हमारी सबेरे की महिला दिवस पर केंद्रित चिट्ठों की ही चर्चा का प्रभाव था शायद कि राज्य सभा में महिला आरक्षण बिल धक्काड़े से पास हो गया। मुझे कोई राजनीतिक समझ नहीं है इस मामले में कि इस बिल के राजनैतिक मतलब क्या होंगे लेकिन मुझे बहुत खुशी है इस बिल के पास होने पर और लगता है कि जो इसका विरोध कर रहे हैं वे समय के चक्र को रोकने का प्रयास कर रहे हैं और शायद अपनी मुंह की ही खायेंगे।
आज ही एक महिला पाइलटों का एक दल भारत से न्यूयार्क हवाई जहाज उड़ाकर ले गया है। टेलीविजन पर महिला पायलटों के आत्मविश्वास पूर्ण चेहरे देखकर खुशी हुई।
चलिये इसी खुशी में पेशे खिदमत हैं चंद एकलाईना। मजा न आये तो दुबारा बांचियेगा। ठीक है न!
- और रत्नाकर का ह्रदय परिवर्तन हो गया : और पुराना हृदय रत्नाकर ने आनलाइन नीलामी के लिये अपलोड कर दिया।
- व्यंग्यकार को विचारों से क्रांतिकारी भी होना चाहिए :एक हाथ में विचार की तोप और दूसरे में धिक्कार का गुम्मा भी रखना चाहिये!
- हे भगवान ! हमें मोटी होने का हक दो !: आखिर हमारा भी तो अपने शरीर का अपने पति की अकल से मैच कराने का मन करता है।
- मैं गर न टूटूं .... :तो थोड़ा और मेहनत करना जी! आलसियों की तरह रुक न जाना।
- मीठा मीठा गप्प, कड़वा कड़वा थू : यही तो अवसरवादियों की अदा है बू हू हू हू!!!
- ...मुझसे बोलो तो प्यार से बोलो :सीधे-सीधे काहे नहीं कहते कि बात मत करो!
- स्त्री-विमर्श के लिए वास्तविक-विषय वस्तु को खोजें इस चर्चा में :सबसे पहले खोजने वाले का पॉडकास्ट लौटती पोस्ट में!
- बंद करो घर के अन्दर यह ... :...और हिम्मत हो तो निकल के आ जाओ बाहर!
- इन्हें स्वामी, संत या बाबा कहकर धर्म को बदनाम न करें : वर्ना किसी दिन धर्म अदालती नोटिस भेजेगा, भागते रह जाओगे!
- जिनका दिल टूट जाये उन्हे जनरल नॉलेज की क्या ज़रूरत : वो सीधे जाकर जनरल वार्ड में भर्ती हो जायें, ईसीजी करायें!
- मूर्तिभंजक शिल्पकारों का देश :हाथ पर हाथ धरे, चुप ही बैठे हैं ब्लागेश!!
- मंथन जारी हैं शेष फिर कभी : महिला बिल पास होने के बाद!
- डूमेन ले लो डूमेन….एकदम सस्ता है बाउजी… :लेकर फ़िर भले नीलाम कर देना!
- बिन माई-बाप के दो साल से टिकी इस हॉकी टीम को देखिए और समझिए ! : इसके बाद नये सिरे से धिक्कारने लगिये कोई रोक थोड़ी लगी है!
- तस्लीमा, रुश्दी और फिदा हुसैन : एक गैंग में शामिल हैं का?
- आँखों को धोखा देने वाले वालपेपर्स : आंख बंद करके देखें का?
- “तू निर्बंध सारी धरती पर घूम सके, अपने दिवाने को चूम सके” : इसके लिये कोलगेट मंजन से दांत चमकाना जरूरी है।
- 'सवर्णों' का देश है 'भारत'! :जिसमें एक कठफ़ोड़वा भी रहता है!
- वे बिस्तर में पड़ी हैं, पड़ी रहें:इनकी खटिया तो खड़ी थी ही, बिस्तर भी गोल हो गया!
- ब्लागवाणी नहीं खुल रहा, अस्थाई आलेख :की वजह से ही न!
- हमारी क़िताबों में हमारी औरतें : भी न आरक्षण मांगने लगें यार!
टिप्पणी/प्रतिटिप्पणी
टिप्पणी:प्यार आधार है इस जीवन का
प्यार नफरत में देगा शीतलता
प्यार को यदि समझ ले दुनिया,
तो कोई भी गैर सा नहीं लगता !!
सतीश सक्सेना
प्रतिटिप्पणी:कविता के लिये शुक्रिया सतीश जी, लेकिन ई बात बताइये कि जब प्यार आधार है जीवन का तो ये नफ़रत किधर से आ गई। क्या मिलावटी खोये की तरह प्यार की भी दो-नंबरी सप्लाई होने लगी?
टिप्पणी:गुरुवर अज़दक ने अपनी पोस्ट पर लिखा है .......वही चस्पा कर रहा हूँ ....‘
तुम जानते तुम इतने आसान नहीं, फिर कितना तो सब आसान हो जाता!’
