नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक बार फिर चिट्ठा चर्चा के साथ हाज़िर हूं।
अदत से लाचार हूं। चर्चियाने से पहले बतियाने की आदत सी पड़ गई है।
हमें लगता है हमें ऐसा समाज बनाना चाहिए जिसमें जाति, जातिसूचक शब्द, संकेत, प्रतीक भाव, आंतरिक संस्कार आदि का सर्वथा अभाव हो। जिसमें व्यक्ति की पहचान व्यक्तिगत हो जाति में नहीं ।
मैंने तो वर्षों पहले जब देश के एक नेता ने कुछ पांच या सात सुत्री कार्यक्रम चलाया था, जिसमें से एक था नाम के साथ जाति सूचक शब्द को हटाना, तो हटा लिया था। मेरे बच्चों के नाम के साथ भी नहीं है। मुझसे कोई नहीं पूछता आप किस जाति के हो। मुझे कोई ज़रूरत नहीं पड़ती जाति बताने की।
आइए अब चर्चा शुरु करें।
आलेख |
ज्ञान जी कहते हैं संचार तकनीक में कितना जबरदस्त परिवर्तन है! कितनी बेहतर हो गयी हैं कम्यूनिकेशन सुविधायें। उन्हें यह विचार इसलिए अचानक सूझा है कि सरकार को 3जी की नीलामी में छप्परफाड कमाई हुई है। बिजली की दशा देखिए हर जगह किल्लत। लूट और कंटिया फंसाऊ चोरी! यह शायद इस लिये कि कोई प्रतिस्पर्धा नहीं। कहते हैं
आर्थिकी विषयों पर ज्ञान जी की पोस्ट जानकारी और विचार बिंदु देती रहती है। जनता को सुविधा चाहिये। शायद निजीकरण इसका एक अच्छा विकल्प हो। पर क्या ये समाधान हैं? |
शिक्षामित्र हमें बहुत अच्छी सलाह देते हुए कहते हैं ग़लती का मूल्यांकन करें और आगे बढ़ें । आपको जब किसी काम में असफलता हाथ लगती है तब आप हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाते हैं। अच्छा तो यह होगा कि आप जब अपने प्रयासों में असफल रहते हैं तब आपको उसकी वजह ढूंढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। असफलताओं से सीखना एक टेढ़ी खीर है। आप असफल प्रयासों के मूल्यांकन के सहार ही अपनी गलतियों को ठीक कर सकते हैं। आप अवसरों की ताक में लगे रहिए। आपको दोबारा मौके मिलेंगे। गलतियों को मन से स्वीकार कर पाना भी तो एक बड़ी जीत जैसा ही होती है। आप नकारात्मक परिणामों को भी उपहार की तरह स्वीकार करें। आपको अपनी की गई गलतियों से बहुत सारी सीख मिलती है।
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दीप्ति परमार का आलेखः समकालीन हिन्दी उपन्यासः नारी विमर्श एक संग्रहणीय पोस्ट है। इसे प्रकाशित किया Raviratlami ने।पिछली सदी का अंतिम दशक और प्रारंभिक सदी का प्रथम दशक लगभग दलित और स्त्री विमर्श के दशक रहे हैं। इन दशकों में महिला लेखन एक नयी पहचान लेकर आया। समग्र साहित्य जगत ने एक स्वर से यह स्वीकार किया है कि हिन्दी साहित्य साहित्य में नारी जीवन सम्बन्धित साहित्य अब पूर्णतः परिवर्तित हो चुका है। प्राचीनकाल से नारी जीवन और उससे जुड़ी समस्याएँ अधिकांश पुरुष लेखकों की लेखनी से ही हुई है। लेकिन साठ के दशक के बाद महिला लेखिकाओं का आगमन बड़ी तेजी से हुआ और सदी के अंत तक आते आते तो इसकी संख्या और रचना शक्ति भी एक वैचारिक परिवर्तन के साथ शिखर पर पहुँची दिखाई देती है। समकालीन महिला लेखिकाओं के उपन्यासों के माध्यम से स्त्री की भयावह समस्याएँ प्रस्तुत हुई है। पितृसत्तात्मक मर्यादाओं की कड़ी आलोचना है जिसने स्त्रियों का खुला शोषण किया है। यह समकालीन कथा लेखन स्त्रियों के लिए मुक्ति का मार्ग खोजता हुआ विविध पहलुओं पर विमर्श करता हुआ पूर्ण क्षमता से प्रस्तुत हो रहा है।
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कृष्ण कुमार मिश्र* दो फणों वाला अदभुत सर्प- नन्हा रसेल वाइपर -एक एतिहासिक घटना! कृष्ण कुमार मिश्र, इस आलेख के लेखक वन्य जीवन के शोधार्थी है, पर्यावरण व जीव-जन्तु सरंक्षण को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए प्रयासरत हैं।
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क्या आप जानते हैं कि एटीएम के जनक कौन थे? क्या आप जानते हैं कि वे अब नहीं रहे? नहीं! तो पढिए शिवम् मिश्रा की यह पोस्ट। शिवम् मिश्रा बताते हैं कि भारत में जन्मे स्काटिश व्यवसायी जान शेफर्ड बैरन दुनिया को अलविदा कह चुके हैं लेकिन उनके द्वारा अविष्कार की गई एटीएम मशीन स्मृति के रूप में लोगों के दिलो दिमाग में बसी रहेगी। बैरन का जन्म 1925 में भारत में हुआ था। रोचक जानकारी के इस आलेख के कई किस्से काफ़ी मनोरंजक है, जैसे
