बुधवार, सितंबर 02, 2009

वक़्त एक सिगरेट है जिसका एक सिरा तेजी से जलता है !


आज की चर्चा देरी से हो पाई.... उसके लिए क्षमा करिएगा.....सोचा था कि 3-4 पोस्ट पढ़कर मिनी चर्चा हम भी ‘ठेल’ देंगे लेकिन ऐसा हो नहीं पाता ...


किसी की 24वीं वर्षगाँठ पर लिखी हल्की फुल्की रचना हो या शादी की सालगिरह पर लिखी प्रभावशाली कविता....जिसे पढ़कर फुरसतियाजी 'परेशान' हो जाते हैं कि -----



बिना लड़ाई-झगड़े के, बगैर कहासुनी के गृहस्थ जीवन कैसा रसहीन , नीरस रहा होगा! बिना नमक की दाल सरीखा । कैसे काटते होंगे महापुरुष बिना मैं मायके चली जाऊंगी तुम देखते रहियो की धमकी सुने। नोक-झोंक और मैं बात नहीं करती!, गुस्सा हो क्या? , गुस्सा बाद में हो लेना अभी समोसा खा लो ये तुमसे ज्यादा गरम हैं के बिना भी जिन्दगी क्या जिन्दगी है!! धत्तेरे की टाइप! जिस महापुरुषीय पैकेज में वैवाहिक जीवन में रूठने- मनाने का स्कोप न हो ऊ त बेकारै है। टोट्ट्ली इवेन्टलेस! बिना स्पीड-ब्रेकर की सड़क सरीखी !
फुरसतिया जी के एक लेख की एक पंक्ति जो हमें हमेशा लुभाती रही है..... हँसी की एक बच्ची है जिसका नाम मुस्कान है.... बस...मुस्करा दीजिए और आपके सारे गुनाह मुआफ़ ......लड़ने झगड़ने से सेहत और खूबसूरती दोनो का नुक्सान... !!


नीरज जी की गज़ल की शुरुआत भी कुछ ऐसी ही है......
मुस्कुरा कर डालिए तो इक नज़र बस प्यार से
नर्म पड़ते देखिये दुश्मन सभी खूंखार से

रविरतलामी जी के ब्लॉग पर ब्लॉग़ लेखन के नए टिप्स विस्तार से दिए गए हैं... ज़रूर पढिए...... इस पोस्ट को हम तो दो तीन बार पढ़ ही चुके हैं...
ब्लॉग लेखन मनुष्य की सर्जनात्मकता का सर्वाधिक आनंददायी पहलू है. एक चिट्ठाकार पर
किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं होता कि वो क्या लिखे, कैसे लिखे, कितना लिखे. आप
चार शब्दों में अपना पोस्ट समेट सकते हैं तो चालीस पेज भी आपके लिए कम हो सकते हैं. इसी तरह, न तो विषयों पर कोई रोक है, और न आपकी शैली पर कोई टोक.
डॉ अमर के विचारों से सहमत हैं... सालों तक हज़ारों लड़कों को पढ़ाया और अपने दोनो बेटों को भी यही सीख देने की कोशिश करते रहते हैं....



यदि वाकई लड़कों को इस सोच के साथ पाला जाए कि लड़की खूबसूरत कोमल काया के अलावा कुछ और भी है तो यकीनन हम स्त्री को देखने की दृष्टि भी बदली हुई पाएंगे ।

प्रभात गोपाल गपशप में ही बहुत गम्भीर बात कह गए .....
धर्म को लेकर बहस करने की क्या जरूरत है? धर्म के मामले को लेकर होनेवाली बहसों में एक जबरदस्ती दिखती है कि हमारा धर्म महान है। हम महान हैं। हमारी अवधारणा महान है। सवाल ये है कि हम किसी की महानता को लेकर क्या करेंगे? हमारे व्यक्तिगत जीवन में उसका क्या उपयोग है?ये निश्चित है कि एक अच्छा धर्म बताता है कि झूठ मत बोलो ईमानदार रहो चोरी मत करो व्यवहार को ठीक रखो..

यायावर स्वभाव ऐसा ही होता है.... मृत्यु को भी अपनी गति धीमी करने को कह देते हैं...
हे मृत्यु! तू ही ले,
अपनी गति को थाम
अभी नहीं करता तुम्हें,
अंतिम प्रणाम!

