आजकल रोज कोई न कोई दिवस हो जाता है। आज विश्व जल दिवस है। कल कविता दिवस निकल गया। इसके पहले पहला विश्व गौरैया दिवस मनाया गया। सबसे पहले बात आज की जाये। विश्व जल दिवस के मौके पर सचिन मिश्र ने पानी बचाने का आवाहन करते हुये पानी रिचार्ज करने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने रोजमर्रा के कार्यकलापों में होने वाले पानी के अपव्यय का विववण दिया जिए बचाया जा सकता है:-
स्नान करने के क्रम में लगातार झरना बहाने से नब्बे लीटर पानी बहता है। साबुन लगाते समय झरना बंद कर देने से सत्तर लीटर पानी बचाया जा सकता है।
-ब्रश करते समय चलता हुआ नल पांच मिनट में पैंतासील लीटर पानी बहाता है। मग का इस्तेमाल कर 44.5 लीटर पानी की बचत की जा सकती है।
- हाथ धोने के दौरान खुला नल दो मिनट में 18 लीटर पानी बहाता है। हाथ धोने में मग के इस्तेमाल से 17.75 लीटर पानी बचाया जा सकता है।
- शेविंग के वक्त बहता हुआ नल दो मिनट में 18 लीटर पानी बहाता है। मग से शेविंग कर 16 लीटर पानी की बर्बादी रोकी जा सकती है।
सोनल रस्तोगी ने इसी बात को पानी से संबंधित कुछ मुहावरे पेश करते इस अंदाज में कहा:
अभी तो ये पानी क्या क्या रंग दिखाएगा
पानी ही नहीं होगा जो बंधू
तू कैसे धोएगा और कैसे नहायेगा
इसके पहले विश्वगौरैया दिवस पर आई पोस्टों में अधिकतर लोगों ने गौरैया के साथ जुड़ी अपनी यादों के बारे में बताते हुये गौरैया की कम होती संख्या पर चिंता करते हुये पोस्टें लिखीं हैं। देखिये:
नित्या शेफ़ाली गौरैया कविता में लिखती हैं:
रोज सुबह आती गौरैया
गीत नये गाती गौरैया
उठ जाओ तुम नित्या रानी
कह के मुझे जगाती गौरैया।
चीं चीं चूं चूं मीठी बोली
दाना मांग रही गौरैया
अम्मा जल्दी दे दो चावल
भूखी है प्यारी गौरैया।
हेमंत कुमार गौरैया को वापस लौट आने का आवाह्न करते हैं इस वायदे के साथ
लौट आओ फ़िर से हमारे
आंगन और खपरैलों पर
मैं तुम्हें कर रहा हूं आश्वस्त
अब नहीं कहेंगी मां तुम्हें कभी
ढीठ गौरैया
नहीं रंगेंगे पिताजी
तुम्हारे कोमल पंखों को
गुलाबी रंग से
नहीं डांटेगा
तुम्हें कोई भी
शैतान गौरैया कहकर।
हेमंत जी का एक कविता संग्रह है-“बया आज उदास है”! लेकिन बात यह है कि जब हम पक्षियों को देखेंगे ही नहीं तो उसकी उदासी को कैसे महसूस करेंगे! यही शायद कृष्ण कुमार यादव की चिंता है:
प्रकृति को
निहारना तो दूर
हर कुछ इण्टरनेट पर ही
खंगालना चाहते हैं।
आखिर
इन सबके बीच
गौरैया कहाँ से आयेगी ?
