आज की चर्चा की शुरुआत 10 मई की ऐतिहासिक घटना की याद से। 10 मई 1857 की याद में के द्वारा कृष्ण कुमार यादव पहले स्वतंत्रतता संग्राम की याद करते हैं!
1857 की क्रान्ति को लेकर तमाम विश्लेषण किये गये हैं। इसके पीछे राजनैतिक-सामाजिक-धार्मिक-आर्थिक सभी तत्व कार्य कर रहे थे, पर इसका सबसे सशक्त पक्ष यह रहा कि राजा-प्रजा, हिन्दू-मुसलमान, जमींदार-किसान, पुरूष-महिला सभी एकजुट होकर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े। 1857 की क्रान्ति को मात्र सैनिक विद्रोह मानने वाले इस तथ्य की अवहेलना करते हैं कि कई ऐसे भी स्थान थे, जहाँ सैनिक छावनियाँ न होने पर भी ब्रिटिश सत्ता के विरूद्ध क्रान्ति हुयी। इसी प्रकार वे यह भूल जाते है कि वास्तव में ये सिपाही सैनिक वर्दी में किसान थे और किसी भी व्यक्ति के अधिकारों के हनन का सीधा तात्पर्य था कि किसी-न-किसी सैनिक के अधिकारों का हनन, क्योंकि हर सैनिक या तो किसी का पिता, बेटा, भाई या अन्य रिश्तेदार है।
विनीत कुमार दो दिन पहले हरियाणा के मिरचपुर से लौटकर लिखते हैं खौफ के साये में है मिर्चपुर..
वे बताते हैं:
इस गांव में पिछले महीने की 21 तारीख (21 अप्रैल 2010) को दबंग जातियों के हमलावरों ने दलितों की बस्ती पर हमला किया था और 18 घरों को आग लगा दी थी। इस दौरान बारहवीं में पढ़ रही विकलांग दलित लड़की सुमन और उसके साठ वर्षीय पिता ताराचंद की जलाकर हत्या कर दी गई। दलितों की संपत्ति को काफी नुकसान पहुंचाया गया और कई लोगों को चोटें आईं।
दलितों को बचाने के लिये गांव वालों से अलग बसाने की बात पर रंगनाथ सिंह की टिप्पणी है:
दलितो को कहां कहां से हटा कर दूसरी जगह बसाया जाएगा ?
कानून-व्यवस्था जब दबंगों द्वारा हाइजैक कर ली जाए तो उनके पास क्या रास्ता बचता है ?
महात्रासदी का ग्रीक कोरस में अंशुमान तिवारी ग्रीस के डूबने की कहानी बताते हैं:
- ..ग्रीस के शहरों में अराजकता दौड़ रही है, दंगे जानलेवा हो चले हैं। . इस देश पर आतंकवाद, युद्ध या प्रकृति का कहर नहीं टूटा है। एक चुनी हुई सरकार भी है, लेकिन लोकतंत्र और ओलंपिक का जन्मदाता देश जल रहा है।
पूंजीवादी व्यवस्था का देशों के डूबने के बारे में क्या सोचना है देखा जाये जरा:
अंतरिक्ष में मानव की पहली उड़ान (अपोलो 8) के कमांडर फ्रैंक बोरमैन मजाक में कहते थे कि नर्क की संकल्पना के बिना जैसे ईसाइयत नहीं रह सकती, ठीक उसी तरह दीवालियेपन के बिना पूंजीवाद भी मुश्किल है। अमेरिकी मानते रहें कि व्यक्ति के लिए दीवालिया होना नई शुरुआत का मौका है, मगर जरा ग्रीस से पूछिए वह किस नई शुरुआत के बारे में सोच रहा है?
