शुक्रवार, सितंबर 18, 2009

अनुभव साँचा , अनभय साँचा

इधर ब्लॉगिंग का नोटिस लेते लेते मुख्यधारा मीडिया के लिए हिन्दी ब्लॉगिंग कब एक पूरक बन गयी इसका एहसास अधिक हो रहा है।एक दिन अचानक चोखेरबाली गूगल मे सर्च करने पर मालूम हुआ कि अखबार ब्लॉग पर से पोस्ट्स को उठा कर उठा कर छापने लगे हैं और आप बेखबर ही रह जाते हैं ।नई दुनिया मे यह पोस्ट कब छप गयी पता ही नही। ऐसे ही कई मित्र दिल्ली से बाहर रहने वाले भी, अक्सर बताते हैं कि फलाँ अखबार मे फलाँ दिन ब्लॉग पर से यह छपा था।

बी एस पाब पाबला जी ने एक अच्छा काम यह किया है इसका एक ब्यौरा रखना शुरु किया है।यथाशक्ति , यथासम्भव वे इसे करने का प्रयास कर रहे हैं।फिर भी कुछ न कुछ कहीं छूट जाता ही है।

इसमे हालाँकि दिक्कत कुछ नही है।वैकल्पिक मीडिया का रूप लेते ब्लॉग को अनदेखा करके आगे बढ जाने की कुव्वत अखबारों मे नही थी, नही है।मुझे हैरानी इस बात की है कि जिस धड़ल्ले से अखबार प्रासंगिक सामग्री को ब्लॉग पर खोज खोज कर अपने अखबारों मे सजा रहे हैं मानदेय देने की बात तो छोड़िए ,उसके पीछे लेखक के लिए कोई आदर उनके मन मे नही है।धन का सवाल तो यूँ भी नही आ पाता कि हम खुद ही अपनी सामग्री को दुनिया भर के पढने के लिए सार्वजनिक कर रहे हैं।दूसरा , यह अखबारों को भी इस रिसेशन के दौर मे सूट करता है कि वे एकाध आर्टिकल तो बिना कुछ व्यय किये निकाल लेते हैं ऊपर से ब्लॉग वाले इसमे ही अपने आप को उपकृत मानते हैं कि देखो, अखबार ने हमें भी छापा!

लेकि लेकिन कर्टसी के चलते आप अखबार से यह उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि वह मेल करके आपको इसकी सूचना दे और धन्यवाद देत हुए आभार प्रकट करे!या चलो , सूचना तो दे !

क्या यह प्रिंट क्या यह मीडिया की दादागीरी है ? हम आपके यहाँ से सामग्री तो लेंगे , और पूरे रौब से लेंगे ,बताएंगे भी नही।अभी हाल ही मे जनसत्ता ने भी एक कॉलम शुरु किया है जिसमे किसी ब्लॉग पोस्ट को दिया जाता है और बेहद बारीक उस ब्लॉग का पता नीचे लिखा जाता है।जिनके लेख वहाँ छपे वे इस बारे मे जानते थे या नही , मुझे नही पता।अब तक प्राइमरी का मास्टर,प्रत्यक्षा,अनामदास,उदय प्रकाश वहाँ छप चुके हैं।वह अखबार आप लेते हैं , उसमे छपने पर पता चल जाता है।जो नही लेते वे क्या कब कहाँ छाप रहे हैं इसकी खबर तक होने नही देते।इस प्रवृत्ति के पीछे क्या है?इसका भविष्य क्या है?


आखिर ब्लॉग के प्रति आकर्षण की वजह है।क्या नही है ब्लॉग में? समसामयिक टिप्पणियाँ, समसामयिक व्यंग्य ,जानाकारी,विश्लेषण ,नयापन बहुत कुछ! ब्लॉगर लिख रहे हैं बिना कुछ अपेक्षा के ..शशि थरूर का क्या करें, महिला पत्रकार के विरुद्ध परेचेबाज़ी की खबरें, बलात्कार के विभिन्न पहलुओं पर सजग बहस, हिन्दू-मुस्लिम के शाश्वत मुद्दे पर, अमृता प्रीतम पर ,प्रेमचन्द के साहित्य को उपलब्ध करारहे हैं सरदारों के बारह क्यों बजते हैं?इस तक पर।किमवदंतियाँ, जनता की सोच ,लोक-अनुभव सब ।‘ अनुभव साँचा’ और ‘अनभय साँचा’। किसी के दो साल पूरे हो रहे हैं यहाँ लिखते लिखते कोई आरम्भ से जमा हुआ है।क्या क्या लिखूँ , किस किस का लिंक दूँ। अखबार छापे न छापे,कोई फर्क नही पड़ता।

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16 टिप्‍पणियां:

  1. नाचीज ने इसी समस्या का हल पेश किया है, नज़रे इनायत हो!

