नमस्कार मित्रों!
एक बार फिर शनिवार की चिट्ठा चर्चा के साथ हाज़िर हूँ।
गर्मी बहुत बढ गई है। ऐसे गर्म माहौल में पहले तो सोचा कि आज छोड़ ही दूँ चर्चियाना। पर फिर याद आया कि एक दायित्व लिया है तो उसे निभाना चाहिए। तो अभी शाम के आठ बजे बैठा हूँ … पता नहीं कब पूरा होगा? (०१:००)
मेरी भी आदत होती जा रही है चर्चियाने के पहले कुछ बतियाने की। आप लोग में से कितने जनसता पढते हैं मैं नहीं जानता। पर उसमें एक स्तंभ है समांतर। उसमें रोज़ एक ब्लॉगर की पोस्ट छपती है। पाबला जी तो रोज़ इसकी जानकारी देते ही रहते हैं। किसका कहां छपा! उसमें एकाध बार मेरा भी छप चुका है। आज सोनी जी का छपा है। ये लोग बिना पूछे, बिना बताए और बिना पारिश्रमिक दिए छाप देते हैं।
हममें से कितने उनसे सवाल करते हैं कि मुझसे बिना पूछे तुमने क्यों छापा? कितने मानहानि और अन्य सब दावा करते हैं?
मैने तो कभी नहीं किया।
मीडिया वालों से तो हम प्रश्न नहीं पूछते पर अपनी दुनिया, (ब्लॉग जगत) के लोगों के, अपने घर-परिवार के लोगो द्वारा चर्चा किए जाने पर हम कहते हैं कि बिना हमसे पूछे तुमने मेरी चर्चा क्यों कर डाली? यह कॉपी राइट का उल्लंघन है। मेरा फोटो क्यों डाला? मेरी टिप्पणी क्यों डाली? आदि–आदि।
ऐसा क्यों? अलग-अलग व्यवहार क्यों?
आइए अब चर्चा शुरु करते हैं …..
आलेख |
-एक-
ईर्ष्या, आपसी द्वेष इंसान को दरिंदगी की उस पराकाष्ठा पर ले जाती है, जहां उसके सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो जाती है, जब न तो उसे खून के रिश्ते नजर आते हैं, न मानवता नजर आती है और न ही उसके लिये मासूमियत कोई मायने रखती है। यहां तक कि मात्र छः माह का मासूम बच्चा, जिसे देखकर क्रूर से क्रूर राक्षस में भी ममत्व उत्पन्न हो जाए, वह निश्छल मासूमियत आपसी रंजिश और जलन की पट्टी बांधे इंसान के घृणित इरादों को भी बदल नहीं पाती।
"रिश्तों और मानवता को शर्मसार करती अमानवीय क्रूरता" पढिए आई टेक न्यूज़ पर।
इसको पढकर तो मैं सन्न हूं। इससे ज़्यादा मैं कुछ नहीं कह सकता।
-दो-
महाशक्ति जी (जो हमसे टकरायेगा चूर-चूर हो जायेगा) फ़रमाते हैं कि जिस प्रकार बूढ़ा बरधा हराई नही भूलता है उसी प्रकार इतने दिनो से इस ब्लॉग जगत में हैं कुछ फार्म गडबड़ जरूर हुआ है किन्तु आशा है कि जल्द प्राप्त कर लेंगे।
चिट्ठाकारी मे हर ब्लागर की अपनी अगल विधा है। कोई सचिन जैसा है तो कोई गागुली तो कोई द्रविड तो कोई अगैरा वैगरा की तरह अपनी उपयोगिता दिखता है।
चिट्ठाकारी एक बहता हुआ मृदुल पानी के समान है जो जितना प्रवाहित होगा उतना ही निर्मल होगा। यदि कोई इसे रोकेने का प्रयास करेगा तो अपने आप इसके प्रवाह मे बह जायेगा।
ब्लागिंग मस्ती है विचार का प्रवाह है और अपनी सोच है। कुछ लोग चिट्ठाकारी को डायरी बोलते है तो गलत नही है, मेरा मन मै चाहे जो लिखूँ, कभी खुद के लिये तो कभी सबके लिये।