ग्रीक के इतिहास पर नजर डालते हुये अंशुमान बताते हैं:
यूरोप में कहावत है कि ग्रीस अपनी क्षमता से अधिक इतिहास बनाता है। संप्रभु दीवालियेपन की शायद सबसे पहली घटना ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में ग्रीस में ही घटी थी, जब इसकी दस नगरपालिकाएं कर्ज चुकाने में चूक गई थी।
हालिया ग्रीस त्रासदी के बारे में जानकारी देते हुये अंशुमान लिखते हैं:
वैसे ग्रीस के ताजा इतिहास में ज्यादा रोमांच है। अमीर देशों में शुमार ग्रीस 2000 से 2007 तक यूरो जोन की सबसे तेज दौड़ती (4.2 फीसदी विकास दर) अर्थव्यवस्थाओं में एक था। मगर 2008 की मंदी ने ग्रीस के दो सबसे बड़े उद्योगों पर्यटन व शिपिंग को तोड़ दिया और सरकार का राजस्व बुरी तरह घट गया। पर इसमें अचरज क्या? यह तो लगभग हर देश के साथ हुआ था, दरअसल ग्रीस में असली लोचा यहीं पर था। घाटा बढ़ने के बावजूद ग्रीस कर्ज लेता रहा और अपना वित्तीय सच दुनिया से छिपाता रहा। पिछले साल के अंत में दुनिया को पता चला कि ग्रीस में घाटे व कर्ज के आंकड़े झूठ हैं। इस मुल्क ने 216 बिलियन यूरो का कर्ज ले रखा है, जो कि उसके जीडीपी का 120 फीसदी है। दुनिया को पता था कि ग्रीस सरकार के बांडों में 70 फीसदी निवेश विदेशी है, इसलिए 2009 के अंत से ग्रीस में महासंकट की उलटी गिनती शुरू हो गई थी। इस साल मार्च में जब ग्रीस की सरकार ने वित्तीय पाबंदियों का कानून बनाकर खतरे का बटन दबाया तो वित्तीय बाजार में ग्रीस के बांडों की रेटिंग जंक यानी कचरा होने लगी और दुनिया समझ गई कि ग्रीस तो अब गया।
ग्रीस के डूबने के की कहानी बताने के साथ-साथ अंशुमान दुनिया के और देशों के दीवालिया होने के बारे में भी जानकारी देते हैं। भारत के बारे में भी इशारे हैं उनके लेख में देखिये-
महात्रासदी का ग्रीक कोरस!
जहां चाह वहां राह। चित्तूर की भार्गवी ने एक अनोखे कंप्यूटर के विकास में सफलता हासिल की लेख पढ़कर तो ऐसा ही लगता है।
अपने पति के डेस्कटॉप कंप्यूटर में लगे अनगिनत तारों के कारण घर को ठीक से साफ न कर पाने से परेशान आंध्रप्रदेश में चित्तूर की भार्गवी ने एक अनोखे कंप्यूटर के विकास में सफलता हासिल की है। भार्गवी ने एक ऐसे सिंगल यूनिट पर्सनल कंप्यूटर का निर्माण किया है, जिसमें सामान्य पीसी के सारे गुण मौजूद हैं। लेकिन तारों की संख्या घटकर केवल एक रह गई है।
आप सोचते होंगे कि भार्गवी कोई वैज्ञानिक हैं! अरे न भाई! देखिये उनके बारे में:
दिलचस्प यह है कि भार्गवी कोई कंप्यूटर इंजीनियर नहीं हैं। उन्होंने केवल 12वीं तक की पढ़ाई की है, और वह भी तेलुगु माध्यम में। भार्गवी के इस कंप्यूटर को कैबटॉप (कैबिनेट टॉप) कहा जा रहा है। यानी सामान्य पीसी का ही बदला हुआ एक रूप है। इसके सारे कल-पुर्जे सामान्य पीसी के ही हैं, लेकिन इनको एक साथ एक खास तरीके के बनाए हुए अकेले कैबिनेट में फिट किया गया है।
कैसे किया उन्होंने इस काम को वो भी देखिये जरा:
भार्गवी ने बताया कि शुरू में उनके पति और परिवार वालों को उनके विचार पर काफी हैरानी हुई। लेकिन जब उन्हें लगा कि इस विचार में दम है तो उन्होंने भार्गवी की काफी मदद की। एक साधारण कंप्यूटर की तरह ही कैबटॉप में कोर टू डुओ का प्रोसेसर, 2 जीबी रैम और 320 जीबी हार्ड डिस्क लगा है। इसे एक टीवी के तौर पर भी प्रयोग में लाया जा सकता है और सिस्टम को चालू किए बिना ही इस पर फोटोग्राफ भी देखे जा सकते हैं।
