ब्लॉग बालाओं को क्या भूल गये, जो इन पर अब निगाहे करम हैं।कवि यहां दूसरे के बहाने अपनी मन की यादें के जंगल में टहलने की कोशिश करता है। चीयरबालाओं के लिये हमारे मन में हमेशा से सहानुभूति रही है। यह बात मैं आज से पूरे दो साल पहले कह चुका हूं:
इस सबके के चक्कर में सबसे ज्यादा मरन बेचारी चियरलीडरानियों की होती है। हर छक्के-चौके पर उनको ठुमका लगाना पड़ता है। सौंन्दर्य की इत्ती खुलेआम बेइज्जती और कहीं नहीं खराब होती जितनी चीयरबालाओं की होती है। एकाध रन पर भले वे धीरे-धीरे हिलें लेकिन चौका-छक्का लगने पर उनको बहुत तेज हिलना पड़ता है। जैसे उनको बिजली नंगा का तार छू गया हो। वे बेचारी कोसती होंगी चौका-छक्का लगाने वाले खिलाड़ियों को- खुद तो रन लेने के लिये हिलता नहीं। छक्का मारकर हमारा कचूमर निकलवा रहा है। अरे इत्ता ही शौक है रन बनाने का तो दौड़कर रन लो। पसीना बहाओ। लेकिन नहीं। खुद तो हिलेगा नहीं। गेंद उछाल कर मैदान के बाहर कर दी। हमको हिलाकर धर दिया। हिटर कहीं का। चौकाखोर कहीं का। छक्केबाज नहीं तो।और भी बातें हुयीं स्टेटस में। अरुण अरोरा ने उमर का (अपनी या किसकी?) लिहाज रखने को कहा। सपना भट्ट ने बीबी को फ़ोन करने की धमकी दी (अभी करते हैं आपकी बीबी को फ़ोन/उनके बेलन में अभी बड़ा दम है) सिद्धेश्वर जी ने मौसम को अच्छा बताया( सुबह - सुबह कविया गए / आज अच्छा -सा मौसम है)शिवबली राय ने विन्ध्य के वासी को उदास बता दिया। बहरहाल ! दो दिन पहले दिल्ली और सिवनी में मासूमों के साथ हुये बलात्कार की चर्चा गेल के तूफ़ान और सचिन के जन्मदिन में इधर-उधर हो गयी। सोनल रस्तोगी ने अपने भाव व्यक्त करते हुये लिखा था: सुना है प्रभु काम बहुत बढ़ गया है धरती पर विभाग शिफ्ट कर रहे हो सदा के लिए नर्क को नया नाम दिया था "अपना घर " तो बताते तो सही इस दुर्घटना के बाद जो चैनल देश में बढ़ती दरिंदगी और असुरक्षित माहौल के किस्से चीख-चीखकर बता रहे थे उनके आसपास ही कैसा हाल है यह विनीत कुमार ने बताया:
टीवी सीरियल को वूमेन स्पेस कहा जाता रहा है क्योंकि यहां पुरुष के मुकाबले स्त्री पात्रों की संख्या लगभग दुगुनी है. यही बात आप न्यूज चैनलों के संदर्भ में भी कहा जा सकता है. दुगुनी नहीं भी तो चालीस-साठ का अनुपात तो है ही लेकिन वो इस मीडिया मंडी में सुरक्षित तो छोड़िए इतनी भी आजाद नहीं है कि वो अपने उन इलाकों पर स्टोरी कर सके जहां से देशभर की स्त्रियों की सुरक्षा को लेकर बड़ी-बड़ी बातें हो रही है लेकिन उसके साथ भी यहां वही सबकुछ होता है जो कि इससे बाहर के इलाके में हो रहा है.विनीता का चैनलों से अनुरोध है:
आप में सो जो लोग भी दिल्ली की ताजा घटना को लेकर टीवी टॉक शो में जा रहे हों, चैनल के लोगों से अपील कीजिए कि लड़की के लिए किसी की बेटी,किसी की बहन,किसी की पत्नी जैसे जुमले का इस्तेमाल बंद करने की अपील कीजिए. ये बहुत ही घटिया और घिनौना प्रयोग तो है ही..साथ ही आप नागरिक के बजाय बहन,बेटी,पत्नी को वेवजह क्यों घसीटते हैं..ये सब करनेवाले लोग बहन,बेटी..तक का ख्याल नहीं करते..आप संबंधों को एंटी वायरस की तरह इस्तेमाल न करें.आगे एक और लेख में विनीत "दरिंदों की दिल्ली" जैसे स्लग और स्पेशल पैकेज चलाने के पहले न्यूज चैनल की भाषा और प्रस्तुतिकरण पर सवाल उठाते हुये इनके झांसे में न आकर अपना भविष्य बनाने के लिये दिल्ली आने वालों के मन से डर निकालते हुये लिखते हैं:
लड़की ! तुम्हें मैं कैसे यकीन दिलाउं कि दिल्ली दरिंदों का शहर नहीं है. इसी दिल्ली में तुम्हारी जैसी मेरी दर्जनों दोस्त बिंदास रहती है, अपने मन का करती है, बोलती-लिखती है. जब वो इस शहर में नई-नई आयी थी तो सहमी सी कि मुंह से वकार तक नहीं निकलते थे, उनमे से कई अभी जंतर-मंतर, आइटीओ पर धरना प्रदर्शन करती मिल जाएगी, न्यूज चैनलों में यौन हिंसा के खिलाफ न्यूज पढ़ती, स्क्रिप्ट लिखती मिल जाएगी. इस शहर ने उसे गहरा आत्मविश्वास दिया है उन्हें. ये सब उतना ही बड़ा सच है, जितना बड़ा कि अगर तुम्हारी मां मेरा ब्लॉग पढ़ लेगी, मीडिया पर लिखी मेरी पोस्टें पढ़ेगी तो कभी नहीं चाहेगी कि तुम मीडिया में जाओ. तुम्हारे पापा क्या पता तुम्हें चाहे जो कर लो पर मीडिया में न जाने की नसीहतें देंगे..लेकिन ये सब लिखने के बावजूद में रोज सैंकड़ों तुम जैसी लड़कियों को मीडिया में जाने, काम करने और बेहतर होने का पाठ पढ़ाकर आता हूं. कोई भावना में आकर नहीं, न ही सिर्फ अपनी रोजी-रोटी के लिए. इसलिए भी कि ये सच में तुम्हारी दुनिया है जिस पर हम जैसों ने कब्जा किया हुआ है, मैं खुद के लूटे जाने और तुम्हें छीनने की ट्रेनिंग देने में कामयाब हो सकूं तो सच में मुझे अच्छा लगेगा.आज चंद एकलाईना:
- ओ लैला तुम्हे कुटवा देगी, लिख के ले लो...खुशदीप :अभी भी वक्त है संभल जाओ खुशदीप
- हमारी जिंदगी में भी, कई बे-नाम रिश्ते हैं......: ’अदा’ का खुलासा और किसी के लिये दुनिया छोड़ने का एलान
- शर्मिंदा हूं क्योंकि " मैं दिल्ली हूं " .. :यह तो आधा सच है, पूरा खुलेगा तब क्या हाल होगा?
- मैं वही अँधेरों का आदमी… : जिसको बर्दाश्त करना मुश्किल है
- एक थी डायन: नारी अस्मिता के मुंह पर तमाचा: चटाख- गूंज जर्मनी तक सुनाई दी
- कृपया अपना मुंह बंद कर हँस लें ..... : मुंह खुला तो हंसी फ़रार हो जायेगी।
- लेखक वस्तुतः अपनी भाषा का मूलनिवासी या आदिवासी होता है : उसकी भाषा ही उसका जल, जंगल, ज़मीन और जीवन हुआ करता है।
- इंसानी भेड़िये कहीं बाहर से नहीं आते --- :ये हमारी अपनी मेहनत की कमाई हैं
- आह ! हंगामेदार देश हमारा :खुल गया मानो मुद्दों का पिटारा
- भाग्य में लिखा वो मिला :जो मिला नहीं उसका क्या गिला?
- आउ, आउ; जल्दी आउ! : न त ई चरचा करके फ़ूटि लेई
- तब तो मैं ग़रीब ही भला! : सस्ता गेंहू चावल तो मिलेगा
- दिल को दहलाती दरिन्दगी : एक वैज्ञानिक चेतना संपन्न ब्लॉगर की संकल्पना
- " अंगड़ाई ......या .......हस्ताक्षर ......." : भरपूर ले और पूरी की पूरी लें
- तिब्बत, चीन, भारत और संप्रभुता : और लीपापोती में जुटे भारतीय नेता
- समय का चक्र : पूरा चले बिना मोहि कहां विश्राम
- गुड़िया भीतर गुड़ियाएं : इनको कहां ले जायें, कैसे बचायें?