वाह महाशक्ति जी! बहुत कम दिनों से इस क्षेत्र में हूँ, सोचता था कि ये ब्लॉगिंग क्या बला है? पर आज आपके इस पोस्ट की बदौलत बहुत कुछ जान पाया। लोगों को न सिर्फ जागरूक करती रचना बल्कि समस्या के प्रति सजग रहने का संदेश भी देती है।
-तीन-
अपनत्व जी की पोस्ट हमेशा कुछ-न-कुछ नीति या उपदेश की बातें लेकर हमारे सामने प्रस्तुत होती हैं। इस सप्ताह उन्हॊंने अपनी ही नही अपनी दादी की भी बातें की हैं। उनकी बातें तो कवितामय होती है जो कविता वाले सेक्शन में आएगी पर दादी की बातें तो और भी अधिक सटीक हैं।
कहती हैं
मेरी दादी सचमुच मे कहावतो का भंडार थी। हर अवसर पर एक कहावत बोल देती थी। हम बच्चे खेलते खेलते किसी भाई बहिन की शिकायत लेकर जब उनके पास जाते थे वे किसी का कोई पक्ष नहीं लेती थी बस हंस कर कह देती थी।
क्षमा बडन को चाहिए
छोटन को उत्पात .......
बस बड़े माफ़ कर देते थे और खेल फिर शुरू हो जाता था। अब जीवन के अनुभवों से जो सीखा है लगता है दो पंक्तिया इसमे अपनी जोड़ ही दे।
क्षमा बडन को चाहिए
छोटन को उत्पात .......
( दो के बीच मे )
तीसरा पक्ष ले बोल पड़े
तभी बढती है बात ।
कुछ समझे?! नहीं समझे तो मत समझिए पर बात पते की है, … सिर्फ़ दादी की ही नहीं पोती के द्वारा जोड़ी गई बात भी।
वैसे संगीता जी ने समझाने की कोशिश की है
.बहुत सटीक बात कही है ...जब तीसरा टांग अडाता है तभी बात बढती है....
-चार-
डा. टी.एस. दराल का कहना है पिछले कुछ समय से अचानक अख़बारों की सुर्ख़ियों में ओनर किलिंग पर एक सैलाब सा आ गया है। एक के बाद एक ऐसी कई घटनाएँ घटित होने के कारण , सभी का सोचना आवश्यक है कि क्या सही है , क्या गलत । जिसे आप सही समझते हैं , क्या दूसरे उसे गलत कहते हैं । हालाँकि सभी का सोचने का तरीका अलग होता है ,लेकिन जिस कार्रवाई से पूरे समाज पर प्रभाव पड़ता हो , उसके बारे में विश्लेषण करना अति आवश्यक हो जाता है।
आज इसी बारे में विस्तार से बात करते हैं ।
इस तरह की घटनाओं में दो पहलु उजागर होते हैं :
१) खाप द्वारा दी गई सजा --सजा-ए -मौत ।
२) एक ही गोत्र में विवाह ।
खाप का काम न सिर्फ सभी तरह के आपसी झगडे निपटाने का रहा है , बल्कि ऐसे नियम बनाने और लागू करने का भी रहा है , जिन्हें समाज के लिए सही और उपयोगी माना जाता है । इनमे बहुत से फैसले तो वास्तव में बड़े उपयोगी रहे हैं लेकिन देश के कानून को हाथ में लेने की तो किसी को भी अनुमति नहीं दी जा सकती। ओनर किलिंग एक हत्या है और इसे एक अन्य हत्या की ही तरह लेकर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
