अभी सुबह लोटपोट खोलकर बैठे तो इधर-उधर से टहलते हुये जयपुर निकल गये। वहां लिख डाला ब्लॉग दिखा। वर्षाजी विकी आर्य की कविता के बारे में बताती हैं:
आगे देखा तो वर्षाजी ने भी कवितायें लिखी हैं। मुलाकात का अंदाज देखिये:लोग तो लहसुन से हैंखुलते नहीं
एक फांक भी।
और मैं- जैसे प्याज कोईजो, हरनिर्वसन
परत खुलकर
न जाने क्या- क्या कह कर
सा हुआ जाता है।
प्रेम से भरा कवि
तुम्हें याद करते हुए2007 से ब्लॉगिंग की दुनिया से जुड़ी वर्षाजी अपनी प्रोफ़ाइल में लिखती हैं:
जब घिर आई
आँखों में नमी
खुद से कहा
जाओ मेरी रूह
मुलाकात का वक़्त
ख़त्म हुआ |
अभी गुम हूँ.. किसी की यादों में लिप्त हूँ या आकंठ डूबी हूँ... मैं वहां हूँ जहाँ से खुद को खुद की कोई खबर नहीं आतीपिछले दिनों शुक्र टहलता हुआ सूरज की कक्षा के आर-पार हुआ। उस घटना को इन्होंने कैसे देखा आप भी देखिये:
ऐ शुक्र तेरा शुक्रियावर्षा जी के ब्लॉग पर पीछे जाते हुये जब एक कविता का शीर्षक दिखा -अच्छे लोग मेरा पीछा करते हैं तो मैं वापस लौट लिया और चल दिया जोधपुर की तरफ़ जहां से होते हुये मैं इस ब्लॉग तक पहुंचा था। संजय व्यास जोधपुर में रहते हैं। कुछ कच्ची-पक्की रचनायें देखिये इनकी। एक में लिखते हैं:
आज तमतमाए सूरज पर
तुम किसी
खूबसूरत तिल
की तरह मौजूद थे.
क्या हुआ...
सुबह ठंडी थी
और परिंदे हैरान
प्रेम यूं भी लाता है
खुशियों के पैगाम
सौ साल में एक बार.भर गर्मी के भारी चिपचिपे अहसास में
महज हाथ पंखे की ठंडी हवा के
वहम से संतुष्ट
खाने पीने की तमाम चीज़ों की
उपस्थिति से भरा भरा
बैठा है व्यापारी
चूहों की अहर्निश आवाजाही के बीच.
यहाँ आने का सिलसिला
पुराना है
और
मेरे घर का और भी पुराना
मतलब हम पीढ़ियों से
यहाँ किराना खरीदते आये हैं.
संजय की अन्य रचनायें भी आपका पढ़ने का मन जरूर करेगा। संजय व्यास के ही इलाके के हथकढ़ ब्लॉग मिलता है। इसकी सबसे ताजी पोस्ट पोस्ट पर यह कविता देखिये:ऐसा भी नहीं हैअब जरा और ऊपर चलकर अजेय की डायरी के कुछ अंश देख लिये जायें जो उन्होंने एक कविता वर्कशाप के अनुभव समेटते हुये लिखे:
कि न समझा जा सके, मुहब्बत को.
वह भर देता है, मुझे हैरत से
यह कह कर
कि तुम बता कर जाते तो अच्छा था.
जबकि न था, कभी कोई वादा इंतज़ार का.ये आखिरी वाली बात लगता है उन्होंने हमें सुनाते हुये ही लिखी है। हमें भी नहाना-धोना-तैयार होना है। इसलिये निकल लिया जाये अब भाई।कृष्णा एक टेलेंटेड किंतु शारीरिक रूप से अक्षम युवती. वह केवल पाँचवीं कक्षा तक ही पढ़ पाई है. चित्र कला और लेखन मे बहुत रुचि है. उस के पास बहुत गहरे व्यक्तिगत अनुभव हैं लेकिन उपयुक्त विधा की तलाश बाक़ी है. इस वर्कशॉप मे ऐसे बहुत से बच्चे / युवा शामिल होते हैं जिन का कविता की अधुनातन प्रवृत्तियों से पूर्व परिचय नहीं होता. न ही ये लोग पारम्परिक शैलियों और विधाओं से अवगत होते हैं. ज़्यादातर छात्र प्रतिभागी गहन मानवीय मुद्दों पर कविता कहना चाहते हैं . इन मुद्दों को ले कर उन मे अतिरिक्त उत्कटता है. लेकिन व्यापक अनुभव की कमी के कारण बहुत अस्पष्ट लिखते हैं . अकसर कुछ अम्बेरेसिंग स्थितियाँ भी पैदा हुईं हैं जब कुछ बच्चों ने अनजाने मे ( कि यह रेसिटेशन का वर्कशॉप है) , और कुछ ने जान बूझ कर ( कि किसी को पता नहीं चलेगा ) किसी स्थापित कवि की कविता पढ़ ली. इस से बचने के लिए कार्यशाला का उद्देश्य, एजेंडा और कार्य योजना के बारे स्पष्ट तथा विस्तृत पूर्व प्रचार हो. ज़्यादातर बच्चे शौकिया लिखते हैं . मैं चाहता हूँ कि शौकिया लेखन , चाहे उस का कोई खास बड़ा महत्व नहीं होता , को भी उचित सम्मान मिले. शौकिया लेखक ही गम्भीर पाठक / आलोचक होते हैं. कविता पाठ के सिलसिले मे ज़ोया नाम का नन्हा चेहरा याद आता है. और भारत भारती स्कूल की हेड गर्ल दिव्या की आत्मविश्वास पूर्ण शायरी . वह ग़ालिब की ‘फेन’ थी और गालिब के अन्दाज़ मे ही शायरी करती थी. प्रेरणा भी महान रचना को जन्म दे सकती है बशर्ते कि उस का उपयोग प्रामाणिक अनुभूतियों से जोड़ कर किया जाय. जहाँ वह निपट ‘नकल’ न लगे . .......अरे बाप रे !! साढ़े आठ बज गए . पानी ढोना है, रात के बरतन माँजने हैं . नाश्ता तय्यार करना है और नहा कर दफ्तर भी पहुँचना है. अंत मे इस वर्ष की कार्य शाला की तीन महत्वपूर्ण बातों का ज़िक्र ज़रूरी है
डा. कविता वाचक्नवीजी जी पिछले कुछ समय से किसी न किसी तकलीफ़ में ही रह रही हैं। कभी तबियत खराब तो कभी कुछ और। आजकल वे कुछ ज्यादा ही बीमार हैं। लंदन में हैं। बीमार है लेकिन हौसले के साथ अंतर्जाल के जरिये दुनिया से भी रूबरू बनी हैं। मंगलकामना करता हूं कि कविताजी शीघ्र स्वस्थ हों।चलते-चलते
चलते-चलते पढिये कविता वाचक्नवी जी द्वारा चिट्ठाचर्चा की लिखी हजारवीं पोस्ट- गर्व का हजारवाँ चरण : प्रत्येक ज्ञात- अज्ञात को बधाई! सतीश पंचम के कैमरे का हुनर भी देखते चलिये:थोड़ा और आगे निकल कर बनारस भी चल चलिये और देखिये देवेन्द्र पाण्डेय कह रहे हैं- बोल बम।11 टिप्पणियां:
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हम भी कल टहलते हुए गये और बोल बच्चन देख आये।
जवाब देंहटाएंhttp://satyarthmitra.blogspot.in/2012/07/blog-post.html
सोमवार की आपकी चिटृठाचर्चा में समय की कमी अखरती है (आखिर आपको नहाना भी तो होता है इस दिन)
जवाब देंहटाएंबढि़या चर्चा
चिट्ठाचर्चा को सक्रिय देख बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंगज़ब हैं आप भी...सुबह-सबेरे आदमी बर्तन मांजता है, नास्ता बनाता है, कोई-कोई सोमार को नहा भी लेता है..और आप हैं कि एने-उने फोलो कर रहे हैं लोग-बाग़ का...अच्छा हुआ जता दिया गया कि 'सिर्फ़' अच्छे लोग ही पीछा करते हैं', नहीं तो आप कान्फुसियन में जईते जा रहे थे, बेफजूल में ...:)
जवाब देंहटाएंअब सोमार का चर्चा हो कि मंगर का...सब टोपम-टोप रहता है..
ब्लॉग-जगत की संजीवनी है ई..चिटठा-चर्चा...
पथिया भर आभार स्वीकारिये !
लोग तो लहसुन से हैं
जवाब देंहटाएंखुलते नहीं
एक फांक भी।
और मैं- जैसे प्याज कोई.
क्या बात है ..गज़ब .शुक्रिया इतने अच्छे लिंक्स पकडाने का.अच्छा लगा वर्षा जी का ब्लॉग.
कविता जी जरा अस्वस्थ हैं पर जल्दी ही आएँगी पूर्ण स्वस्थ होकर.
विकी आर्य जी से मिल चुकी हूँ ..और उनके मुह से उनकी रचनाये सुनने का सौभाग्य भी मिला है ... वे दिखने में जितनी सहज है उनकी रचनाये उससे विपरीत आपको हैरत में डालती है कम पंक्तियों में गहरी बात,वे एक कुशल चित्रकार भी है
जवाब देंहटाएंniche tak aate-aate man har har mahadev ho gaya
जवाब देंहटाएंpranam.
बात-बात में असली बात तो भूल ही गए हम..
जवाब देंहटाएंकविता जी के शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ की कामना करती हूँ |
धन्यवाद
वर्षा जी का ब्लॉग अच्छा लगा ... परिचय कराने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा।
जवाब देंहटाएंवर्षा जी को पहले भी पढ़ा हुआ है ! देवेन्द्र पाण्डेय जी कांवरियों पर निशाना क्यों साध रहे हैं ? आखिर को वे भी इंसान हैं :)
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