चर्चा करने को हुये आज हम पुन: तैयार,
पोस्ट,टिप्पणी कहां हो आओ सामने यार।
किसने क्या लिखा है मेरे सामने लाओ ,
बढिया,घटिया मत छांटो ऐसे ही ले आओ।
फ़टाफ़ट कुछ छांट-छूंट के जमा करेंगे पर्चा,
अब देरी न करनी है जी फ़ौरन चिट्ठाचर्चा।
-कट्टा कानपुरी
इत्ता लिख लेने के बाद हम आश्वस्त हो गये कि अब तो चर्चा हो के रहेगी। अब जब शुरु हुये हैं तो खतम भी करेंगे न जी। तो चलिये आपको टहलाते हैं अपने साथ । ब्लॉग वॉक करते हैं जरा।
आमतौर पर सुबह आम नेट नागरिक फ़ेसबुक पर जरूर जाती है। टहलने वालों के लिये मोहल्ले की पुलिया की तरह है फ़ेसबुक। जो टहलने निकलता है वो पुलिया कुछ देर ठहरता है, बैठता है। नहीं तो खड़े-खड़े ही गपियाता,बतियाता है। वैसे ही नेट टहलुआ भी फ़ेसबुक पर कुछ न कुछ समय-चढ़ावा जरूर चढ़ाते हैं। लोग कहने लगे हैं यह फ़ेसबुकिया नशा है। इसई पर विचार करते हुये ललित कुमार ने फ़ेसबुक का जाल और इसमें फंसें होने के लक्षण के बारे में बताया है। जो लक्षण उन्होंने बताये हैं उसके हिसाब से तो हमारा भी फ़ेसबुक टेस्ट पॉजिटिव निकलता है। आप भी देख लीजिये आपका क्या हिसाब है। पांच लक्षण आपको हम बताये देते हैं ललित कुमार की पोस्ट से टीपकर:
- आपके किसी अपडेट पर अपेक्षा से कम लाइक आएँ और आप इसके पीछे का कारण सोचने लगते हैं
- आप अपने किसी मित्र की मित्र-संख्या या “फ़ॉलोवर” संख्या से अपनी संख्याओं की तुलना करने लगते हैं
- अपडेट करने के बाद आप बार-बार यह देखने लगते हैं कि कितने लाइक्स और कमेंट्स आ चुके हैं
- यदि कोई शालीनता से भी आपकी बात का विरोध करे तो आप इससे व्यथित हो जाते हैं
- आप बहुत अधिक अपडेट्स और शेयर करते हैं
पिछले दिनों वेनेजुयेला के राष्ट्रपति ऊगो शावेज़ का लम्बी बीमारी के बाद निधन हुआ। उनकी मृत्यु पर वेनेजुएला में उमड़ी भीड़ सबने देखी. वह नए तरह के समाजवादी नेता थे. तानाशाह नहीं, पूरी तरह से जनता द्वारा चुने गए तथा उसके हित में काम करने वाले. पढ़िए वे पचास वजूहात जिन्होंने उन्हें अपने वक्त का सबसे लोकप्रिय नेता बनाया. अनुवाद भारत भूषण तिवारी का है लेख का शीर्षक है- यों ही लोकप्रिय नहीं थे ऊगो शावेज़! लोकप्रियता के पांच कारण यहां बाकी के वहां:
1. 1998 में लागू किए गए शिक्षा के सार्वभौमिक अधिकार के परिणाम आश्चर्यजनक रहे. साक्षरता मुहिम मिशन रॉबिन्सन प्रथम की बदौलत 15 लाख वेनेज़ुएलाइयों ने पढ़ना और लिखना सीखा.2. दिसम्बर 2005 में यूनेस्को ने बताया कि वेनेज़ुएला ने निरक्षरता का उन्मूलन कर दिया है.3. स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या 1998 में 60 लाख थी जो 2011 में बढ़कर 1 करोड़ 10 लाख हो गई और स्कूलों में नामजदगी की दर (एनरोलमेंट रेट) इस समय 93.2 फ़ीसदी है.4. समूची आबादी को शिक्षा के माध्यमिक स्तर तक लाने के लिए मिशन रॉबिन्सन द्वितीय शुरू किया गया था. इस तरह माध्यमिक स्कूलों में नामजदगी की दर 2000 में 53.6 फ़ीसदी से बढ़कर 2011 में 73.3 फ़ीसदी हो गई.5. मिशन रीबस और मिशन सूक्र की बदौलत दसियों हज़ार वयस्क छात्र विश्वविद्यालयीन शिक्षा हासिल कर पाए. नए विश्वविद्यालय शुरू किए जाने की वजह से विश्वविद्यालयीन छात्रों की संख्या 2000 में 8 लाख 95 हज़ार से बढ़कर 2011 में 20 लाख 30 हज़ार हो गई.
