ये फ़ोटो नीरज जाट की पोस्ट से लिया है। इसके बारे में लिखते हुये नीरज ने लिखा है:
त्रिवेणी झरने का विहंगम दृश्य। त्रिवेणी नाम कहीं भी लिखा नहीं मिलेगा। मैं केवल सुविधा के लिये इस शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूं। इन पहाडों में इस तरह के अनगिनत झरने हैं, एक से बढकर एक।
यात्रा विवरण और छायाचित्र देखकर राज भाटिया जी ने लिखा-आप की जिन्दा दिली ओर बेफ़िकरी को सलाम भाई!
इस पोस्ट में फ़ोटो के साथ वीडियो भी हैं! ग्लेशियर के बारे में जानकारी भी है। देखियेगा।
पंकज उपाध्याय की पोस्ट शुरू होती है यहां से:
किताबें ही किताबें हैं.. टेबल पर उनका एक ढेर बनता जा रहा है… एक मीनार सी बन गयी है… झुकी हुई… कुछ कुछ पीसा की मीनार के जैसी… बस एक दिन गिरेगी धड़धडाकर और उसमे दबे दबे मैं भी किताबों के कीड़ो की मौत मर जाऊँगा…
पोस्ट की आखिरी लाइने हैं:
सोचता हूँ कि काश सिर्फ इतना होता कि तुम कहीं नहीं जाती या सिर्फ इतना कि तुम इन बेजुबानो को बोलना सिखा देती जैसे ये तुमसे बोला करते थे या सिर्फ इतना कि ये खिड़की बंद कर जाती या सिर्फ इतना कि मैं चला जाता…… तुम यहीं रह जाती……
लेकिन मैं बार-बार पंकज की बीच-बयानी देखता हूं:
टीवी में कभी कभी किसी की धुंधली धुंधली शक्ल भी दिख जाती है… मेरी ही होगी… तुमने कभी मेरी आँखें चूमकर कहा था न कि ये दुनिया की सबसे प्यारी आँखें हैं… अभी भी आँखों में उसकी एक गिलावट/नमी सी रहती है…
समीरलाल के शब्दों में --जबरदस्त आत्मालाप!! बढ़िया छूता हुआ!
मीनाक्षीजी के त्रिपदम देखिये:
सभी निराले
गुण अवगुण संग
स्वीकारा मैंने।
कल का दिन बहुत दुखद रहा। पचास लोग नक्सली हिंसा का शिकार हुये। अनिल पुसदकर ने अपने भाव व्यक्त करते हुये लिखा-चिदंबरम जी नक्सली यात्री बस उडाने लगे हैं,तीस लोग मरे हैं,क्या अब भी आप कहेंगे कि सेना नही भेजेंगे!
गर्मी भयंकर पड़ रही है। इससे बचने के कुछ उपाय यहां देखिये। ऐसी विकट गर्मी में परदुखकातर सिद्धार्थ लिखते हैं:
वैशाख की दुपहरी में सूर्य देवता आग बरसा रहे हैं… ऑफ़िस की बिजली बार-बार आ-जा रही है। जनरेटर से कूलर/ए.सी. नहीं चलता…। अपनी बूढ़ी उम्र पाकर खटर-खटर करता पंखा शोर अधिक करता है और हवा कम देता है। मन और शरीर में बेचैनी होती है…। कलेक्ट्रेट परिसर में ही दो ‘मीटिंग्स’ में शामिल होना है। कार्यालय से निकलकर पैदल ही चल पड़ता हूँ। गलियारे में कुछ लोग छाया तलाशते जमा हो गये हैं। बरामदे की सीलिंग में लगे पंखे से लू जैसी गर्म हवा निकल रही है। लेकिन बाहर की तेज धूप से बचकर यहाँ खड़े लोग अपना पसीना सुखाकर ही सुकून पा रहे हैं।
जब कुछ लिखने को न हो तब भी बहुत कुछ ब्लॉग लिखा जा सकता है। यह सलाह आपको मिलेगी कबाड़खाने में। इसके पहले आप अगर ब्लॉगिंग करने वाले मुर्गे से मिलना चाहते हैं तो
इधर आइये।
