रविवार, जुलाई 04, 2010

यही तो है असली ब्लॉगिंग…

असली ब्लॉगिंग के अपनी तरह के सैकड़ों, वाजिब उदाहरण हो सकते हैं. एक उदाहरण आपके सामने पेश है.

सिंह सदन नाम का एक घर है. उस घर के सदस्यों का एक ब्लॉग है – सिंह सदन – ए हट अंडर द स्काई. इस ब्लॉग की पहली पोस्ट इब्तिदा  10 अप्रैल 2010 को प्रकाशित की गई थी -

इब्तिदा.........!

image

सिंह सदन का होम ब्लॉग “सिंह सदन -ए हट अंडर द स्काई” शुरू हो गया है...........इस ब्लॉग के ज़रिये हम आपको ‘सिंह सदन से’ जुडी हरचीज को सामने लेन का प्रयास करेंगे ..........यह एक सहकारी प्रयास होगा जिसमें परिवार के अधिकाधिक सदस्य जुड़ेंगे..........तो ब्लॉग पर सिंह-सदन से जुडी हरगतिविधि और व्यक्ति का तार्रुफ़ करने का जिम्मा भी इसी घर के सदयों को ही लेना था......यह जिम्मेदारी घर के लोगों ने ली भी है। सभी ने अपने अपने रूचि के क्षेत्रों को चुना है, पूरे मन से उस कलम को लिखने का प्रयास भी किया है .......! सभी सदस्यों ने जिन विषयों पर जिन शीर्षकों के अंतर्गत लिखने का जिम्मा उठाया है.....उसे मैं ब्रीफ किये देता हूँ....

>> आगे पढ़ें

 

इसके बाद सबने अपना जिम्मा ले लिया और नियमित पोस्टों का सिलसिला शुरू हो गया. फिर तो घर-परिवार के व्यक्तियों पर केंद्रित बेहद मर्मस्पर्शी पोस्टें आने लगीं. कुछ पाठकों की नजर में ये बेहद व्यक्तिगत और निजी हो सकती हैं, मगर, फिर, यही तो है असली ब्लॉगिंग.

दादी माँ पर एक पोस्ट है – वेल डन अम्मा.

image

“सिंह सदन की खूबसूरती और क़ाबलियत हमारी अम्मा की दुआओं से ही महफूज़ है.अम्मा घर और कुनबे में सबसे बड़ी हैं .घर के पुरुष और महिलाओं पर अम्मा का रसूख साफ देखा जा सकता है .

घर के बच्चों के लिए अम्मा सबसे खूबसूरत चीज़ हैं.घर के बच्चे उनके दीवाने हैं .अम्मा भी बच्चों पर जान छिड़कती हैं.मजाल है कि अम्मा की मौजूदगी में भला कोई बच्चों को तिरछी नजर देख भी ले....बच्चे कितनी भी शैतानी करें अम्मा के रहते सब माफ़.अम्मा घर पर हों तो हर बच्चा उनके पास सोना चाहता है. इस पर बच्चों में जंग भी छिड़ जाती है...लेकिन अम्मा सब सम्भाल लेती हैं. घर में अम्मा का मैं सबसे चहेता हूँ. मैं भी उनको बहुत प्यार करता हूँ........उनसे जुड़े कई संस्मरण है जो आज भी जेहन में तारो-ताज़ा हैं.

अम्मा की बौद्धिक क्षमता का मैं बचपन से ही कयाल हूँ. अम्मा ने इन अस्सी सालों में हर रिश्ता जिया है....जीवन के बहुत से उतार-चढ़ाव देखे हैं. सबमें अम्मा सफल नज़र आती हैं. घर में उनकी स्थिति अंग्रेजी लेखक रस्किन बोंड की कहानियों में "बरगद के पेड़" की तरह है. बदलते दौर में भी अम्मा सब पर भारी नजर आती हैं. अम्मा हर उम्र के बीच चुटकी में सेट हो जाती हैं. एक बार मैं सूफी संत बुल्ले शाह का सूफियाना कलाम सुन रहा था. कलाम मुल्तानी पंजाबी में था. सुनते ही अम्मा ने उसके मायने मुझे समझाए. मैं उनकी इस क़ाबलियत पर दंग रह गया…..” >>> आगे पढ़ें

एक पोस्ट पिता जी पर समर्पित है – पापा तुस्सी ग्रेट हो.

