उधर ब्लागिंग पर भी कल फैसला आ गया. पिछले ४-५ सालों से लोगों के मन में यह सवाल आवन-जावन कर रहा था कि; "हिंदी ब्लॉग जगत का भविष्य कैसा है?"
इस सवाल के जवाब के रूप में सतीश सक्सेना जी ने फैसला सुना दिया है. उन्होंने अपने फैसले में लिखा;
"...........................सारी विसंगतियों के बावजूद, हिंदी ब्लाग जगत का भविष्य बहुत शानदार है , जो बिना नाम कमाने की इच्छा लिए, समाज के लिए लिखेंगे, लोग उन्हें याद रखेंगे और वे अपने निशान छोड़ने में निश्चित रूप से कामयाब रहेंगे !"
आशा है कि कुछ दिनों के लिए ही सही इस शंका को अल्प-विराम मिलेगा कि हिंदी ब्लॉग जगत का भविष्य कैसा है.
लेकिन सक्सेना जी का यह फैसला तो राइडर के साथ आया. बिना नाम कमाने की इच्छा लिए लिखें तब जाकर लोग याद रखेंगे? जब नाम ही नहीं कमा सकेंगे तो याद कमाकर क्या मिलेगा? मैं तो कहता हूँ कि नाम नहीं कमाने का विचार न आये लेकिन टिप्पणी कमाई का विचार तो आना चाहिए.
ओह! टिप्पणी से याद आया कि टिप्पणियों ने कई वर्षों से एक विषय के रूप में हिंदी ब्लॉगर भाइयों और बहनों को बहुत प्रेरित किया है. इसी प्रेरणा को आगे बढाते हुए अदा जी टिप्पणी आरती लिख डाली. पढ़िए;
दर्शन तेरे होते ही, हर कष्ट निपट जाता
मईया हर कष्ट निपट जाता
सुख ही सुख मेरे ब्लॉग में....२
दूसरा कष्ट पाता
जय टिप्पणी माता ....
ब्लॉग माता तुम मेरी, तुम ही ब्लॉग परी
मईया तुम ही ब्लॉग परी
बड़े-बड़े ब्लाग्गर ...२
राह तकें तुम्हरी
जय टिप्पणी माता ....
मैं कन्या निर्बुद्धि, सूरत ठीक हमरी
मईया सूरत ठीक हमरी
लिखना-विखना न जानूँ....२
बस पाठक कृपा करी
जय टिप्पणी माता ...
बड़ी दूर तक नज़र डाली है अदा जी ने. पूरी आरती आप उनके ब्लॉग पर ही पढ़िए. एक प्रस्ताव पारित करके इस आरती को हिंदी ब्लॉग जगत की टिप्पणी आरती के रूप में रजिस्टर किया जा सकता है.
इसी टिप्पणी चिंतन को आगे बढ़ाते हुए अनूप शुक्ल जी ने किसी ब्लॉगर के टिप्पणी बक्से की झांकी टाइप पेश की. शीर्षक है, माडरेशन के इंतज़ार में टिप्पणियां. इस झांकी की एक झांकी देखिये;
"समय बिताने के लिये टिप्पणियों ने अंत्याक्षरी का विकल्प चुनने की बजाय बतकही का वरण किया और आपस में वह करने लगीं जिसे उर्दू शायर लोग गुफ़्तगू और दिलजले अफ़साना निगार चेमगोइयां कहते हैं। टिप्पणी बक्से में किसी भी सार्वजनिक स्थल की गरिमा के अनुरूप अंधेरा ही अंधेरा है! हाथ को हाथ तो छोड़िये टिप्पणी को टिप्पणी नहीं सुझा रही है।"
या फिर ये;
मामला गर फ़िरदौस बर रुये जमीनस्त जैसा न समझ लिया जाये इसलिये टिप्पणियां सांसारिक लोकाचार का पालन करते हुये बुराई-भलाई भी करती चल रही हैं। ज्यादा हम क्या कहें आप खुदै उनकी बातचीत सुन लीजिये:बहुत सारे पाठकों ने इस लेखन को क्रिएटिव करार दे डाला. काहे किया ऐसा, यह तो आप पोस्ट पढ़कर समझिये. ई रहा लिंकवा.
कब खुलेगा ये बक्सा! जल्दी से माडरेट करे ये मुआ तो जरा खुली हवा में सांस लेने को मिले। यहां तो दम घुट गया खड़े-खड़े!
अरे आता होगा यार! हड़बड़ी क्या है। कहीं गया होगा बॉस के पास पांव फ़िराने। आयेगा! करेगा! उसके सरदर्द में तुम काहे अपने विक्स वेपोरब मल रही हो!
