और ये इरेज़र है...
शिवी का अगला सवाल था
इरेज़र क्या होता है,
मैंने कहा
जब लिखते वक्त कोई
गलती हो जाती है
तो इरेज़र से उसे मिटा देते हैं,
शिवी बोली- मिटाकर दिखाओ,
उसे दिखाने के लिए
पहले पन्ने पर आड़ी तिरछी लाइनें खींची
फिर उन्हें मिटा कर दिखाया
खुश हो गई शिवी, बहुत खुश
मैं मन ही मन सोच रहा था
मेरी लाड़ली
काश! तूझे जिंदगी में
इरेज़र की जरूरत ही ना पड़े
यहां ऊपर दी हुई बातचीत शिवेन्द्र-शिवी संवाद के अंश हैं जो आपके सामने कविता के रूप में पेश किये गये। ऊपर की फोटो शिवी की है जो कि अब दो साल 6 महीने की हो गई है,19 तारीख को उसका मुंडन हुआ है! शिवी के बारे में और अधिक जानकारी हम न दे पायेंगे काहे से कि हमको चर्चा करनी है! आपको जि्ज्ञासा हो तो आप यहां जाकर देख लीजिये-सवालों की बौछार हो रही है यहां!
आज बलिदान दिवस है। आज के ही दिन भगतसिंह और उनके साथियों को फ़ांसी दी गयी थी। इस अवसर पर कविताजी ने भगतसिंह और अन्य बलिदानी शहीदों से जुड़े ये दुर्लभ चित्र : जिन्हें देख कर आप अवश्य भावुक हो उठेंगे अपने ब्लॉग पर लगाये हैं!
पंकज समय ने भगत सिंह को याद करते हुये लिखा:
जिस उम्र में हम निरुद्देश्य घूमते हैं उस उम्र में उन्होंने फांसी के फंदे को चूम लिया. 23 मार्च 1931 को फांसी के समय वे केवल 24 साल के थे. उस समय वह गाँधी जी से भी ज्यादा लोकप्रिय थे और अपने समय के यूथ आइकोन थे. आज के फिल्म स्टारस से कहीं बडे. उन दिनों के युवा उन जैसे बनना चाहते थे.
भगतसिंह के काम करने के अंदाज के बारे में बताते हुये उन्होंने आगे लिखा:
भगत सिंह से हमारी पीढ़ी जो सीख सकती है उसमें सबसे खास बात यह है कि उन्होंने कुछ भी उत्तेजना में नहीं किया. उनके सब काम चाहे वह सांडरस की हत्या हो या एसैम्बली में बंब फेंकना, एक सोची समझी योजना का हिस्सा थे. वे एसैम्बली में बंब फेंक कर भाग सकते थे पर उन्होंने गिरफ्तार होना पसंद किया. उनका उद्देश्य था, कोर्ट की कार्यवाही को अपने विचार देश के युवाओं में फैलाने के माध्यम के रूप में प्रयोग करना.
मनोज गोयल ने भी इस मौके पर शहीदे आजम को नमन किया है।
दर्शन शाह ने भगतसिंह की पंक्तियां पेश की:उसे यह फ़िक्र है हरदम तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है
दहर से क्यों ख़फ़ा रहें,
चर्ख से क्यों ग़िला करें
सारा जहां अदु सही, आओ मुक़ाबला करें ।
तर्ज़-ए-ज़फ़ा = अन्याय दहर = दुनिया चर्ख = आसमान अदु = दुश्मनइसके बाद कवि भगतसिंह से गुफ़्तगू करने लगे:
ओ मेरे कवि !!
मैं तुझसे प्रभावित होना चाहता हूँ...
'तू' हो जाने की हद तक.
अनगिनत सवाल हैं भगतसिंह से पूछने के लिये दर्पण के पास वे पूछते हैं और आखिर में कहते हैं:
पूछना चाहता हूँ तुझसे और भी बहुत कुछ...
जैसे कि...
....
....
....
...चल छोड़ यार !