सारी मुश्किलों का सबब यही है .....
डा.अनुराग आर्य
प्रतिटिप्पणी:अजदक जी को गुरू बना लिये? कब? क्या आप भी पटकनी खाये दिखोगे? ऐसा मत करो भाई!
टिप्पणी:ब्लॉग जगत जबरदस्त ढंग से महिलामय हो गया है...जहाँ तहां सब खाली महिलाओं के बारे में ही सोचने में लगे हुए हैं...हमें तो बहुतै आनंद आ रहा है सब देख दूख कर...
बढ़िया चर्चा की आपने....जाते हैं लिंक पकड़ पकड़ के विस्तार टटोलने...रंजना सिंह
प्रतिटिप्पणी:ब्लाग महिलामय होने में सोचने की कौन बात है जी? ये तो आनंद की ही बात है। और जो लिंक टटोलकर गयी थीं आप उनको पकड़कर ही लौट आइये। देखिये एक लाईना लिखे हैं। आइये बांचिये।
टिप्पणी:वाह!!!! चर्चा का शीर्षक बहुत-बहुत सुन्दर है. चर्चा तो सुन्दर है ही, हमेशा की तरह. ये अलग बात है कि इस चर्चा में मेरा लिंक शामिल है सो ज़्यादा अच्छी लग रही है :)मीनू जी की कविता केवल कविता नहीं, वरन एक शाश्वत प्रश्न है. वंदना अवस्थी दुबे
प्रतिटिप्पणी:...और इस शाश्वत प्रश्न के उत्तर कौन किताब में मिलेंगे?
टिप्पणी:कभी-कभी मैं चिट्ठाचर्चा बगैर लेखक का नाम पढ़े ही पढ़ जाती हूँ, प दो-तीन लाइन पढ़ने के बाद ही पता चल जाता है कि यह आपने लिखी है. ये आपकी स्टाइल है.मुक्ति
प्रतिटिप्पणी:अरे वाह! आपकी नजर बड़ी पारखी है। वर्ना कुछ लोग तो हर पोस्ट में पूछने हैं--आज की चर्चा किसकी है? अब हम ठाठ से कह सकते हैं- इहै हमार इस्टाईल बा! है न!
टिप्पणी:लतगर्द हो गया संसद में महिला दिवस! कौन ब्लॉगर हैं जो हुये होंगे प्रसन्न!? ज्ञानदत्त पाण्डेय
प्रतिटिप्पणी: अरे ज्ञानजी कल जो लतगर्दी किये थे उनको आज वर्दी वाले उठा के फ़ेंक दिये बाहर - चिरकुट बेनामी टिप्पणी की तरह। अब तो बिल पास हो गया। आगे भी होइऐ जायेगा देखियेगा।
टिप्पणीबहुत धन्यवाद अनूप जी. सम्मानित महसूस करती हूँ जब आप जैसे सम्वेदनशील साहित्यकार की लेखनी मेरी भी रचना का उल्लेख करती है.साहित्य में घुसपैठ करती, एक भौतिक विज्ञानी के लिए इससे सुखद और क्या होगा? सरिता जी की रचना मर्मस्पर्शी है. शुभकामनाएँ.मीनू खरे
प्रतिटिप्पणीमीनूजी, मैं कोई साहित्यकार नहीं हूं। बस एक पाठक की हैसियत से रचना अच्छी लगी सो पसंद बन गयी। सरिता शर्मा जी की यह कविता कभी पॉडकास्ट करके आपको सुनवाऊंगा। बहुत अच्छी लगेगी कविता उनकी आवाज में सुनने से।
टिप्पणीअहा.. बहुत सारे लिंक एक साथ सहेज दिये, घंटों का इंतजाम हो गया.. विस्तृत चर्चा..!
वैसे हुआ तो और भी बहुत कुछ है महिला दिवस पर!! कार्तिकेय मिश्र
प्रतिटिप्पणीक्या बहुत कुछ हो गया महिला दिवस में? वो वाली बात हो गयी? बताओ भी या खाली टिपियाते ही रहोगे?
टिप्पणीअरे अनूप जी, जब कभी भी हम वाणी का गला दबावेंगे तो ..हाँ , नहीं, पता नहीं...का संशय थोड़े ही न होगा.....उ हो बस हा हा हा हा ..ही होगा ...
बाकी चर्चा जोरदार रही है....और होली बीत गई है तो का हुआ ...फिकिर नॉट...जो होगा देखा जाएगा....हाँ नहीं तो...!!! अदा
प्रतिटिप्पणीअभी लेटेस्ट किसका गला है हाथ में जरा अपडेट कीजियेगा अदा जी?
