रविवार, अप्रैल 21, 2013

सूरज, पौधे, मासूम, दरिंदगी, टू फ़िंगर टेस्ट और एडवांस में संवेदना

आज इतवार की सुबह है। नौकरीपेशा वालों की छुट्टी होगी। लेकिन सूरज वैसे ही निकलेगा। मीनाक्षी जी ने अठारह महीने बाद फ़िर से लिखना शुरु किया है। वे सूरज और पौधों को देखते हुये लिखती हैं:



सूरज

आसमान से नीचे उतरा
धरती के आग़ोश में दुबका
ध्यान-मग्न पौधों का ध्यान-भंग करता
हवा के संग मिल साँसे गर्म छोड़ता

पौधे

एक पल को भी विचलित न होते
झूम-झूम कर फिर से जड़ हो जाते...
फिर से होकर लीन समाधि में
सबक अनोखा सिखला जाते 

 उनके ब्लॉग का नाम है प्रेम ही सत्य है। उनके यहां प्रेम है। वही सत्य भी। लेकिन दुनिया में प्रेम और सत्य के अलावा भी बहुत कुछ है। वहां  घृणा, हैवानियत और दरिंदगी भी है। जैसा कि अभी हाल में दिल्ली में हुआ।
 
दो दिन पहले दिल्ली में फ़िर एक मासूम बच्ची के साथ बलात्कार हुआ। बच्ची अस्पताल में है खतरे से बाहर। टेलीविजन पर प्रधानमंत्री वाली बहस थम गयी है। समाज में बढ़ती दरिंदगी फ़िर बहस का मुद्दा बन गयी है। टेलीविजन वालों के पास जितने भी बलात्कार के किस्से हैं वह उन सबको एक साथ अपने यहां उड़ेल रही है। बलात्कार पीड़िता द्वारा आत्महत्या, मासूम से बलात्कार, बलात्कारी का बहिष्कार। सब के साथ आई.पी.एल. बदस्तूर जारी है। लोगों में आक्रोश है। बलात्कार का आरोपी पटना में गिरफ़्तार कर लिया गया है। बी.बी.सी.की खबर के अनुसार उसका नाम मनोज है। उसने स्वयं प्रेमविवाह किया था। :
ज़िले के औराई अंचल निवासी मनोज कुमार ने दो साल पहले प्रेम-विवाह किया है। मनोज की उम्र 22 साल है और वो पिछले 15 साल से दिल्ली में रह रहा है. उसके पिता ओल्ड सीलमपुर इलाक़े में जूस की रेहड़ी लगाते हैं और वो गारमेंट फैक्ट्रीज में दिहाड़ी मज़दूर हैं. और वह अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहकर मज़दूरी करते हैं. कजरा थाना प्रभारी ने बताया कि जब मनोज को गिरफ़्तार किया गया और मुज़फ्फ़रपुर कोर्ट में पेश किया गया, तब वहां जमा भीड़ के तमाम लोग उनकी घिनौनी करतूत पर उन्हें लताड़ रहे थे. "मनोज अपनी ससुराल चिक्नौटा गाँव में छिपे हुए थे. पुलिस ने मनोज के मोबाइल फ़ोन लोकेशन के ज़रिए ये पता लगाया कि मनोज कहां छिपे हुए थे. दिल्ली पुलिस ने मनोज को शुक्रवार रात दो बजे पकड़ा था." बिहार पुलिस पुलिस के मुताबिक़ मनोज कुमार बार-बार अपनी ग़लती मानकर गिड़गिड़ा रहे थे और लोग कह रहे थे कि पूरा मुज़फ्फ़रपुर उनकी हैवानियत पर शर्मिन्दा हुआ है.
खबर के अनुसार आरोपी मनोज बच्ची को मरा समझकर छोड़कर भाग गया। मरा न समझता तो शायद यह काम भी निपटाके जाता। आरोपी ने अपना आरोप स्वीकार कर लिया है और अपनी करनी पर शर्मिंदा है। पहले हैवानियत, फ़िर शर्मिंदगी, फ़िर अफ़सोस के बाद जब वह अदालत में पेश होगा तो पक्का बतायेगा कि वह बेकसूर है। दिल्ली में दामिनी प्रकरण के बाद एकबार फ़िर लोगों में गुस्सा फ़ूट पड़ा है। लोगों ने अपना आक्रोश प्रकट किया है। कुछ अभिव्यक्तियां देखिये:

  1. डॉ.मोनिका शर्मा लिखती हैं: आज मन बहुत व्यथित है । एक पांच वर्षीय बच्ची के साथ हुयी पाशविक घटना के बारे में जानकर । सच, मन दहला देने वाला परिदृश्य प्रस्तुत कर रहा है आज के दौर का समाज । बेटियों का आगे बढ़ना , पढना लिखना, उनका पूजनीय होना हर शब्द बस प्रदर्शन भर लग रहा है । दुष्कर्म मानो प्रतिदिन सुना जाने वाला शब्द हो चला है । देश की महिलाओं और बेटियों के साथ आये दिन पाशविक कृत्य हो रहे हैं । साथ ही जिस तरह की सामाजिक-प्रशासनिक व्यवस्था में हम जी रहे हैं, संभवतः आगे भी होते ही रहेंगें । कहाँ जा रहे हैं हम ? किस ओर मुड़ गयी है हमारी सामाजिक पारिवारिक व्यवस्था ? हे राम...बेटियों के वंदन और मानमर्दन का कैसा खेल 


  2. अजित गुप्ता लिखती हैं: दिल्‍ली की मासूम कली के साथ हुई दरिंदगी, मन-मस्तिष्‍क में हाहाकार मचाए हुए है। लग रहा है कि अब इस देश की कलम में भी ताकत नहीं रही। हमने भेड़िये पैदा करने प्रारम्‍भ कर दिए हैं। कल्‍पना कीजिए उस जंगल की, जहाँ भेड़ियों की संख्‍या बढ़ रही हो और अन्‍य प्राणियों की संख्‍या घट रही हो, तब अन्‍य प्राणियों का क्‍या हाल होगा? मैं बार-बार कह रही हूँ कि आज समाज के हजारों ठेकेदार बने घूम रहे हैं लेकिन ये ठेकेदार केवल भेड़िये पैदा कर रहे हैं, मनुष्‍य नहीं। समाज भेड़िये पैदा कर रहा है और समाज के ठेकेदार जनता से सुरक्षा-कर वसूल रहे हैं


  3. रश्मि रविजा का कहना है: तो क्या छोटी छोटी बच्चियों के साथ ऐसे दुष्कर्म इसलिए हो रहे हैं क्यूंकि हमारे समाज में तमाम वर्जनाएं हैं ? यौन कुंठित पुरुषों की तादाद इतनी बढती जा रही है कि आये दिन छोटी छोटी मासूम बच्चियां उनकी कुंठाओं का शिकार हो रही हैं. नहीं चाहिए ये बंदिशें ,नहीं चाहिए ये बंधन. सबको आज़ाद कर दो , किसी पर कोई रोक-टोक न हो. वे अपनी काम-पिपासा ,अपने हमउम्र वालों के साथ ही शांत करें. इन मासूम बच्चियों को बख्श दें . मेरी बातें बहुत ही अव्यावहारिक लग रही होंगीं. पसंद भी नहीं आ रही होंगीं ,पर इस मनःस्थिति में मुझे इसके सिवा कुछ नहीं सूझ रहा . अगर ऐसे खुले समाज में हमारी बच्चियां सुरक्षित हो जाती हैं तो यही सही. और अगर हमें इतना आगे नहीं बढ़ना है तो फिर पीछे लौट चलें. बाल-विवाह को ही प्रश्रय दें. आखिर पचास साठ साल पहले इतना वहशीपन तो नहीं था लोगों में . आधुनिक बनने की कैसी कीमतें चुका रहे हैं हम ?? क्या आज वर्जनाहीन समाज ही बच्चियों की सुरक्षा की शर्त है 


  4. अमित लिखते हैं: ये बलात्कारी सांड
    अपने मनोविज्ञान में
    किसी नारी से कोई भेद भाव नहीं करते
    इनके लिए
    स्त्री चाहे एक साल से छोटी शिशु हो
    या साठ से ऊपर की वृद्धा
    सब बलात्कार के योग्य हैं|
    दिल्ली है सांड़ों की, बलात्कारियों की


  5. सत्येन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव का सवाल है: दिल्ली में फिर पांच साल की एक बच्ची के साथ बलात्कार हुआ. बच्ची से इलाज से लेकर प्रदर्शनकारियों से निपटने तक में दिल्ली पुलिस ने फिर दिखाई असंवेदनशीलता क्या आपको नहीं लगता कि एक बच्ची को अपनी हवस का शिकार बनाने वाले को मौत की सजा से कम कुछ नहीं होना चाहिए? कब थमेगा ये सिलसिला?