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  2. हांलाकि हम भी इस बात से सहमत हैं कि अखबार वाले दादागिरी करते हैं और ये मान कर चलते हैं कि ब्लोगरों को उनका ॠणी होना चाहिए कि उनकी नजर ब्लोगस पर पड़ी तो…लेकिन हमारा अनुभव काफ़ी सकारत्मक रहा है इस मामले में।

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  3. यह बात बहुत दिनो से मेरे भी मन में कौन्ध रही थी , प्रिंट मीडिया का सहयोग तो खैर हमेशा से मिलता रहा है । कई बार छोटे अखबार बड़े अखबारों से सामग्री लेकर छप देते हैं और एक्नॉलेज भी नही करते फिर ब्लोग तो अभी पॉपुलर नही हैं । हो सकता है इस तरह प्रतिक्रिया व्यक्त करने से शायद यह कर्टसी निभाने पर वे मजबूर हो जायें ।

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  4. मौजूं चिट्ठा चर्चा है। मुझे भी मेरे एक साथी ने रायपुर से बताया कि आपका लेख नई दुनिया में छपा था तो, मैंने कहा- अरे मुझे पता ही नहीं चला। ब्लॉग के एक हिस्से का जिक्र तो अलग बात है मेरे तो कई लेख पूरे के पूरे अखबारों ने उठाकर संपादकीय पृष्ठ पर चेंप दिए और मुझे जानकारी देना भी जरूरी नहीं समझा। इलाहाबाद गया था तो, वहां के डेली न्यूज एक्टिविस्ट की एक ऐसी ही कॉपी एक साथी ने लाकर दी। मध्य प्रदेश से किसी अखबार से मेरे पास मेल आई लेकिन, आज तक उनकी भेजी कॉपी मुझे नहीं मिली। लेकिन, मुझे लगता है ये चिंता की बात नहीं है अच्छी बात है। इससे वो, मठ तो टूट ही रहे हैं जो, समझते हैं कि अखबार के पन्ने पर सिर्फ स्वनामधन्य लोग ही लिख छप सकते हैं। अगर वो, ब्लॉगर को अखबार की कॉपी भेजें और सलीके से ब्लॉग के नाम का जिक्र करें तो, शायद अखबार-ब्लॉग एक दूसरे के काम आ सकते हैं।

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  5. बीते सोमवार का जनसत्‍ता
    और आज का जनसत्‍ता
    नहीं मिल पाया
    इसलिए उसकी खबर नहीं दे पाया
    वरना तो मेरा पूरा प्रयास है
    पाबला जी के प्रिंट मीडिया में चर्चा
    ब्‍लॉग के माध्‍यम से
    और जिनकी पोस्‍ट प्रकाशित हुई है
    उनकी ई मेल करके तलाश
    सूचित कर दिया जाये
    और यथासंभव अब तक सफल भी रहा हूं
    आप पाबला जी का ब्‍लॉग देख सकते हैं।

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  6. आश्चर्य कि फिर भी ब्लाग लेखन को साहित्य नहीं कहा जाता!!!!:)

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  7. AAPNE SATYA HI KAHA HAI. Waise jab Kotuhal ko zikra hindustan hindi mein kiya gaya tab Raveesh Ji ne mera naam aur blog ka pata usmein diya tha.
    Ummeed karta hoon anya samachar patra bhi aisa hi karein jisse blogger ko kuchh naam mil sake.
    Dhanyawad.

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  8. कुछ बढ़िया लिंक्स मिले चर्चा में..

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  9. सुन्दर चर्चा की है। अखबार के बारे में अब क्या कहा जाये!

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  10. बढ़िया चर्चा रही.

    हम तो अखबार का रास्ता तकना भी बंद कर दिये हैं. कोई सुध ही नहीं लेता. :)

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  11. hmmmmmmmmm......kuchh kahun....??lekin kya kahun..
    is par to poori ek post likhi jaayegi....!!

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  12. 'आप अखबार से यह उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि वह मेल करके आपको इसकी सूचना दे'

    -आपका यह कहना बिलकुल उचित है. मुझे भी अपनेलेख के अमरउजाला में प्रकाशित होने की जानकारी परिचित द्वारा फ़ोन से और हरिभूमि में प्रकाशन की जानकारीपाबला जी के ब्लॉग से मिली.

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  13. AKHBAAR VAALE AGAR LIKHNE WAALE KA NAAM BHI DE DEVEN TO KOI BURAAI NAHI NAZAR ATI ISME ....

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  14. कई नयी जानकारी देनेवाली सार्थक चर्चा ..!!

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