image

“मैंने लोगों को कई तरेह के शौक रखते हुए देखा है...लेकिन काम करने का शौक मैंने पापा में ही देखा है......उत्तर प्रदेश पुलिस सेवा में उनको तीस साल से ज्यादा समय हो गया है.कहा जाए तो पूरी जिन्दगी उन्होंने नोकरी ही की....उनको देख कर लगता है जैसे पुलिस की नोकरी पापा जैसे लोगों के लिए ही बनायीं गयी है.वे चोबीस घंटे काम कर सकते है....और करते भी है.....नोकरी करते करते उनको मालूम ही नहीं पड़ा की हम चार भाई कब बड़े हो गए......पापा को नोकरी करते देख हम लोग बड़े हुए.....पापा बेहद कर्तव्य निष्ठ है....काम और नौकरी से उन्होंने कभी बेमानी नहीं की...ये गुण हम भाइयों को खून में मिला....पापा नौकरी में सफल है....''कसौली''जहां पापा पैदा हुए.कसौली आज भी मैनपुरी के पिछड़े गावं में शुमार है....पापा का बचपन इसी गावं में बीता.पापा को बचपन से है पढने का शौक था.सो पापा ने पढने के लिए मजदूरी भी की.गावं के ही पास बने एक भट्टे पर रोज़ पढाई से फुरसत पाने के बाद कड़ी मेहनत करते और उससे जो पैसा मिलता.पढाई पर खर्च करते.घर में पैसों के आभाव में पांच भाइयों में सिर्फ पापा ही पढाई पूरी कर सके.बचपन के पढाई पूरी करने के लिए पापा सिरसागंज आ गए.यहाँ रह कर पापा ने कृषि विज्ञान की पढाई पूरी की.पापा की शादी चुकीं 15 -16 की उम्र में ही हो गयी थी.सो घर का खर्चा चलने के लिए पापा ने बच्चों की टयूशन देना का काम शुरू किया.इसी दौरान मैनपुरी से पुलिस की नौकरी निकली तो पापा ने फ़ौरन इसके लिए एप्लाई कर दिया...18 साल की उम्र में पापा पुलिस में आ गये.इसके बाद पापा ने नौकरी में कभी पीछे मुड के नहीं देखा,,,,सिपाही से ''डी वाई एसपी ''तक का सफर उन्होंने कब पूरा कर लिया पता ही नहीं चला.सरकारी नौकरी...खास तौर पर पुलिस सेवा में यहाँ तक आना फर्श से अर्श तक पहुचने जैसा है.पापा नेहम चारों भाइयों की तालीम पर खास ध्यान दिया,जिसका नतीजा ये रहा की हम भाइयों को नौकरी के लिए खास स्ट्रगल नहीं करना पड़ा.मुझे खूब याद है जब पापा रात में गश्त करके वापिस घर आते थे तो बड़े भैया को उठा कर रात में ही पढ़ना शुरू कर देते थे...” >>> आगे पढ़ें

माँ पर भी कीबोर्ड खटकाई गई है – माँ तुझे सलाम!

“ईश्वर का वरदान है माँ
हम बच्चों की जान है माँ
मेरी नींदों का सपना माँ
तुम बिन कौन है अपना माँ
कभी भाई, कभी बहन, कभी पिता बन जाती माँ
ग़र ज़रूरत पडे तो दुर्गा भी बन जाती माँ
ऐ ईश्वर धन्यवाद है तेरा दी मुझे जो ऐसी माँ
है विनती एक यही तुमसे हर बार बने ये हमारी माँ
***प्रभाकर माचवे

imageप्रभाकर माचवे की यह कविता मुझे बरबस ही याद आ जाती है जब में माँ को याद करता हूँ...... सच कहूं तो ''माँ''.......... एक ऐसा मोहक बंधन है .... एक ऐसी प्यारी भावना है .... शब्दों में बाँध पाना जिसे संभव नहीं.. हम ईश्वर को धन्यवाद देते हैं की उसने न केवल हमे माँ दी.. वरन ऐसी माँ दी जिसने अपने वात्सल्य , स्नेह, प्रेम और संरक्षण से हर पल हमें तराशा... हमे जिंदगी से मुकाबला करना सिखाया...मूल्यों और नैतिकता का पाठ न केवल लगातार पढ़ाया , बल्कि उसे अच्छी तरह रटाया... आज हम सभी भाई ज़िन्दगी में जो भी कुछ जाने हैं... सीखे हैं...किसी लायक हो पाए हैं .....सब हमारी माँ की दुआओं .. उनकी रात दिन की प्रार्थनाओं का ही असर है !

