चर्चा करने के लिये, कुछ समय बचा न आज,
देर भई दफ़्तर भगे, यह और कोढ़ में खाज!
उस पर तुर्रा ये हुआ, बिजी रहे हम दिन भर,
काम-धाम की रेल चली, औ डूबे भाई दिवाकर!
अभी शाम को बल्ब जला, बैठे हैं खोल के पर्चा,
देख रहे हैं ब्लागजगत, औ करने बैठे हैं चर्चा!
कुछ लिखा-पढ़ा जाये इसके पहले देखा जाये कि कवि की अपने महबूब से शिकायत क्या है:
और संक्षेप में दिए जा सकें उनके जबाब
या फिर वस्तुनिष्ट हों तो और भी अच्छे
नाम आसानी से बदले जा सकें
जैसे बदल दिए जाते हैं कपडे
नाम के लिए ना लिखी जाएँ कवितायें
बस्तों में इतनी खाली जगह हो
कि उसमें रखे जा सकें तितलियाँ, कागज़ के नाव
और पतंग भी
जिनके पास पैसा हो
सिर्फ उन्ही के पास पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य न हो
जीने का अधिकार सिर्फ संविधान में न हो
अस्पताल में दवाइयां मिल जाएँ
और स्कूल में शिक्षा
और कलेक्टर का बच्चा भी सरकारी स्कूल में पढ़े
महंगाई के प्रति सब उदासीन न हों
दाम बढ़ें तो आवाज बुलंद हो
सड़क के दोनों तरफ उनके लिए फूटपाथ हों
और शहर में कुछ ढाबे हों
जहाँ बीस-पच्चीस रुपये में भर पेट खाना मिलता हो
देश सबके लिए आजाद हो...
ओम आर्य
हमारा भी कुछ ऐसा ही मानना है।
आज के लिये फ़िलहाल इतना ही। बाकी फ़िर कभी।
नीचे का चित्र हमारे मोबाइल कैमरे से। दो बच्चे साइकिल पर जा रहे थे। पहले बच्चे से हमने कहा फ़ोटो खींच लें? बच्चा पोज में खड़ा हो गया -बोला खींच लीजिये। दूसरा बच्चा कैमरे के सामने के सामने आया तो उसने मुंह छिपा लिया। पहले बच्चे ने कहा - शरमाता है यह। :)
ऊपर का कार्टून काजल कुमार का (बनाया हुआ)है।
वो लड़ना झगड़ना रूठना और मनानामतलब कवि को शिकायत है कि महबूब अब लड़ते-झगड़ते भी नहीं है। कतरा के निकल लेते हैं। यह शिकायत दर्ज करायी है अनूप भार्गव ने और फ़ेसबुक थाने का नाम है अप्रैल सबसे क्रूर महीना है। अब बताइये भला कि अप्रैल महीने को जुलाई तक फ़ैलायेंगे तो भला कौन महबूब नहीं कतरायेगा। उसको और महीनों से भी तो निबाहना है। :) कवि लोग कहां-कहां कविता का उत्पादन कर लेते हैं ये देखिये रचना बजाज के स्टेटस से:
किस्से सभी ये पुराने हुए हैं
वो कतरा के छुपने लगे हैं हमीं से
महबूब मेरे सयाने हुए हैं ।
मेरी कविता मेरे दिल मे जनम लेती है,कविता में हवा-पानी न हो मतलब रजनीकांत अलंकार यानि कि अतिशयोक्ति अलंकार न हो कविता लिखने वाले को मजा नहीं आता। देखिये कवियत्री शिखा वार्ष्णेय आंसू को कित्ता गरमा के पेश करती हैं कि पाठक तक पहुंचते हुये छाला तक पड़ जाता है:
फिर दिमाग पर छा जाती है,
मौका मिलते ही,
बेखौफ़ वो बाहर आ जाती है .....
उसकी पलकों से गिरी बूंदकविता की बात चल रही है तो देखिये आज की कविता कितनी व्यापक हो गयी है। तरकारी, सरकारी, परिवारी और यहां तक कि मारामारी को भी कविता में जगह मिल गयी है:
ज्यूँ ही मेरी उंगली से छुई
हुआ अहसास
कितने गर्म ये जज़्बात होते हैं .
उफ़्फ़ ,
उंगली पर पड़ गया होगा छाला
भला इतने गरम जज़्बातों की ज़रूरत क्या थी ?
