कल रविरतलामीजी ने नारकीय चर्चा करके कलम तोड़ दी। इसके बाद पता चला कि राजस्थान के एक अधिकारी की तबादला तनाव के मृत्यु हो गयी। उधर सिद्धार्थ इलाहाबाद में ब्लागर सम्मेलन/मिलन की तारीख् तय करके निकल लिये देवी दर्शन को। क्या पता देवीजी का ब्लाग बनवाने गये हों।बहरहाल अब जो होगा वो लौट के बतायेंगे हमें तो लगता है चर्चा करके डाल ही दी जाये। वैसे भी तीन दिन से मामला टलता गया। आज की चर्चा की शुरुआत रवीश कुमार के लेख से अपने लेख
सुपर पावर बनने की दौड़ का जिक्र देखकर मुझे अपनी ये लाइने याद आ रही हैं:ये दुनिया बड़ी तेज चलती है , पता नहीं कहां पहुंचेगी , पिछले दिनों किसी एक बयान आडवाणी जी के बारे छपा। उस बयान को लपेटते हुये लोगों ने खूब पोस्टें ठेलीं। एक रविरतलामीआदमी के सड़ा अचार बनने की तथा कथा. में कहते पाये गये:आदमी अगर बड़ा नेता है तो वो सड़ा अचार तब बन जाता है जब उसका करिश्मा खतम हो जाता है. लेकिन शेफ़ाली पाण्डेय ने इस बहाने जनता को अचार बनाने की तरकीब सिखाने के मौके के रूप में इस्तेमाल किया और अचार - ए - आडवानी के बहाने अचार बनाने का तरीका.. सिखाया।उन्होंने बीच-बीच में जरूरी हिदायतें भी दीं। जैसे कि:जिस मर्तबान में आचार डालते हैं उसे कई साल तक धूप में सुखाते हैं ताकि उसमे किसी किस्म की नरमी सॉरी नमी बाकी ना रहे अचार बनाने में कभी भी विदेशी मसलों सॉरी मसालों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जो टुकड़े अचार का रंग खराब हो जाने का कारण पाकिस्तानी हल्दी को शामिल ना किया जाना मानते हों , और अचार खराब होने के १०१ कारणों पर किताब भी लिख मारते हों , उनको कई दिनों तक लाल मिर्च में डुबो देना चाहिए। संजय बेंगाणी अपनी 1335 वीं पोस्ट में अपने व्याकरण अभ्यास का मलाल कर रहे हैं। वे लिखते हैं:जब कभी अपनी चार साल पहले लिखी चिट्ठा प्रविष्टि को पढ़ता हूँ तो लगता है कितना गलत-सलत लिखता था. मेरी हिन्दी जैसी है उसका मुझे खेद भी है और कभी कभी शर्म भी आती है. काश! विद्यार्थी-काल में भाषा के प्रति थोड़ा सजग रहा होता.व्याकरण तो ठीक है सुधर जायेगा काफ़ी कुछ सुधर भी गया है लेकिन एक और मलाल की जमीन संजय डाल रहे हैं! काफ़ी दिन तक संजय/पंकज नियमित हिन्दी/गुजराती चर्चों की चर्चा करते रहे हैं। व्याकरण और वर्तनी की छोटी-मोटी छौंक के साथ् की उन रोचक चर्चाओं की याद् करते जब मन्/मौका मिले तब चर्चा करके आगे के संभावित मलाल् से बचने का इंतजाम रखना चाहिये। इसी बात पर आप् अशुद्ध हिंदी के उदाहरण – 3 देख लीजिये! साथ ही देखिये ब्लॉग को सजाने और सवारने के कुछ आसन नुख्से-भाग पहला मनीषा पाण्डेय ने एक अर्से बाद फ़िर् से लिखना शुरू किया। वे बताती हैं:लिव टू टेल द टेल, सीन्स फ्रॉम ए मैरिज, सोशलिज्म इस ग्रेट और कसप के डीडी और बेबी के साथ। सबके दरवाजे खटखटाए, लेकिन किसी के ठिकाने पर मन रमा नहीं। इधर-उधर टहलती रही। सिर्फ दो टोमैटो सैंडविच और तीन कप ब्लैक कॉफी पर दिन बसर किया। कल मैंने सोचा था कि आज मुझे