मंगलवार, सितंबर 22, 2009

मतलब का आपको नहीं बुझाता है?

ब्लागिंग एक बवाल है, बड़ा झमेला राग,
पल में पानी सा बहे, छिन में बरसत आग!

भाई हते जो काल्हि तक,वे आज भये कुछ और,
रिश्ते यहां फ़िजूल हैं, मचा है कौआ रौर!

हड़बड़-हड़बड़ पोस्ट हैं, गड़बड़-सड़बड़ राय,
हड़बड़-सड़बड़ के दौर में,सब रहे यहां बड़बड़ाय!

हमें लगा सो कह दिया, अब आपौ कुछ कहिये भाय,
चर्चा करने को बैठ गये, आगे क्या लिक्खा जाय!


बादलों से दोस्ती अच्छी  नहीं
कल देश भर में धूम-धाम से ईद मनाई गयी। सेवईंया खायीं-खिलाई गयीं। सबको एक बार फ़िर से ईद मुबारक।

कल इसी चक्कर में चर्चा कर न पाये। सोचते रहे अभी करते हैं। अभी करते हैं। लेकिन अभी -अभी करते-करते कल के सभी घंटे निकल गये और कल फ़िर चर्चा न ही हो पायी। इस बीच कल नीरज गोस्वामीजी तफ़रीह करके लौट आये। और ये बगल वाली फ़ोटुओं के साथ और तमाम फ़ोटुओं अपनी पोस्ट पर सटा दीं। देखिएगा आप भी आनन्दित होंगे।

बहरहाल आज की चर्चा के पहले कुछ समाचार:
  1. खोजी पत्रकार प्रदीप जाखड़ ने संगीता पुरी जी को दंडवत प्रणाम! किया। संगीता जी ने उनको बहुत बहुत आशीर्वाद .. युग युग जीएं.. खूब तरक्‍की करें कहा।

  2. नए ब्‍लागर के स्‍वागत में उसके द्वारा की गयी चोरी का पर्दाफाश हुआ !!

  3. ब्लॉगिंग को महेश नहीं, ब्रह्मा-विष्णु चाहिएं खुशदीप सहगल की पुकार

  4. मै आशिक न होता अगर तू बेहद हसीन न होती- महेन्द्र मिश्र की गजलिया स्वीकारोक्ति

  5. जानिये 108 और 786 के बारे में विवेक सिंह का विनम्र खुलासा


समाचारों के बाद आइये आपको कुछ पोस्टों के बारे में बतायें जो मुझे अच्छी लगीं: शेफ़ाली पाण्डेय ने प्रस्तावित शिक्षा नीति के बारे में शिक्षामंत्री जी को जानकारी दी है कि यह तो उनके यहां वर्षों से लागू है। वे इसके शानदार नमूने भी पेश करती हैं:

शेफ़ाली
हमने कक्षा में ताश के ५२ पत्तों द्बारा बच्चों को जोड़ - घटाने, गुणा, भाग सिखाए ,केरम बोर्ड द्बारा आयत और वर्ग के मध्य भेद स्पष्ट किया ,उसकी गोटियों के माध्यम से वृत्त की जानकारी दी .गिल्ली डंडा से लेकर लूडो और जूडो भी सिखाए. बच्चों के बीच कुश्ती करवाकर गुरुत्वाकर्षण के नियम की पुष्टि करी,कि चाहे कितना भी उंचा उछाल लो अंत में बन्दा ज़मीन पर ही आएगा .बच्चों को कंचों के द्बारा यह बतलाया कि प्रकाश का परावर्तन कैसे होता है .

