शुक्रवार, मार्च 19, 2010

लजाइए नहीं ... चिट्ठाईए - कठिन ब्‍लॉगिंग के हाफ बाल्‍ड प्रेत के लिए

एक पोस्‍ट पर चर्चा कई बार हुई है पर आज हम एक चिट्ठाकार पर चर्चा करना चाहते हैं। गजब खब्‍ती चिट्ठाकार है ये। वन कैननॉट ड्रेग हीम टू... ब्‍लडी कीचड़ आव चिट्ठाकारी, अगला वही रहेगा जो है पर यू कान्‍ट ड्राइव हीम अवे आइदर ... अगला बना रहेगा। आप टिपियाए या नहीं, पढें या नहीं (समझ पाएं या नहीं)यानि चिट्ठाकार परमोद बाबू

         

       

 

आज की उनकी पोस्‍ट  कुल जमा दो लाइन की पोस्‍ट है... पूरी की पेरी दे  देते हैं-

जीवन के ट्रैफिक में मैं कहीं उलझा रह गया था, मौका अभय बाबू ने मार लिया था, मेरे देखने का छींका आज टूटा, उसी मीठी जलेबी का एक छोटा सा मजमून है.

अपने दूसरे ब्‍लॉग सिलेमा पर उन्‍होंने घोर गैर सेंसेश्‍नल फिल्‍म दाएं या बाएं की एक समीक्षा पेश  की है, अभय पहले ही इस फिल्‍म पर लिख चुके हैं पर प्रमोद की समीक्षा उसमें कुछ जोड़ती ही है।

फ़ि‍ल्‍म देखने के बाद इस अहसास की खुशी होती है कि बतौर माध्‍यम सिनेमा अब भी अपने देश में एक संभावना है, और वह फ़ि‍ल्‍मकार के हित में सिर्फ़ यही दिखाने का जरिया नहीं कि वह कितना स्‍मार्ट है, या जिन जड़ों से आया है उसकी कितनी स्‍मार्ट, एक्‍ज़ॉटिक पैकेजिंग करने का उसने हूनर हासिल कर लिया है. बेला ने अपनी पहाड़ी पृष्‍ठभूमि और स्‍थानीयता को जो सिनेमाई अरमान और ऊंचाइयां दी हैं, उसके लिए जितनी भी उनकी तारीफ़ की जाए, कम है. भयानक शर्म की बात है कि फ़ि‍ल्‍म के तैयार होने के एक साल बाद भी फ़ि‍ल्‍म के निर्माता सुनील दोषी उसे रिलीज़ करने की दिशा में कोई भी कदम उठाते नहीं दिख रहे. इस दो कौड़ि‍या आचरण पर कोई उनसे जवाब तलब करेगा? मीडिया, कुछ करे

हमने आज परमोद बाबू को चर्चा के लिए चुना उसकी वजह केवल यही पोस्‍ट नहीं है वरन शायद खुद परमोद बाबू हैं।  लोग जब अकेले या ऐसोसिएशनों के बूते जगह बनाने और न बना पाने या कम बना पाने पर हिटत्‍व के नुस्‍खे लिखने पर उतारू हों तो ऐसे में प्रमोद का ब्‍लॉग व्‍यक्तित्‍व हैरान करता है। प्रमोद विरक्‍त ब्‍लॉगर नहीं हैं उनका आर्काइव खंगालने से सहज ही पता चलता है कि वे निरंतर लिखते रहने वाले ब्‍लॉगर हैं तथा एकाध किसी दुर्लभ प्रसंग को छोड़ दें तो ऐसा कोई अवसर याद नहीं पड़ता जहॉं वे किसी वाद विवाद संवाद में पड़े हों। टिप्‍पणियों का समीरानंद कभी उनकी पिछवाड़े नहीं बहा (यहॉं तक कि शायद यही ब्‍लॉग है जिस पर टिप्‍पणी करना खुद समीर तक भूल जाते हैं :))    पर मजाल है इससे प्रमोद के लिखने की शैली पर बित्‍ता भर फर्क पड़ता हो।