बीना का प्रयास सराहनीय है कि कल और कल की चिंता त्याग कर आज को सवाँरो......
रोमन विचारक कहते थे "जो आज है उसका ही भरपूर उपयोग करो. भविष्य के लालच में पडकर आज की सौगात मत गंवाओ। सभी महान विचारकों के कथन से यही निष्कर्ष निकलता है कि मनुष्य को भूत और भविष्य की चिंता छोदकर वर्तमान पर ही केन्द्रित होना चाहिये।


पढिए प्रवीण के ब्लॉग पर ऐसे इंसान की कहानी जिसने मौत को मात दे दी.....
मौत को मात देकर भी जिंदादिली की मिसाल बने पिंग शुइलिन के दर्द और हादसों की कहानी, उन्हीं की जुबानी- ---



विनय बिहारी सिंह योग के महत्त्व से चमत्त्कृत हो गए जब 24 घंटे के अन्दर उनका कमर दर्द गायब हो गया... योग का महत्त्व तभी जाना जा सकता है जब हम उसे अपने जीवन में शामिल कर लें...

रुहानी प्रेम पर कुछ भी लिखा हुआ हमें बहुत प्रभावित करता है... लवली कुमारी ने इसी रुहानी प्रेम पर तथ्यों समेत कुछ विचार दिए हैं....
हमारे मित्रों का मानना है की रूहानी प्रेम एक मायाजाल से ज्यादा कुछ नही है. मैं अपना मत स्पस्ट कर दूँ मेरे अनुसार १०० प्रतिशत प्रेम की भावना दिमाग में पनपती है. इस दिशा में रिवर्स गेयर लगया जाय तो मेरी जानकारी में १९७० में मनोवैज्ञानिक हेलन सिंगर कप्लान ने पहली बार वीलह्यूमन सेसुएलिटी प्रोग्राम में इस ओर इशारा किया,वैसे विज्ञान बहुत पहले ही यानि १९२० में ही इस ओर ध्यान देने लगा था. इस ओर और ज्यादा प्रकाश अरविन्द जी डालेंगे क्योंकी उन्होंने वह श्रृंखला अभी खत्म नही की है :-).

शरतचन्द्र की आज हमारे लिए प्रासंगिकता क्या है....इस विषय पर स्वप्नदर्शी प्रभावशाली ढंग से प्रकाश डाल रही है ......
पिछले १०० साल मे आज़ादी मिल चुकी है, और स्त्री घर की चारदीवारी से बहार निकल कर सामाजिक और राजनैतिक जीवन मे ख़ुद को स्थापित कर चुकी है. स्त्री पुरूष मे बीच व्यक्तिगत प्रेम संबंधो से आगे बहुत से नए सम्बन्ध भी जुड़ गए है, मित्रवत, सहकर्मियों, प्रतिद्वंदियों, भीड़ से रोज-ब-रोज का exposure,, जो शरत के समाज मे नही थे । हमारे समाज मे आज स्त्री के लिए अपार सम्भावनाये है।

अमित तिवारी का मानना है कि सौन्दर्य का आकर्षण भी उसकी अपूर्णता मे ही है....

ताऊ डॉट इन की शोले ब्लॉगजगत की हिट फिल्म है....
आप भी गुनगुनाइए -----


ब्लाग बिना चैन कहां रे,


ब्लाग बिना चैन कहां रे


सोना नहीं चांदी नहीं


ब्लाग तो मिला


अरे ब्लागिंग कर ले

डॉ अनुराग के विचार में वक़्त एक सिगरेट है जिसका एक सिरा तेजी से जलता है.......
जिंदगी एक कंपोजिट कोलाज़ है.. ..वक़्त सदियों से ब्रश हाथ में पकडे है .. एक ही गुजरते लम्हे के फ्रीज शोट में तस्वीरे जुदा जुदा है.... कही मुस्कराती ,गुनगुनाती ... ....कही उदास ओर कही रुकी हुई .....

उधर दूसरी ओर अभिषेक ओझा प्रभावशाली लोगों से मिल कर अपनी खुशी ज़ाहिर कर रहे हैं....
हर व्यक्ति के जीवन में कुछ लोग होते हैं जिनसे वो जाने अनजाने प्रेरणा लेता रहता है. अपने रिश्ते, आस-पड़ोस के लोगों से लेकर ऐतिहासिक, पौराणिक, काल्पनिक और वास्तविक चरित्रों तक से. और अब इन्टरनेट के जमाने में ये लिस्ट लम्बी हुई है इसमें कोई दो राय नहीं. हम जब भी किसी व्यक्ति विशेष के बारे में कुछ पढ़ते-सुनते हैं या किसी से मिलते हैं तो कहीं न कहीं उनके गुणों से प्रभावित तो होते ही हैं.