लेकिन मनोज मिश्र ऐसे नहीं हैं। उनका गौरैया का साथ लगातार बना हुआ है। मनोज लिखते हैं:
मुझे अपने पर बड़ा गर्व भी हो रहा था वह इसलिए कि बचपन से अब तक, मेरे घर में एक साथ विभिन जगहों पर एक-दो-तीन नहीं बल्कि कई दर्जन गौरैया रह रहीं हैं.जब से जाननें-समझनें की समझ विकसित हुई तब से अपनी भोजन की थालियों के आस-पास उन्हें मंडराते देखा है. अभी -अभी शाम को मैंने इनकी गिनती की ,अभी भी ये १४ की संख्या में घर में हैं.हम सब के यहाँ परम्परा से, एक लोक मत इस चिड़िया को लेकर है वह यह कि -जिस घर में इनका वास होता है वहाँ बीमारी और दरिद्रता दोनों दूर-दूर तक नहीं आते और जब विपत्ति आनी होती है तो ये अपना बसेरा उस घर से छोड़ देती है
सलीम खान के लेख का शीर्षक ही सब कुछ बता देता है कि उन्होंने क्या लिखा है! शीर्षक देखिये-जब 'गौरैया' ने हमारे घर में घोंसला बनाया था, ऐसा लगा मानो घर में कोई मेहमान आया था: "विश्व गौरैया दिवस" पर विशेष अब बाकी का किस्सा उनकी पोस्ट पर देखिये। वहां गौरैया के फ़ोटो भी हैं। वैसे फ़ोटो तो मनोज मिश्र की पोस्ट पर भी देखने वाले हैं।
गिरीश पंकज लिखते हैं :
आँगन में जब आती चिड़िया
मेरे मन को भाती चिड़िया
मै उससे बातें करता हूँ,
मुझसे भी बतियाती चिड़िया
बड़े प्रेम से चुन-चुन कर के,
इक-इक दाने खाती चिड़िया
जल, छाँव और मुझे बचाओ
हरदम यह बतलाती चिड़िया
जल, छांव और मुझे बचाओ मतलब जल, पेड़ और गौरैया। जब ये बचेंगे तब ही मानव बचेगा।
पूजा अग्रवाल ने भी गौरैया के बारे में बताया और उसको बचाने का आवाहन किया। यहां बालसभा में गौरैया की चिंता के बारे में बताया गया है। देखिये।
पूनम श्रीवास्तव गौरैया के दर्द को इस तरह बयान करती हैं:
रोज बाग में आती थी गौरैया
इक इक दाना चुगती थी
दाने अपने मुख में भरकर
बच्चों का पेट वो भरती सारे।
अब गौरैया बैठी दीवारों पर
ले बच्चों को बिलख रही
जाऊं तो जाऊं कहां
छोड़ के बच्चे प्यारे प्यारे।
अम्बरीश श्रीवास्तव भी गौरैया के लुप्त होते जाने से चिंतित हैं और आज के परिवेश में एक प्रश्न सभी से पूछते हैं!
अपनी एक पुरानी कविता को गौरैया के बहाने ठेलते हुये अनूप शुक्ल गौरैया के माध्यम से समाज में महिलाओं की स्थिति के बारे में लिखते हैं :
कभी-कभी मुनिया गौरैया से कहती होगी -
अम्मा ये दरवाजा खुला है,
आओ इससे बाहर निकल चलें,
खुले आसमान में जी भर उड़ें।
इस पर गौरैया उसे,
झपटकर डपट देती होगी-
खबरदार, जो ऐसा फिर कभी सोचा,
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।
इसकी देखा-देखी विवेक ने भी कविता लिख मारी दस मिनट में:
दिन यह तेरे नाम कर दिया
बहुत बड़ा यह काम कर दिया
तुझको आज सलाम कर दिया
पंख जरा फैला गौरैया
एक बार फिर आ गौरैया
तेरी बहुत याद आती है
यूँ तो रूठ न जा गौरैया
पाखी गौरैया से जुड़ी अपनी यादों को ताजा करते हुये बताती हैं :
मुझे गौरैया बहुत अच्छी लगती है। उसकी चूं-चूं मुझे खूब भाती है. कानपुर में थी तो हमारे लान में गौरैया आती थीं. उन्हें मैं ढेर सारे दाने खिलाती थी. दाने खाकर वे खुश हो जातीं और फुर्र से उड़ जातीं. हमारे लान में एक पुराना सा बरगद का पेड़ था, उस पर गौरैया व तोते खूब उधम मचाते. वहीँ एक बिल्ली भी थी, वह हमेशा उन्हें खाने की फ़िराक में रहती. उस बिल्ली को देखते ही मैं डंडे से मारने दौड़ती.
संजीव तिवारी इस मौके पर सवाल करते हैं-तेजी से कांक्रीटमय होती शहरी धरती में कहीं कोई पेड भी है जिसे मैंनें लगाया है.
साधना वैद इस मौके पर कविता लिखती हैं:
रंग बिरंगे तेरे डैने मेरे मन को भाते हैं ,
मैं भी तेरी तरह उड़ूँ ये सपने मुझको आते हैं ,
आसमान में अपने संग मुझको भी लेकर उड़ जा तू !
प्यारी चूँ-चूँ आ जा तू भोली चूँ-चूँ आ जा तू !
सबका दिल बहला जा तू नन्हीं चूँ-चूँ आ जा तू !