कुछ करना है लेकिन आज समझ नहीं आया कि आज क्या करना है। कुछ हुआ भी नहीं। तीन बजे के आसपास मैंने कुछ देर सोने की सोची और वहीं किताबों के ढेर के बीच जमीन पर ही दो तकिया डाल दोहर ओढ़कर ठंडी फर्श पर पसर गई। मोबाइल में चार बजे का अलार्म था। दिन खराब नहीं होने दूंगी। उठकर उस संसार में वापस लौटना है, जहां मुझे लगता है कि मेरा सबसे ज्यादा मन लगता है। कविताओं में शरद काकोश ने आज् मिता दास कीकविता रसोई में स्त्री पेश की: कितनी ही रचनायें नमक दानी के सिरहाने दम तोड़ देती हैं रसोई में खाना बनाती स्त्री जब शब्द गढ़ती है हाथ हल्दी से पीले हो जाते हैं आटा गून्धते हुए मसालों की गन्ध से घुंघुवाती मिलती है शरद ने अपनी बात के शुरू में लिखा-"कुछ सम्मानित ब्लोगर्स बहुत अकड़ कर कहते रहे हैं..हम तो कविताओं के ब्लॉग की ओर झांकते भी नहीं.." इस पर निशांत का कहना है:कृपया बताएं किसने ऐसा कहा है. उसके ब्लौग पर विरोध दर्ज किया जायेगा.निशांत ने लिखा:मुझे हिमांशु पाण्डेय की कवितायेँ अत्यंत प्रिय हैं. उन जैसी कवितायेँ कोई और ब्लौगर लिखता है क्या? इसी बहाने आपको हिमांशु की कविता पढ़वाते हैं: मैंने जो क्षण जी लिया है
मुकेश कुमार तिवारी लिखते हैं: तुम,
ओम आर्य लिखते हैं वक्त खानाबदोश हो गया है एक लाईना थूकने पर हजार रुपये का जुर्माना:प्रति दिन बिना थूके लाखों बचाइये।अशुद्ध हिंदी के उदाहरण – 3: कुछ् शुद्ध हिन्दी के भी दिखाओ यारअगर आपसे सभी खुश हैं,तो इसका मतलब आपने ज़िंदगी मे बहुत ज्यादा समझौते कियें हैं?:एक् बच्चे से सब खुश् रहते हैंसड़क किनारे खड़े मनचले सेंक सकेंगे अपनी आँखें:आंखें सेकने के बाद बाकी की सिंकाई होगी।ब्लागवाणी बन्द आज सुबह-सुबह पता चला कि ब्लागवाणी बंद हो गई!लोग् स्वाभाविक रूप से दुखी हैं। कुछ प्रतिक्रियायें निम्न हैं: बहुत दुख की बात है कि ब्लागवानी बंद हो गई है.. हम जैसे ब्लागरो लिखने और अन्य सभी ब्लागरो को पढने का मज़ा अब कैसे... इस पर विचार किजिये आप लोग कुछ सोचे...प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल हमारे अपनों के कर्म ब्लागवाणी की यह घोषणा एक असहाय स्थिति की कथा कह रही है । डा.अमर कुमार hame mauka nahi chahiye tha . lekin aap jaiso ko bad tamijiya ham nahi jhelana chahate samajhe aap ? अरुण अरोराबेहद अफसोसजनक है ब्लॉगवाणी का बन्द होना । बेहद अफसोसजनक, दुखद...चन्द विघ्नसंतोषियों का प्रयास सफल रहा. उन्हें बधाई और उनकी ओर से हमारी ब्लॉगवाणी से क्षमाप्रार्थना. समीरलाल मेरी भी मनस्थति ऐसी ही है -मैथिली जी पुनर्विचार करें ! अब लोगों के कालेजों को भरपूर ठंडक मिल गयी है ! अरविंद मिश्राकिसे तसल्ली मिल गई उड़न जी!? पहचान बनाने निकले थे और अंत में यह चर्चा दो दिन से टल रही है! आज जब सुबह देखा तो ब्लागवाणी के मौन होने की खबर थी! खबर अप्रत्याशित थी। तमाम लोगों के लिये संकलक का मतलब ब्लागवाणी था। इसके अचानक बंद होने से तमाम लोगों को दुख हुआ। मुझे भी है। अभी सिरिल से बात हुई । उन्होंने कुछ दिन सुकून से गुजारने के बाद कोई नया काम करेंगे। ब्लागवाणी तीसरा संकलक है तो मेरे देखते-देखते बंद हुआ। चिट्ठालोक,नारद के बाद अब ब्लागवाणी। यह संयोग रहा कि तीनों के बंद होने कहानी जुदा-जुदा रही लेकिन फ़िर् भी जुड़ा रहा मामला बंदी का। चिट्ठालोक बन्द हुआ अपनी स्पीड की कमी और बढ़ते चिट्ठों को समायोजित न कर पाने की वजह से शायद। नारद बन्द हुआ इसको संचालित करने में लोगों के पास समय की कमीं और ब्लागवाणी बंद हुआ कतिपय तथाकथित विघ्नसंतोषियों की वजह से। ब्लागवाणी के संचालक शायद अपने खिलाफ़ होती आलोचना से शायद ऊब गये थे और हारकर इसके बन्द होने की घोषणा कर दी। शायद चंद लोगों के द्वारा उनपर उठाये जा रहे सवाल उनके तमाम प्रशंसकों की तुलना में भारी साबित हुये। जब ब्लागवाणी से जुड़ी साइट कैफ़े हिन्दी शुरू हुई थी तो उसका स्वागत बड़ा हंगामाखेज हुआ था। लोगों ने कैफ़े हिन्दी की खूब लातन-मलानत की थी कि वे दूसरों के ब्लाग से पोस्टें लेकर अपनी साइट पर लगा रहे हैं। इसके बाद ब्लागवाणी को लोगों का भरपूर प्यार मिला। लोगों के लिये ब्लागजगत मतलब ब्लागवाणी हो गया। इस बीचे ब्लागवाणी से जुड़े कुछ साथियों ने भावावेश में अपने ब्लाग बन्द किये। तनाव से निटपने का हुनर का अपना-अपना मेकेनिज्म होता है। कोई शान्त रहकर निपटता है कोई पलटकर जबाब देकर कोई अपना ब्लाग बन्द करके। ब्लागरों के टंकी पर चढ़ने की प्रक्रिया को संकलक ने अपना लिया और ब्लागवाणी बंद हो गयी। मैथिलीजी और सिरिल का निर्णय उनका अपना निर्णय है। उनके निर्णय पर सवाल उठाना उचित नहीं है लेकिन अच्छा लगेगा कि वे अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर सकेंगे। अगर किसी किसिम का सहयोग हम कर सकेंगे तो हमको खुशी होगी। आज मैंने लाइव राइटर का प्रयोग करके चर्चा की। बतायें कैसी लगी लफ़ड़ेवाजी। आप सभी को दशहरे की मंगलकामनायें। |
सब कुछ अच्छा है
जवाब देंहटाएंब्लॉगवाणी को बंद करने के सिवाय
इसे ब्लॉगरवाणी के रूप में दोबारा ले आयें
हमारी अग्रिम लें शुभकामनायें।
http://avinashvachaspati.blogspot.com/2009/09/blog-post_28.html इस पर भी नजर दौड़ायें
ब्लागवाणी को पुनर्विचार की आवश्यकता है. कुछ विघ्नसंतोषी हरकतों के आगे बहुमत का सम्मान किया जाना चाहिये. वैसे आपका यह कथन सही है कि निर्णय मैथीली जी और सीरिल जी का अपना है. और हर समस्या का हल करने का मेकेनिज्म सबका अलग अलग होता है.
जवाब देंहटाएंइष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.
चिट्ठाचर्चा एक - दो बार की थी. अब मेरा सामर्थ्य ही नहीं है. :)
जवाब देंहटाएंब्लॉगवाणी का बंद होना दुखद है. परंतु अच्छा लगेगा यदि इस बार मैथिलीजी और सिरिल बाबु ठोस कदम उठाएँ.
निर्णय तो उनका है और आगे भी उनका रहेगा. आपकी बात ठीक है कि कुछ विघ्नसंतोषियों की आवाज़ हजारों चाहकों की आवाजों को दबा गई होगी. खैर जो भी हिन्दी ब्लॉगजगत चलता रहना चाहिए. लोग जुड़ते रहें लिखते रहें, ऐसी कामना. कल किसने देखा है?