प्रमोद के लेखन की खास बात उनका परी तरह प्रोफेशनल किस्म की शैली तथा उनका डरा देने की हद तक बहुपठ  होना तथा वाइडली ट्रैवल्‍ड होना है। हमें तो वे कठिन ब्‍लॉगिंग के प्रेत नजर आते हैं। खैर चर्चा के लिए सलाह देते हैं कि उनकी चंद सीरिज पर नजर डालें मसलन पतनशील साहित्‍य की उनकी खिड़की में एक न दो पूरी दो सौ तेरह पोस्‍टें हैं हर एक को पढ़ना एक तकलीफदेह यात्रा से गुजरना है। इसी सीरिज ने बाद में पतनशीन औरतों वाले लेखन को प्रेरित किया था जो हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की ऐसी विरासत है कि संस्‍कृति के गदाधारियों का आज तक उसके सपने आते होंगे।  भर भर घर से एक हिस्‍सा-

चार दिनों से बंद हूं तंग हूं अलग बात है, सच्‍चाई यह है ग़लत शादी की तरह यह घर हमेशा से मेरी जान खाती रही है. पूछो क्‍यों हमारे हिस्‍से आई तो हरामख़ोर का चेहरा उतर जाता है! अबे, किसी और के गले जाकर नहीं बंध सकती थी, समूचे चॉल में ‘कथा’ के नसीर की तरह एक हमीं शरीफ़ मिले कि अपने मोह में उलझाकर हमारे कृशकाय पर लतरकुमारी होकर लटक लीं? चलो, एक मर्तबे हर किसी से ग़लती होती है, हमसे भी हुई हमने भाव दे दिया मगर बेहयाकुमारी अबतक लटकी हो?

  ऐसा नहीं कि प्रमोद किसी कोकून में दबे- छिपे लेखन करते हैं, खुद ब्‍लॉगिंग पर उन्‍होंने 166 पोस्‍टें लिखी हैं जो काम के लिंक्‍स व चिंतन से भरी हैं।

इन सबके अलावा प्रमोद के स्‍केच ... ओह गॉड हाउ टैंलेंटेड दिस हाफ बाल्‍ड मैन इज...

 

[manisha+mad.jpg]

Post Comment

Post Comment

23 टिप्‍पणियां:

  1. प्रमोद जी हम भी बहुत बड़े फैन हैं, वो मुझे बाबु सुदीप नारायण बुलाते हैं :), मैं उनको ब्लॉग पर के रेणु कहता हूँ... बातों को हू-ब-हू कहने का उनका अंदाज़ अनूठा है, अक्सर भूले बिसरे शब्द जो मैं अपने गाँव में भूल आया हूँ, वो यहाँ सुनने को मिलता है... कमाल की बात यह है कि हर बात या घटना बड़ी साफ़ होती है. अजूबा होता है इनका जूनून देखकर कई बार एक भी कमेन्ट नहीं, फिर भी दिन में २-३ पोस्ट भी डालते हैं.

    मेरे मेल में उनकी बेहतरीन पोस्ट पड़ी हैं, एक बानगी :

    "हमरा किलास का नहीं, जूरियन (जूनियर) लइकी सब है हो, सुबीरन, एगो बंगला है दूसिरकी गुजराती है, बेलाउज पर आसाराम बाबू जी का बैज साटे रहती है, शनिचर का शनिचर उनका फोटो गलियारी में टांगके उनका गोर पे माथा फोर-फोरके आरती अऊर भजन सब गाती है! हम शेकायत नहीं करते हैं, शेकायत काहे ला करेंगे, जी? ओ लोक को जो अच्‍छा बुझाता है, करता है, वइसे भी बंगला-गुजराती लइकिन है, हमरा जूरियन सब है, हमको जो अच्‍छा बुझायेगा हम ऊ करेंगे, नहीं जी? उनका लिए आसाराम हैं, अऊर हमरे बास्‍ते हमरे देवधर भइया हैं! सुने हो कि नहीं, जनार्दन? ओहोहो, कइसा तो मीठा-नसीला सलबत वाला बात सब बोलते हैं, सगरे कान में हरमोनिया का परदा सोहाने लगता है!”

    “के नसीला सलबत घोलता है, हो?”

    “क्‍या बोले, देवधर भइया? एक हाली फिर से बोलिये न!”

    “केतना तो अरमान लेके दुआरी पे फुलकारी किये थे! एतना मोहप्‍पत से एक-एगो गमला रोपे थे, अऊर देखिए, चंदिरका जी, ई करमखोर बकरी को, कवनो गाछ सोगहग नहीं छोड़ी है!”

