लड़का प्रेम में था
उस महुए के फूल जैसी लडकी के.
वो उसे पी जाना चाहता था शराब की तरह
लडकी को इनकार था खुद के सड़ जाने से....
लड़का उसे चुन कर
हथेली में समेट लेना चाहता था
हुंह.....वो छुअन !
लड़की सहेजना चाहती थी
अपने चम्पई रंग को.
लड़का मुस्कुराता उसकी हर बात पर,
लड़की खोजती रही
एक वजह-
उसके यूँ बेवजह मुस्कुराने की....-प्रेम का रसायन......
यह कविता अनु लता राज नायर की है। दो बेटों की मां, केमिस्ट्री में एम.एस.सी. हैं सो प्रेम की केमेस्ट्री के बारे में अक्सर लिखती रहती हैं। केमेस्ट्री में एम.एस.सी. हैं तो काफ़ी दिन तक गणित का भी साथ रहा होगा। सो प्रेम का गणित भी मौजूद है उनकी कविताओं में देखिये:
यदि प्रेम एक संख्या हैअब जब प्रेम का गणित है तो भौतिकी भी जरूर होगी। प्रेम में डूबता/उतराना सबसे ज्यादा सुना जाता है सो वही देखिये:
तो निश्चित ही
विषम संख्या होगी....
इसे बांटा नहीं जा सकता कभी
दो बराबर हिस्सों में.
तुम्हारे प्रेम में डूब गयी....प्रेम कवितायें लिखने वाला प्रेम पत्र लिखने से कैसे चूक सकता है। सो अनुलता ने भी लिखा। लिखकर कलम तोड़ दी (माउस क्यों नहीं तोड़ा? :)
नहीं चाहती थी डूबना
डूब कर अपना अस्तित्व खोना मुझे नापसंद था
उत्प्लवन के सिद्धांत तय करते हैं शर्तें - तैरते रहने की.
डूब जाने की कोई शर्त नहीं!!!!
पत्र लिखूं / न लिखूंभोपाल और रायपुर में पढाई करने वाली अनु को पढ़ना बहुत पसंद है। विद्यार्थी जीवन में पढ़ाकू रहीं सो कविता सूझी नहीं। अब जब सुकून मिला तो कवितायें लिखीं। मतलब कविता लेखन फ़ुर्सत का काम है। :) लिखने की प्रेरणा देने वाले अपने पिताजी के बारे में लिखते हुये अनु ने कविता लिखी:
तुमसे कहूँ/ न कहूँ
प्रेम तो रहेगा ......
तुम खत पढो/ न पढ़ो..
सहेजो/ फाड़ दो.....
प्रेम तो रहेगा ही......
मानो या न मानो....
बचपन से सुनती आयी थीजो कविता बाबा सुनाते थे और जिसे बाबा की बच्ची सुनती थी बाद में गूगलबाबा की मदद से पता चला अनु को कि वो एक लोरी थी जिसे उनके पापा उनके लिये गाया करते थे। अनु लिखती हैं:
वो अटपटी सी कविता
न अर्थ जानती थी
न सुर समझती....
कविता थी या गीत ???
मचलती आवाज़ से लेकर
खरखराती ,कांपती आवाज़ तक
जाने कितनी बार सुना
लफ्ज़ रटे हुए थे...
जब जब कहती
तब तब वो बेहिचक सुनाने लगते
और मैं खूब हंसती...
बस अपने बाबा की बच्ची बन जाती....
ये मेरी पापा के साथ आख़री तस्वीर है....उनके जन्मदिन की.उनके जाने के बस 17 दिन पहले.
जिस गीत का ज़िक्र किया है मैंने वो एक लोरी है जो मलयालम में पापा गाया करते थे.....उनके जाने के बाद गूगल पर देखा तो जाना कि वो एक लोरी है जिसे केरल के राजा "स्वाति थिरूनल" को सुलाने के लिए गाया जाता था .इसको प्रसिद्द कवि "इरवि वर्मन थम्पी" 1783-1856 A.D. ने लिखा था....एक और संयोग है कि पापा भी स्वाति नक्षत्र में जन्में थे....और हमारे लिए किसी राजा से कम न थे.