इस सिस्टम की और खूबियां देखिये:
कैबटॉप के लिए तकनीकी सपोर्ट देने वाले भार्गवी के पति रंगा रेड्डी बताते हैं कि यह पूरा सिस्टम रिमोट कंट्रोल से भी चलाया जा सकता है और इसमें एक बिल्ट इन मल्टी मीडिया सिस्टम, टीवी तकनीक, स्पीकर और ऑटोमेटिक लॉक सिस्टम भी है। कैबटॉप बिजली की भी कम खपत करता और गर्म भी कम होता है। सबसे बड़ी बात है कि यह लैपटॉप की तरह पोर्टेबल है, लेकिन इसे लैपटॉप की तरह बैग की जरूरत नहीं होती।
साधारण पीसी को कैबटॉप में बदलने के लिये दो से सात हजार रुपये चाहिये! इसका प्रोटोटाइप बन रहा है।
कालाहाडी देश का सबसे अधिक अकाल-दोस्ती वाला इलाका है। वहीं की 48 वर्षीया राजश्री ने पानी बचाने की नयी तरकीब ईजाद की है। देखिये :
राजश्री देवी के मुताबिक इस तकनीक में एक साधारण सा फार्मूला है जिसमें बरसात के पानी को ढलाव के प्रमुख बिन्दु पर एक गङ्ढे में जमा कर देना होता है। खेत के कुल रकबे के पांच प्रतिशत हिस्से में एक तीन फीट गहरा गङ्ढा खोद दिया जाता है। यह तकनीक इस प्रकार लागू की जाती है कि गङ्ढे में भरे पानी से आस-पास भूजल स्तर कायम रहे और बारिश का क्रम बिगड़ने पर सूखते पौधों को पर्याप्त नमी मिल सके। यह तकनीक सबसे पहले राजपरिवार के खेतों में लागू हुई जिसके आशातीत नतीजे मिले। अब इसे और किसान भी लागू कर रहे हैं।
अब चलिये नीरज गोस्वामी जी के यहां चलिये आपको उनकी ताजा गजल पढ़वाते हैं:
तुझे दिल याद करता है तो नग़्मे गुनगुनाता हूँ
जुदाई के पलों की मुश्किलों को यूं घटाता हूं
जिसे सब ढूंढ़ते फिरते हैं मंदिर और मस्जिद में
हवाओं में उसे हरदम मैं अपने साथ पाता हूं
फसादों से न सुलझे हैं, न सुलझेगें कभी मसले
हटा तू राह के कांटे, मैं लाकर गुल बिछाता हूं
नहीं तहजीब ये सीखी कि कह दूं झूठ को भी सच
गलत जो बात लगती है गलत ही मैं बताता हूं
आप सतीश सक्सेनाजी की गर्ल फ़्रेड से मिलना चाहेंगे? पिछले दिनों सतीश जी ने नया कैमरा खरीदा। शायद अपनी गर्ल फ़्रेंड के साथ फोटो खिंचवाना ही सबसे बड़ा कारण रहा होगा। पहले तो आप फोटो देखिये और इसके बाद जान लीजिये गर्ल फ़्रेंड के बारे में उन्हीं की जबानी: साथ का फोटो टिन्नी के साथ का है ! हम दोनों में उम्र का फर्क सिर्फ ५३ साल का है ! मगर फिर भी हम अच्छे दोस्त हैं, दोनों एक दूसरे का साथ बहुत पसंद करते हैं ! दिल करता है कि एक दूसरे की ऊँगली पकडे सारे दिन मॉल से बाहर ही न निकलें मगर सामान भी क्या क्या घर ले जाएँ ...?? हर चीज पर मन ललचाता है ....अगर सब कुछ ले लिया तो घर जाकर हर हालत में डांट तो पड़नी ही है !
मैट्रो है या चारो धाम ससुर ! में मेट्रो के किस्से सुनिये अरविन्द शुक्ला की जबानी। दिल्ली में मेट्रो अब दिल्लीवासियों की आदत बनती जा रही है...या यूं कहें कि दिल्ली की लाइफ लाइन बनने वाली है....या बन गई है तो गलत नहीं होगा।
छत्तीसगढ़ में पिछले दिनों नक्सलियों ने कहर बरपाया। लेकिन छ्तीसगढ़ में और भी जलवे हैं। देखिये वहां मैच के लिये चीयरगर्ल्स भी आ गयीं-गाँव तक पहुँची चीयर लीडर्स गर्ल्स ....
किताबों के जिक्र के बहाने प्रमोदजी बता रहे हैं एक मशहूर किताब के बारे में जिसका नायक डानक्विकजोड के नाम से प्रसिद्ध है- दुनियाभर के पगलेटों के लिए सरवांतेस का सपना..