    “घुमाके चार लात लगाओ पगलेट को! अरे, तुम्‍मो आंधरे न हो, कार्तिक, बकरी को दुआरी, अऊर ऊहो गाछी का लगले बांधते हैं, बाबू?”

    “राती का साग का पाता सब बचा है, और मुट्ठीभर सहजन है, दाल में डाल दें, दीदी? कि जेठ जी के लिए कटोरा भर पहिले अलग कै लें?”

    “अगे! हंसुआ खेले का ची है, रे लइकी? हाथ से खून का धार छोड़ देगा तब्‍ब सुधायेगी गे?”

    “का बोले, का बोले? फीन से लीपीट कीजिएगा?”

    “लाल सच्‍चा है बोले.”

    “देखा रे, जनार्दन, देखा, देवधर भइया कइसा किस्‍टल किलियर बचन-बोली बोलते हैं!”

    “चौबीस कराट का गोल्‍डन है! मीनिंग का गहिरका कुआं और शहद का गगरी है!”

    “इहंवा कुट्टी कटवा के लाये हैं, कोई सैकिल से उतरवायेगा, हो?”

    “जा बाबू, जा तनि चाचा के सैकिल थाम ले तS?”

    “हम बहरी नहीं जायेंगे, लंगटे हैं, हमरा पाइंट सुखा रहा है, बुनिया ओपे पेशाबी कै दी थी!”

    “ई बहिरी जा रहे हैं, संझा का नश्‍ता के लिए मर्किट से कुच्‍छो मंगवाये ला है, दीदी?”

    “रजिन्‍नर कुमार का कवन फिलिम का गनवा था, जी? जे मोरा प्रेमपत्र पढ़के तू नराज ना होना कि तू मोर बन्‍नगी है, तू मोर दिल्‍लगी है!”

    “पंड़वा के हियां सीधे ठोंगा से ई गरमा-गरम जिलेबी खाये हैं कि का बतायें, भउजी! कंठ तरके टोटली चरनामृत हो गया!”

    “देवधर भइया कहां गए, हो? कोउची सुनाइये नै पड़ रहा है? ए माइक मास्‍टर, एक हाली फेनु अपना बाजा टेस्टिन करो, बाबू!”

    “ओन-टू-थ्री-फोर! ओन-टू-थ्री-फोर?”

    “कितना अच्‍छा लगता है! लाल.. गुलाल..”

    “जय हो, देवधर भइया! सिर्र-सिर्र.. जिय, राजा!”

    “ऐ कौन छौंरा सीटी मारा रे? ई गुंडा-बवाली का एरिया है, हो? रेसपेट्टि‍बल सोसायटी रहता है हियंवा!”

    “हमसे नराज हैं त बोलिये न, दीदी? तबसे तरकारी का कटोरी लाके धरे हैं आप चीखके कुछ बतइबो नहीं कर रही हैं!”

    “बुनिया फेनु पेशाबी की है, मौसी!”

    “जनाना कपड़ा साटके घड़ी भर को नहाना-घर में गई ओतने में लेस दिया तू लोक को? बारह ठो छौंड़ा-बुतरी का घर में एगो बच्‍चा का पेशाबी नहीं संभला रहा?”

    “बोल रहे हैं कान खोलके सुन लीजिए! सुबही-सकाली हमसे तू-तड़ाक का भासा मत बोलिये, हमरा बाबूजी आपका हियां गोड़ पड़के बियाह कराये नहीं गए थे, हां!”

    मुसमात देवकी बो की परकी बिलार है खपड़ा पर का पसिरा सतपुतिया के पीछे टहिल कर रही है, भोजपुरी के चिरकुट्टन से बेपरवाह, हिन्‍दी का तो अब यूं भी कहते हैं डे फिक्‍स हो गया है.. एक बच्‍चा आंख पर हाथ धरे उसकी दिशा में तक रहा है पर बिलारिन कुमारी की नज़र जाती है तो वह अदा से गरदन मोड़कर कहती हैं, 'मिआऊं!' ज़ाहिर है अंग्रेजी में कह रही हैं. बच्‍चा हिंदी में बुदबुदाने की कोशिश करता है, 'मैं आऊं?' तो पीछे से उसकी मां झाड़ू फेंककर कौंकती है, 'देखो, ई छौंड़ा के, एही बदे तोहरा के कंवेंटी भेजे हैं रे?

    ... उनके पोडकास्ट बार बार सुनता हूँ, अपनी मिटटी महकती है.