यहीं तक नहीं वे आगे जीवन के महीन अनुभवों की जानकारी भी खेल-खेल में मिलने की जानकारी देती हैं:
कतिपय अध्यापक और उनकी शिष्याओं के मध्य गणित और विज्ञान जैसे नीरस विषयों में ही प्रेम की सरस धार बहने लगती है , रेखागणित पढ़ते- और पढ़ाते हाथों की रेखा का मिलान शुरू हो जाता है ,विज्ञान के वादन में दिलों में रासायनिक क्रियाएं होने लगती हैं .
इसके आगे के अनुभव उनके ब्लाग पर ही देखिये जहां पवन चंदन कहते हैं:
शैफाली पाण्‍डेय
आपकी लेखनी को नमन
सच कहूं तो....
आपके खून की जांच करायी जाए तो आपके खून में लो डैन्सिटि लिपोप्रोटीन के बजाए हाई डैन्सिटि व्‍यंग्‍य प्रोटीन मिलेगा। लाल और सफेद रक्‍त कणिकाओं की जगह बीजगणितीय समीकरण और रेखागणितीय प्रमेय, न्‍यूटन के गति के तीनों नियमों की तरह गति करते मिलेंगे।




शिवकुमार
चीन की भारत में घुसपैठ के प्रयास पर भारत सरकार, जनता, मीडिया और न जाने किस-किसके रुख पर बजरिये रतिराम पनवाड़ी अपनी बात कहते हुये शिवकुमार मिसिर कलकतिया कहते हैं:
मतलब का आपको नहीं बुझाता है? अपना देश का न जाने केतना सब के ऊपर चीन का रंग पाहिले से ही चढ़ा हुआ है. ऊ लोग पूरा सराबोर है चीन के रंग में. का सत्ता वाला औउर का भत्ता वाला. नीलोत्पल बसु को नहीं देखे का टीवी पर? देखते तो पता चलता कि लाल रंग से केतना नहाये हुए हैं.
क्लास लेख लिखे हैं शिवबाबू देख लीजिये। पूरा देखियेगा तबिहै मजा आयेगा।जितेन्द्र भगत बिरादर काफ़ी दिन बाद दिखे। और देखिये क्या कहते हैं:

जितेन्द्र भगत
आज की मनहूस सुबह ने मुझे जि‍स पीड़ा और ग्‍लानि‍ से भर दि‍या कि‍ शायद ईश्‍वर भी मुझे माफ न करे। मेरे फ्लैट की खि‍ड़की के साथ करीब आठ फुट लंबा और दो फि‍ट चौड़ा चबूतरा बना हुआ है। इसी खि‍ड़की के ऊपर ए.सी. टंगा हुआ है। ‍आज सुबह छ: बजे उठ कर खि‍ड़की के पास गया ही था कि‍ बाहर कबूतरों के चीखने की आवाज आई। मेरा रोम-रोम सि‍हर उठा।


अनिल चड्ढा अपनी कविता पेश किये और इनाम पाये। देखिये:
मैं जब पैदा हूई थी मम्मी,
तब क्या लड्डू बाँटे थे?
मेरे पापा खुश हो कर,
क्या झूम-झूम कर नाचे थे?
आगे के सवाल उनकी पोस्ट पर देखिये।

अदा कहती हैं:
हम अब घर के रहे न घाट के रहे
धोबी का गधा बना कर चले

घातों से बातों से इतना नवाजा
इनकी भी आदत लगा कर चले


सुरेश चिपलूनकर नेस्ले कम्पनी के बारे में खुलासा करते हुये सवाल करते हैं! उनके ब्लाग पर देखिये विचारोत्तेजक बातचीत!

राजकुमार ग्वालानी का सवाल है-मंदिरों में नारियल चढ़ाने का मतलब ही क्या है?