कल ही पता लगा अपने रोशन ब्लोगिंग में वापसी की कोशिश! की कोशिश कर रहे हैं। आप कुछ सहायता करियेगा उनकी ब्लॉग-वापसी के लिये।
संजीत ने बापी के किस्से सुनाने शुरू किये! अब पहले ई जानिये बापी कौन है:
सतीश पंचम जी के बापी और फिर ज्ञानदत्त जी के बापीयॉटिक पोस्ट की दरकार , दोनो को ही पढ़ने के दौरान मुझे अपना बापी याद आया।
बापी का किस्सा शुरू करने के बाद वे बोले शेष अगली किस्त में। बताओ भला ये भी कोई बात है। लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं सिवा इंतजार के।
मेरे नए ब्लॉग अनुभव में हिमांशु मोहन अपने ब्लॉग के अनुभव बताइन हैं! देखिये शायद आपके बारे में भी कुछ लिखा हो।
देश है कि हिलने को ही नहीं तैयार है लेकिन रंगनाथ सिंह कोशिश तो कर रहे हैं। घोटालों की लिस्ट बता रहे हैं जिस पर संदीप पाण्डेय की टिप्पणी है:
देश इतनी छोटी मोटी बातों से नहीं हिलता रंगनाथ जी। उसके लिए जरूरी है कि कोई लड़की विजातीय लड़के से प्रेम करे। कोई दलित, बाबू साहब या बाबा जी के यहां खाट पर बैठ जाए। कोई मनोज किसी बबली से शादी कर ले। वगैरह...वगैरह...
डा.कुमारेन्द्र सिंह सेंगर बेटी और ब्लॉग हुए दो वर्ष के... उनको बधाई!
सतीश पंचम की गांव कथा चालू आहे-गेहूँ की लदवाई....कण्डाल....पर्ची... ग्राम्य सीरिज ......सतीश पंचम
9 तरीके जानने के : क्या आप इन्टरनेट कीड़ा हो गए हैं !! से अपना इम्तहान खुदै ले लीजिये।
सच में यह इंसान बहुत बड़े गुर्दे वाला है .. में देखिये क्या बताते हैं डाक्टर प्रवीण चोपड़ा।
पंकज उपाध्याय क्या कहते हैं आज सुनियेगा ध्यान से ब्वायेज विल बी ब्वायेज..
(वो समन्दर मे सैडनेस देखती थी और मै उस सैडनेस मे एक समन्दर को… उसकी टी पर लिखा था – नो वकिंग फ़रीज (No Wucking Furries) पर उसे सारे संसार की चिंता थी… मेरी तो हद से ज्यादा…)
- तुम्हारी मेरे बारे मे कोई फ़ैन्टेसी है?
- ह्म्म??? (ये लडकी पागल है)
- फ़ैन्टेसी लल्लू…???(जैसे मैं PSPO नहीं जानता था) ब्वायेज विल भी ब्वायेज… कुछ तो सोचते होगे? पता है मैं क्या सोंचती हूँ?
- क्या? (फिंगर्स क्रास्ड)
अब आज की चर्चा पोस्ट करने से पहले चलते हैं विकास की दुनिया में जहां वे ब्लौग, सोशल मीडिया और क्या क्या के किस्से सुना रहे हैं:
मेरी मानिये तो सब सोशल मीडिया फ्रीक एक जैसे होते हैं. जो ब्लौगर पर है उसे ज्यादा टिप्पणियाँ चाहिये, जो ट्विटर पर हैं उन्हें ज्यादा फ़ौलोअर. अगर ’मैं आगे’ और ’मेरे ज्यादा’ वाली शाश्वत और सर्वव्यापी दौड़ को नकार दें तो ब्लौगर कई तरह के होते हैं. जैसे: उग्र ब्लौगर, अवसरवादी ब्लौगर और तटस्थ बलौगर. उग्र ब्लौगर वो लोग हैं जो हर बात पर चंडी बन जाते हैं. चौंकाने वाले टाइटल उनकी प्रमुख निशानी है. टाइटल में अन्य लोगों के नाम डालना भी उनके लक्षणों में शुमार है. कुछ उदाहरण देखें: ’एनोनिमस टिप्पणीकारों संभल जाओ’, ’हरिप्रसाद की हरियाली का नंगा सच’, ’गाली देना मेरा संवैधानिक अधिकार है’, ’हाँ, मैं कुत्ता हूँ’...आदि इत्यादि.
कितने तरह के ब्लॉगर होते हैं यह भी वे बताते हैं देखिये :
अवसरवादी ब्लौगरों की संख्या सबसे ज्यादा है. उग्र न हो पाने की विकल विवशता में वो थोड़े से कुंठित होते हैं और हमेशा ऐसे मौके की तलाश में रहते हैं जिसके बारे में वो झट अपना मत प्रस्तुत कर सकें. ये वो लोग हैं जिनके नाम उग्र ब्लौगरों के टिप्पणीकारों में अव्वल दर्जे पर रहा करता है. इनके बस दो ही काम हैं: खंडन और समर्थन.