अपने पापा से गहरे प्रभावित अनु उनको याद करते हुये लिखती हैं:
उस खालीपन में...छोटी,छोटी कविताओं के माध्यम से अपनी बात कहने वाली अनु की कविताओं में प्रेम है, प्रेमपत्र हैं तो यादें और यादों के पदचिन्ह भी हैं। सीली रात की बाद की एक सुबह का दृश्य देखिये:
निर्वात में
जीवन संभव न था....
जीने की वजह खोजी
तो पाया एक तारा....
रात के सूने आकाश में टिमटिमाता
सबसे चमकीला तारा...
जो मुस्कुराता है मुझे देख कर !!
सुनो न ! किरणों की पाजेबनज्म से प्रेम तक का रास्ता देखिये कैसे तय किया उन्होंने :
कैसे खनक रही है
तुम्हारे आँगन में.
मानों मना रही हो कमल को
खिल जाने के लिए
सिर्फ तुम्हारे लिए.....
चहक रहा है गुलमोहर
बिखेर कर सुर्ख फूल
तुम्हारे क़दमों के लिए....
कुछ छंद लिखे
मेरी बातों पर
मैं कविता हुई....
वो मौन हुआ
बस छू कर गुज़रा
मैं प्रेम हुई......
अनु मूलत: केरल की रहने वाली हैं। मलयालम उनकी मातृभाषा है। भोपाल और रायपुर में रहने/पढ़ने के चलते हिन्दी सीखी। ब्लॉग पर कवितायें उनके ब्लॉग के नाम (my dreams 'n' expressions.....याने मेरे दिल से सीधा कनेक्शन.....) के अनुरूप सीधा दिल से निकलती हैं। दैनिक भास्कर और अहा जिदगी में रचनायें प्रकाशित। कविता संग्रह- "ह्रदय तारों का स्पंदन " और रश्मि प्रभा जी द्वारा सम्पादित पुस्तक "शब्दों के अरण्य"में रचनायें शामिल।
संयोग से अनु लता राज नायर का आज जन्मदिन है। उनको जन्मदिन का मंगलकामनायें। उनका दिल से सीधा कनेक्शन बना रहे। नियमित लिखती रहें। प्रेम की गणित, भौतिकी और केमेस्ट्री मजबूत रहे। उनके पिताजी की गायी लोरी तो मैने नहीं सुनी लेकिन उनके लिये उनके जन्मदिन के मौके पर मेरी माताजी द्वारा गायी एक लोरी जो किसी राजकुमारी के लिये उसकी मां गाती होती होंगी।
मेरी पसंद
कल फ़ेसबुक मित्र sudhir tiwari की के यहां यह चित्र देखा:इस चित्र के बारे में जानकारी देते हुये बताया गया था An anthropologist proposed a game to the kids in an African tribe. He put a basket full of fruit near a tree and told the kids that who ever got there first won the sweet fruits. When he told them to run they all took each others hands and ran together, then sat together enjoying their treats. When he asked them why they had run like that as one could have had all the fruits for himself they said: ''UBUNTU, how can one of us be happy if all the other ones are sad?''
'UBUNTU' in the Xhosa culture means: "I am because we are."
हम हैं इसलिये मैं हूं। मतलब जब हम सब नहीं रहेंगे तो मैं कहां बचेगा?
मैंने उनकी वाल पर इस पोस्ट को पसन्द किया तो उन्होंने सवाल लिखा:
भाई अनूप, आपको धन्यवाद thanx कह कर एक पल nice अनुभव करने का प्रयास रहेगा जिसे संभवतः आप और आप सरीखे कुछ अन्य भी पसन्द करेंगे. उसके पश्चात हम सभी फिर उसी धक्का मुक्की में शामिल होने की कवायद में अपने को स्वस्थ एवम और बेहतर सिद्ध करने की evening walk की प्रक्रिया में निकल पड़ेंगे!इस पर मेरा जबाब था:
Sudhir Tewari हां शायद ऐसा ही हो लेकिन इस तरह के उदाहरण मन पर प्रभाव डालते हैं, बदलते हैं। भले ही थोड़ा-थोड़ा!आपका क्या कहना है इसपर आप भी बताइयेगा।
और अंत में
आज के लिये फ़िलहाल इतना ही। बाकी फ़िर कभी। नीचे का कार्टून भी सुधीर तिवारी की फ़ेसबुक वाल से:
हा हा हा आधार कार्ड का प्रयोग बहुत भाया :)
जवाब देंहटाएंतब क्या? जब कार्ड स्वीकार हैं तो आधार कार्ड क्यों नही? :)
हटाएंयही दुआ प्रेम की गणित, भौतिकी और केमेस्ट्री हर युग में मजबूत रहे...