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विश्वास कीजिए जब खुद को तकलीफ होती है तो सारी दवाएं भूल जाती हैं। ऐसा ही हुआ ALKA SARWAT MISHRA जी के साथ। सच ही कहा गया है कि डॉ. अपना ईलाज खुद कभी नहीं कर सकता। उन्होंने भी अपना इलाज खुद नहीं किया। हां मम्मी की एक बार दी हुई दवा याद आ गयी ,बस दो घंटे में तकलीफ हवा हो गयी। |
कुछ बेटे ऐसे हैं जिनके लिए माँ-बाप की सेवा से बढ़कर कुछ भी नहीं है और वे माँ-बाप की इच्छा को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। उनकी राह में न तो मौसम बाधा बन पाता है और न पैसों की तंगी! ऐसे ही एक बेटे मध्य प्रदेश के जबलपुर के कैलाश के बारे में बता रहे हैं संजीव शर्मा। उसने अपनी बूढ़ी दृष्टिहीन मां को देश के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों की यात्रा कराने की ठानी है। उसने बद्रीनाथ की कठिन पैदल यात्रा तय कर अपनी मां को बद्रीविशाल के दर्शन कराए। कैलाश कहते हैं
अब भी श्रवण कुमार है यह जानकार अच्छा लगा। उस महान शख्स को मेरा प्रणाम। |
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आनन्द पाठक की ग़ज़ल : यहाँ लोगों की आँखों में....... यहाँ लोगों की आँखों में नमी मालूम होती है
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आवारा सजदे। क्या अशआर एकत्रित किया है ASHISH ने। हमसे ना पूछ मोहब्बत के मायने ए दोस्त हमने बरसो एक बन्दे को ख़ुदा माना है ~ कदम रुक से गए हैं फूल बिकते देख कर मेरे मैं अक्सर उससे कहता था मोहब्बत फूल होती है ~ उसने कहा कौन सा तोहफा मैं तुम्हे दूँ मैंने कहा वही शाम जो अब तक उधार है ~ वो भी शायद रो पड़े वीरान कागज़ देख कर मैंने उनको आखरी ख़त में लिखा कुछ भी नहीं |
बरसों बाद हिमान्शु मोहन प्रस्तुत कर रहें एक ग़ज़ल। कहते हैंग़ज़ल कहते बना है बरसों बाद
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अदा जी कह रही हैं जिक्र हो फूलों का बहारों की कोई बात हो! ये एक आशा का संचार करती रचना है। जिक्र हो फूलों का बहारों की कोई बात हो |
--योगेन्द्र मौदगिल जी की ग़ज़ल सामयिक सच को अंगीकार करती एक गंभीर रचना है। हो गये रिश्ते आलपिन जैसे. दिलो-दिमाग़ डस्टबिन जैसे. मन में अंबार कामनाऒं का, अब तो जीना हुआ कठिन जैसे. होड़ जोखिम की और पैसे की, लोग हैं बोतलों के जिन्न जैसे. आज उनका दीदार जम के हुआ, आज का दिन है खास दिन जैसे. साल दर साल उम्र खो बैठे, लम्हा-लम्हा या दिनबदिन जैसे. |
कहानी |
भूख से आँख खुलते ही सुबह-सुबह मुकेश को अपने घर के सामने से थोड़ा बाजू में लोगों का मजमा जुड़ा दिखा. भीड़ में अपनी जानपहिचान के किसी आदमी को देख उसने अपने कमरे की खिड़की से ही आवाज़ देते हुए पूछा- ''क्या हुआ अरविन्द भाई? सुबह से इतनी भीड़ क्यों लगी है?'' ''यहाँ कोई भिखारिन मरी पड़ी है मुकेश जी, शायद सर्दी और मर गई.'' दीपक 'मशाल' की लघुकथा तलब का नायक दुखी मन से दातुन करते हुए पछता रहा था कि उसकी सिगरेट की तलब किसी की भूख पर भारी पड़ गई।
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मध्यमवर्गी परिवार की मजबूरियों को भोला बचपन भी समझने लगा है ... कुछ ही शब्दों में इस त्रासदी को प्रभावी तरीके से लिख दिया है सुलभ सतरंगी ने लघु कथा नौकरी के ज़रिए। कभी कभी बच्चे ऐसी बात कह देते हैं कि इंसान की सोच से परे होती है
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एक बहुत अच्छी और सीख देती कहानी सुना रहे हैं ’उदय’ जी। कहानी क्या है समझिए आपको खजाना ही मिल गया संतोष का। एक झलक देखिए
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कविताएं |
“मखमली लिबास” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)मखमली लिबास आज तार-तार हो गया!मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!! सभ्यताएँ मर गईं हैं, आदमी के देश में, क्रूरताएँ बढ़ गईं हैं, आदमी के वेश में, मौत की फसल उगी हैं, जीना भार हो गया! मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!! अति उत्तम!! इस कविता को पढकर मुझे एक कवि की कुछ पंक्तियां याद आ गई | |
रावेंद्रकुमार रवि की ख़्वाइश है हम भी उड़ते। बाल सुलभ कल्पना की उडान लिए एक बाल गीत प्रस्तुत करते हैं सरस पायस पर। हम भी उड़ते आसमान में जैसे उड़े पतंग! सजाकर सुंदर-सुंदर रंग! देख-देख जिनकी उड़ान हम रह जाते हैं दंग, वे चिड़ियाएँ उड़ें मज़े से मस्त हवा के संग!
