैसे मुझे ठाकुर लिख दिया . या लिंक गलत लग गया :)
विवेक ने कहा:"देख रहा हूँ कि तेल लगाने वालों की सं...
21 November 2008, PM 04:21:00 | noreply@blogger.com (Shiv Kumar Mishra)
विवेक ने कहा:
"देख रहा हूँ कि तेल लगाने वालों की संख्या ज्यादा है फिर भी कहूँगा कि बेशक स्टिंग ऑपरेशन करा के देख लो . इनकी रचना को नए ब्लॉग पर डाल दो . दो धेले में नहीं बिकेगी."
मेरा मानना है कि;
'दो धेले' तो आज की पोस्ट में मिल गए....:-)
क्या कहना था विवेक सिंह की टिपण्णी देख कर भूल गया....
21 November 2008, PM 04:31:00 | noreply@blogger.com (अभिषेक ओझा)
क्या कहना था विवेक सिंह की टिपण्णी देख कर भूल गया... मुझे मेरी माडर्न आर्ट वाली बात याद आ गई !
sabako namaskar pahunche apani
जवाब देंहटाएंकौनो टिप्पणी नहीं कर रहे हैं तो का हुआ, आपके नीर-क्षीर विवेक और "सत्यम वद" से प्रमुदित हैं
जवाब देंहटाएंbaap re!!!
जवाब देंहटाएंhaldighati ???
kurukshetra ???
मामला समझ के बाहर है
जवाब देंहटाएंलड़कपन विवेक जी में होगा तो फिर आशीष जी में भी है (उसको गाली देने पर बोला मुझ पर चिल्लाने वाले को कुछ नहीं कहा टाइप का )
और हाँ समीर जी की टिप्पणी की असाधारण लम्बाई देख कर ख़ुशी हुई पर पढने पर पता चला कि जूलियस सीजर के एंटोनियो जैसी बात है बट ब्रूटस सेज सीजर वाज .......
अनूप जी ने पक्की बात की कहा सेंटिया गए
हमारा भी मन हुआ कि हिंदी ब्लोगिंग के बड़े लोगों के सम्मान के स्वयम्भू रक्षक बन के टिप्पणी झाडे और किसी खेमे में शामिल हो अभी तक खेमा नहीं मिला है कोई जाए पर सही मौके पर कुश ने चेता दिया जिनका नाम है वो किसी विवाद में बोलते नहीं देखे गए हैं
खैर अनुराग जी ने हमारे दिल की बात की
प्रत्यक्षा जी की हाय गजब ! कहीं तारा टूटा का जिक्र करके
वैसे कोई बड़ा है तो इसका यह मतलब नहीं कि उसपर ऊँगली नहीं उठायी जा सकती
लीजिये मिल गया अनूप जी का प्रोफाइल और वो ये हैं
जवाब देंहटाएंअनूप कुमार शुक्ल
जन्म : १६ सितंबर १९६३
शिक्षा : बी ई़ (मेकेनिकल), एम ट़ेक (मशीन डिज़ाइन)
संप्रति : भारत सरकार रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत
आयुध निर्माणी में राजपत्रित अधिकारी।
लेखन : इंटरनेट पर नियमित लेखन।
जालघर : http://www.fursatiya.blogspot.com, http://www.hindini.com/fursatiya
संपर्क : anupkidak@gmail.com
यानी हिन्दी की कोई भी शैक्षिक योग्यता उनमे नहीं हैं
"विवेक सिंह मुझे इसलिये प्रिय हैं कि उनके जैसी मौलिक सोच वाली कविता /तुकबंदी और कोई किसी के यहां नहीं दिखती मुझे। बहुत कम शब्दों में बिना तामझाम के बात कहने का सलीका विवेक जैसा मुझे और नहीं दिखता फ़िलहाल। विवेक की टिप्पणियां बहुत सटीक लगती हैं मुझे "
जवाब देंहटाएंअनूप जी ने यह लिखा था जिसपर उनकी हिंदी की योग्यता पूछी जा रही है
अब अपनी पसंद तय करने के लिए हिंदी में डॉक्टरेट होना होगा?
क्या अब हिंदी लिखने के लिए हिंदी में पी एचडी करनी होगी ?
हम्म्म्म
जवाब देंहटाएंलड़कपन एक भाव होता है।
(ज़रा सिर खुजा लूं)
मीनू खरे जी का हार्दिक आभार .................आप सब की दुआएं है जो कुछ लिखवा लेती है . यहाँ आपकी बातचीत मजेदार है .....
जवाब देंहटाएंखूब मजा आता है .