सामाजिक तौर पर : यदि भाई बहनों में शादियाँ होने लगी तो सारा सामाजिक ढांचा ही चरमरा जायेगा। कानूनी तौर पर : कानून भाई बहन में शादी की अनुमति नहीं देता। वैज्ञानिक तौर पर : निकट सम्बन्धियों में शादी से इनब्रीडिंग होती है। इनब्रीडिंग से आगामी पीढ़ियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसलिए इसे वैज्ञानिक तौर भी पर अनुमति नहीं होती। एक गोत्र में शादी न करने के पीछे यही तीनों कारण साफ नज़र आते हैं । और शायद अपनी जगह सही भी लगते हैं। बात प्रेम संबंधों की क्या प्यार में जान देना ही बहादुरी है। अगर देश के सभी नौज़वान ऐसे ही प्यार में शहीद होने लगे तो दुश्मनों से कारगिल कोकौन बचाएगा। आखिर कहीं तो एक सीमा निर्धारित करनी ही पड़ती है । यदि समाज में सामाजिक नियम ही ख़त्म हो जाएँ तो क्या फिर से हम आदि मानव की स्थिति में नहीं पहुँच जायेंगे ।
आपने विषय की मूलभूत अंतर्वस्तु को उसकी समूची विलक्षणता के साथ बोधगम्य बना दिया है। लोगों को न सिर्फ जागरूक करती रचना बल्कि समस्या के प्रति सजग रहने का संदेश भी देती है।
-पांच-
आज भी हीर कहां खड़ी है बता रहे हैं कुलवंत हैप्पी। पूछते हैं
आखिर कब तक हीर ऐसे रांझे का दामन छोड़ दूसरे घर का श्रृंगार बनती रहेगी? आखिर कब तक हीर को मौत यूँ ही गले लगाती रहेगी? हीर को कब दुनिया खुद का जीवनसाथी चुनने के लिए आजादी देगी? कब सुनी जाएगी खुदा की दरगाह में इनकी अपील? कब मिलेगी इनको आजादी से हँसने और रोने की आजादी?
वारिस शाह की हीर ने अपने घर में भैंसों गायों को संभालने वाले रांझे से मुहब्बत कर ली थी, जो तख्त हजारा छोड़कर उसके गाँव सयाल आ गया था। दोनों की मुहब्बत चौदह साल तक जमाने की निगाह से दूर रही, लेकिन जैसे ही मुहब्बत बेपर्दा हुई कि हीर के माँ बाप ने उसकी शादी रंगपुर खेड़े कर दी। कहते हैं कि एक दिन रांझा खैर माँगते माँगते उसके द्वार पहुंच गया था, रांझे ने हीर के विवाह के बाद जोग ले लिया था। फिर से हुए मिलन के बाद हीर रांझा भाग गए थे और आखिर में हीर रांझे ने जहर खाकर जिन्दगी को अलविदा कह मौत को गले लगा लिया था।
समाज भले ही कितना भी खुद में बदलाव का दावा करे, लेकिन सच तो यह है कि हीर आज भी इश्क के लिए जिन्दगी खो रही है।
-छ्ह-
ब्लॉगिंग का बुखार ऐसा चढ़ा है कि हम दिन-दुनिया भुला कर कंप्यूटर और की-बोर्ड से चिपके रहते हैं और हो गये हैं इंटरनेट का कीड़ा। आप हैं कि नहीं यह जानने के लिए E-Guru Rajeev के शारण में जाईए। वे दे रहे हैं 9 तरीके!! कहते हैं
“जी हाँ, दोस्तों ब्लॉगिंग अब एक महामारी की तरह से बढ़ रही है. लोग परेशान हो रहे हैं.पत्नी परेशान है कि कैसे इनकी ब्लॉगिंग की लत छुडाऊँ. घर में रोटी नहीं ई-गुरु बनने चले हैं।”
बेटा परेशान सा बाप की कुर्सी के पीछे खडा है कि ये उठें तो मैं अपना ब्लॉग देखूं। पत्नी कि ब्लॉगिंग से पति परेशान कि इनका वाचन ख़तम हो तो रोटी मिले। ये बिलागिंग बड़ा ही भारी रोग हो चुका है भारत में। अब तक 6000 रोगियों कि पहचान हो चुकी है।