    जवाब देंहटाएं

  2. मेरे ज़ेहन में परमोद जी की एक ही पहचान उभरती रही है..
    "टटका और सोंधे ब्लॉगिया "

    जवाब देंहटाएं
  3. जो लोग हिन्दी ब्लॉगिंग के स्तर पर प्रश्न चिह्न लगाकर सिरे से खारिज करने वाली बातें करते हैं, उन्हें मैं कुछेक चंद चुनिंदा ब्लॉगों मे से इसे भी बताता हूं. वे इसे ध्यान से देखते हैं, दांतों में उंगली दबाते हैं और फिर नतीजतन, उनकी धारणा बदल जाती है...

    जवाब देंहटाएं
  4. सच्ची! ये न होते तो सारा ब्लॉगजगत डकिये पे आउट हो जाता! ये हैं तो बड़े गोल हुये हैं किरकिट के मैच में!

    जवाब देंहटाएं
  5. वे उन चंद ब्लोग्गर में से हैं जिन्हें हमेशा पढ़ती हूँ ...तब भी जब मैं महीनो तक ब्लोग्वानी नही खोलती. दिमाग मथ डालते हैं एक - एक पोस्ट पर.

    जवाब देंहटाएं
  6. शुक्रिया .वही बात जो मै कल कह रहा था आज आपने उसे विस्तार दिया है .....यानी एक चर्चाकर पर केन्द्रित चर्चा .....अलबत्ता प्रमोद जी को आपने कंजूसी में समेट दिया .यानी विस्तार से इसका सेकण्ड पार्ट भी ठेलेयिगा .......हम भी उनके बड़े वाले पंखे है ....किसी भी रचनाकार की पहचान ..उसकी एक विशिष्ट भाषा शैली होती है .उनकी भी है ...पर वो रूकती नहीं है ....उसमे एक रवानगी है .....अलग अलग .. सब्जेक्ट पर उनकी पकड़ .सिनेमा जैसी विधा से मोहब्बत ...दूसरी बड़ी बात जो आपने कही है ...हम पहले भी मान चुके है के अमूमन लिखने वाला कुछ समय बाद पाठको के मुताल्लिक लिखने लगता है ....यानि खुद जो सोचता है ...खुद जो कहना चाह रहा है .कई बार उसे पीछे धेकेल देता है ..प्रमोद जी असल अभिव्यक्ति को परिभाषित करते है ..छपास मोह ओर यश मोह से शायद वे बहुत पहले बाहर आ चुके है .हिंदी ब्लोगिंग में ढेरो ऐसे पाठक है ..जो खांटी पाठक है ..प्रोफेशनल है ...किसी साहित्य को नहीं जानते है .जिनके लिए कंप्यूटर ने ही हिंदी के द्वार खोले है .......वे पढ़ते है ..आपको कभी टिपियाँयेगे नहीं ....पर दो दिन में एक बार आपको पढने के लिए जरूर आयेगे ..प्रमोद जी के ऐसे ढेरो पाठक है .....खुद मेरे डॉ दोस्त कितने है जो देश से बाहर है ....पर उनके फेन है....

    जवाब देंहटाएं
  7. ओर हां हिंदी के अगर दस बेहतरीन ब्लोगर मुझे चुनने हो .तो वे उनमे से एक है .....

    जवाब देंहटाएं
  8. पता नहीं हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग में कैसे कुछ लोग हैं (वैसे ज्‍यादातर ऐसे ही लोग हैं) कि सीधे-सीधे तारीफ़ करते हुए इन्‍हें एकदम शर्म नहीं आती.. जैसे यहां कॉलेज में पढ़ाने की उम्र में पहुंच जाने के बावजूद विजेन्‍दर चवहाण को नहीं आ रही! ये तरीका है क्‍या, भई, आप मुंह पर मनोज कुमार की तरह हाथ रखकर तारीफ़या नहीं सकते? वह हंसते-हंसते करते दिखने की ज़रुरत है? मैं सचमुच सन्‍न हूं.
    दूसरे इस वज़ह से भी हूं कि एक अविवाहित संभावनाप्रवण प्रवीण को यहां बेतक़ल्‍लुफी से हाल्‍फ बाल्‍ड बुलाया जा रहा है, और विवाहित बुड्ढे (या उस दिशा में प्रवीणता से अग्रसरकामी) इस पर कोई एतराज़ भी नहीं कर रहे! और ये दो कौड़ि‍या स्‍केजेस.. सचमुच मैंने ही बनाये हैं तो निश्चित ही प्रेतावस्‍था में भटकता होऊंगा..
    और आखिर में, हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग क्‍या सचमुच कोई कम्‍युनिटी है? अगर है तो मैं खुद को उससे बाहर खड़ा करता हूं. माने, सचमुच हद है. उसके बाद भी. वही है.