प्रायः जो सरकारी लोगअभी तक बात हम कर रहे थे खुद की रची कविताओं की। अब चलिये जरा चलते हैं अनुवादित कविताओं की तरफ़! इस कविता के ब्लाग पर लिखा है- कविता पढ़ना नदी को पुल से पार करना है. अनुवाद करना कवि के साथ उस नदी में डूब जाना है… तो कवि के साथ कुछेक नदियों में डूबने की हिम्मत करते हुये देखिये आप ही क्या कुछ मिलता है यहां!वहां कापी ताला लगा हुआ है वर्ना हम भी कुछ दिखाते आपको। कवि के किस्से सुन-सुनाकर अब चला जाये जरा मुआयना किया जाये लेख-ऊख का। देखिये रिश्तों की पैरहन पेश करते हुये सोनल रस्तोगी क्या बयान करतीं हैं:
आज बने व्यापारी लोग
लोकतंत्र में बढ़ा रहे हैं
प्रतिदिन ये बीमारी लोग
आमलोग के अधिकारों को
छीन रहे अधिकारी लोग
राजनीति में जमकर बैठे
आज कई परिवारी लोग
हर लड़की को चाहना होता है अपने होने वाले पति को, और और समझाना होता है यही है वो राजकुमार जिसका इंतज़ार करती आ रही है सदियों से,जब नख से शिख तक माप तौल चल रही होती है लड़की की, उसके पिता के बजट की, तब भी उसे अपने होने वाले पति में ढूंढना होता है महान आदर्श पुरुष.जो हर तरह से उसके योग्य है ,उसके माँ पिता तो बस माध्यम है चुना तो स्रष्टि ने है ना उसके लिए, अपने सपनो के खांचे में फिट करके देखती है नहीं होता ,तो अटाने की कोशिश करती है वैसे ही जैसे कोई नया सूट जो एक साइज़ छोटा हो उसे शरीर पर चढ़ा लिया जाए !यह तो मजबूर लड़कियां थीं जिनका किस्सा बताया सोनल ने शुरु करते हुये। फ़िर पोस्ट के अगले हिस्से में नयी कौम के किस्से बताये सुन लीजिये आप भी:
एक नई कौम अंकुरित हुई है हाल में उसी मिट्टी से,संस्कारों की खाद से सींची हुई, जिसके चेहरे पर आत्मविश्वास थोपा हुआ नहीं है,जड़े ज्यादा गहरी है, प्यार करने की कोशिश की बजाय प्यार करने में यकीन करती है,अडजस्ट करने के नाम पर इनकार करती है एक नाप बड़े या छोटे रिश्तो में उतरने के लिए या खुद चुनती है अपने नाप जिससे सांस ले सके या चुने हुए रिश्तों को परखती है, किसी भी घुटन,उमस को झेलने की बजाय आज़ाद कर लेती है खुद को, रिवाज़ खुद गढ़ने लगी है,रिश्तो के लिबास के बिना भी खुश रहती है क्योंकि वो जान गई है निर्वस्त्र रहना शर्म की बात नहीं है ईश्वर ने रचा है आपको एक खूबसूरत जीवन दिया है ,उसे उसके साथ जियो जिससे प्यार कर सको नाकि प्यार करने की कोशिश में ज़िन्दगी गुज़ार दो ......इस नयी कौम के अंकुरित होने के पहली के नारी पात्र कैसे होते सोनल के किस्सों में वो भी जरा देख लिया जाये:
मीता- बहनजी टाइप, जिसने अपनी दुनिया अपनी चोटी में बाँध रखी है अगर उसने अपनी चोटी खोली तो शायद भूकंप आ जाए .ये नयी कौम और रिश्तों की पैरहन वाली बात तो पत्नियों के बारे में लिखी गयी। कुछ किस्से पतियों के भी तो होने चाहिये। आखिर पति क्या होता है सिर्फ़ एक आइटम ही तो! तो देखिये कुछ विशेषतायें पति नामक आइटम की:
रीता -जो दुनिया को अपनी जूती पर रखती है ,उसके द्वारा उच्चारित सुभाषित देल्ली बेल्ली को भी मात करते है .
अनीता -चालु चैप्टर जी इसी नाम से बुलाते है है उसे ,उसका कोई काम कभी नहीं अटकता और वो अपने साथ किसी को अटकने नहीं देती
गीता -बेचारी मीता और अनिता के बीच का पात्र है मीठी होने की कोशिश में चिपचिपी हो जाते है और सब पीछा छुडाते नज़र आते है,अगर मीता के साथ रहती है तो परेशान और अगर अनिता के साथ तो महापरेशान .