क़ाश तू जिंदा होता
अजीत मिश्र ने भगतसिंह के बारे में लिखी श्री चमन लाल जी का चिरस्मरणीय भगत सिंह के लेख पर टिप्पणी पेश कीं:
कोई दारु में मर गया, कोई ऐश्वर्या पर मर गया
कुछ राजनीति में पर गये कुछ बहस में मर गये
पैसे,धर्म के लिए कुछ आपस में लड़मर गये
देखते होगे भगत सिंह जब स्वर्ग से तो कहते होगें
सुखदेव हम भी किन सालों के लिए मर गये।
गौरैया दिवस के बहाने तमाम साथियों ने गौरैया को याद किया। डा.देवेन्द्र अपने लेख में गौरैया और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के लुप्त होते जाने के पीछे बाजार की भूमिका का जिक्र करते हुये लिखा:
गौरैया सिर्फ़ किसी पक्षी का नाम नही है, वे ढेर सारी चीजों, जो हमारे बीच से एक-एक कर गायब होती जा रही हैं, उनकी शक्ल, सूरत उनकी आदतें गौरैयों से मिलती-जुलती होती हैं। गाँवों की सबसे बड़ी त्रासदी है, चरागाहों और पोखरों के निशान मिट जाना। सिर्फ़ इसलिए नहीं कि अब वहाँ झुण्ड के झुण्ड बकरियां, गाय, भैंसे, नही दिखतीं। ये सब गाँव के सामुदायिक जीवन की रीढ़ थे। वहीं गौरैया फ़ुदकती थी। उनके सहवास और मैथुन की आदिम गंध से बंसत महकता था। धीरे-धीरे और एक-एक कर वहाँ से वे सारी चीजें, जो पेड़ों और चिड़ियों को आदमी से जोड़ती थी, विस्थापित होती जा रही हैं। विकास और सभ्यता ? के इस क्रूर दस्तक से डरी-सहमी गौरैया अब न तो कभी हमारी स्मृतियों में चहचाती है, न सपनों में फ़ुदकती है। ढेर सारी मरी हुई गौरैयों और परियों के पंख हमारे विकास पथ पर नुचे-खुचे, छितराये पड़े हैं। सभ्यता के तहखाने में बन्द हमारी उदासी हमारी सांसों में भरती जा रही है। शायद अब कभी इन मुड़ेरों पर गौरैया नही आयेगी।
भारत में नारीवाद की क्या आवश्यकता है??? में अपनी बात रखते हुये मुक्ति ने लिखा:
नारीवाद का मुख्य उद्देश्य है नारी की समस्याओं को दूर करना. आज हमारे समाज में भ्रूण-हत्या, लड़का-लड़की में भेद, दहेज, यौन शोषण, बलात्कार आदि ऐसी कई समस्याएँ हैं, जिनके लिये एक संगठित विचारधारा की ज़रूरत है. जिसके लिये आज लगभग हर शोध-संस्था में वूमेन-स्टडीज़ की शाखा खोली गयी है. नारी-सशक्तीकरण, वूमेन स्टडीज़, स्त्रीविमर्श इन सब के मूल में नारीवाद ही है
कोई आपसे कहे कि आप हिन्दी को रोमन में लिखा करें! हिन्दी जो कि हर तरह से एक वैज्ञानिक भाषा है को लिपि के लिये रोमन का मोहताज होना पड़े जिसमें लिखी जाने वाली अंग्रेजी में बहुत कुछ साइलेन्ट होता है या फ़िर लिखा कुछ जाता है, पढ़ा कुछ जाता है तो आपको कैसा लगेगा। सुलग जायेंगे या मारे खुशी के किलकने लगेंगे। आपकी बात आप जानें लेकिन इसी तरह के एक प्रस्ताव पर राजकिशोर जी का क्या सोचना है आप देखिये इधर-रोमन कथा वाया बाईपास अर्थात हिंदी पर एक और आक्रमण
आप कविता लिखना चाहते हैं लेकिन लिख नहीं पा रहे हैं। कोई बात नहीं आपके लिये कविता की रेसिपी तैयार है:
इस लोंदे में
मिश्रित करो
अपनी प्रेरणाओं का ख़मीर।
इसे खूब गूँदो
प्यार के पानी संग।
अब
इसकी लोई बनाओ।
इस काम में खर्च कर दो
अपनी पूरी ताकत।
अरे आप तो शुरु हो गये। चलिये देखिये कैसी बनती है कविता।
कुछ लिखना है लेकिन मन नहीं बन रहा इसलिए यह लिख दिया में गिरिजेश राव ने पोस्ट लिखने के बाद पोस्ट छपने के बाद से लेकर पहली टिप्पणी आने तक ही लेखक को यह सुविधा मिलनी चाहिए कि वह पोस्ट में परिवर्तन कर सके। उसके बाद नहीं। से शुरु करके कुछ बातें लिखीं। उन्होंने टिप्पणीकर्ता के लिये भी कुछ सुविधाओं के लिये विचार किया।
आप भी देखिये आपके भी कुछ विचार होंगे इस पर। वैसे जानकारी के लिये बतायें कि जब आज से चार पांच साल पहले