कल कुछ साथियों ने पापुलर मेरठी की और रचनायें सुनवाने के लिये कहा। सुनिये पापुलर मेरठी को उनकी आवाज में।
मेरी पसंद
हम धनवान हैं
हमारे पास कुछ भी नहीं है खोने को
हम पुराने हो चले
हमारे पास दौड़ कर जाने को नहीं बचा है कोई ठौर
हम अतीत के नर्म गुदाज तकिए में फूँक मार रहे हैं
और आने वाले दिनों की सुराख से ताकाझाँकी करने में व्यस्त हैं।
हम बतियाते हैं
उन चीजों के बारे में जो भाती हैं सबसे अधिक
और एक अकर्मण्य दिवस का उजाला
झरता जाता है धीरे - धीरे
हम औंधे पड़े हुए हैं निश्चेष्ट - मृतप्राय
चलो - तुम दफ़्न करो मुझे और मैं दफ़नाऊँ तुम्हें।
वेरा पावलोवा-कबाड़खाने से साभार
और अंत में
फ़िलहाल इतना ही। आपका दिन शुभ हो। नीचे की पेंटिंग सिद्धार्थ त्रिपाठी की। जनाब ये हुनर भी रखते हैं।
शुक्रिया जी... जर्रानवाजी भली लगी।
जवाब देंहटाएंजय हो..
जवाब देंहटाएंbehad achhi charcha ki hai aapne anoop ji..pankaj ka blog to dekhta hi rehta hun ..aap ke saujanya se kuch aur achhe blog dekhne ko mil rahe hain..shuqriya
जवाब देंहटाएंओह आज की चर्चा तो शुरू होने से पहले ही ख़त्म भी हो गई :) सुंदर और महीन.
जवाब देंहटाएंरोचक .
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा रही अनूपजी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा रही अनूपजी।
जवाब देंहटाएंachchi charcha rahi...kuchh bahut achche links mile.
जवाब देंहटाएंsunder charcha. siddharth ji ki painting bha gai.
जवाब देंहटाएंBadhiya charcha....
जवाब देंहटाएंछोटी पर बढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी आपकी चर्चा हर लिंक से बहुत कुछ जानने को मिला । धन्यवाद
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जवाब देंहटाएंचर्चा अच्छी या बढ़िया न भी हो,
पर बधिया तो कतई नहीं कही जायेगी ।
ऊपर एक टिप्पणीकार लिखिन हैं
Badhiya charcha....
निराकरण कीन जाये
Sorry Ranjana Ji, I am just kidding..
You know, "Mauz" has no bounds.
It even does not care for "Fauz" :)
.... visible after approval ?
जवाब देंहटाएंधत्त तेरे की जय हो !
Bye forever !
बढिया चर्चा. झरने की तस्वीर भीषण गरमी में ठंडक का अहसास करा गई.
जवाब देंहटाएंचर्चा तो चर्च के क्रास सरीखी चारो ओर मुंह किए विस्तारित है।
जवाब देंहटाएंबाकी अमर जी,
कहीं आप माडरेसन के बारे में कोई सेमिनार वगैरह तो नहीं करवा रहे हैं ?
कोई विशेष बात ?
उ क्या है कि कई कई जगह आप माडरेसन पर नहा धोकर टिप्पणी झोंके हैं इसलिए मन में एक ठो प्रश्न उठा है बाकि पराईभेट में बताएंगे तब भी चलेगा :)
nice observation ...
जवाब देंहटाएंvery very good kya aapka com sirf ghumana hi hai. itna samay kese nikalte ho . sabhi jagah achchhi hai . lagata hai ki yah mini diskcovry of india hai
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