कविता |
-एक-यह कविता एक दोस्त के नाम है जो अब शायद बहुत दिन नहीं है। यूं कहें कि उसका छोटा सा पैगाम है हम सभी को - योगेश शर्मा की लिखाई के द्वारा कि
एक सुबह, मोहब्बत उजालों से हुई एक दोपहर, धूप से हो बैठा प्यार, सितारे दिखते हैं, अब कितने करीब, चाँद टंग जाता है, खिड़की के पार, क्यों लगे नजरें, सारी सहमी सी, क्यों अपनी आँखें,लगें मुझे नम नम, सभी आवाजें ,महसूस होती अपनी सी, मुझको हर हाथ, लगे क्यों मरहम , लगे हर काम, अधूरा सा मुझ को, ये लगे, कभी कुछ किया ही नहीं, सांस की महज़, खींचा तानी थी, ज़िन्दगी को जैसे, कभी जिया ही नहीं, मैं खुश हूँ ,भले ही वक्त है कम , बहुत पाना है, कुछ क़र्ज़ भी चुकाना है, हर एक पल, है ज़िंदगी ख़ुद में, इनको खोकर, ये राज़ जाना है |
| -दो-प्रियंकर जी प्रस्तुत कर रहे हैं युवा कवि विमलेश त्रिपाठी की दो कविताएं। अर्थ विस्तार जब हम प्यार कर रहे होते हैं बस यही हमारे जन्म से ही और वैसे ही आऊंगा मंदिर की घंटियों की आवाज के साथ किसी समय के बवंडर में खो गए हर रात सपने में जैसे लंबे इंतजार के बाद वैसे ही आऊँगा मैं…..
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-तीन- संगीता स्वरूप जी कह रहीं हैं नारी स्वयं सिद्धा बन जाओ! नारी शक्ति पर लिखी यह कविता काफी मर्मस्पर्शी बन पड़ी है। ये करूणा के स्वर नहीं है। उनके संघर्षरत छवि को आपने सामने रखा है। यह प्रस्तुत करने का अलग और नया अंदाज है। यदि नारी चाहती है कि उसकी दशा सुधरे और समाज में परिवर्तन आये, तो सबसे पहले अपनी मानसिकता बदलनी होगी ... नारी नारी के पक्ष में बोलने लगेगी, तो स्थिति सुधरते देर नहीं लगेगी ... पुरुष शाषित समाज भी बदल जायेगा ! तुम कब खुद को जानोगी कब खुद को पहचानोगी ? कुंठाओं से ग्रसित हमेशा खुद को शोषित करती हो अपने ही हाथों से खुद की गरिमा भंगित करती हो पुरुषों को ही लांछित कर खुद को ही भरमाती हो पर मन के विषधर को स्वयं ही दूध पिलाती हो दूसरे को कुछ कहने से पहले स्वयं में दृढ़ता लाओ नारी का आस्तित्व बचाने को स्वयं सिद्धा बन जाओ..... | -चार-सुर्दशन ‘प्रियदर्शिनी’ अमरीका में रह कर भारतीय संस्कृति पर आधारित लगभग दस साल तक पत्रिका निकाली, टी वी प्रोग्राम एंव रडियो प्रसारण भी किया। वर्तमान में आप केवल स्वतंत्र लेखन कर रहीं हैं। आखर कलश पर उनकी लघु कवितायें पढिए दीमक आशाओं / और अपेक्षाओं / के रथ पर सवार / रहते हैं हम / नही जानते / किसी ने / पहियों को / दीमक चटा / रखी है दंभ चटपट / खतम हो जाता है सौहार्द / आत्मीयता / और अपनापन जब निकल / आता है / दांत निपोरे असली स्वार्थ / स्वेच्छा और / दंभ आवाज दो आज तुम / इस शाम / मुझे इस अंधियारे / में उसी नाम / से पुकारो जिस नाम से / पहली बार / तुम ने बुलाया था / ताकि मैं / वही पुरानी / हूक में डूब कर / सारा मालिन्य / धो कर तुम्हारी आवाज पर / फिर से / लौट पाउं बहुत ही बेहतरीन रचनाएँ हैं ! खास तौर पर 'आवाज दो',बहुत गहराई है रचना में! |