और अंत में
ब्लॉगजगत से जुड़ी चर्चा में लोगों की रुचि देखकर मन किया कि एक चर्चा ब्लॉगजगत में हुये बवालों की भी की जाये। शीर्षक रहे- ब्लॉगजगत के बवालों का इतिहास। कैसा रहेगा बताइये?
आज के लिये फ़िलहाल इतना ही। बाकी फ़िर कभी। तब तक आप मस्त रहिये। जो होगा देखा जायेगा।
ब्लॉग बवालों पर आपके बावली चर्चा पर और बवाल करने के का इंतज़ार है, देरी काहे की आप भी तो बवालों के सचिन तेंदुलकर हैं :)
जवाब देंहटाएंचर्चा झकास, धुरपटास रही :)
tapchik hai bhaiji.........bakiya, aapke 'babal itihas' ki charcha ke liye
जवाब देंहटाएंagrim abhar.....joroor aana chahiye...........
pranam.
बढ़िया लिनक्स की चिठ्ठा चर्चा ...आभार
जवाब देंहटाएंहां जी, एक नया बवाल होना चाहिये जी, रौनक बनी रहती है। हो जाये बवाल इतिहास पर चर्चा, वर्ना कोई इतिहासकार इतिहास लिख जायेगा और आप हाथ मलते(की बोर्ड तोडते) रह जायेंगे।
जवाब देंहटाएं"हमारी जिंदगी में भी, कई बे-नाम रिश्ते हैं......: ’अदा’ का खुलासा और किसी के लिये दुनिया छोड़ने का एलान"
जवाब देंहटाएंअफ़वाह फैलाने बाले देस के दुश्मन हैं, कभी सुने थे हम:)
आप बिलाग के दुश्मन हुए :)
आपको कौनो गलतफैमिली-उमिली हुई है। हम दुनिया-उनिया छोड़ने-उड़ने का कोई एलान-उलान नहीं किये हैं। कोई एतना भी खबसूरत नहीं है कि ई काम हम करें। हम बिलाग तो छोडबे नहीं करेंगे, दुनिया छोड़ेंगे हम हुँह !!:)
हाँ नहीं तो !
गीत ठीक से सुनिए "छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए, ये मुनासिब नहीं आदमी/औरत के लिए ' :)
हटाएं
जवाब देंहटाएंदिलचस्प चर्चा।
कीजिये जी. बवाली चर्चा भी कर ही दीजिये.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा की है . खासकर एक लाइना चर्चा तो बहुत रोचक दिलचस्प लगी .... आभार
जवाब देंहटाएंचर्चा के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगी बवाल-चर्चा.
जवाब देंहटाएंइन्तज़ार रहेगा :)
ब्लॉग बालाओं पर अद्भुत सन्नाटा है -काहें भाई जिनसे डर है वे बाब्स में मुब्तिला हैं यही वक्त है कुछ अनकहे उदगार व्यक्त करने को :-)
जवाब देंहटाएंचाय, चीनी, चियरबालायें और चिट्ठाकारों पर चर्चा सभी कुछ दिलचस्प है । चरैवेति-चरैवेति :)
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा है। लगता है कि नाच-गाना तो अब हमारे जीवन का आवश्यक अंग बन गया है। कभी लगने लगता है कि यदि ऐसा ही रहा तो शव-यात्रा में भी इसे शामिल नहीं कर लिया जाए! क्योंकि जब जन्म के समय किन्नर नाचते हैं तो मरण के समय बार-बालाएं क्यों नहीं?
जवाब देंहटाएंबढ़िया रही सम-सामयिक चिटठा चर्चा... ..
जवाब देंहटाएंलाजवाब चर्चा | बहुत ख़ूब कड़ियाँ | आभार
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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अच्छे लिंक हे ! मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत हे एक बार जरुर पधारे और अच्छा लगने पर अपनी राय दे और इसकी कोई भी पोस्ट अच्छी लगने पर इसे भी चिटठा चर्चा में सामिल करे !
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग का पता हे
http://hiteshnetandpctips.blogspot.com
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http://hiteshnetandpctips.blogspot.com
बहुत बढ़िया चर्चा की है आभार
जवाब देंहटाएंलाजवाब चर्चा
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