अब थोड़ा प्रेम की बात भी हो जाये। तो देखिये पल्लवी क्या लिखती हैं:
कुछ लोग प्रेम रचते हैं ...प्रेम की कानी ऊँगली पकड़कर जीवन की नदी की मंझधार बीच चलते रहते हैं! वो एक ऐसी ही कवियित्री थी! लोग कहते थे , वो प्रेम पर कमाल लिखती थी! वो कहती थी प्रेम उससे कमाल लिखवा लेता है! उसके कैनवास पर प्रेम की विराट पेंटिंग सजी हुई थी! सामने ट्रे में न जाने कितने रंग सजे रहते ..मगर वो केवल प्रेम के रंग में कूची डुबोती और रंग देती सारा आकाश! जब कोई नज़्म उसके दिल से निकलकर कागज़ पे पनाह पाती तो पढने वाले की रूह प्रेम से मालामाल हो जाती!फ़ाइनल स्ट्रोक में देखिये वह बात जिसके लिये यह ताना-बाना बुना गया:
सुन रहे हो ओ प्रेम ... " जब सबसे भयानक और सबसे बुरा दौर होता है तब तुम्हारी ज़रूरत भी सबसे ज्यादा होती है "अब अगर कुछ लोग प्रेम रचते हैं तो कुछ कविता भी रचते हैं। हम शुरु से पढ़ते भी आये हैं कविता के रचयिता हैं- गोस्वामी तुलसीदास। सूरदास। मीराबाई। आदि-इत्यादि। लेकिन लंदन निवासी शिखा वार्ष्णेय ने कविता के संबंध में उगने का सिद्धांत दिया है:
कविता तो उगेगी खुद ही,लेकिन प्रसिद्ध ठलुआ ब्लॉगर इंद्र अवस्थी का मानना है कि कविता रचने के लिये (उगने के लिये) प्रेरणा की आवश्यकता होती है:
कभी भी, कहीं भी ..
प्रेरणा अन्दर और कुछ कवितायें कूद के बाहर| कसम से - रोकने की कोशिश बहुत की, मगर जब दिमागी डायरिया होता है तो ऐसे ही प्रवाहमान होता है |कविताओं के नमूने भी पेश किया उन्होंने अपनी बात की पुष्टि के लिये:
अपन ने भी कविताओं के लिये कभी स्वेटर सिद्धांत पेश किया था -स्वेटर के फ़ंदे से उतरती कवितायें।प्रेरणा सप्लाई ज़ारी है,
ये की बोर्ड ही धीरे चलता है |
विचार तेज़ आते हैं|
विचार को अगर ज़ल्दी यूज़ ना करो,
तो विचार अचार बन जाते हैं|
फिर हमारे आचार-विचार को प्रभावित करते हैं |
और हमारा यों प्रचार करते हैं
कि हम लाचार हो जाते हैं
कि हम समाचार हो जाते हैं
अब यहां आज पढी गयी पोस्टों के कुछ अंश:
सोचता हूँ कि किसी क्षण समूचे ब्रह्मांड में खिल रही मुस्कानों को इकठ्ठा कर उस घर में ले जाऊँ और कहूँ कि कोई बात नहीं, आँसुओं को बहने दो, अपना आँचल पसारो और इन्हें ले लो। कल की तुम्हारी प्रार्थना और उल्लासमयी होनी चाहिये लेकिन हो नहीं पाता, कुछ चोरियाँ आकस्मिक मृत्यु से भी अधिक अवसाद छोड़ जाती हैं।
- जाना ही नहीं चाहिये था
सच यह है कि राजकोषीय घाटे को काबू
में रखने की मांग आवारा विदेशी पूंजी की ओर से आती रही है क्योंकि उन्हें
मुद्रास्फीति बढ़ने से अपने निवेश की कीमत घटने का अंदेशा सताता रहता है.
तथ्य यह है कि दुनिया भर में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में राजकोषीय
घाटा आम बात रही है. विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने भी अपने शुरूआती दौर में राजकोषीय
घाटे के जरिये ही विकास सम्बन्धी जरूरतें पूरी कीं और विकास की बुनियाद रखी.
दूसरे, राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए लिया गया कर्ज घरेलू और दीर्घकालिक है
तो उसमें चिंता की कोई बात नहीं है.-राजकोषीय घाटे का हव्वाआंख में उतरता है
शाम का आखिरी लम्हा
तुम्हारे कुर्ते की किनारी पर रखे हाथ।
अगले ही पल
सड़क के बीच डिवाइडर पर
तेरे कंधों के पीछे
खो जाता है, खुशी का आखिरी दिन
क्षितिज के उस पार।
गुलाबी हथेलियों पर
रखते हुये एक वादा
हम उठ जाते हैं ज़िंदगी भर के लिए।
मेरी रूह
अब भी चौंक उठती है
कि दफ़अतन छू लिया है तूने
कि तूँ बिछड़ कर भी साथ चलता है। -मैं तुम्हारी ही हूं
आज के लिये फ़िलहाल इतना ही। इसके बाद अहम चिट्ठाचर्चा पोस्टम करामि! तत्पश्चात दफ़तरम गच्छामि।
इन दिनों खून में आये जोश का राज भी बताईये -चर्चा दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंकोई राज नहीं। चर्चा करना मुझे हमेशा अच्छा लगता है। मौका मिलते ही करते हैं। आजकल मौका निकाल ले रहे हैं। बस्स। :)
हटाएंफेसबुक चर्चा का ब्लॉग या फेसबुक पेज भी बना लीजिए मित्रवर।
जवाब देंहटाएंफ़ेसबुक चर्चा का अलग ब्लॉग बनाने का कोई मतलब नहीं । एक जगह ही जो करना है वो अच्छा । :)
हटाएंफिर आप मकान में सोने, खाना बनाने, नहाने, स्टोर इत्यादि के लिए अलग अलग जगहें क्यों बनाते हैं
हटाएंबहुत ही बेहतरीन चर्चा पठनीय लिंकों के साथ.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राजेन्द्र कुमार जी। :)
हटाएंलगातार विषयांतर के बावजूद प्रवाह और रोचकता में कोई बाधा नहीं, मनोरंजक चर्चा। लेखन में आसानी से गियर बदलने में आपका कोई सानी नहीं ।
जवाब देंहटाएंअरे ये तो आपकी जर्रानवाजी है। बाकी हम तो ऐसे ही इधर-उधर जो पढ़ते हैं यहां ठेल देते हैं। :)
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