सच है कि इंटरनेट के जमाने में ये लिस्ट लम्बी हुई है जिसमें अलग अलग गुणों वाले अनगिनत लोगो से मिलना सम्भव हो पाया है.... जिनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जाता....! हम तो प्रभावित होने के लिए सामने वाले के अन्दर छिपे गुणों को ढूँढ ही निकालते हैं.....


अब जल्दी से चर्चा पढ़कर उठिए और अपने जीवन संगी/संगिनी के घर के कामों में मदद कीजिए.... अगर नोंक झोंक शुरु हो जाए तो अपनी मुस्कान से गुस्से को मात दे दीजिए..... !


शुभकामनाएँ


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13 टिप्‍पणियां:


  1. इंतज़ार का अपना अलग ही मज़ा है,
    बशर्ते वह इंतज़ार तारीखपलट न हुआ करे ।
    इस लिहाज़ से आपको क्षमा करने की ग़ुँज़ाइश तो दिखती है ।

    किसकी किस अवसर की 24वीं वर्षगाँठ... जरा स्पष्ट करें, लिंक न खुल रैया है !

    प्रभात गोपाल के तर्क थोड़े लुभावने हैं, यदि वह कुतर्कों का शिकार न हो जायें ।
    अनुराग पुत्तर दा ज़ुआब नीं, पण छोटे कैनवास पर बड्डी सी पेंटिंग बना डाली बँदे ने ।

    ’शोले’ से जनता का मन कब भरेगा ?
    अपुन तो इस शब्द से ही चट चुके हैं, ताऊ !
    सो मन्नें तो पढ्या कोणी, माफ़ करियो मेरे अच्छे ताऊ !

    लवली, तू प्रेम में कहाँ पड़ी है ?
    मायाजाल में हम यू.पी. में रहने वाले फँसे हैं ।
    कबीर को ’ माया महाठगिनी हम जानी ’ कहने के लिये प्रतिबँधित क्यों न कर दिया जाय ?

    बाकी तो सब ठीकै-ठाक दीख रहा है !

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  2. "वक़्त एक सिगरेट है जिसका एक सिरा तेजी से जलता है......"

    परंतु आप ने सिगरेट के बारे में वो अंग्रेज़ी कहावत तो सुनी होगी-
    FIRE AT ONE END AND FOOL AT THE OTHER

    तो फिर दूसरे सिरे पर....:)

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  3. @मीनाक्षी जी - वर्षगाठ की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं स्वीकारें.
    @अमर जी - मैं कहाँ प्रेम में पड़ी हूँ ..मैं तो केमिकल लोचे सुलझाने में लगी हूँ :)

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  4. "सौन्दर्य का आकर्षण भी उसकी अपूर्णता में है ... " इस पंक्ति को महसूस कर रहा हूँ ।

    चर्चा ने विस्तार लिया है आपकी । आभार ।

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  5. ऐसी चर्चाएँ ठेली नहीं जा सकती,
    देर हो गई तो क्या, है तो बढ़िया हमेशा की तरह

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  6. सुन्दर चर्चा करी। देरी के लिये दुल्हन साहिबा को सब माफ़! कुछ लिंक ऐसे भी थे जिनको मैंने पहले देखा नहीं था। शुक्रिया और फ़िर से बधाई!

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  7. वक़्त एक सिगरेट है जिसका एक सिरा तेजी से जलता है .. हम तो बस यही पढ़ कर ठहर गए..शानदार रही चर्चा ..!!

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  8. सिगरेट का दूसरा सिरा, निरंतर मौत को अपनी तरफ खींचता चला जाता है।

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  9. वक़्त एक सिगरेट है जिसका एक सिरा तेजी से जलता है !
    और दूसरे सिरे पर इंसान नाम का चैन स्मोकर रहता है |

    चर्चा पसंद आयी |

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  10. मीनाक्षी जी,

    चर्चा भले ही जल्दी में और छोटी सी ठेली गयी हो, पर रोचक और व्यापक होने के साथ-साथ प्रभावी थी।

    सादर,


    मुकेश कुमार तिवारी

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  11. लिजिये, एक बार फिर से बधाई.

    बेहतर विस्तृत चर्चा.

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