हमने लिखना शुरु किया था तब इस बारे में ब्लॉगिंग से संबंधित कुछ लोगों ने अपने विचार जाहिर करते हुये लिखा था कि जो कुछ नया जोड़ा जाये पोस्ट में उसको अलग तरह से (इटैलिक करके या अलग रंग के फ़ॉंट में) पेश किया जाये ताकि यह पता चल सके कि लेखक ने क्या नया जोड़ा।
टोपोलाजी अभिषेक का प्रिय विषय है शायद । आज इसी की शुरुआत के बारे में जानकारी देते हुये उन्होंने लेख लिखा है देखिये-कोनिसबर्ग के पुलों वाली पहेली और टोपोलोजी की शुरुआत लेख रोचक है। अब पहेली है तो उसके अंश क्या पढ़ायें आपको। वहीं उनके ब्लॉग पर चलियॆ।
इसी क्रम में हमारे पसंदीदा लेकिन बहुत कम लिखने वाले हिन्दीब्लॉगर की पोस्ट देखिये। यह पोस्ट उन्होंने पाई के 22 वें जन्मदिवस( जो कि प्रख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का भी जन्मदिन है) पर लिखी थी। इनके माध्यम से ही मुझे पता चला कि पाइ का 27 खरब अंकों वाला मान उपलब्ध है! लेकिन आप अगर पाई का मान याद रखना चाहते हैं तो उसका भी सरल तरीका है तो अंग्रेज़ी के इस वाक्य की सहायता लें- How I want a drink, alcoholic of course, after the heavy lectures involving quantum mechanics! इस वाक्य के हर शब्द के अक्षर का नंबर लिखें जैसे How-3, I-1, Want-4 और इसी तरह आगे. ऐसे में जो नंबर बनेगा उसमें बायें से एक अंक के बाद दशमलव लगाने पर Pi का मान आएगा:- 3.14159265358979
समीरलाल बिखरे भाव समेटते हुये लिखते हैं:
बगिया बगिया घूम के देखा
फूल तोड़ना सख्त मना है..
कांटो की रक्षा की खातिर
कभी न कोई नियम बना है.
नेहरूजी और सिगरेट में देखिये बजरिये दीपक गर्ग एक फोटो जिसमें नेहरूजी के होंठों के बीच सिगरेट है लेकिन सिगरेट वाला विज्ञापन नदारद है- सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।
एक लाईना
- जला है कोई और मैं आग लगाने लगा हूँ :अब भाई लोकाचार में इतना तो करना ही पड़ता है!
- मेरी बीवी….उसकी बीवी :अलग-अलग हैं भाई!
- काम का प्रतिफल मिलने की खुशी :हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
- देवी कैटरीना की स्तुति में कविराज अक्षय की रचना की संदर्भ सहित व्याख्या...खुशदीप :पुस्तक प्रकाशन, नोयडा कृपया किताब के लिये आर्डर बुक करायें!
- कॉलर को थोड़ा ऊपर चढ़ा के ....सिगरेट के धुएं का छल्ला बनाके :लिख भाई कविता ...इधर की बात उधर सटा के
- द्रविड़ की दीनता या दिलेरी :बूझो तो जानें
- नरक को भी चाहिए नायक!! :अपनी उम्मीदवारी का पर्चा भेजिये
- ये डीज़ल लगा-लगा कर थक़ गया आज तक़ किसी ने पलट कर देखा तक़ नही,सोचता हूं अब पर्फ़्यूम बदल ही लूं,ऐक्स इफ़ेक्ट कैसा रहेगा? :अभी तक किसी ने पलट के नहीं देखा एक्स इफ़ेक्ट के बाद देख के पलट लेंगी
- बाप का जूता..... :अदा जी की पोस्ट पर
- दुनिया की कुछ सबसे पहली और सफल इंटरनेट कंपनियों को शुरू करने में मददगार डॉटकॉम :की सिल्वर जुबली मनी आज! अरे आज नहीं भाई 15 मार्च को मन चुकी देखते भी नहीं ठीक से लिखने के पहले!
- स्त्री की भिन्नता का आख्यान :के टीकाकार हैं श्री जगदीश्वर प्रसाद चतुर्वेदी
- भारत में नारीवाद की क्या आवश्यकता है??? :अरे बहस-मुबाहिसे के लिये कुछ तो होना चाहिये भाई!
- रोमन कथा वाया बाईपास अर्थात हिंदी पर एक और आक्रमण :आक्रमण में सहयोगी की भूमिका निभाई है एक हिन्दी देवक ने
- पहाड़ की औरतें उदास सी लगती हैं :तीस की उम्र में पचास की लगती हैं
- बबूल और बांस: लेकर पधारे हैं ज्ञानजी
- समेटना बिखरे भावों का- भाग १: भाग लो!