ब्लागवाणी का बंद होना दुखःद है। ब्लागवाणी पर पहले भी सवाल उठे थे। लेकिन उन पर वहाँ विराम लग गया था, जब ब्लागवाणी के कर्ताओं की ओर से यह उत्तर आया था कि यह उन का निजि प्रयास है। उस पर किसी को उंगली उठाने का कोई हक नहीं। उस के बाद भी लोगों ने आलोचना करना बंद न किया तो इसे आलोचकों की धृष्टता ही कहा जा सकता है। पर यह विचित्र है कि किसी अन्य व्यक्ति की धृष्टता के कारण कोई भले काम को बंद कर दे। पर क्या कहा जा सकता है? उन का अपना निर्णय है।
जवाब देंहटाएंआप की सिरिल से हुई बात से उम्मीद है कर्ता अपने निर्णय पर पुनर्विचार करेंगे।
हम जैसे नए ब्लॉगर्स के लिए ब्लोग्वानी का बंद होना.....दशहरे के शुभ मौके पर दुखद सूचना जैसा है....ये हमारे लिए अपूर्णीय क्षति है.
जवाब देंहटाएंबहरहाल सबको विजयादशमी कि अनेक शुभकामनाएं
हम्म्म ब्लागवाणी के बिना रहने की भी आदत हो जाएगी...अभी तो दोपहर ही हुई है
जवाब देंहटाएंब्लागवाणी को पुनर्विचार की आवश्यकता हैसमय कितना बदल गया आज अच्छाई पर बुराई की जीत हो गयी तभी बलागवानी बन्द हुई इसके लिये कुछ करिये शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंकमाल है तो लोग पसंद के लिए ब्लोगिंग करते है ....ओर टिप्पणियों के लिए...एक बात बताये लोगो का व्योवाहार उन अनुचित बातो के लिए क्यों बदलता है जो उनके साथ हुई हो.....तब क्यों नहीं जब किसी दूसरे के साथ ......कोई अनुचित बात होती है ....माफ़ कीजिये मैंने यहां बड़े बड़े धुरंधरो को निष्पक्षता की चुप्पी डाले देखा है या अजीब से तर्क का जामा ओडे ...विवाद से कन्नी काटने से बचने के लिए ...तब क्या किसी ने उनके ब्लॉग बंद करने की बात की है ?
जवाब देंहटाएंकई लोग एक ही बात पर एक जगह कुछ ओर टिप्पणी करते है दूसरी जगह जाकर दूसरी .यानि जहाँ की ढपली वैसा राग ....सारा विवाद पसंद को लेकर उठा ......ब्लोग्वानी जैसे एग्रीगेटर को चलाना आसान काम नहीं है ....कोई कोशिश करके देखे .मेरा उनसे अब भी अनुरोध है इस निर्णय पर पुन विचार करे...गंभीर निर्णय भावावेश में नहीं लिए जाते ......
ब्लोग्वानी का बंद होना जल्द बाजी में लिया गया फैसला है. आशा है ब्लोग्वानी दुबारा जीवित होगी या फिर जैसा की अजित जी ने कहा है अगर मैथली जी इससे इतर कुछ अलग सोंच रहे हैं हम उनके साथ है.
जवाब देंहटाएंविजय दिवस पर ब्लॉगवाणी का हारना हजम नहीं हो रहा.
जवाब देंहटाएंसभी जगत ये पूछे था, जब इतना सब कुछ हो रियो तो
जवाब देंहटाएंतो शहर हमारा काहे भाईसाब आँख मूंद के सो रियो थो
तो शहर ये बोलियो नींद गजब की ऐसी आई रे
जिस रात गगन से खून की बारिश आई रे
हमे जब किसी भी चीज़ कि आदत हो जाती हैं तो उसका अभाव लगता हैं । ब्लोग्वानी का बंद होना पर आ रही प्रतिक्रिया यही दर्शाती हैं । क्यूँ बंद हुआ क्या कारण हैं तो नहीं कह सकती पर इसका जाना उन सब को खलेगा जो केवल संचालक पर रजिस्टर हुए ब्लॉग ही पढ़ते थे । मैथली जी और सिरिल का योगदान उतना ही महत्वपूर्ण हैं जितना जीतेन्द्र चौधरी और पंकज नरूला का ।
जवाब देंहटाएंनिष्पक्ष होना आसान नहीं होता और निष्पक्ष हो कर पठन करना बहुत ही मुश्किल हैं । ब्लॉग बढ़ रहे हैं पहले १०० ब्लॉग होते थे जब नारद और ब्लॉगवाणी एक ग्रुप कि तरह उनके लेखन को प्रमोट करते थे । पर ज्यादा संख्या हो जाने के कारण अब अग्रीगेटर कि जरुरत हिन्दी प्रमोशन के लिये उतनी नहीं हैं जितनी नेट पर पहले थी ।
वैसे भी हिन्दी ब्लोगिंग को अगर विस्तार पाना हैं तो ग्रुप से बाहर आना होगा । अपने इस अहम् को भूलना होगा कि हम बहुत अच्छा लिखते हैं सो हमारे आगे दंडवत करो वरना नहीं रहने देगे यहाँ ।
ब्लॉगवाणी का बंद होना अत्यन्त दुखद है।
जवाब देंहटाएं"एक अशुभ सँकेत दे रहा है, चिट्ठा चच्चा तो पहले ही चटक कर चुप मारे हुये हैं "--डॊ. अमरजी।
जवाब देंहटाएंजैसे चिट्ठा चच्चा चुप रह कर लौट आए, उसी तरह ब्लाग की वाणी भी लौट आएगी, यही आशा है। दशहरा की सभी को शुभकामनाएँ॥
बेहद अफसोसजनक, दुखद...ब्लॉगवाणी का इस तरह से बंद होना.