राजेश भारती अपने बीते समय को याद करते हैं:
गर्मियों की छुट्टियों में जब मैं अपनी नानी के गांव जाता था, तो वहां पर भी गौरेया का झुंड सुबह से ही चहचहाने लगता था। ऐसा लगता था जैसे कि मानों संगीत की मधुर धुनें बज रही हैं, जिन्हें प्रकृति अपने हाथों से सारेगामापा का स्वर दे रही है। जब भी मैं स्कूल से लौटकर घर आता था, तो अक्सर मेरी पहली मुलाकात मेरे घर के पेड़ पर रहने वालीं गौरेया और गिलहरियों से होती थी। गिलहरियों को हम सब (मेरे घर से सदस्य) गिल्लो कहकर बुलाते थे। एक आवाज़ पर ही सभी गिल्लो चीं...चीं...चीं... करती हुईं पेड़ से उतरकर नीचे आ जाती थीं और हमारे साथ बैठकर खाना खाती थीं। मेरी गली के लोग भी कहते थे, 'आपके द्वारा पाली गईं गिलहरियों को देखकर विश्वास नहीं होता कि ये लोगों से इतनी घुलमिल सकती हैं।'
नवीन की तमाम यादें और कुछ चिंतायें हैं:
अब यह सब सिर्फ यादों में है। मेरे बच्चे गौरैया को नहीं पहचानते। उनके बचपन में गौरैया का खेल और चहचहाना शामिल नहीं रहा। नीची छतों और आंगन विहीन घरों में गौरैया नहीं आती। बहुमंजिला अपार्टमेण्ट्स के आधुनिक फ्लैटों में गौरैया की जगह नहीं और इन फ्लैटों के बिना हमारा ‘विकास’ नहीं।
गौरैया को बचाने की, घरों में उसे लौटा लाने की नेक और मासूम पहल का साधुवाद। लेकिन गौरैया की चीं-चीं-चीं किस खिड़की, किस रोशनदान, किस आंगन और किसी धन्नी से हमारे घर में लौटेगी?
देवेंद्र मेवाड़ी जी गौरैया के बारे में लिखने बैठे लेकिन देखिये गौरैया उनके सामनेक्या कर गयीं :
लो, इतनी देर में देखते ही देखते दो गौरेयां सूखी मिट्टी भरे मेरे गमले में धूल-स्नान भी कर गईं। चुपके से मुझे लिखते हुए देखा। देखा, मुझसे कोई खतरा नहीं है। गौरेया आई, गमले में उतरी और बीच-बीच में सिर उठा कर देखते हुए जम कर धूल-स्नान कर गई। वह हलके भूरे रंग की मादा थी। शायद उसी ने बताया हो, उसके बाद नर गौरेया आ गई। सिर, चौंच से लेकर छाती तक काली। भूरी पीठ पर काली लकीरें। उसने भी पहले भांपा, फिर गमले में उतर कर धूल-स्नान कर लिया।
देवेंद्र जी के दोनों लेख बहुत सुन्दर हैं देखियेगा। अब जब हमारे यहां गौरैया दिवस मनाया जायेगा तो भला पड़ोस कैसे अछूता रहेगा इससे। सो पड़ोसी
देश पाकिस्तान में भी मनाया गया यह दिवस। देखिये काजल कुमार की कार्टून रपट बगल में नत्थी है।
नवीन जोशी के इस फोटो को गूगल अर्थ के लिये सुना गया है! बधाई! पोस्ट की शुरुआत का फोटू यही है।
एक लाईना
- रीठेल : हमारी छुट्टी का विवरण :ले झेल
- वक़्त वक़्त की बात है :अब अध्यापक शिक्षक कम और कस्टमर केयर के डेस्क पर बैठे ज्यादा लगते हैं
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और अंत में
फ़िलहाल इतना ही। एक लाईना अभी जुड़ते रहेंगे शाम तक। आइये पलट के देखने।
आपको आजका दिन मुबारक। आपका हफ़्ता झकास शुरू हो।
ye kya hua? ek laaina ke intzaar me...
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट है. मुझे बड़ी खुशी होती है कि मैं दिल्ली के जिस मोहल्ले में रहती हूँ, वहाँ आज भी बहुत सी गौरैया हैं. पार्क के एक पेड़ पर तो शाम को इतना शोर मचाती हैं कि पूछो मत. यहाँ कौवे भी हैं और कबूतर तो इतने ज्यादा हैं कि उनकी छिछी से हम परेशान हो जाते हैं, पर उनका रहना अच्छा लगता है. यहाँ कई लोग अपने घरों के बाहर मिट्टी के छिछले बर्तन में पक्षियों के लिये पानी भर कर रखते हैं और सुबह-सुबह पार्कों में दाने डालते हैं... महानगर में भी इन्सान ही बसते हैं न, बस जगह की कमी से परेशान रहते हैं.