और अंत में
हिंदी में सुमन जी nice गोली बांटते रहते हैं। गोली छोटी है और सबको बराबर मिलती रहती है। समीर जी आजकल बड़ी पुड़िया बांट रहे हैं इसका भी असर जोरदार है वे बताते हैं:
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
ज्ञानजी ने एक अपनी एक पोस्ट में इसी तरह के हिन्दी को बढ़ावा देने वाली समीरजी की टिप्पणी को प्रकाशित करके कमेंट बन्द कर दिये थे क्योंकि उनको हिन्दी ब्लॉगरी को बढ़ावा देने का श्री समीरलाल का अभियानात्मक प्रवचन पसन्द नहीं आया था। कल की पोस्ट में ज्ञानजी ऐसा नहीं कर पाये। इससे हिन्दी की बढ़ती ताकत का अंदाजा लगता है। हिंदी प्रचार अभियान पर किसी किसिम की बंदिश बहुत दिन तक नहीं लगाई जा सकती।
कल एक लाईना पेश करते-करते भी नहीं कर पाये। आज इसीलिये कोई वायदा नहीं।
आपका दिन झकास बीते। खुश रहें ,मस्त रहें। और सब तो चलता ही रहता है।
रोचक चर्चा ! अभी उपस्तिथि दर्ज करुँगी आराम से पढने बाद में आती हूँ
जवाब देंहटाएंहा हा.. बहुत बढिया चर्चा.. कविता जी का लिन्क कल ही देखा था..उन्होने बडी ही दुर्लभ फ़ोटोस मुहैया करवायी है..
जवाब देंहटाएंसुमन जी को मैने कई ब्लाग पर 'very nice' लिखते हुए भी पाया है, इससे उन पर discrimination का आरोप लगाया जा सकता है.. :)
अभी तक किसी ने पलट के नहीं देखा
जवाब देंहटाएंएक्स इफ़ेक्ट के बाद देख के पलट लेंगी
बहुत खूब। आपका भी दिन झकास बीते। खुश रहें ,मस्त रहें। और सब तो चलता ही रहेगा।
बहुत सुन्दर चर्चा ... विशेष कर पाई वाली... बांकी कुछ लिंक देखता हूँ ... शुक्रिया..
जवाब देंहटाएंमेरी पुस्तक की प्रस्तावना गुरुदेव समीर लाल समीर लिखेंगे और विमोचन महागुरुदेव अनूप शुक्ल करेंगे....चर्चा हमेशा की तरह अनूप ...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
एक्स इफ़ेक्ट के बाद देख के पलट लेंगी खासा पसंद आया
जवाब देंहटाएंएक मामूली सा तकनीकी सुधार हो जाए:
डॉटकॉम की सिल्वर जुबली आज नहीं मनी
बल्कि
15 मार्च को मनाई जा चुकी
बी एस पाबला
@पाबलाजी, शुक्रिया गलती बताने के लिये। सुधार कर दिया।
जवाब देंहटाएंआपकी तो स्टाइल ही है अलग. अच्छी चर्चा. पर दो-एक दिन से आपकी पसन्द नहीं दिख रही है. हमें तो सबसे ज्यादा वही पसन्द आती है.
जवाब देंहटाएंशहीदी दिवस पर शहीदों को नमन !!!
आज चर्चा की चुटकियाँ काफी मजेदार लगी......
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा हमेशा की तरह..
जवाब देंहटाएंबढ़िया रही आज की चिट्ठा चर्चा!
जवाब देंहटाएंहिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
जवाब देंहटाएंआपका कण्ट्रीब्यूशन इतना हाई है कि टिप्पणी न भी करें तो चलेगा।
यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसधन्यवाद ।
अच्छा लिंक-अच्छी चर्चा.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा । आभार ।
जवाब देंहटाएंहिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
जवाब देंहटाएंआया था यह बताने कि यह इस मंच की 1,111 वीं पोस्ट है!
पर यह भी बता दूँ
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
अच्छी चर्चा. अच्छे लिंक. डॉ. देवेन्द्र का आलेख सचमुच बहुत अच्छा है.
जवाब देंहटाएंशहीदों को विनम्र श्रद्धान्जलि.
बढ़िया !
जवाब देंहटाएं'हम भी किन सालो के लिए मर गए'. ये लाइन बढ़िया लगी.
चर्चा भली लगी है.........!
जवाब देंहटाएं"जीवन में इतनी गलतियाँ न करो कि पेंसिल से पहले रबड़ ( इरेजर ) घिस जाये "...:-)
जवाब देंहटाएंअब का कहें आपसे...
जवाब देंहटाएंचिट्ठों की चर्चा करना तलवार की धार पर चलना है ...
लेकिन एक वीर बांकुड़े आप भी तो हैं...जो शहीद होने को तैयार रहते हैं...
हाँ नहीं तो...!!