चलिये छोड़िये बहुत हुआ पत्नी-पति का किस्सा। अब चलिये थोड़ा बाबागिरी हो जाये। देखिये नीरज जाट किन बाबाओं से मुलाकात कराते हैं:पत्नी असल में वह प्राणी होती है जो अपने पति को छील-छाल, गढ़-तराश कर आदमी बनाती है। दुनिया के सारे ‘कुँवारे’ वे पदार्थ होते हैं जिनमें बरास्ता पति होते हुये आदमी बनने की संभावनायें छिपी होती हैं पत्नियों के लिये पति का इंतजा़म आमतौर पर उनके घरवाले करते हैं। वे सामान्यत: अपनी आर्थिक हैसियत के मुताबिक अपनी कन्या के लिये पति खरीदकर दे देते हैं । पति के ऊपर पत्नी का अधिकार भाव पत्नी के घरवालों द्वारा पति को खरीदने के लिये चुकाई गये धन की मात्रा के समानुपाती होती है। आमतौर पत्नियों को पति जिस हालत में मिला होता है उससे एकदम अलग बनाने का प्रयास करती हैं।
करीब आधे घण्टे बाद मैं भी उठा और उन साधुओं के पास चला गया। मेरे लिये वे किसी साधारण साधु से कम नहीं थे क्योंकि इस इलाके में बहुत साधु घूमने आते हैं। गौमुख तक तो साधुओं की लाइन लगी रहती है। लेकिन जब बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो मैं हैरान हो गया। एक थे प्रेम फकीरा जो अच्छी अंग्रेजी जानते थे और शानदार व्यक्तित्व के मालिक थे। उनका फेसबुक एकाउंट भी है। वे गुजरात में राजपीपला के एक ओशो आश्रम में रहते हैं और भारत भ्रमण करते रहते हैं। गजब का व्यक्तित्व है उनका! मैं वाकई हैरान हो गया कि ऐसे भी साधु होते हैं। हंसमुख और मस्त मलंग।
एक लाईना
- कथा में क्या चाहिये: संवेदना, संदर्भ, परिवेश और शेष अगले अंक में
- बेच रहे तरकारी लोग:करते मारामारी लोग
- रिश्तों की पैरहन: पर बड़े मियाँ दीवाने
- पीयूष मिश्रा के बहाने चितकबरे कम्युनिस्ट पर एक बहस: मलतब वही सब जो बहस में होता है।
- तपोवन, शिवलिंग पर्वत और बाबाजी: की संगत में मुसाफ़िर जाट
- हम होंगे क़ामयाब... :हां नहीं तो!
- माने उसका भी भला, जो न माने उसका भी भला: हम तो कहेंगे-जो माने उसका भला, जो न माने उसका डबल भला।
- क्या हममें से किसी को पता है, जाति क्यों नहीं जाती?: क्या फ़ायदा पता करने से! जब जायेगी देखा जायेगा।
- बोल बच्चन- मनोरंजक है, देख सकते हैं: अपने रिस्क पर
- तिनके: वफ़ा के थे उसमें नेह लीप कर लोगों ने चाहत का झोपड़ा बना लिया।
- तुम्हारे प्यार ने मुझे सिखाया है घर छोड़कर फ़ुटपाथों को छानना : तुम्हारे प्यार ने मुझे बहुत बुरी आदतें सिखाईं हैं
मेरी पसंद
सवाल छोटे होंऔर संक्षेप में दिए जा सकें उनके जबाब
या फिर वस्तुनिष्ट हों तो और भी अच्छे
नाम आसानी से बदले जा सकें
जैसे बदल दिए जाते हैं कपडे
नाम के लिए ना लिखी जाएँ कवितायें
बस्तों में इतनी खाली जगह हो
कि उसमें रखे जा सकें तितलियाँ, कागज़ के नाव
और पतंग भी
जिनके पास पैसा हो
सिर्फ उन्ही के पास पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य न हो
जीने का अधिकार सिर्फ संविधान में न हो
अस्पताल में दवाइयां मिल जाएँ
और स्कूल में शिक्षा
और कलेक्टर का बच्चा भी सरकारी स्कूल में पढ़े
महंगाई के प्रति सब उदासीन न हों
दाम बढ़ें तो आवाज बुलंद हो
सड़क के दोनों तरफ उनके लिए फूटपाथ हों
और शहर में कुछ ढाबे हों
जहाँ बीस-पच्चीस रुपये में भर पेट खाना मिलता हो
देश सबके लिए आजाद हो...
ओम आर्य
और अंत में
ब्लॉगजगत में चल रहे बहस-प्रतिबहस-लिंक-प्रतिलिंक बहस/बवाल के बारे में काजल कुमार का कहना है-Attention seekers का कुछ नहीं किया जा सकता!हमारा भी कुछ ऐसा ही मानना है।
आज के लिये फ़िलहाल इतना ही। बाकी फ़िर कभी।
नीचे का चित्र हमारे मोबाइल कैमरे से। दो बच्चे साइकिल पर जा रहे थे। पहले बच्चे से हमने कहा फ़ोटो खींच लें? बच्चा पोज में खड़ा हो गया -बोला खींच लीजिये। दूसरा बच्चा कैमरे के सामने के सामने आया तो उसने मुंह छिपा लिया। पहले बच्चे ने कहा - शरमाता है यह। :)
ऊपर का कार्टून काजल कुमार का (बनाया हुआ)है।
रोचक चिट्ठा चर्चा ... काफी नए लिंक्स मिले ...आभार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीताजी!