टिप्पणी:अगर आप हिंदी साहित्य की दुर्लभ पुस्तकें जैसे उपन्यास, कहानी-संग्रह, कविता-संग्रह, निबंध इत्यादि डाउनलोड नहीं करना चाहते है तो कृपया मानसिक हलचल पर पधारें । ज्ञानदत्त पाण्डेय
प्रतिटिप्पणी:क्या मानसिक हलचल पर कोई साफ़्टवेयर काम नहीं करता?
टिप्पणी:@ इसी यात्रा के दौरान वे ज्ञानजी और गिरिजेश राव से भी मिले और उनको भला आदमी बता दिया। होली का मौका है कोई किसी को कुछ भी कह सकता है।
गुरुजी, तनिक दायें बायें ताक के! होली बीते जमा छः दिन हो गये, अब कोई भी मानहानि का दावा कर सकता है। कार्तिकेय मिश्र
प्रतिटिप्पणी:अरे भाई यहां कल तक रंग खेला गया है। मानहानि होली में भी होने लगी? घोर कलयुग!
टिप्पणी:सार्थक चर्चा। खासकर मनमोहन सिंह वाला कार्टून बहुत पसंद आया, आप कह रहे हैं कि इसे डूबे जी ने बनाया है। डूबे जी?…॥:)
कविता जी की कविता में खुद को देख पा रहे हैं। सरिता जी की मौजूं कविता भी बहुत भायी। विनीत जी की बात विचारणीय है। सबसे ज्यादा मन छुआ सतीश सक्सेना जी की कविता ने,इस कविता को हम पहले भी उनके ब्लोग पर पढ़ चुके हैं पर आज फ़िर से पढ़ना अच्छा लगा। अनीता कुमार
प्रतिटिप्पणी:शुक्रिया! देखिये हमने सतीश सक्सेना जी की कविता पहले कभी नहीं पढ़ी फ़िर भी पसन्द आ गया। इसका मतलब चाहे एक बार पढ़िये या कई बार असर तो होता ही है!
अन्य सभी तारीफ़ी टिप्पणियों के लिये आभार!
हे भगवान ! हमें मोटी होने का हक दो !: आखिर हमारा भी तो अपने शरीर का अपने पति की अकल से मैच कराने का मन करता है।
जवाब देंहटाएं.मुझसे बोलो तो प्यार से बोलो :सीधे-सीधे काहे नहीं कहते कि बात मत करो!
हा हा हा ! मस्त ,मजा आ गया।
आज तो एक लाइना पूरी तरंग में दिखाई दी...
जवाब देंहटाएंवाह !!! पोस्ट की चर्चा. टिप्पणी पर प्रतिटिप्पणी. वो भी एक लाइना. अच्छी स्टाइल है.
जवाब देंहटाएंलो जी यहू बांच लिए :)
जवाब देंहटाएंtabhi to ham ek laaia kaa itta intzaar karte hain....
जवाब देंहटाएंपानी में भी मिलावट है भाई जी, और प्यार की तो ब्लैक ही है, नंबर लगाओगे तो सालों में नंबर आएगा और उसपे भी शुद्ध कितना सो पता नहीं ..
जवाब देंहटाएंमन की तरंग में लिखे एक लाइना का रंग तो यहीं दिखता है ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चर्चा । मुक्ति जी का कहा कितना सच है, शुरुआत की पहली लाइन देखते ही पता चल गया कि चर्चा आपने की है ।
" हे भगवान ! हमें मोटी होने का हक दो !: आखिर हमारा भी तो अपने शरीर का अपने पति की अकल से मैच कराने का मन करता है।"
जवाब देंहटाएंआज की एक लाइना पढ़ कर याद आ गया कि अभी होली खत्म नहीं हुई है.
सरिता जी के पॉडकास्ट का इंतज़ार रहेगा.
बहुत बढ़िया लिंक्स,आराम से बैठ कर पढेंगे ,चिट्ठाचर्चा एक सूची की तरह काम करती है ,बेहतरीन लिंक्स जो ब्लॉगजगत के सागर एं खो जाते है उन्हें आराम से सहेजा जा सकता है
जवाब देंहटाएंपुनश्च धन्यवाद
mast post :) jhakas
जवाब देंहटाएं"हमारी सबेरे की महिला दिवस पर केंद्रित चिट्ठों की ही चर्चा का प्रभाव था शायद कि राज्य सभा में महिला आरक्षण बिल धक्काड़े से पास हो गया।"
जवाब देंहटाएंऔर
"मुझे बहुत खुशी है इस बिल के पास होने पर और लगता है कि जो इसका विरोध कर रहे हैं वे समय के चक्र को रोकने का प्रयास कर रहे हैं और शायद अपनी मुंह की ही खायेंगे।"
जय हो !
:) जबरदस्त्त ...एक लाइना कमाल की हैं
जवाब देंहटाएंरोचक चर्चा..
जवाब देंहटाएंमै भी आराम से पढूँगी सब लिन्क्स मगर आराम कहा। धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंएक गीत सी चर्चा
जवाब देंहटाएंसब कुछ ले में
टिप्पणी/प्रति टिप्पणी मन भावन है