किसी की हिन्दी कृतियों का मूल्यांकन करने के लिये हिन्दी भाषा मे कोई ना कोई उपाधि जरुर होनी चाहिये । पसन नापसन अपनी जगह होती हैं लेकिन ये कहना की केवल और केवल एक ब्लॉगर मे मोलिकता देखी गयी का सीधा अर्थ हैं की बाकी सब कोपी करते हैं सो हिन्दी ब्लॉग पर मौलिक केवल अनूप के अनुसार विवेक ही हैं । किसी विषय पर अपनी इकांकी राय देना अलग बात हैं । सिदार्थ त्रिपाठी अगर बता सके की मेने कब आर कहा किसी के आलेख पर ये कहां की यी बकवास कृति हैं । ब्लॉग और साहित्य अलग अलग विधा हैं और हिन्दी साहित्य को “जाचने ” के लिये कोई तो डिग्री / डिप्लोमा / दोक्ट्राते हिन्दी मे हो नी आवश्यक ।
जवाब देंहटाएंया आप सब ये मानते हैं को लोग हिन्दी मे डिग्री । दोक्ट्राते लेते हैं और कॉलेज मे छात्रो को पढाते हैं और मौलिक लेखन सीखते वो सब बेकार मास्टरी करते हैं । क्या हिन्दी मे शिक्षित हुए बिना ही हिन्दी जाँची जा सकती हैं ।
अनूप शुक्ल के लिये कोई भी ब्लॉगर चहेता हो सकता हैं पर क्या अनूप शुक्ल के पास हिन्दी मे वो योग्यता हैं की वो जितनो को पढ़ते हैं उनको एक दुसरे से टोल कर बता सके की कौन मौलिक लेखन करता हैं । अगर हैं तो उसको बताने मे क्या बुराई हैं ।
और रही बात ब्लोगिंग की तो आप को अगर किसी को नहीं पढ़ना आप वहा ना जाए , आप को कोई कमेन्ट करने को मना करे ना करे , और पब्लिक लिटिगेशन भी हो सकता इस वक्तव्य पर जो अनूप शुक्ल ने पूरी ब्लोगिंग कम्युनिटी { हिन्दी } के लिये दिया हैं ।
हम किसी की कविता कहानी को पसंद या नापसंद कर सकते हैं , पर क्या हम ये कह सकते हैं की ब्लॉगर नीरज की ग़ज़ल ब्लॉगर राकेश की ग़ज़ल से बेहतर हैं , ग़ज़ल लिखने की तकनीक की दृष्टि से , वही कह सकता हैं जिस ने ग़ज़ल लिखने की तालीम ली हो । बिना विषय की तालीम के कोई कैसे आकलन कर सकता हैं । हाँ जो लोग ब्लोगिंग करते हैं जैसे सुरेश हम जरुर कह सकते हैं की हम इनके विचारों से सहमत हैं या हमे आपति हैं । अगर दिनेश या लोकेश को हम ये बताये की धारा सो एंड सो लगेगी तो हम एक ब्लॉगर की हैसियत से ये कह सकते हैं क्युकी हम भी कही कुछ पढ़ कर आये हैं पर क्या हम किसी मुकदमे को कोर्ट मे लड़ सकते बिना कोर्ट की डिग्री लिये ।
किसी विषय मे शिक्षित होना और किसी विषय मे वो शैक्षित योग्यता रखना जिसकी बिना पर हम को ये अधिकार हो की हम उस विषय मे हो रहे रिसर्च और मौलिक लेखन पर एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति की क्षमताओं का आकलन कर सके ।
आप हिन्दी के प्रमोटर हो सकते हैं । आप हिन्दी मे पारंगत हो सकते हैं , पर क्या आप हिन्दी विषय मे किसी को नम्बर देने के लिये क़ुअलिफ़िएद हैं ।
बात पसंद ना पसंद से ऊपर की हैं । अनूप को विवेक पसंद हैं सही बात पसंद अपनी अपनी पर क्यूँ पसंद हैं क्युकी अनूप को केवल वही मौलिक लेखन करता दीखा तो अनूप को बताना चाहिये की किस विश्विद्यालय से उन्होने हिन्दी मे शिक्षा ली हैं
अगर ली हैं तो बताये मे उन से क्षमा मांगूगी और नहीं ली हैं तो वो ब्लॉग जगत से क्षमा मांगे , इतना मुस्किल क्यूँ हैं , आप सब के कहे से चलती हूँ तो सब अपने ही हैं फिर कायरता क्यूँ । मुझ मे तो नहीं हैं