नई यार वो बात नहीं! लेकिन बोर हो गये यहां अंधेरे में वेट करते-करते।
हमको न बताओ! यहां बोर हो गयी या वहां पोस्ट से सटने का मन कर रहा है! इंतजार सहन नहीं हो रहा। हमसे तो न छुपाओ।
अरी हट! सबको अपने जैसा समझती है। हम कोई ऐसे-वैसे बलॉगर की टिप्पणी नहीं हैं। हमारा मालिक जरा सा कहीं देख लेता है इधर-उधर की हरकत तो फ़ौरन टिप्पणी मिटा देता है। फ़िर भले ही वही टिप्पणी बोल्ड में दुबारा करे।
बड़ा मूडी है तेरा मालिक। सेन्सेक्स से याराना लगता है क्या उसका?
एक और टिप्पणी चिंतन पंडित डी के शर्मा 'वत्स' जी ने किया. बात ललित शर्मा और मिश्रा जी के टिप्पणियों के लेन-देन की है. पढ़िए;
"मिश्रा जी अपने हाथ में पकडी नोटबुक ललित शर्मा के आगे कर देते हैं। ये देखिए पिछले एक साल में हमने आपकी जिस जिस पोस्ट पर जब जब टिप्पणी की है, उन सबका हिसाब इसमें लिखा हुआ है। ये देखिए कुल 420 टिप्पणियाँ हमारे द्वारा की गई हैं, ओर ये इधर देखिए साल भर में हमारी पोस्टों पर आपने कुल कितनी टिप्पणियाँ की हैं, महज 136. अभी ले देकर आपकी तरफ हमारी 284 टिप्पणियाँ बकाया रहती हैं। लेकिन आप हैं कि लौटाने का नाम ही नहीं ले रहे। अभी कुछ दिनों से हमारी किसी भी पोस्ट पर आपकी कोई टिप्पणी नहीं आ रही...जब कि हमारी टिप्पणी रोजाना आपको पहुँच रही है। भाई ऎसा कैसे चलेगा?"
टेलीविजन पर कविता लिखकर मानस खत्री ने प्रथम पुरस्कार जीत लिया. उनकी इस कविता ने उन्हें फैजबाद जिले में बाल हास्य-कवि के नाम से मशहूर कर दिया है. आप कविता के अंश पढ़िए;
ये टी.वी. वाले भी क्या गज़ब ढाते हैं,
एक तरफ सभ्यता का पाठ पढ़ाते हैं,
तो दूसरी तरफ सास-बहु को खुद ही लड़वाते हैं.
‘एकता कपूर’ जी के सेरि़लों ने खोले हैं महिलाओं के नयन,
अब हर सास ‘तुलसी’ और ‘पार्वती’ जैसी बहुओं का ही करती है चयन.
टी.वी. पर अधिकतम कार्यक्रम महिलाओं के ही आते हैं,
एक अकेले ‘संजीव कपूर’ हैं,
पर लानत है वो भी, खाना बनाना सिखाते हैं.
टी.वी पर भी चढ़ा है, आधुनिकता का रंग,
नामुमकिन है टी.वी. देखना, घर-परिवार के संग.
सबके अपने-अपने हैं Views,
कोई देखता है कार्यक्रम, तो कोई News.
पूरी कविता आप यहाँ क्लिकिया कर पढ़ सकते हैं. क्लिकियाइये.
रचनाकार पर मुनव्वर राना की दो गजलें छपी हैं. देखिये;
जहां तक हो सका हमने तुम्हें परदा कराया है
मगर ऐ आंसुओं! तुमने बहुत रुसवा कराया है
चमक यूं ही नहीं आती है खुद्दारी के चेहरे पर
अना को हमने दो दो वक्त का फाका कराया है
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इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिये
आपको चेहरे से भी बीमार होना चाहिये
आप दरिया हैं तो फिर इस वक्त हम खतरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हमको पार होना चाहिये
दोनों गजलें पढने के लिए यहाँ पर क्लिक कर दीजिये.
कुलवंत हैपी जी पिछले मंगलवार को लोगों की मुलाकात किसी ब्लॉगर हस्ती नहीं करवा सके. इस बात के लिए उनहोंने क्षमा मांगते हुए आज मुलाकात करवाई है यशवंत महेता 'फकीरा' जी से. रोचक मुलाकात है. आप पढ़िए.
आदित्य ने दो दिन पहले ही अपना दूसरा जन्मदिन मनाया. बैंकाक में. आज उसने अपने जन्मदिन की पार्टी के फोटोग्राफ्स लगाये हैं. आप देखिये. आदित्य को शुभकानाएं.