जवाब देंहटाएंविजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
AFSOOSJANAK....
जवाब देंहटाएंhttp://74.125.153.132/search?q=cache:7RyA8WDr8aoJ:www.websiteoutlook.com/www.chitthajagat.in+chitthajagat&cd=10&hl=en&ct=clnk&gl=in
जवाब देंहटाएंI found this information on the net and i am sharing the same here . In larger context its relevence is related to this post and blog community in genral
regds
ब्लोग्वानी बंद होने पर बेहद अफ़सोस है ,...
जवाब देंहटाएंहमें बेहद ख़ुशी है कि ब्लॉगवाणी बंद हुई। इस वजह से कम-अज़-कम लोगों के इसके बंद होने अफ़्सोस तो हुआ।
जवाब देंहटाएंब्लोगवाणी का इस प्रकार अदृश्य हो जाना खल रहा है, पर भरपूर आशा है कि सब पूर्ववत हो जाएगा.
जवाब देंहटाएंवजया दशमी की शुभकामनाएँ.
विजया दशमी*
जवाब देंहटाएंविजया दशमी*
जवाब देंहटाएंआप सभी को
जवाब देंहटाएं" विजया दशमी की बहुत बहुत बधाई "
और
" ब्लोग्वानी " मेरी पहली पसंद है -
उसके बंद होने से ,
असहजता महसूस हो रही है
- लावण्या
ब्लोगवाणी बन्द होना अफसोसनाक है. फिर चालू हो तो अच्छा है. इस मांग के समर्थन में उठे मेरे दोनों हाथ.
जवाब देंहटाएंमैं तो पहले ही अपने तीन ब्लोग पर यह दोहरा ही चुका हूं.
होइहे वही जो राम रचि राखा....
ब्लॉगवाणी का बंद होना मनःस्थिति की विचित्रता का सूचक है । हम स्वयं को ही हरा बैठे हैं । आपकी अपील काम कर जाये-राम करें ।
जवाब देंहटाएंलाइव राइटर से चर्चा करने से नियोजन शायद बेह्तर होता है प्रविष्टियों का । इधर-उधर चित्र भी लग जाते हैं आसानी से । चर्चा खूबसूरत रही ।
जिन मुद्दों के सहारे ब्लॉगवाणी को घेरा गया, वे निहायत ही घटिया थे. केवल पसंद न बढ़ने पर इतना हंगामा क्यों? पसंद बढ़ भी जायेगी तो कौन सा तीर मार लेंगे? वैसे भी स्वांत सुखाय लिखने का दावा करते रहते हैं हम लोग और दूसरी तरफ पसंद और टिप्पणी न मिलने पर हाय तौबा मचाते हैं. वो भी 'परिपक्व लोग' ऐसा करते हैं तो दुःख होता है.
जवाब देंहटाएंब्लॉगवाणी का बंद होना दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन ऐसा क्यों हुआ, उसके बारे में उन्हें सोचने की ज़रुरत है जिनलोगों ने ब्लॉगवाणी को छिछले तर्क देकर घेरने की कोशिश की.
मुझे बेह्द खूशी है कि आप सब मैथिली जी को मनाने मे सफ़ल रहे . मै तो पहले से ही ब्लोगजगत का भगौडा हू सो उनके सवालो के सामने निरुत्तर था ,उम्मीद है कि अब फ़िर से ब्लोग जगत मे पुराना प्यार भरा जमाना लौट आयेगा छिद्रानवेषी कुछ समय अपनी ठाली मे ही छिद्र ढूडने मे व्यस्त रहेगे . आप सब के प्रेम का आभार
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