-पांच-अपनत्व जी की यह कविता पोस्ट न करता तो आज की चर्चा अधूरी रह जाती। वो बहुत ही कम शब्दों में बड़े अपनत्व से बहुत बड़ी बड़ी और शिक्षाप्रद बातें कह जाती हैं! दोषारोपणजब वातावरण मे
| -छ्ह-श्यामल सुमन ने बहुत ही प्रेरणाप्रद कविता प्रस्तुत की है। आजकल ऐसी कवितायें अन्य कवियों की कलम से कम ही निकलती दिखती हैं! पूरे होते उसके सपने लगन हो जिसमे खास।
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-सात-रश्मि प्रभा...के कायनात का जादू बाकी है। यह जीवन के निरंतरता और प्रेम के गहन अनुभूति की सुंदर अभिव्यक्ति है! इनदिनों शब्द मुझसे खेल रहे हैं मैं पन्नों पर उकेरती हूँ वे उड़ जाते हैं तुम्हारे पास मैं दौड़ दौडकर थक गई हूँ एक तलाश थी बड़ी शिद्दत से रांझे की इनदिनों मेरे शब्द हीर के ख्वाब संजोने लगे हैं रांझे को जगाने लगे हैं कहते हैं हंसकर " कायनात का जादू अभी बाकी है हीर "
| -आठ-दिगम्बर नासवा की क्विता बंधुआ भविष्य रचना छोटी है पर इसमें मारक-क्षमता बहुत अधिक है! दूर से आती एक टिप्पणी है ---
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-नौ-रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ और शिक्षा हमारी मूलभूत आवश्यकताएं हैं। शिक्षा के सहारे अन्य आवश्यकताओं की पूर्ती हो सकती है परन्तु उस पर भी माफियाओं का कब्ज़ा होता जा रहा है। शिक्षा से वंचित रख कर किसी नागरिक को आजाद होने का सपना दिखाना बेइमानी है। इस सत्य को अनपढ़ औरत भी समझती .....उसका दर्द प्रस्तुत लोकगीत में फूटा है। -डॉ0 डंडा लखनवी
बहिनी! हमतौ बड़ी हैं मजबूर हमार लल्ला कैसेपढ़ी मोरा बलमा देहड़िया मंजूर हमार लल्ला कैसे पढ़ी
शिक्षा से जन देव बनत है, बिन शिक्षा चौपाया, शिक्षा से सब चकाचौंध है, शिक्षा की सब माया,
शिक्षा होइगै है बिरवा खजूर, हमार लल्ला कैसे पढ़ी विद्यालन मा बने माफिया विद्या के व्यापारी,
अविभावक का खूब निचोड़ै, जेब काट लें सारी, बहिनी मरज बना है यु नासूर हमार लल्ला कैसेपढ़ी | -दस-अशोक पाण्डे प्रस्तुत कर रहे है हिन्दी और मैथिली में समान अधिकार के साथ लिख चुके राजकमल चौधरी (१९२९-१९६७) कवि-उपन्यासकार-कथाकार की एक कविता। तुम मुझे क्षमा करो जिस पर बैठे थे कभी! |
-ग्यारह-बैठ खेत में इसको खाया : डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' की एक बालकविता पढिए सरस पायस पर। आज सुबह ही इसको लिखे हैं। बिल्कुल कटे तरबूजे की तरह ताज़ी है। इसको पढ़कर तो पाखी को तरबूज खाने का मन करने लगा!
जब गरमी की ऋतु आती है! लू तन-मन को झुलसाती है!! तब आता तरबूज सुहाना! ठंडक देता इसको खाना!!