और देखना चाहते हैं देखिये:
तटस्थ ब्लौगरों की संख्या का ठीक ठीक अनुमान लगा पाना संभव नहीं है. वो देखने में कहीं नहीं आते अतः गिनती में भी नहीं. कुछ उग्र ब्लौगर उन्हें ब्लौगर भी नहीं मानते. लेकिन शायद यही उनकी तटस्थता का प्रमाण हो. इन ब्लौगरों को लेकर बड़ी राजनीति चलती है क्युँकि इनकी छवि अपेक्षाकृत साफ़ सुथरी होती है और हर दल उन्हें अपने दल में मिलाने की कोशिश करता है. बड़े पासे फेंके जाते हैं, इन्हें लुभा कर अपने खेमे में ले आने की. साहित्य के संदर्भ पेश किये जाते हैं. उदाहरणस्वरूप: "समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध. जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध." इन झांसों में फंसकर, कई सीधे सुशील अविकारी लोग खंडन-समर्थन करने में लग जाते हैं और फिर धीरे धीरे दल-बद्ध हो जाते हैं.
अब आगे और जानना चाहते हैं तो चलिये उधर ही- ब्लौग, सोशल मीडिया और क्या क्या पर!
और अंत में:
फ़िलहाल इतना ही। डा.अमर कुमार के टिप्पणियों के माडरेशन को लेकर कुछ सवाल हैं! कभी उनका जबाब दिया जायेगा। फ़िलहाल यही कह सकते हैं कि उनकी या किसी और बलॉगर की टिप्पणी बिना कटे-छंटे प्रकाशित होती रहेगी।आपका दिन शुभ हो। बोल बजरंग बली की जय।
Behad saarthak charcha.
जवाब देंहटाएंसुन्दर सुघड़ वृहत चर्चा हेतु साधुवाद...
जवाब देंहटाएंविकास की पोस्ट हमें भी अच्छी लगी। भार्गवी ने सच में कमाल कि्या। यहां टाइम्स ओफ़ इंडिया में भी उसके बारे में पढ़ा था और सोच रहे थे कि अब बड़ी बड़ी कंपनियां अपने कंप्युटर बेचने के लिए इस फ़ीचर को अपना यू एस पी बना लेगीं और बेचारी भार्गवी के नाम आयेगीं कुछ तालियां।
जवाब देंहटाएंपंकज आश्चर्यजनक रूप से तरक्की कर रहे हैं और विकास का लेख ब्लॉग्गिंग में व्यंग भी है, वर्तमान दशा भी और तिकड़मों की पोल खोलने की कोशिश भी... काफी मज़ा आया था उसे पढ़कर
जवाब देंहटाएंचिटठा चर्चा के इम्प्रूव्ड वर्जन के लिए बधाई और शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएं1857 की क्रान्ति के बारे में कृष्ण कुमार यादव जी ने वाकई यादगार तस्वीर दिखाई है ...उम्मीद करता हूँ जल्दी ही नेट पर इससे सम्बंधित ओर जानकारी होगी ....विनीत की ये पोस्ट दिखाती है ..के मंगल गृह पर पहुँचने की तैयारी में लगे भारत में कितने विरोधाभास सिर्फ कुछ किलोमीटर चलने पर आ जाते है ....भारत में जातिवाद दरअसल लोगो के खून में इस कदर फैला है के उसे फ्लश करने में कई साल ओर लग जायेगे .....
जवाब देंहटाएंSundar Charcha ...
जवाब देंहटाएंसभी बेहतरीन लिंक । तकनीकी विकास और जीवन में उसके दखल के बावजूद सामाजिक स्तर पर आज भी कोई खास सकारात्मक परिवर्तन नहीं हो सका है । साधन बदल गए हैं प्रयोग करने वाले वही हैं ।
जवाब देंहटाएंनहीं तहजीब ये सीखी कि कह दूं झूठ को भी सच
गलत जो बात लगती है गलत ही मैं बताता हूं
जय हो !
:)
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद आना हुआ। सभी लिंकों पर नहीं जा सके। आपने जितना छाँटकर पेस्ट किया उसे पढ़कर जा रहे हैं। अच्छा है।
जवाब देंहटाएंअभी कुछ और खोजने की कोशिश में हैं। कल शायद कुछ बवाल टाइप घटित हुआ था। मुझे अभी पता नहीं चल पाया है। आपने कोई जिक्र ही नहीं किया है? क्यों भला?
चर्चा का यह स्वरूप अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंचित्तूर की भार्गवी की बात पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। चिच न पढ़े होते तो पता न चलता।
जवाब देंहटाएंबेहतर...
जवाब देंहटाएंइस बार थोडी शांत सी चर्चा...