जवाब देंहटाएंअनु लता राज नायर जी और उनकी लेखनी से परिचय कराने के लिए आपका शुक्रिया...अनु जी को जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई...
अनूप जी. एक बार ब्लॉगरगण का भी ऐसा ही सामूहिक फोटो कराने का प्रयास कीजिए...UBUNTU STYLE...
जय हिंद...
kya baat hai veerji........
हटाएंprnam.
खुशदीप,
हटाएंब्लॉगर गण के सामूहिक फोटो अक्सर ही टुकड़ों-टुकड़ों में होते रहे हैं। आगे भी होते रहेंगे। लेकिन अक्सर ही उनका मुकम्मल कोलाज नहीं बन पाता। नंदलाल पाठक जी की यह कविता शायद हम लोगों पर भी लागू होती है:
1. आपत्ति फ़ूल को है माला में गुथने में,
भारत मां तेरा वंदन कैसे होगा?
सम्मिलित स्वरों में हमें नहीं आता गाना,
बिखरे स्वर में ध्वज का वंदन कैसे होगा?
2.एकता किसे कहते हैं यह भी याद नहीं,
सागर का बंटवारा हो लहरों का मन है,
फ़ैली है एक जलन सी सागर के तल में,
ऐसा लगता है गोट-गोट में अनबन है।
यहां जब एक ही ब्लॉग के लोग दूसरे का नाम छिपाकर अपना इनाम झटकने की सहज मानवीय पृवत्ति के झांसे में आ गये तो UBUNTU भावना तो काफ़ी काल्पनिक कयास है। लेकिन आशा तो रखनी ही चाहिये।
अनु की कविताएँ प्रभावित करती हैं ।
जवाब देंहटाएंअनु लता राज नायर अच्छा लिखती हैं -उनकी मूल रूचि कविता और कविताकारों में है !
जवाब देंहटाएंइन दिनों शक्ति आराधना का पर्व है एक ओर सनातन कालजयी और इधर आप शक्ति आराधना -पूजा -अर्चना में लगे हैं,सो बढियां है!
लगता है अब चिट्ठाचर्चा चिट्ठाकार चर्चा के रूप कायांतरित हो रही है -याद रहे यह शीर्षक कापीराईट मेरा है!
2005 से जारी चिट्ठाचर्चा के न जाने कितने रूप बदलते रहे हैं। आज की चर्चा भी केवल चिट्ठाकार चर्चा नहीं है इस पोस्ट में और भी मसले हैं उनको बिसराकर के सिर्फ़ "याद रहे यह शीर्षक कापीराईट मेरा है!" बताने के लिये उत्साहित होना अच्छा है लेकिन इसी पोस्ट में मेरे-तेरे की भावना से ऊपर उठकर सबके लिये सोचने के लिये प्रोत्साहित करने वाला चित्र लगा है और उसकी विस्तार से चर्चा है।
हटाएंजहां तक चिट्ठाकारों की चर्चा की बात है तो यह काम फ़ुरसतिया पर नवम्बर’2004 से शुरु हुआ। जब जीतेंद्र चौधरी के बारे में लिखा गया था -मेरा पन्ना मतलब सबका पन्ना उसके बाद निरन्तर में नियमित चर्चा होती रही चिट्ठाकारों की। उसकी सूचना भी आपकी पहली चिट्ठाकार चर्चा की तारीफ़ करते हुये दी गयी थी।
चिट्ठाचर्चा में चिट्ठाकारों की चर्चा तो होती रहेगी लेकिन इसका ’चिट्ठाकार चर्चा’ के रूप कायांतरण नहीं होगा।
गर्म चुभन में मन को ठंडक देती हुई चर्चा
जवाब देंहटाएंआभार!