पहुँचे जब हम नदी किनारे! बेलों पर थे अजब नज़ारे!! कुछ छोटे, कुछ बहुत बड़े थे! जहाँ-तहाँ तरबूज पड़े थे!! उनमें से फिर एक उठाया! बैठ खेत में उसको खाया!! उसका गूदा लाल-लाल था! मीठे रस से भरा माल था!! | -बारह-दीपक जी तो हमेशा सही नंबर डायल करते हैं , वैसे नम्बर कभी रांग नहीं होता। यह एक आधुनिक कविता है - इस मायने में कि इस धक्के के बाद भी परीक्षण में लगी है।.यह कविता कहीं नए दौर की व्यावहारिकता को दर्शाती है। तुम्हारे भेजे आखिरी ख़त जो काम तुम्हारे लम्बे-लम्बे ख़त ना कर सके |
ग़ज़ल |
-एक-नीरज गोस्वामी जी अपनी ग़ज़ल के द्वारा कितनी सुंदर बात कही है! .बेहतरीन ग़ज़ल है! इसमें नेक विचार है, सकारात्मक सोच है। जुदाई के पलों की मुश्किलों को यूं घटाता हूं जिसे सब ढूंढ़ते फिरते हैं मंदिर और मस्जिद में हवाओं में उसे हरदम मैं अपने साथ पाता हूं फसादों से न सुलझे हैं, न सुलझेगें कभी मसले हटा तू राह के कांटे, मैं लाकर गुल बिछाता हूं मुझे मालूम है मैं फूल हूं झर जाऊंगा इक दिन मगर ये हौसला मेरा है हरदम मुस्कुराता हूं घटायें, धूप, बारिश, फूल, तितली, चांदनी 'नीरज' तुम्हारा अक्स इनमें ही मैं अक्सर देख पाता हूँ
इस ग़ज़ल के बारे में एक टिप्पणी आई है
| -दो-श्यामल सुमन ग़ज़ल के माध्यम से हाल-चाल पूछ रहे हैं। उनकी रचनाओं का रंग अपने आप में सबसे अलग ही होता है.. उनको पढने का अपना आनंद है! हाल पूछा आपने तो पूछना अच्छा लगा |
संस्मरण |
-एक-उन्मुक्त जी के साथ मनाली के एक साइबर कैफे में, हिन्दी को लेकर एक रोचक हादसा हो गया था। इसी की चर्चा इस चिट्ठी में है। मनाली में जॉन्सन होटल है। इसके रेस्ट्रॉं में बढ़िया स्मोक्ड ट्राउट फिश मिलती है। एक दिन वे वही दोपहर का खाना खाने गये। वहीं पर वेटर ने, साइबर कैफे का पता बता दिया था। पहुंच गए। वहां पर वे मनाली में भी हिन्दी की कुछ सेवा कर सके। कैसे …? भगवान शिव को याद किए और कैसे! |
मेरी पसंद |
अरविन्द पाण्डेय के मन में प्रबल इच्छा हुई थी कि विवेकानंद की तरह संन्यासी बनें, किन्तु, वासनाएं शेष थीं तो ऐसा हो न सका। 1988 में भारतीय पुलिस सेवा ( Indian Police Service ) के लिए उनका चयन हुआ .तब से भगवान बुद्ध के महान बिहार की सेवा में व्यस्त हैं। उनका मानना है कि साहित्य, विशेषतः कविता, समस्त मानवता को सर्व-बंधन-मुक्त करती है। यह युग मुक्ति-दायिनी कविता का युग है। अब कविता के बिना मुक्ति असंभव है। परावाणी मंच पर वे संकटग्रस्त हिदी-साहित्य की सेवा करने वाले सभी कवियों, लेखकों से बात करने के लिए उपस्थित हुए हं। उनका मानना है कि हिन्दी कविता अपनी शक्ति से यह बता सकती है कि वह विश्व की सभी भाषाओं में लिखी जा रही कविताओं के समकक्ष खड़ी होकर समाज को प्रभावित कर सकती है और विश्व-स्तरीय सम्मान पाने के योग्य है। इसी लक्ष्य के साथ, यही बताने के लिए , वे इंटरनेट के विश्व-पथ का यात्री बने । यह गीत उन्होंने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रति हुई अपनी वास्तविक अनुभूतियों को व्यक्त करने के लिए लिखा था दिनांक ०८.१०.