सोमवार, जुलाई 23, 2012

चिटठा चर्चा पर ही एक चर्चा

चिटठा चर्चा पर ही एक चर्चा करूँ ताकि याद रहे वो बहसे जो कभी यहाँ हो चुकी हैं


" किसी महान दार्शनिक ने कहा है - संक्रमण काल में कई बार बुद्धि विभ्रम मे पड जाती है और हमारा मन कुछ अजाने भयों की कल्पना करके उनके खिलाफ मोर्चाबन्दी की शुरुआत कर देता है।यह मोर्चाबन्दी वचन ,कर्म की किसी भी हद तक जा सकती है।इस अधकचरे समय में स्त्री की स्थिति भी ऐसी ही अधकचरी हो गयी लगती है।जितना ही वह साहस करती है उतना ही प्रताड़ना बढती जाती है।एक मोर्चा सम्भालती है तो दूसरेपर धराशायी कर दी जाती है।अब देखिए , जितना ही स्त्री विमर्श ब्लॉग पर बढ रहा है उतना ही उसके विरोध के स्वर भी सामने आ रहे हैं।स्त्री को महानता की भारी पदवी और ज़िम्मेदारी देकर हाथ झुलाते घूमने वाले महानुभावों का समर्थन करने वालों से एक विवाद खत्म हो चुकता है तो ठीक उसी बिन्दु से वही विवाद पुन: कोई और उठा देता है।गोल-गोल इसी झाले मे घूमते घूमते दो वर्ष बीत चुके ...जो सुनना नही चाह्ते , वे नही ही सुन पा रहे .. इतनी नारियाँ कह रही हैं कि बेटा और भी गम हैं ज़माने में ..पर... .ऐसे में यही जवाब देते बनता है कि भाई पदवी वापस ले ल्यो और चैन से जीने दो..... " सुजाता 

"साड़ी हमारी पहचान है...गाय हमारी माता है..."

बेटा जी ,अभी बहुत छोटे हो ...इस फिक्र में क्यों घुल रहे हो 

मलिका, गुलाम और मुल्क ...यानी मालामाल

हमारी ललनाओं की छाती पर अपनी कुत्सित नंगी जांघें दिखाने की दु:शासनी वासना को धिक्कार    

तुलसी और दुर्वासा इतने भौंडे तो नहीं थे

 

कितना कुछ यहाँ कहा जा चुका हैं अब और क्या कहना हैं . एक एक लिंक खोले और देखे इस मंच पर हुई बहस को और जानिये हिंदी ब्लोगिंग के प्रकरणों को 
और फिर लौट कर आईये और अपनी राय दीजिये  

 

 

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5 टिप्‍पणियां:

  1. चिट्ठाचर्चा का अधोपतन

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  2. अच्छा रहता है बीच-बीच में मुड़ कर देखना, बीते हुए समय को...
    लेकिन सिर्फ़ ख़ुद में और औरों में बदलाव के आकलन के लिए..
    अपनी गलतियों से सीख लेना और अपने धनात्मक गुणों को और पजाना ही मकसद होना चाहिए...

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    1. ada ji
      yae link mehaj is liyae uplabdh haen ki kabhie kabhie lagtaa haen kuchh behas me sirf gol ghum rahae haen

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    2. रचना जी,
      दूसरों से यह उम्मीद करना कि वो हमारे कहने से बदल जायेंगे, या वही करेंगे जो हम चाहते हैं...दुखदाई होता है....इसलिए ऐसी उम्मीद ही क्यूँ करना ?
      जैसे हम अपनी बात पर डटे हुए हैं, दूसरों को भी डटे रहने का हक़ है...
      ज़रुरत है, जो हमारी नज़र में सही है, वही काम करना और उसके लिए अनवरत प्रयत्नशील रहना...
      कई मौके ऐसे आए हैं, जब ब्लॉग जगत एक जुट रहा है, जो निःसंदेह तारीफ़ के काबिल है....
      सबके अपने-अपने परिवेश थे और हैं, और उनकी सोच भी तदनुरूप थी और है, कुछ लोगों के साथ ये गोल-गोल घूमना अभी कई सालों तक चलेगा...ये भी हो सकता है, कुछ लोगों की सोच ता-उम्र गोल-गोल ही घूमती रहेगी, और इससे हमें ऊबना नहीं चाहिए...
      लेकिन इस बात से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता, कुछ लोग बदल गए हैं, कुछ बदल रहे हैं और कुछ बदल जायेंगे, बेहतरी के लिए...

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  3. sorry Rachna ji aapka message abhi dekha aapke diye in links par jaroor ghoomungi.aaj kal aapke vichar jaise har mahila ke honge to naari sashakti karan ko koi bhaadhit nahi kar sakta.

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