विमर्श के बदलते मुद्दों का सफ़र हैं ये चिट्ठा चर्चा
दो ब्लॉग देखे , उनको पढ़ा और अपनी पसंद की दो पोस्ट ले आयी हूँ , देखिये , पढिये और हो सके तो विमर्श भी कीजिये , बहस भी कर सकते है या बस आत्म मंथन कीजिये . हम तो बस यही चाहते हैं की जब प्रतीक के रूप में बात हो तो हर "बुराई , छल और कपट" के लिये दिये हुए प्रतीक बिम्बों को "नारी" ना बना दिया जाए .
इतिहास में दर्ज कथाओ के आधार में अगर बुराई और छल कपट का पर्याय नारी हैं तो उन कथाओं को तिलांजलि देने का वक्त हैं क्युकी यही हैं जेंडर बायस की पहली सीढ़ी जहां पुरुष अच्छाई का और नारी बुराई का प्रतीक बन गयी हैं .
इतिहास में दर्ज कथाओ के आधार में अगर बुराई और छल कपट का पर्याय नारी हैं तो उन कथाओं को तिलांजलि देने का वक्त हैं क्युकी यही हैं जेंडर बायस की पहली सीढ़ी जहां पुरुष अच्छाई का और नारी बुराई का प्रतीक बन गयी हैं .
हे वधु से वेश्या तक चुनने के अधिकारी
"मेरी एक पहचान थी. प्राचीन काल में हम शिक्षित थे. तुम्हारे बराबर के दज्रे में थे. हमारी योग्यता का लोहा माना तुमने ही. विश्वास न हो तो पंतजलि, कात्यायन के पन्नों को खोल के देखो. साध्वी, गार्गी, मैत्रेयी, मीरा सभी मिलेंगी. ऋग्वेदिक ऋचाएं आज भी गवाह हैं हमारी. आज भी जेहन में सभी बातें दफ़न हैं.तुम्हें विज्ञान पर भरोसा है, तो सुनो. मानव जाति को केवल पुरुष या स्त्री में ही नहीं बांटा जा सकता हैं. हम क्या हैं, कैसे हैं, यह क्रोमोसोम तय करते हैं. यह जोड़े में आते हैं. हम में क्रोमोसोम के 23 जोड़े रहते हैं. हम पुरुष हैं या स्त्री, यह 23 वें जोड़े पर निर्भर करता है. अब बताओ, इसमें मेरी क्या गलती जो तुम मुङो दासी समझते आये हो.
मैं न कैदी हूँ न भिखारी मेरा हक है एक समूची साबुत आज़ादी. मेरी सुनो
अन्तत: तुमने हमें विवश किया एक आन्दोलन के लिए. हम कहां चुप बैठने वाले थे. सम्भाली कमान बनाये कई कीर्तिमान. आज प्रतिभा राष्ट्र को संबोधित करती तो किरण की नई ऊर्जा ने नई दुनिया दिखायी. किया क्या एक प्रयास. शस्त्र उठायी, शासक बनी, तुम्हारी प्रिय कुलटा विश्व सुन्दरी बनी. रेल से जेल तक हमारा राज. जम़ी तो क्या आसमान भी हमारा गुलाम. सड़क से संसद तक छायी हूॅ. शांति पुरस्कार मेरे पास, मदर टेरेसा मेरी पहचान. कैसे रोकोगे मुङो. 9 मार्च को मिले आजादी के हिसाब से केवल 60 साल लगे हमारे प्रयास को. अभी आगे बढ़ी थी कि तुमने 33 प्रतिशत आरक्षण में बाधकर दायरे को सीमित करना चाहा. अब सभी तरह की गतिविधियां हमारे सामने छोटी है. शिक्षा, राजनीति, मीडिया, कला और संस्कृति, सेवा क्षेत्र, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदी में हम बराबर के हिस्सेदार है "
कुंठित पुरुषवाद बेटियों को कहीं नहीं बख्शता...
"बेटी या बोटी...
हमारी एक दोस्त हैं। उनकी उम्र लगभग पच्चीस साल है। इसी मसले पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि दिल्ली में नौकरी के बीच जब भी वे हरियाणा के एक कस्बे में अपने घर जाती हैं तो उनके पचपन साल के पिता के हमउम्र, लेकिन किसी बांके जवान की तरह सजे-संवरे, इत्र लगाए, हर वक्त पूरी तरह "मेनटेन" दिखने वाले, बहुत धनी-मानी और कई फैक्ट्रियों के मालिक एक दोस्त उनसे मिलने जरूर आते हैं। जहां उनके पिताजी प्रणाम करने पर सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देते हैं, और फिर बैठ कर या खाते-पीते, हंसते-खेलते बातें होती हैं, वहीं उनके पिता के उस दोस्त के आशीर्वाद देने का तरीका कुछ और ही होता है। वे पांच मिनट में पचास बार "बेटे-बेटे" कहते हैं, छोटी-छोटी बातों पर इतने उत्साहित होकर बेटे-बेटे कहते हुए कंधे या पीठ पर थपकी देते हैं, जैसे उसके आने या आगे बढ़ने से सबसे ज्यादा खुशी उन्हें ही होती हो। गले लगा कर, चूम कर "आशीर्वाद" देना उनका खास तरीका है। पिछली बार तीन दिन में जब दूसरी बार उनके "आशीर्वाद" देते हाथ ने साफ तौर पर वही हरकत की, जिसका इन्हें अंदेशा था, तब इनका धीरज जवाब दे गया और इन्होंने अपनी मां को बताया। मां ने पति के उस दोस्त को ढेर सारी गालियां दीं, और कहा कि इसीलिए अपनी बीवी का गर्भ जांच करा कर चार बार गर्भपात करवाया और एक बेटा पर इतराता फिरता है। पता नहीं अपनी बेटी होती तो क्या करता। शायद इसीलिए बेटी नहीं होने दिया।"
कभी कभी कहीं कुछ ऐसा पढने को मिल जाता हैं जो याद दिला जाता हैं की एक मकसद बनाना होगा हमे स्त्री पुरुष समानता की कोशिश को .