ये बगल वाली फोटो अभिषेक ओझा की है! इनकी पोस्ट के चलते ही हमको सब काम-धाम छोड़कर चर्चा को प्राथमिकता में ऊपर लाना पड़ा। अभिषेक ओझा की पोस्टें सहज-सरल और शरीफ़ टाइप की होती हैं। हड़बड़ लेखन से अलग। गणित की बातों को सुगम और रोचक अंदाज में पेश करके अभिषेक ने यह बताया कि गणित जैसे कड़क और नीरस माने जाने वाले विषय को भी कैसे रोचक अंदाज में पेश किया जा सकता है। उनका बताया हुआ शब्द सौंदर्य अनुपात तो अब मेरे रोजमर्रा के जीवन में शामिल हो गया। अभिषेक ओझा का बकलमखुद आप चाहें तो इधर बांच सकते हैं।
तो अभिषेक की पोस्ट के चलते ही हमको एक बार फ़िर यह विश्वास हुआ कि फ़ुरसत होती कहीं नहीं, निकाली जाती है। जो काम आप सच में करना चाहते हैं उसके लिये समय निकल ही आता है। इस बेहतरीन पोस्ट के कुछ अंश देखे जायें:
व्यस्त होना भी अजीब है... 'व्यस्त/बीजी' मुझे बड़ा ही डांवाडोल अस्पष्ट सा शब्द लगता है.. अपरिभाषित सा. अपनी बात करूँ तो... अक्सर मैं और मुझे जानने वाले बाकी लोग भी मुझे बहुत व्यस्त मानते हैं अब सीखना तो छोटी बातों से ही होता है बड़ी बातों का क्या भरोसा सीखने लायक ही ना बचें ! जब अपने आपको लेकर मन में एक धारणा बनी हुई हो और ऐसे में कोई सामने वाला उसे धत्ता बताकर निकल जाये और आप अपनी औकात में आ जायें... मुझे ऐसे लोग अच्छे लगते हैं. बनावटी नहीं. ... बाकी चीजों की तरह ही व्यस्त होना भी एक सापेक्ष अवधारणा (रिलेटिव कांसेप्ट) है. एक वरीयता (प्रिओरिटी) होती है हमारे कामों में. कौन काम किस काम के लिए व्यस्तता बनेगा. ये तो फैसला करना पड़ेगा न? यूँ तो व्यस्त होना अच्छी बात है खाली होने से बेहतर, पर व्यस्त होने का मतलब ये तो नहीं कि फुर्सत के क्षण ढूंढने में ही व्यस्त हो जाएँ !
गणित संबंधी चिट्ठों के कुछ और लिंक आपको इस पोस्ट में मिलेंगे।
लक्ष्मीनारायण गुप्तजी काफ़ी दिन बाद आये अपनी पोस्ट के साथ। इस पोस्ट में उन्होंने कुछ सहज-सुलभ बातों का जिक्र किया जिनके बारे में हम आमतौर पर बात करते हुये कतराते हैं। जैसे देखिये:
ललित शर्मा जी की पोस्टों में आजकल किस्सागोई का तत्व जबरदस्त दिख रहा है। दो दिन पहले उन्होंने लोटा पुराण लिखा था जिसमें लोटे की पूरी कुंडली मौजूद थी। आज देखिये वे ब्लॉगर व्यथा बता रहे हैं:
अब आपने ही लिखा था कि एक पोस्ट की उमर २४ घंटे होती है. इससे ज्यादा नहीं होती. तो हमने भी ऐसा ही लिखना शुरू कर दिया. ब्लाग ना हुआ लेटर बॉक्स हो गया........जितना डालो उतना ही खाली.......अब कहाँ से लायें आपके लिए रोज-रोज नयी सामग्री? आप फालतू की हेडमास्टरी किये जा रहे हो....... हमारे से तो ऐसा ही लिखा जायेगा..... अगर अच्छा ही लिखना आता तो ब्लाग पर काहे लिखते......... पहले ही बहुत बड़े लेखक चिन्तक हो जाते....... एक ब्लागर कितनी बाधाओं को पार कर के एक पोस्ट लिख पाता है? जरा सोचिये जरा हम पर रहम खाईये........... आपकी बड़ी कृपा होगी
एक लाईना
- इकतारे की धुन... :बजाये पड़े हैं, बजाये पड़े हैं...
- यक़ीं कीजे, ये मैं ही हूँ, जरा फोटो पुरानी है :कैसे यकीन कर लें भाई! फ़ोटो तो किसी स्मार्ट की लगती है!