कंचन-मीनाक्षीजी
कंचन पिछले दिनों दिल्ली गयीं और जित्ती लम्बी यात्रा की उत्ती लम्बी उसकी दास्तान पेश की। फोटो-सोटो जगर-मगर। सब कुछ है इसमें। फ़ूल हैं( गुलाब के लिये गुलाब का जुमला भी है भाई!), मुलाकातें हैं, आजीजी है,गाना-शाना, रैगिंग-सैंगिग क्या नहीं है। देखिये क्या हुआ जब मिले गुलाब कंचन को:
मेरे दीदी के घर पहुँचने के मुश्किल से १० मिनट बाद ही अर्श ने ढेर सारे गुलाबों से सजे बुके के साथ प्रवेश
किया और जुमला फेंका " Lots of rose for a for a rose" हमने उसे समझाया कि भईया हम लड़कियों का बड़ा प्राबलम ये है कि हम लोग जानते हैं कि अगला झूठ बोल रहा है और फिर भी खुश हो जाते हैं। तो उसने तुरंत मेरी गलतफहमी दूर करते हुए कहा " आप इसे खूबसूरती से क्यों ले रहीं हैं ? मेरा मतलब है कि जो काँटो मे भी खिला रहे और अपनी खुशबू बिखेरता रहे" तो हम जितना चढ़े थे उससे दोगुना नीचे उतर आये।


रोचक संस्मरण! कंचन के कलम के जलवे। देख लीजिये वहां मुलाकात उनकी मीनाक्षीजी से भी हुई और और अब आप खुदै देखिये। ऊपर फ़ोटो मीनाक्षीजी और कंचन की ही है। देखिये क्या अदाये हैं गले मिलने की। खूबसूरत!

द्विवेदीजी आजकल अपने सारे किस्से बकलमखुद पर सुना रहे हैं। आज वे अपने मजदूरों का वकील बनने का किस्सा बता रहे हैं:


द्विवेदीजी
सरदार की पहचान बन गई कि वह मजदूरों का वकील है। जिस तरह वह मजदूरों की पैरवी कर रहा था उस से कुछ मुकदमे आने लगे। जीजाजी खुद मालिकों के श्रम सलाहकार थे। उन के घर रहने में उन्हें परेशानी हो सकती थी, यही सोच कर उस ने जीजा जी का घर छोड़ दिया और ट्रेडयूनियन के दफ्तर में रहने लगा। कुछ दिनों में जब उसे लगने लगा कि इतनी आमदनी हो रही है कि वह एक कमरे के घर का किराया दे सकता है और पत्नी को साथ रख सकता है।


पंकज मिश्रा बताते हैं चार दिन पहले से नवरात्री पर उछलने वाला कुंदन आज असहाय खडा था परिस्थिती के आगे !!!

आशा जोगलेकर की मेहनत से लिखी घुमक्कड़ी पोस्ट देखिये- घुमक्कडी -8 –बॉन्डी बीच, हाइड पार्क

अनुराग शर्मा के साथ घूमिये इस्पात नगरी पिट्सबर्ग में! खूबसूरत चित्रात्मक ।



रंजनाजी
किसी को हिन्दी भाषा का नाद सौन्दर्य देखना हो तो डॉ रंजना सिंह के संवेदना संसार में आये !

डाक्टरेट की यह् मानद उपाधि रंजनाजी को उनकी इस पोस्ट के नाद सौंन्दर्य पर प्रफ़ुल्लित होकर प्रदान किया जिसके बारे में M VERMA का कहना है- मै तो आपकी वृत्तांत वर्णन की व्यवस्थित कला को देखकर (पढकर) मै चकित हूँ. कितना सुन्दर लिखती है आप.

एक एक घटना आँखो के सामने दृश्यवत आती गयी.
अब और कमेंट क्या पढ़वायें आपको। आप तो सीधे पोस्ट पर ही पहुंचिये और फ़ुल आनन्द लीजिये।

ब्लागिंग का सेमिनार १९-२० सितम्बर को होना था। अगर हुआ होता तो आप आज इसकी खबरे पढ़ रहे होते। अब यह २४-२५ अक्तूबर को होगा। सिद्धार्थ त्रिपाठी इस बारे में जानकारी देते हुये कहते हैं:

सिद्धार्थ त्रिपाठी
आप सभी अपनी रुचि के अनुसार मन ही मन तैयारी कर लीजिए। कार्यक्रम की सूक्ष्म रूपरेखा तैयार हो जाने और धनराशि का परिव्यय स्वीकृत हो जाने के बाद इसकी विधिवत घोषणा हिन्दुस्तानी एकेडेमी द्वारा अन्तर्जाल पर की जाएगी। मेरी तो इच्छा है कि जिस प्रकार इलाहाबाद के कुम्भमेला में सारा हिन्दुस्तान उमड़ पड़ता है उसी प्रकार यह कार्यक्रम भी एक विशाल ब्लॉगर महाकुम्भ साबित हो जाय। अन्तर्जाल की धारा में अपने-अपने घाट पर डुबकी लगाने वाले विविध चिठेरे प्रयाग की धरती पर आकर अपना अनुभव एक दूसरे से बाँटें और बाकी दुनिया को यह भी बतायें कि इक्कीसवीं सदी में संचार के क्षेत्र में जो तकनीकी क्रान्ति आयी है उसे हिन्दी सेवियों ने भी आत्मसात किया है और अब इस देवनागरी की पहुँच दुनिया के कोने-कोने में होने लगी है।

एक लाईना




    बामुलाहिजा
  1. सुबह एक खरगोश! : हर दौड़ में सो जाता है

  2. हश्र यही होना था: क्या आप भी ज्योतिषी हैं

  3. अंधेर नगरी ! : में कल रविवार था

  4. "ताऊ की शोले" की शूटिंग रुकी - गब्बर जंगल लौटा!! : उसे अचानक याद आ गया कि आज मंगल है

  5. जनमदिन पर आपके स्नेह ने मुझे भावुक कर दिया : और आप जो रोज-रोज हर जन्मदिन पर करते रहते हैं उसका कुछ नहीं!

  6. टकराने के नए आयाम...और सिद्धांत :दीवार हिली है और मुझसे टकराई है

  7. मेरे भी जिस्म पर कल एक सर था : आज नहीं दिख रहा तो एफ़ आई आर कराओ फ़ौरन

  8. मुझे ही नहीं , सबको चाँद चाहिए ! : जित्ते लोग हैं उत्ते टुकड़े करो फ़िर चांद के


  9. काजल कुमार

  10. क्या कहा .... प्रेम हो गया?:ये क्या गजब हुआ?

  11. मैं तो बस कलम चलता हूँ :स्याही भरने का काम हमारा नहीं है!

  12. पांच बरस तक आप ढूंढ़ते रह जाओगे : अगर चुनोगे सांसद हीरो, प्लेयर छाप

  13. कब तक बिकेंगे आप :जब तक बोली लगती रहेगी

  14. हम अकेले नहीं रह सकते : हमारा टिप्पणीकार मेरे साथ करो

  15. ई रजा कासी हॅ ! - ५ : बाम्बे में बईठ के बनारस के किस्से-जियो रजा!


और अंत में


कल, आज और कल की चर्चा एक साथ लीजिये। कल छुट्टी थी फ़िर भी चर्चा न कर पाये। आज आफ़िस था इसलिये न कर पाये। आने वाले कल के लिये क्या कहें? लेकिन इत्ती देर से चर्चा करने पर अब कल सुबह क्या फ़ायदा करने का! बहरहाल कल की कल देखी जायेगी। फ़िलहाल तो इसके मजे लीजिये।

दो तीन दिन बहुत लोग इस बात से हलकान दिखे कि ब्लाग जगत के ग्रह खराब हैं। मुझे ऐसा कुछ नहीं लगता। दनादन पोस्टें आ रही हैं। लोग इधर-उधर न जाने किधर-किधर टिपिया रहे हैं। अनामी लोग सुपर-डुपर लाल की खिल्ली उड़ा रहे हैं ऐस से उसको अपने टिप्पणी केस में सजाकर धरे अगली पोस्ट में खोजी पत्रकार संगीता पुरी जी को प्रणाम निवेदित कर रहे हैं! इत्ते सौहार्द पूर्ण वातावरण को अगर कोई ग्रह खराब होना कहे तो उसकी बुद्धि की जय हो।