हटाएंanu prem ki kaviyatri hai.... dher saari shubhkamnaye
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंविस्तृत खोजबीन से लिखी गई है आज की चर्चा। अभी पता चला कि बेहद खूबसूरत कवितायेँ लिखने वाली अनु जी की मातृभाषा मलयालम है। आपकी पसंद का फोटो हमें भी बहुत पसंद आया। कार्टून कमाल का है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कि आपने चिट्ठाचर्चा पढी और पसंद की।
हटाएंanulata jee ka janmadin bahut achchhe dhang se pesh kiya aapane . unako bahut bahut badhai aur apako bhi isa prastuti ke liye.
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आपका।
हटाएंअनुलता राज नायर की खूबसूरत रचनायें पढ़ता रहता हूँ। उनको जन्मदिन की बधाई और शुभकामनाऐं। सुधीर तिवारी जी की पोस्ट और उनके द्वारा उठाये गये सवाल पर अपनी राय रखना चाहुँगा : अवचेतन में जन्म-जन्मान्तरों से सहेजे संस्कार जो शायद कभी हमारे सर्वाइवल के लिए ज़रूरी रहे होंगे, बदलने मे समय तो लगेगा लेकिन ऐसे सद्-विचार हमारी चेतना पर कहीं न कहीं एक डेंट तो डालते ही हैं । विचार रूपी बीज कभी नष्ट नहीं होता और अनुकूल अवसर पर अंकुरित होता ज़रूर है। सुधीर तिवारी जी के अपनी वाल पर इस पोस्ट को डालने और फेसबुक मिञों से शेयर करने के पीछे भी कुछ ऐसी ही भावना रही होगी ।
जवाब देंहटाएंआपका कहना सही है -विचार रूपी बीज कभी नष्ट नहीं होता और अनुकूल अवसर पर अंकुरित होता ज़रूर है। :)
हटाएंवाह! सुन्दर अभिव्यक्ति है!
जवाब देंहटाएंएक नज़र इस ख्याल पर भी डालें॥.
"सम्बन्धों का गणित"
http://sachmein.blogspot.in/2009/06/blog-post_16.html.
हां देखा आपके ब्लॉग पर संबंधों का गणित। बहुत रोचक गणित।
हटाएंह्रदय से आभारी हूँ अनूप जी....
जवाब देंहटाएंमेरे जन्मदिन पर इससे प्यारा तोहफा मुझे क्या मिल सकता था....
शुक्रिया तहे दिल से....बहुत खुश हूँ...
अनु
माँ की लोरी से प्यारा बेटी को और क्या लग सकता है..
हटाएंआभार.
आपको चर्चा अच्छी लगी यह मेरी लिये खुशी की बात है। शुभकामनायें। :)
हटाएंबढ़िया चर्चा ...अनु जी की कवितायेँ पढ़ते रहते हैं
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
हटाएंबहुत अच्छी है चर्चा .. अनु की कविताए सीधे दिल को छू जाते है..
जवाब देंहटाएंअरे ! हम तो पूरा-पूरी मिस कर गए। बहुते सॉरी अनु, और हैपी हैपी बड्डे ....लेटेड, बिलेटेड वाला ही सही। अनु की कवितायें तो वैसे भी हमरे दिल पर सीधा कनेक्शन मारतीं हैं।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत धन्यवाद अनूप जी इस चर्चा के लिए।
बढ़िया चर्चा ...अनु जी बहुत अच्छा लिखती हैं. चर्चा के लिए आपका बहुत -बहुत शुक्रिया अनूप जी...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत पोस्ट के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा बहुत बढ़िया रही। एक उत्तम चिट्ठाकार के विषय में पढ़ने को तो मिला ही, बच्चों का चित्र और उसकी चर्चा भी उत्कृष्ट है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कवितायेँ | बहुत खूब | अब से बार में आधार ही चलेगा | एक बार फिर से जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं | बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा ,,,
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