हिंदी फिल्मों में मानसिक रोग. इस शीर्षक से सुनील दीपक जी का लेख पढ़िए. बहुत बढ़िया पोस्ट है.
तो ये थी 'जामे कुटुम समाय' घराने की एक चर्चा.
हिंदी ब्लॉग जगत का ना सिर्फ भविष्य उज्जवल है ,बल्कि यह भारत के भविष्य को उज्जवल बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा /सार्थकता के साथ प्रस्तुत इस उम्दा रचना के लिए आपका धन्यवाद /
जवाब देंहटाएंमैं तो कहता हूँ कि नाम नहीं कमाने का विचार न आये लेकिन टिप्पणी कमाई का विचार तो आना चाहिए.
जवाब देंहटाएंनिश्चय! हिन्दी की सेवा होनी ही चहिये। टिप्पणी नहीं तो सेवा नहीं!
हमारे ऑफिस से घर जाने वाले रास्ते में तंबू लगा हुआ है वहां पर एक बाबाजी भविष्यवाणी किया करते है.. उन्ही से एक बार हमने ब्लॉग जगत का भविष्य पुछा था तो कहने लगे अबे पहले वर्तमान तो सुधार लों सालो..फिर भविष्य की सोचना.. हमने कहा हम तो भलाई के लिए पूछ रहे है तो हमें ही धर लिए बाबाजी... कहने लगे तुम उद्दंड बालक हो.. बड़ो से बात करने की तमीज नहीं.. सम्मान करना नहीं जानते.. हम तो खिसक लिए वहा से उसी वक़्त.. पर सुना है वो बाबाजी आज भी वो ही लेक्चर दिए जा रहे है..
जवाब देंहटाएंखैर इन सबका चर्चा से क्या लेना.. तो मेरा कहना कुछ यु था.. कि कब तक चर्चा में फिक्स लोगो के लिंक आते रहेंगे.. हमारी
किसी पोस्ट का जिक्र ही नहीं.. कित्ते तो बायस्ड हो आप लोग..!
jyada din to nahi hua blog jagat par,,aaj jitni dhansu charcha nahi padhi maine...kyunki charcha tippaniyon ki thi...fursatiya ji ne to sabse jyada hansgulle khilaye,,,munavvar rana saab ke kya kahne ....achhe lagte hain ..dhanyawaad is charcha ke liye
जवाब देंहटाएंजब अंग्रेज़ी के भविष्य को कोई प्राबलम नहीं है तो हिन्दी ब्लागिंग का भविष्य क्यों कर उज्जवल न होगा :)
जवाब देंहटाएंबाबा कुशानंद की चिंता जायज़ है.... उनकी भावनाओं से हम भी आहत है
जवाब देंहटाएंवर्त्तमान की चिंता काहे करते हो.. वर्तमान तो बहुत शोर्ट टर्म है...जल्द ही भुत हो जाता है... खुश रहो भविष्य शानदार है...
जवाब देंहटाएंसॉरी... बहुत शानदार है..
जवाब देंहटाएंफैसला सुनाने की मेरी हैसियत नहीं है शिव कुमार भाई ! इसे सिर्फ एक विश्वास माना जाये ! आने वाले भविष्य में ब्लाग जगत असीमित होगा कूड़ा कचरा को पाठक ही नहीं परिवार भी नहीं झेल पाता है !
जवाब देंहटाएंसादर
आशावादी को हर खतरे में अवसर दीखता है और निराशावादी को हर अवसर मे खतरा .....हमे सीमित मात्रा में निराशा को स्वीकार करना चाहिये , लेकिन असीमित आशा को नहीं छोडना चाहिये ।
जवाब देंहटाएंi endorse what kush has said every word including baised
जवाब देंहटाएंkya baat hai behad rochak andaj ...badhiya links.
जवाब देंहटाएंहमें भी गिलास आधा भरा ही दिखाई दे रहा है...लेकिन इसे भी तो झुठलाया नहीं जा सकता न कि आधा तो फिर भी खाली है ही...:-)
जवाब देंहटाएंआनन्दमय चर्चा!
आभार्!
hindi blog jagat ke bhavishy ke baare men jaankar prasannataa hui
जवाब देंहटाएंsoch rahe hain kuchh investment karen aur faayda kamaayen lekin laabh ki parwaah na karne waale clause ne sabkuchh gadbad kar diya
लोगों को समझना चाहिए कि कभी कभी चेलों की चकल्लस भी कर दी जाए । हमेशा भाई भतीजावाद में अटके रहेगें तो इस देश का क्या होगा ?
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंएंडी है ..............छोरे ...लाग्या रो ...कर हिंदी का भला राम तेरा भला क्रेअगा ...........
जवाब देंहटाएंAnil Attri Delhi..........