१९८३ को! रवीन्द्रनाथ का जीवन उन्हें अपना सा लगता है। उन्हें लगता है वे उनके साथ रहे हैं या वे वही थे!! यह गीत उन्होंने ७ मई के अवसर पर प्रस्तुत किया है.. तुम स्वप्न-शान्ति मे मिले मुझे-गुरुदेव रवींद्रनाथ के प्रतितुम प्रकृति-कांति में मिले मुझे , जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन. रश्मिल-शैय्या पर शयन-निरत, चंचल-विहसन-रत अप्रतिहत, परिमल आलय वपु,मलायागत, तुम अरुण-कांति में मिले मुझे, जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन. जब विहंस उठा अरविंद-अंक, अरुणिम-रवि-मुख था निष्कलंक, पतनोन्मुख था पांडुर मयंक, तुम काल-क्रांति में मिले मुझे , जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन . जब ज्वलित हो उठा दिव्य-हंस, सम्पूर्ण हो गया ध्वांत-ध्वंस, गतिशील हो उठा मनुज-वंश, तुम कर्म-क्लान्ति मे मिले मुझे, जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन. आभा ले मुख पर पीतारुण, धारणकर, कर में कुमुद तरुण, जब संध्या होने लगी करुण, तुम निशा-भ्रान्ति में मिले मुझे, जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन. जब निशा हुई परिधान-हीन, शशकांत हो गया प्रणय-लीन, चेतनता जब हो गई दीन, तुम स्वप्न-शान्ति मे मिले मुझे, जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन. तुम प्रकृति-कांति मे मिले मुझे, जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन.. |
चलते चलते |
समय परे ओछे बचन, सब के सहे रहीम
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Bahut hi vistreet aur chuninda posts ki charcha ki hai aapne...aapki mehnat ko salaam ..
जवाब देंहटाएंbahut acchi lagi...
aabhaar..
हमेशा कि तरह उम्दा चर्चा......अच्छे लिंक्स देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहुत तबियत से दिल लगाकर चर्चा की है आपने। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा चर्चा रही मनोज भाई , सभी लिंक्स और पोस्टें उम्दा हैं । शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंek dum dhaansu charcha manoj ji...kai nazmon ka rasaswadan karne ko mila.....maza aa gaya bas..bahut bahut shuqriya
जवाब देंहटाएं"समय परे ओछे बचन, सब के सहे रहीम
जवाब देंहटाएंसभा दुसासन पट गहे, गदा लिए रहे भीम"
बहुत सुन्दर मनोज साहेब..
विस्तृत और बेहतरीन वर्णन मनोज जी !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और विस्तृत चर्चा।
जवाब देंहटाएंइतनी अच्छी और विस्तृत चर्चा के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा चर्चा रही मनोज भाई ! शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंसमय परे ओछे बचन, सब के सहे रहीम
जवाब देंहटाएंसभा दुसासन पट गहे, गदा लिए रहे भीम
बेहद उम्दा! एकदम दिल से की गई चर्चा..
आभार्!
चर्चा अच्छी और सुंदर लिंक।
जवाब देंहटाएंएकदम दिल से की गई चर्चा..
जवाब देंहटाएंआभार्!
उत्तम चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा!
जवाब देंहटाएंताजे तरबूज को चर्चा में शामिल करने के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंउम्मीद थी ज़्यादा नहीं आएंगे...
जवाब देंहटाएंपर जो आए हैं उनको आभार!
एक बार फिर बेहतरीन और सार्थक चर्चा । साधुवाद ।।
जवाब देंहटाएंदिल खुश हो गया जी
जवाब देंहटाएंये हैं "असली" चिट्ठा चर्चा
पसंद ना आये तो पैसा वापस की गायरंटी :)