हटाएंऊपर का कार्टून काजल कुमार का (बनाया हुआ)है - :)
जवाब देंहटाएंहां मुस्कराइये कि आप चर्चा में हैं। पहले लिखा था- ऊपर का कार्टून काजल कुमार का है!
हटाएंफ़िर सोचा कि कड़ुआ सच ठीक नहीं है तो ये लिख दिया। :)
मुला आप कहना चाहते हैं कि हम सिर्फ तभी मुस्कुराते हैं जब चर्चा में होते हैं? चर्चा में होने पर तो हम शरमाते हैं, लजाते हैं जी| हम तो आपकी ब्रैकिटिया शरारत पर मुस्कुराए हैं:)
हटाएंचर्चा होने पर लजाना/शरमाना सबसे शातिर प्रतिक्रिया होती है। बाकी शरारत बाई डिफ़ाल्ट हो जाती है। इसके लिये कोई इरादा नहीं होता। गैर इरादतन शरारत! :)
हटाएंअह्ह्हाआ ..क्या दृश्य होगा...लजाना-शर्माना, वाह वाह !!
हटाएंअब न हम समझे लोग-बाग़ को 'आईटम' का उपाधि आज कल काहे मिल रहा है..:)
अरे नए नवेले लिंक के बीच आपने अपना पुराना लिंक रीठेल कर दिया।
जवाब देंहटाएंपति आइटम होते हैं, लेकिन आइटम डांस नहीं करते... ;)
पुराने लिंक की इज्जत तो करनी ही चाहिये। बुजुर्गों को सम्मान देना हमारी संस्कृति है न! पति डांस करते हैं वही आइटम बन जाता है।
हटाएंएक लाइना के लिए एक बार फिर से आभार... मुझे वही अधिक रुचिकर लगती है... :)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद! एक लाइना कई दोस्तों को पसंद आती है। हमें भी। लेकिन कभी-कभी कुछ भाई लोग बुरा मान जाते हैं कि उनका मजाक उड़ाया इसलिये कभी-कभी डर जैसा भी लगता है।
हटाएंमस्त चर्चा किये हैं.
जवाब देंहटाएंऊपर के शेरों ने पहले ही दबोच लिया,ऐसे ज़बरिया लिखते ही क्यूँ हो...?
शेरों ने दबोच लिया तो वन विभाग में रपट लिखाओ। वे शेरों को पकड़कर जंगल ले जायेंगे।
हटाएंजबसे बेग़म ने पति देव को आईटम बनाया है
जवाब देंहटाएं'मुन्नी' 'शीला' का दोकान पर बड़का ताला नज़र आया है
आपके भी का कहने, पहिले दू-लाईना, फीन बहु-लाईना, फीन एक-लाईना..माने फुल फ्लेबर...
पाठकों का नस-नस से बाकिफ चिट्ठाकार, का चर्चा-मार से बचने का हिम्मत केकरा में होगा भला..
आज भी महा-सिक्सर है..:)
धनबाद स्वीकारिये...
:)
हटाएंशीला, मुन्नी का दोकान बहुत दिन से नहीं देखा। डर लगता है!
धनबाद है आपका भी। :)
जल्दी की चर्चा का तो ये हाल है अगर फुरसत में करते तो पता नहीं क्या करते .... :) ओम आर्य जी आजकल गायब है बहुत समय से उनकी रचनाये नहीं पढ़ी.
जवाब देंहटाएंसमय न बचा तो यह हाल है ?? तो भगवान करे आपके पास कभी समय बचे ही न :).सोनल की किस्से कहानियों में एक अलग सी बात होती है.जिंदगी की कड़वी सच्चाईयां भी खूबसूरती से बयाँ करती है वो.
जवाब देंहटाएंऔर ओम आर्य तो वो कवि हैं जिनकी कवितायें हमने अपने ब्लॉग जीवन के शुरूआती दिनों से ही पढ़े हैं.
kajal kumar sahi kah rahe hain.....lekin, isi baat ko 'apne cartoon' se kahbayen" sandarbh ke saath......to sayed unko bhi samjha aa jai....jinhe itte se logon ki baat samajh nahi aa rahi.....
जवाब देंहटाएंaaj-kal fatafat charcha jari hai.....ek post fursatiya par 'Attention seekers'........ke liye ho jai....
pranam.
बधाईयां स्वीकारिये
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