कार्टूनिस्ट इरफ़ान ने इस मौके पर पुलिस की भूमिका पर कार्टन बनाये हैं। इरफ़ान के ये कार्टून आज के समय में पुलिस में आये बदलाव की कहानी कहते हैं। घूस लेने के लिये ख्यातनाम पुलिस विभाग खुद घूस की पेशकश करने 
 लगा है-अपराध की खबर छिपाने के लिये।
 

इस मौके पर  स्वप्नमंजूषा’अदा’ ने एक अनुभव साझा किया है यह लिखते हुये ---" इस समय जो भी सुनने को मिल रहा है ...मेरा यह संस्मरण सामयिक कहा जा सकता है, इसलिए दोबारा डाल  रही हूँ"। देखिये- एक पेड़ ऐसा भी ....(आँखों देखी ) 

बलात्कार के आरोपी की सजा के लिये अदालती कार्यवाही के प्रक्रिया में पीड़िता का टेस्ट होता है। इसे टू फ़िंगर टेस्ट कहते हैं। पत्रकार नेहा झा इस बारे में अपने विचार लिखती हैं बलात्कार की ही तरह घोर अमानवीय व सम्मान का उल्लंघन है 'टू फिंगर टेस्ट'!:
"टू फिंगर टेस्ट से पता लगाने की कोशिश की जाती है की लड़की कुवांरी है या नहीं। इसके लिए डॉक्टर पीड़िता के योनि में ऊँगली प्रवेश कर इस आधार पर रिपोर्ट देता है कि उसकी दो उँगलियाँ योनि में आसानी से प्रवेश कर पाती हैं या उसे दिक्कत महसूस हुई, प्रवेश के दौरान खून निकला या नहीं।

इस टेस्ट के परिणाम अगर सकारात्मक आ जायें तो बचाव पक्ष के वकील की चांदी हो जाती है। अब वो अदालत में साबित कर सकते हैं की लड़की तो सेक्स की आदी थी और बलात्कार उसकी सहमति से हुआ है। अब सवाल शादी शुदा महिलाओं से जुड़ता है। यानी किसी विवाहित महिला के साथ बलात्कार होता है तो उसकी मेडिकल रिपोर्ट और बचाव पक्ष के वकील तो यही कहेंगे कि मी लोर्ड महिला तो सेक्सुअली हेबिचुअल थी इसलिए सबकुछ सहमति से ही हुआ होगा। दूसरा कि ऐसे टेस्ट शादी के बाद पति द्वारा किये जाने वाले बलात्कार की अवधारणा को ही नकार देता है।"

 समाज में  दरिंदगी बढ़ती जा रही है। जन्म देने वाले पिता तक अपनी बच्ची से बलात्कार कर रहे हैं। पुलिस कुछ कर नहीं पा रही है। ऐसे में सरकार क्या कर सकती है। आलोक पुराणिक का कहना है कि सरकार  एडवांस में शोक संवेदना व्यक्त कर सकती है।
दिल्ली की हर लड़की-महिला का ईमेल एड्रेस हम जुटा लेंगे, उस पर सुबह ही एडवांस में सौरी बोल देंगे। शाम तक कोई वारदात हो जाये, तुम्हारे साथ, समझ लो कि सुबह ही सौरी बोल दिया गया था। वारदात बहुत ज्यादा बड़ी हो, तो हमारा शोक संदेश आपके साथ है। बधाई अगर आप शाम को एकदम ठीकठाक घर वापस आ गयीं। चेतावनी ये कि इन इन रास्तों में पुलिस थाने पड़ते हैं, यहां से ना गुजरें। पुलिसवाले चांटा मार सकते हैं। उचक्कों के बारे में चेतावनी मुश्किल है, पर पुलिस के चांटे की चेतावनी तो दे ही सकते हैं। रोज सुबह बधाई, चेतावनी एक साथ ईमेल कर दी जायेगी, लैपटाप खोलकर देख लें।
आज फ़िलहाल इतना ही। नीचे यह वीडियो देखिये बीस मिनट की है। इसमें बताया गया है कि भविष्य में जब किताबें नहीं रहेंगी तब कैसी होगी दुनिया। आपका सप्ताहांत शुभ हो।

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10 टिप्‍पणियां:

  1. http://swapnamanjusha.blogspot.in/2013/04/blog-post_7540.html
    yae link rehgaaya jod lae

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  2. काश कि जैसी प्रताड़ना बालात्कार का शिकार होता है, वैसी ही प्रताड़ना का अनुभव बालात्कारी को करना पड़े ऐसी कानून व्यवस्था होनी चाहिये ।

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  3. सामयिक चर्चा ...अब कोई ठोस कदम उठाये जाने ज़रूरी हैं, समाज का यह चेहरा भयावह है , आभार

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  4. न्याय के प्रति भी प्रेम उतना ही सच है ....ऐसे अपराधियों के लिए मृत्युदंड कभी नही सोचा..... हर रोज़ की दर्दनाक मौत भी शायद उनके अपराध को कम न कर सके....जानवरों की तरह अस्पतालों मे रखा जाए और उन पर हर दिन दर्दनाक टेस्ट किया जाए कि ऐसा वे कर कैसे पाते है ....एक कड़वा सच यह भी है कि आए दिन ऐसी घटनाएँ दिल और दिमाग को सुन्न कर देती हैं....पिछले दिनों ब्राज़ील में हुए रियो गैंग रेप को दिल्ली गैंग रेप जैसा ही बताया गया.... कभी अपने देश की तुलना इस रूप में भी होगी सोचा नहीं था.....