अगर आप समानता नहीं देगे तो आप को "आरक्षण " देना पड़ेगा । :सोच लीजिये! फ़िर मत कहियेगा बताया नहीं
मेरी पसंद
उदास राहों में गा रहा हूं
तुझे मुहब्बत बुला रहा हूं
सुनो अंधेरे के हमनवाओं
मैं एक दीपक जला रहा हूं
वो तोड़ने को कमाल जाने
नहीं दिलों का मलाल जाने
उसे खबर क्या कि दर्द क्या है
जो चोट खाये तो हाल जाने
वो रस्मे नफ़रत निभा रहा है
मैं रस्मे उल्फ़त निभा रहा हूं
भला करूं मैं ये काम कैसे
कि नीम को कह दूं आम कैसे
लगा रहें हैं जो आग घर में
करूं उन्हे मैं सलाम कैसे
वो सच से नज़रें बचा रहे हैं
मैं उनको दरपन दिखा रहा हूं
वो रोयें मेरी भी आंखें नम हों
हमारे गम भी अब उनके गम हों
जो हाथ इक दूसरे का थामें
तो दूरियां भी दिलों की कम हों
कदम बढ़ाएंगे वो भी आगे
कदम अगर मैं बढ़ा रहा हूं
रविकांत
और अंत में
फ़िलहाल इतना ही। बाकी फ़िर कभी। अगर शिवकुमार मिश्रजी की तबियत सही रही तो कोई आश्चर्य नहीं कि वे दोपहर तक चर्चा कर डालें और करके डाल दें।
और आप यह लेख देखें!
आपका दिन चकाचक बीते और आप जो करना चाहते हों उसके लिये समय निकाल सकें।
----BAHUT SUNDR CHARCHA-AABHAR AAPKA---
जवाब देंहटाएंदो पोस्ट की चर्चा, तीन के लिंक और एक मेरी पसंद। पर्याप्त तो नहीं है। पर चर्चा का ये अंदाज पसंद आता है। बहुत दिनों से यह गायब था।
जवाब देंहटाएंगजब की बुनावट है ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा । आभार ..।
संग्रहणीय चर्चा हमेशा की तरह ....
जवाब देंहटाएं"भला करूं मैं ये काम कैसे
कि नीम को कह दूं आम कैसे"
क्या बात है इन पंक्तियों ने ठहरने पर मजबूर कर दिया
अभिषेक अपने पसंदीदा ब्लोगर्स में से एक है ...गणित से मोहब्बत वाले ऐसे इंसानों को देख.सच्ची में मन करता है के आई .आई टी . वालो के कुछ दिमागों की सेवा स्कूलों को लेनी चाहिए सब्जेक्ट को दिलचस्प बनाने के लिए ......
जवाब देंहटाएंइतनी संक्षिप्त चर्चा !! पर ये भी ठीक ही है.
जवाब देंहटाएंअभिषेक जी बधाई के पात्र हैं, जिनकी पोस्ट ने आपको तमाम व्यस्तताओं के बीच चर्चा के लिये मजबूर किया...:)
जवाब देंहटाएंअभिषेक ने खूब फ़ुरसत से व्यस्तता पर लिखा है और बहुत खूब लिखा है।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा है सरकार। अभिषेक जी की व्यस्तता वाली पोस्ट पर कवि सुरेन्द्र दुबे की कविता का अंश याद आ रहा है,
जवाब देंहटाएंभाई बात तो आपकी सही है
पर क्या करूं, टाइम नहीं है.....
मेरे गीत को पसंद करने के लिये आभारी हूं।
शुक्रिया ! आज पता चला हमारी पोस्ट शरीफ़ होती है :)
जवाब देंहटाएंSundar andaaz me sundar charcha.
जवाब देंहटाएंघोषित फ़ुरसतिया होते हुए भी अगर "फुरसत" पे चर्चा ना कर पाते ....तो बड़े अफ़सोस की बात थी !......ठीक किया आपने !
जवाब देंहटाएंपोस्ट के अंत में पहुंचा तो सोचने लगा कि क्या वाकई दिन चकाचका बीता ! हम्म्म :)
जवाब देंहटाएंबहर हाल बढ़ियाचर्चा. आभिषेक अगर मेरे जैसे गणित में पूरे पैदल को अपनी पोस्ट पढ़वा सकते हैं तो वे निश्चय ही जादूगर हैं...मैं यूं सोचा करता था. आपने आज मेरी सोच पर मुहर ही लगा दी. अच्छा लगा ये जानकर कि मैं ग़लत नहीं था :)
अच्छा है ढेर सारे ब्लॉग्स की चर्चा करने की बजाय चुनिन्दा ब्लॉग्स की बेहतर तरीके से चर्चा की जाये \
जवाब देंहटाएं