ऐसी सुमधुर स्थितियां हर जगह होंगी जहां लोगों के पास नया और बेहतर कुछ कहने/लिखने/सुनने को नहीं रह गया है वे नहले पर दहला फ़ेंकने लगते हैं। दूसरे की बड़े पत्ते को अपने तुरुप के छोटे पत्ते से कटवाने लगते हैं। हिन्दी ब्लाग जगत में लोगों की औसत आयु मेरी समझ में २५-३० वर्ष के लोगों की होगी। आम तौर पर बहुमत भले और मन से अच्छे लोगों का है। जहां बबाल देखते हैं, कट लेते हैं। पोस्ट पर भले न कहें/लिखें लेकिन अलग से टोंकते हैं कि यह क्या बेवकूफ़ी हो रही है! यह सुखद स्थिति है। कहीं से हिन्दी ब्लागिंग के दिन और ग्रह खराब नहीं हैं।
हिन्दी ब्लाग जगत के दिन जो खराब कह रहे हैं और जिनका मानना है कि इस तरह तो हिन्दी ब्लागिंग की साहित्य से दूरी बढ़ती जायेगी उनको आज की प्रसिद्द साहित्यिक पत्रिका हंस के अस्सी पार दो प्रख्यात लेखकों की नोक-झोंक देखनी चाहिये। राजेन्द्र यादवजी नामवार सिंह जी से हिसाब बराबर करते हुये लिखते हैं:

सतीश पंचम
नामवर जी मेरे बडे हैं और मैंने उन्हें वही सम्मान और उनकी विद्वता को श्रध्दा भाव दिया है। हमारी दोस्ती भी सन 1952 से शुरू हुई है । सच है कि इतना पुराना दोस्त न उनके पास कोई है, न मेरे । मैं उनकी विद्वता, अध्ययन और स्मरण शक्ति के आगे हमेशा नतमस्तक रहा हूँ, मगर क्या करूँ आज वे जहां पहुँच गये हैं वहां उन्हें देखकर तकलीफ होती है – दरवाजे पर बैठा एक बूढा है जो हर समय घर की बहू-बेटियों को टोकता या कोसता रहता है।


इस लिहाज से तो देखा जाये कि हमारी ब्लागिंग और अपना साहित्य एक्कै जमीन पर खड़े हैं। तमाम बुजुर्ग हैं अपने यहां भी टोंका-टोंकी करने वाले। है कि नहीं?

फ़िलहाल इतना ही। आप मौज से रहिये। अच्छी पोस्टों पर हौसला बढ़ाइये। खुद भी अच्छा लिखिये। दूसरे को अच्छा लिखने के लिये उकसाइये। जो लोग कहते हैं कि हिन्दी ब्लागिंग के दिन खराब चल रहे हैं उनके झांसे में मत आइये।

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21 टिप्‍पणियां:

  1. जे है फुरसतिया चर्चा ट्रेड मार्का ...
    शिवबाबू की ललरौटी तो सही में मरिचाई है।

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  2. बहुत अच्छी और विस्तृत चर्चा. कुछ अच्छे लिंक्स के लिए धन्यवाद.

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  3. इत्ती रात को भी आप नहीं माने...! अपना व्रत पूरा कर ही लिया। मेरी फोटू तो आपकी चर्चा में वो लगा रही है जिसे हिन्दी वाले ‘चार चाँद’ कहते हैं। बाकी के तीन चाँद मेरे ऊपर लगे हुए हैं।:) शुक्रिया।

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  4. "कल, आज और कल की चर्चा’...

    यानि कि पृथ्विराज, राजकपूर और रिशि कपूर जैसी:)

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  5. सहज स्वस्थ प्रस्तुति,मान गये.. उस्ताद ।

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  6. अनूप भाई, भूमिका में ही दोहों संग ऐसे बहाया आपने कि बस उसी सरस धार में सरसराकर बहते चले गए....