 

हम भाईओं को पालने में उन्होंने अपनी हस्ती मिटा दी ...पूरी जिंदगी उन्होंने कोई शौक नहीं किये... कोई फरमाइश नहीं की ...जो भी थोडा बहुत पैसा पिताजी अपनी नौकरी में देते रहे ..... एक-एक पैसा बचाकर उन्होंने उसे घर की ...... बच्चों की बेहतरी में लगा दिया... उन्होंने घर, परिवार, समाज में बड़ी मुश्किलों का सामना किया और अर्जुन की तरह एक ही लक्ष्य बनाकर बच्चों की परवरिश में लगी रही........ उनकी तमाम कुर्बानिओं ने मेरी रूह पर कितना असर डाला है ...... मैं बता नहीं सकता..!

घर-परिवार की परवरिश में पिताजी उनको बहुत समय न दे सके...... सो बिना घबराये माँ ने अकेले ही मोर्चा संभाल लिया........हालात ने उन्हें कई बार बेज़ार कर के रख दिया पर हिम्मत नहीं हारी...”>> आगे पढ़ें

अब बारी माँ की है… माँ ने अपने बच्चे के लिए लिखा – माता श्री की कलम से.

“मंझले सुपुत्र....

image

बड़े बेटे पर लिखी गयी पोस्ट के उपरान्त यह मेरी दूसरी पोस्ट है । इस बार भी मैं अपने बच्चों के ऊपर पोस्ट लिख रही हूँ । चूँकि पिछली पोस्ट में मैंने बताया था कि मेरे चार पुत्र हैं । इसी क्रम में यह पोस्ट मेरे दूसरे बेटे पंकज के ऊपर है ।

पंकज... पवन से छोटे हैं... ओर इस समय वे ''सेल्स टेक्स कमिश्नर'' के पद पर कार्य रत हैं । उनकी कुछ विशेषताओं को मैं यहाँ बताना चाहूंगी ।

वे अपने नाम की तरह पुष्पित एवं पल्लवित हैं । वे ऊँची कद काठी के हैं । वे शांति प्रिय हैं । वे आध्यात्म से जुड़े हैं । उन्हें मीठे भोजन बहुत पसंद हैं । उनको सफाई और घर का सामान यथा स्थान लगाना पसंद है । समय का अभाव होने पर भी वे ज्यादा से ज्यादा वक़्त मुझे देते हैं और विहार व्यक्त करते हैं । उनके यहाँ मुझे बहुत शांति मिलती है । वो भीष्म पितामाह जैसे दृढ़ प्रतिज्ञ हैं, जो मन में ठान लें, कर दिखाते हैं । जब वो मुझे ''माते'' कहकर पुकारते हैं... तो मैं अपने आपको धन्य समझती हूँ । इश्वर में उनकी आस्था को देखकर मुझे एक चौपाई याद आती हैं । जो माँ सुमित्रा ने लक्ष्मण के लिए कही थी .......

पुत्रवती युवती जग सोई ।
रघुपति भगत जासु सुत होई ।।

ऐसे बच्चों का होना वास्तव में गर्व की बात है पर मै इसको प्रभू की कृपा समझती हूँ उनकी कृपा के बिना कुछ भी संभव नहीं है निसंदेह पंकज बहुत भावुक किस्म के हैं वे बाहर से नारियल की तरह कठोर लगते हैं जबकि वे अन्दर से बेहद नरम हैं….” >> आगे पढ़ें

सिंह सदन में और भी बहुत कुछ है. स्टाइलिश फैमिली से लेकर सास-बहू तक. 30 जून 2010 को सिंह सदन का मासिक बुलेटिन भी प्रकाशित हुआ -

“माह : जून 2010

1. ''सिंह सदन'' के लिए जून का बेहद गर्म माह भी खासा गहमा - गहमी भरा रहा ! ''होम ब्लॉग'' की सक्रियता ने पुराने सभी रिकार्ड ध्वस्त कर डाले ! एक ही माह में ''गोल्डन जुबली'' .... यानि एक ही माह में ५० पोस्ट ....और इस तरह जून माह इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गया है !