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पी.सी.गोदियाल जी कह रहे हैं “कल रात को मैं कुछ लिख न पाया !” क्यों? क्यों भाई क्यों? क्या कहा…..! पतंगा कोई एक गीत गा रहा था,
कभी साथ ऐसा किसी ने निभाया,
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समाज के छुवाछूत को ये किसी साधु महात्मा के प्रवचन नहीं हैं जी, ये तो "एक गंजेरी की सूक्तियां" के अंश हैं। PD द्वारा प्रस्तुत इस कविता के एक और अंश देखिए धुवें में
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.कम शब्दों में सशक्त और गहरी अभिव्यक्ति! प्रस्तुत कर रहे हैं राजकुमार सोनी जी। दिल की जमीं पर
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मेरी पसंद |
चन्द्रकान्त देवताले जी की प्रमुख कृतियों में लकड़बग्घा हँस रहा है (१९७०), हड्डियों में छिपा ज्वर(१९७३), दीवारों पर ख़ून से (१९७५), रोशनी के मैदान की तरफ़ (१९८२), भूखण्ड तप रहा है (१९८२), आग हर चीज में बताई गई थी (१९८७) और पत्थर की बैंच (१९९६) शामिल हैं। देवताले जी हमारे समय के सबसे महत्वपूर्ण रचनाकारों में गिने जाते हैं। आज गुनिये Ashok Pande द्वारा कबाड़ख़ाना पर प्रस्तुत उनकी एक कविता : अगर तुम्हें नींद नहीं आ रही अगर तुम्हें नींद नहीं आ रही |
चलते-चलते |
बादलों से उलझी हुई चांदनीआके सिरहाने गुमसुम खड़ी हो गई।बाप के शीश पे उम्र के बोझ सीएक नन्हीं सी बेटी बड़ी हो गई।---------- महेन्द्र शंकर |
इस बेहद उम्दा चर्चा में मेरे ब्लॉग को शामिल कर जो सम्मान आपने दिया है उसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, इतने सारे उपयोगी लिंक्स के लिए आपका आभारी हूँ !!
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा है जी. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंचर्चा बहुत ही उपयोगी और सार्थक रही!
जवाब देंहटाएंइसमं मेरा गीत सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद!
उपयोगी चर्चा
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा चर्चा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंचर्चा अच्छी लगी .
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को आपने शामिल किया उसके लिए धन्यवाद। चर्चा अच्छी है।
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा...बधाई.
जवाब देंहटाएं________________________
'शब्द-शिखर' पर ब्लागिंग का 'जलजला'..जरा सोचिये !!
आपकी चर्चा हमेशा की तरह उम्दा.....नए और उपयोगी लिंक्स मिले ..
जवाब देंहटाएंआभार
achhe aalekh....sundar kahaniyaan ...ek ajooba...kai rasbhari ghazlen,....charcha nahi 56 bhog hai ... :)
जवाब देंहटाएंइस चर्चा में समेटे गए विभिन्न पोस्टों को बड़े सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया है आपने.
जवाब देंहटाएं... चर्चा प्रसंशनीय है !!!
जवाब देंहटाएंआधुनिक श्रवण कुमार का चित्र देख अच्छा लगा। आशा है उन्हे बहंगी से बेहतर विकल्प मिल गया होगा मां-बाप को यात्रा कराने का।
जवाब देंहटाएंThanks Manoj ji.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा, हर विधा की पोस्टों को छुआ आपने।
जवाब देंहटाएंअमूमन अनामी ब्लॉगों के प्रति नकारात्मक रवैया ही रहता है। मुझे खुशी है कि आपने हमारे ब्लॉग को चिट्ठाचर्चा में स्थान दिया है। आभार।
जवाब देंहटाएं.बधाई..
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