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  5. रचना जी,
    आपका आभार।
    अनूप जी आपका धन्यवाद।
    आज कल मन फिर से उद्विग्न हो गया है। इस समाचार का प्रसारण हमारे यहाँ भी किया जा रहा है।
    किसी मजलूम का शोषण, बलात्कार, एक इनसान को ज़िबह करने के जैसा ही होता है। फिर चाहे कोई हज़ारों तरह की पूजा, इबादत और तौबा करे, या शर्मसार हो कर मर ही जाए। इससे कहाँ कुछ बदलता है ?

    भारत में कानूनी दाँव पेंच में उलझी हुई ज़िंदगियाँ बस अपने ख़तम होने के इंतज़ार में बीत जातीं हैं। नए क़ानून, पुराने कानून, संशोधन, लागू, न लागू, ये वो चक्रव्यूह है, जिसमें बिना उनकी मर्ज़ी और इज़ाजत से घसीटे गए लोग, बस फंस जाते हैं, कभी भी बाहर नहीं निकलने के लिए।

    जब तक बलात्कार को एक जघन्य अपराध नहीं माना जाएगा, और जब तक हाई प्रोफाईल केसेज के अपराधियों को ऐसी सज़ा नहीं दी जाए कि देखने वालों की रूह काँप जाए, तब तक इस तरह के अपराध में कोई कमी नहीं आने वाली है। बल्कि इन हाई प्रोफाईल केसेज को इस तरह लम्बा खींचना, अपराधियों को और हौसला देता है। इतनी सी बात इन क़ानूनचिंयों को क्यों नहीं समझ में नहीं आती, कोई भी सोच सकता है, जब पकड़े जाने के बाद भी, और सेल्फ प्रूवन केस होने के बावजूद भी उन बलात्कारियों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया तो हमारा कौन क्या बिगाड़ लेगा :(

    इतनी विवशता भरी ज़िन्दगी भी कोई जीता है भला ?

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  6. पुरुषों की महिलाओं के प्रति छोटी-छोटी गैरजिम्मेदाराना बातों की ओर हम ध्यान नहीं देते हैं, लेकिन किसी भी व्यक्ति की मानसिकता छोटी-छोटी बातों से ही बनती है। ब्लॉग जगत में भी ऐसी बातें बहुत हो चुकीं हैं। अब इस बात का भी विरोध करना बहुत ज़रूरी है कि कोई भी महिलाओं के लिए अभद्र टिप्पणी या अभद्र पोस्ट न लिखे।

    मानसिकता बदलनी है तो फिर इसकी शुरुआत भी होनी ही चाहिए। मैं तो यही कहूँगी, ब्लॉग जगत में महिलाओं के लिए किसी भी तरह की अभ्रद टिप्पणी और अभद्र पोस्ट का पूर्ण रूप से बहिष्कार होना चाहिए।

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  7. अब हम विश्व के पटल पर बदनाम हो चुके हैं क्योंकि बाहर से आने वाले सैलानियों को तक सुरक्षा नहीं है न अस्मत से और न ही अपने सामान से फिर यहाँ कोई क्यों आये? आज ही पेपर में था कि भारत बहुत संभल कर जाएँ और अपनी जिम्मेदारी पर जाये . इससे शर्मिंदगी वाली बात क्या होगी ? अपनी बेटियां बचा नहीं पा रहे हैं दूसरों की तो पराई ही कहीं जाएँगी . कह सकते हैं कि हम मेहमानों को बिलकुल घर जैसा ही मानते है . तभी कोई भी सलूक करने से चूकते नहीं है. हमारे ऊपर लानत है और उससे अधिक लानत है हमारी क़ानून व्यवस्था पर.

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  8. मुझे लगता है मनुष्य जनसख्या में कुछ फीसदी लोग जन्मजात विकारग्रस्त लोग होते हैं जिन्हें समाज में पलने बढ़ने की छूट नहीं होना चाहिए -मैंने अपनी एक विज्ञानं कथा में एक ऐसी भविष्य की दुनिया की परिकल्पना की है जिसमें ऐसे लोगों को जन्म के पूर्व ही स्क्रीन कर पता कर लिया जाता है , और उन्हें एक निर्वासित द्वीप पर रखा जाता है ,
    हो सकता है कभी यह व्यवस्था अस्तित्व में आ ही जाय!
    धडाधड किन्तु गुणवत्तापूर्ण चर्चा !

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  9. बड़े भाग मानुष तन पावा .....पर दुर्भाग्य की मनुष्य पशुवों से भी अनैतिक हो गया है ....कोइ पशु भी कम उम्र की बछड़ी से एसा नहीं करता ....आज मनुष्यता शर्मसार है .......

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