....इस शानदार कामयाबी के लिए मैं सभी सुधी लेखकों .... माता श्री.... भैया.... अंजू भाभी ....हृदेश सिंह ''जोनी'' ... पुष्पेन्द्र सिंह ''पिंटू'' ... प्रिया ... अमित ''चिंटू'' ... संदीप ... नेहा सिंह ''बिटिया'' को बहुत बहुत मुबारक बाद देता हूँ !…”

>> आगे पढ़ें

इस ब्लॉगर परिवार की खुशियों में आप भी शामिल होना चाहते हैं? तो फिर देर किस बात की?  सिंह सदन – ए हट अंडर द स्काई के मेहमान बन जाइए!

Post Comment

Post Comment

21 टिप्‍पणियां:

  1. इतने सुन्दर तरिके से चित्रण करने के लिए आपका आभार ।




    ब्लागर और साहित्यकार तथा पत्रिका SADBHAVNA DRAPAN के सम्पादक गिरीश पंकज का साक्षात्कार/interview पढने के लिऐ यहा क्लिक करेँ-->>एक बार अवश्य पढेँ

    जवाब देंहटाएं
  2. ये ही है ब्लॉगिंग की ताक़त. क्या कोई सम्पादक अपने प्रकाशन में इस तरह के लेखन को जगह देगा ? जानकारी के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  3. .
    .
    .
    आपके कारण हम भी घूम आये सिंह सदन...
    ब्लॉगिंग के अनेक रूपों में से एक यह भी है...
    आभार आपका!

    जवाब देंहटाएं
  4. ये अन्दाज़ भी बढिया है………कुछ हट्कर तो है।बहुत सुन्दर प्रयास्।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही बढ़िया... अच्छा लगा.
    बांधकर रख दिया आपने।

    जवाब देंहटाएं
  6. ब्लागिंग का असली रूप शायद यही है....

    जवाब देंहटाएं
  7. ये ‘सिंह-सदन’ वाले तो मेरे जाने पहचाने लोग हैं। ब्लॉग का इतना जबरदस्त और सुन्दर प्रयोग वाकई उत्साह बढ़ाने वाला है। आशा है इस प्रकार के और भी पारिवारिक ब्लॉग सामने आएंगे।

    जवाब देंहटाएं
  8. रवि भाई,
    बहुत बहुत आभार आपका ! 'सिंह सदन' परिवार से मेरे निजी सम्बन्ध है .....मैं खुद भी इस ब्लॉग के बारे में लिखने वाला था पर आपने बाज़ी मार ली ! खैर उस से कोई फर्क नहीं पड़ता आपने भी वही लिखा है जो मैं लिखता ................इस परिवार की यही एकता आज के दौर में हम सब के लिए एक आदर्श है ! एक बार फिर आपका बहुत बहुत आभार और धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  9. एक बुकमार्क करने लायक चर्चा ...संग्रहणीय और अनुकरणीय ।

    जवाब देंहटाएं
  10. इस ब्लॉग से परिचय कराने का बहुत बहुत शुक्रिया....

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही अच्छी चर्चा!

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही अच्छी चर्चा!

    जवाब देंहटाएं
  13. यह हुई ना बात .. कुछ भी कहिये जब इस तर्ह पूरे परिवार के लोग रचनात्मक योगदान देंगे तभी हिन्दी ब्लॉगिंग का भविष्य उज्ज्वल हो सकेगा । धन्य हैं आप ।

    जवाब देंहटाएं
  14. है।बहुत सुन्दर प्रयास्।

    जवाब देंहटाएं
  15. पारिवारिक ब्लॉग का सुन्दर स्वरूप ।

    जवाब देंहटाएं
  16. bahut bahut hi shandar, sach me yahi blogging hai.... kaha se dhund lete hai aap sir, ham vakai aapke saamne bacche hain. shukriya is blog se parichay karwane ke liye fauran book mark kar rahah hu, follower bhi ban ne ja raha hu udhar hi, tata idhar se.

    जवाब देंहटाएं
  17. रवि जी ज़रा हट कर ये पोस्ट पसंद आई ...सुन्दर,सटीक दिल को लुभाने वाली .....आभार

    जवाब देंहटाएं
  18. शुक्रिया ''चिट्ठा चर्चा''
    चिट्ठा चर्चा में सिंह सदन का जिक्र हम सभी के लिए गौरव की बात है...इसको पसंद करने वालों को दिल से बधाई और शुभकामनायें...

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Google Analytics Alternative