जवाब देंहटाएंऔर हाँ, मेरे पिताजी ने बचपन में पानी बर्बाद करने की ऐसी सज़ा दी थी हमें कि हम तभी से उन बातों का बहुत ध्यान रखते हैं, जिनका सचिन मिश्र ने जिक्र किया है. यहाँ दिल्ली के लोग पानी बहुत बर्बाद करते हैं और वो भी कार और घर धोने में. बड़ा गुस्सा आता है, तब मुझे.
रिक्तियां स्वयं भरने की सुविधा उपलब्ध करवाई गई है क्या ?
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा की.....
जवाब देंहटाएंलेकिन मेरी एक व्यक्तिगत शिकायत रह गयी है.....
आपने मेरे चिट्ठे को भी चर्चा में शामिल कर लेते ....
...........
विश्व गौरैया दिवस-- गौरैया...तुम मत आना...(कविता).
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_20.html
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जवाब देंहटाएं'fill in the blanks' खुद ही करने है क्या? :P
जवाब देंहटाएंदिवसों का यही फायदा है की एक ही दिन में अच्छा-खासा ज्ञानार्जन हो जाता है. शानदार चर्चा की बधाई. मेरे ब्लॉग "शब्द सृजन की ओर" की चर्चा के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबबूल और बांस के झुरमुट में खोंथा नहीं लगाती गौरैया!
जवाब देंहटाएंगौरैया दिवस की लगभग सभी रचनाये पढ़ी थी ,जो छुट गई थी वो यहाँ मिल गई ... बेहतरीन चर्चा
जवाब देंहटाएंएक लाइना का इंतज़ार रहेगा ....
मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद
विश्व जल दिवस...नंगा नहायेगा क्या...और निचोड़ेगा क्या ?...
जवाब देंहटाएंलड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_22.html
सादर अभिवादन! सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंआजकल रोज कोई न कोई दिवस हो जाता है।
जवाब देंहटाएंदिवस आजकल ही नहीं हमेशा से ही होता आया है । जब जब रात्रि जाती है, दिवस को आना ही है ।
बढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंsundar charcha ...abhaar
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और ज्ञानवर्धक चर्चा,कई नये लिंक मिले,धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआजकल दिवसों का फैशन चल रहा है. चिट्ठों से जुड़े कोई दिवस नहीं है क्या? संभव है किसी ने बना डाला हो और हमें पता न हो...
जवाब देंहटाएंSUNDAR CHARCHA.
जवाब देंहटाएंYAHA BHI JAYENhttp://parthdot.blogspot.com/2010/03/blog-post.html
सुन्दर-सुन्दर कविताओं से सजी खूबसूरत, गौरैया सी चर्चा. लेकिन इस अधूरे एक लाइना को देख-देख के दिल बैठा जा रहा है...( पता नहीं वहां कौन चस्पां होने वाला है!)
जवाब देंहटाएंएक लाईना कहाँ है? अभी तक नहीं आया??
जवाब देंहटाएंभाई अनूप जी ,बहुत अच्छा लगा ---आपने मेरे चिट्ठे को चर्चा में शामिल किया। लेकिन एक गड़बड़ हो गयी है कि फ़ुलबगिया ब्लाग पर प्रकाशित कविता मेरी बेटी नित्या शेफ़ालीने लिखी है ---उसकी शिकायत यह है कि अनूप अंकल ने चर्चा में उसका नाम शामिल नहीं किया---शुभकामनाओं के साथ।
जवाब देंहटाएंहेमंत जी,गड़बड़ी सही कर दी। नित्या शेफ़ाली बिटिया को सॉरी बोल रहे हैं। इस गड़बड़ी की भरपाई नित्या की सब कविताओं का जिक्र करके करने का प्रयास करेंगे।
जवाब देंहटाएंchittha charcha par apni kavita dekhkar bahut acha laga.... meri rachna dalne ke liye dhanyawad...
जवाब देंहटाएंpoonam
आज का प्रायोजित कार्यक्रम ऐसा लगा जैसे विविधभारती का रंगा-रंग पीरोग्राम हो...
जवाब देंहटाएंवाह....खबसूरत है..
हाँ नहीं तो..!!
बहुत बढ़िया, उद्देश्यपूर्ण चर्चा! मेरी फोटो को सबसे ऊपर स्थान देने के लिए शुक्रिया. इस फोटो को अंतर राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है.
जवाब देंहटाएं