    जवाब देंहटाएं
  9. 2006-07 कि बात है.. हिंदी ब्लॉग जगत में नया नया इंट्री मारा था.. स्वांत सुखाय तब भी लिखता था अब भी लिखता हूँ.. एक दिन अचानक से एक अजनबी का कमेट देखा.. नाम देखा तो परमोद जी खड़े थे.. मतलब परमोद जी को हम उस जगह रखते हैं जहाँ अधिकांश ब्लोगर समीर जी को रखते हैं पहली टिपण्णी से धन्य करने के लिए.. उस समय ब्लॉग प्रोफाइल क्या होता है ये भी पता नहीं था.. सो समझ नहीं पाए कि ये कहाँ से आये और ये भी कुछ लिखते हैं.. फिर 2007 फरवरी-मार्च तक आते आते मोहल्ला, फुरसतिया, उड़न-तस्तरी, मानसिक हलचल, रेडियोवाणी के साथ साथ सिलेमा-सिलेमा भी पढ़ने लगे.. हिंदी ब्लॉग कि दुनिया तब भी नहीं खुली थी हमारे लिए और तब तक अजदक हाथे नहीं आया था.. जिस दिन हाथ आया तभी समझ में आया कि हिंदी में हमारी समझ कितनी है.. अपनी समझ का पैमाना अजदक से ही तभी से तय होता आया है..

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत अच्छी चर्चा।
    @ क्‍या, भई, आप मुंह पर मनोज कुमार की तरह हाथ रखकर तारीफ़या नहीं सकते?
    क्या करूँ मुझे कुछ आलोचना करने लायक़ दिखता ही नहीं।

    जवाब देंहटाएं
  11. "कठिन ब्‍लॉगिंग के हाफ बाल्‍ड प्रेत के लिए "

    फिलहाल इसे तारीफ़ समझने को तो मेरा दिल-दिमाग नहीं मानता. सीधा मतलब ये हुआ कि समझ से परे बे-सर पैर की ब्लॉग्गिंग करने वाला गंजा प्रेत!
    ये किस तरह के उपमान है? किस तरह की मोहबत्त नहायी समझ है?

    जवाब देंहटाएं
  12. हा हा
    बाकी सब तो ठीक है
    लेकिन यह एसोसिएशन का प्रेत लगता है लजाते हुए पीछा नहीं छोड़ रहा ब्लॉगिंग में :-)

    बी एस पाबला

    जवाब देंहटाएं
  13. इन्सपायर्ड हू इनसे.... कि जिस जगत मे हर दिन एक पोस्ट दिख जाती है जो टिप्प्णियो का रोना रोती है.. उस जहा मे ये यायावरी के मज़े लूट रहे है..

    जवाब देंहटाएं
  14. प्रमोदजी को पढने में वक्त लगता है कभी कभी तो बुकमार्क करके कई बार पढनी पडती है उनकी पोस्ट, लेकिन फ़िर भी उनकी गली छूटती नहीं है।
    उनके पाडकास्ट की बात रह गयी, जिस पर एक अलग ही चर्चा हो सकती है। जितनी बार सुनता हूँ उतनी ही तलब और बढ जाती है।

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत अच्छा रहा प्रमोद जी से यह परिचय । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  16. जिस दिन प्रमोदजी की पूरी पोस्ट एक ही बार में समझ में आ गयी उस दिन टिपिया आऊंगा. रीडर से निकलने और उनके कमेन्ट वाले बक्से तक जाते जाते लजाइये जाता हूँ हर बार.

    जवाब देंहटाएं
  17. कभी-कभी बहुत कठीन लगते है लेकिन हैं सचमे शानदार ब्लागर!और डा अनुराग की बात से मैं भी सहमत हूं पहले दस मे से एक्।

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत अच्छी चर्चा. प्रमोद जी का ब्लॉग पहली बार देखा. मसिजीवी जी का आभार.

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Google Analytics Alternative