    सोच रही हूँ इतने चिठ्ठों को पढने में कितना समय लगा होगा आपका और फिर यह लाजवाब चर्चा....वाह !!

    पढने के लिए बढ़िया रेफरेंस पॉइंट मिल गया आपके इस चर्चा के माध्यम से...

    सरस चर्चा हेतु आभार..

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  7. बढ़िया चर्चा, बहुत से नयी पोस्ट्स का पता चला, धन्यवाद

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  8. क्या बात है पण्डितजी आज हम से ही शुरू औ’ हम पे ही ख़त्म। याने बवाल ही बवाल। हद है कि इन पोस्टों ने आप तक को विचलित कर दिया। पर हम सदा आपके साथ हैं सर। फ़िकर नॉट।

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  9. अच्छी चर्चा| काफ़ी विस्तृत । नीरज जी की पोस्ट क़ाबिले तारीफ़ है और उसे चर्चा का विषय बनाना अच्छा लगा। मगर एक बात- चिट्ठा चर्चा में वो पोस्ट्स क्यों हों जहाँ, ब्लागर एक दूसरे के बारे में लिख कर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं आदि। या फिर कोई गॉसिप कालम जैसा कुछ रख लिया जाये चिट्ठा चर्चा में।

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  10. शेफाली पांडेय के व्‍यंग्‍य की प्रतिक्रिया में आपने जो उद्धरण दिया है वो चौखट ब्‍लॉग स्‍वामी पवन चंदन का है न कि पवन पांडेय का। दोबारा घूम आइए। लेखक और टिप्‍पणीकार के नाम का घालमेल अनूपता तो पैदा करता है पर गलती से हो जाता है। इसे मूल पोस्‍ट में सुधारा जा सकता है।
    और इस विस्‍तृत मोहक चर्चा में अंत ही तो शुरूआत है।

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  11. अविनाश वाचस्पति जी, टाइपिंग की गलती बताने के लिये शुक्रिया।

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  12. सिद्धार्थ जी की सूरत बड़ी धाँसू है पूरी चर्चा पर भारी ! सीरत वाले भी हैं वे दुनिया देखेगी ही !

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  13. उकसावत हो उकसावन को,
    खुद ही उकसाओ तो जानें।
    अब अच्छा रोज लिखें कैसे,
    आपहि लिख पाओ तो जानें।

    लिखना तो रोज जरूरी है,
    चाहे अच्छा या बुरा लिखें।
    यह मिलना-जुलना लगा रहे,
    हम ब्लॉग-जगत में रोज दिखें।

    यह लिखने का न रहा मकसद,
    बस यूँ ही लिख डाला मैंने ।
    यह चिट्ठा चर्चा अच्छी है,
    मैं आया था बस यह कहने।

    मेरे हिय में जो राम नाम,
    वह बाहर करता रहता हूँ ।
    यद्यपि शीत नहीं आया,
    मैं किन्तु ठिठुरता रहता हूँ ।

    राम राम!

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  14. सुन्दर चर्चा. मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आपको धन्यवाद और मुझे बधाई....:-)

    वैसे मन में और कुछ भी है, सो पूछ लेते हैं..

    टीपत है शिष्य इहाँ मोरा
    या बात अऊर कुछ बोलत है
    दुई भरी जेब कविता की लिए
    ऊ इहाँ-उहाँ बस डोलत है

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  15. मेरी पोस्ट को शामिल करके मेरा मान बढ़ाने का बहुत धन्यवाद ....

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  16. संत विवेक की कविता न्यारी
    पढ़ी-पढ़ी हम बहुत भये सुखारी
    औ जब पढ़े हम चिटठा चर्चा
    मान बढ्यो कछु कियो न खर्चा
    चिटठा चर्चा की महिमा भारी
    बस तपाक हम तिपनी दै डारी

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  17. बहुत शानदार चर्चा रही अनूपजी। पहली लाइन में ही हमें याद करने का बहुत बहुत शुक्रिया।

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