:) फ़त्तू की सास का आई.क्यू. तो पता चल ही चुका है, आज ससुर का भी आई.क्यू. देख लीजिये। फ़त्तू अपनी ससुराल गया तो घर में केवल उसका ससुर ही था। थोड़ी देर के बाद फ़त्तू, जोकि अभी अभी कुछ महीने लखनऊ में बिताकर आया था, अपने ससुर से बोला, “जी, अब आप इजाजत दे दो तो मैं जाऊं वापिस”। ससुर के होश गायब कि ये पता नहीं क्या मांग रहा है। बात घुमाते हुये उसे कहने लगा कि यार ये खेती का काम ऐसे और वैसे। फ़त्तू ने फ़िर इजाजत मांगी। ससुर ने फ़िर गांव जवार की बात फ़ैलाई। फ़त्तू ने फ़िर इजाजत मांगी, ससुर का गुस्सा अब फ़तू की सास पर बढ़ने लगा कि मुझे बताकर नहीं गई ये इजाजत नाम की बला के बारे में। इतने में फ़तू की सास आ गई और जब फ़त्तू ने इजाजत मांगी तो उसने अपनी कुर्ती की जेब से पांच का नोट निकाला, न्यौछावर किया और फ़त्तू को सौंप दिया। जब वो चलने लगा तो ससुर बोला, “अबे ओ, बावली बूच, इजाजत इजाजत मांग के मेरा खून पी लिया तैने, तन्नै पांच रुपल्ली चाहिये थे तो सीधे-सीधे न कह सके था कि पांच रुपये दे दो।”
:) फ़त्तू पहली बार अपनी ससुराल गया था। चाय नाश्ता करने के बाद उसने जेब से पचास का नोट निकाला और अपने छोटे साले से कहा, "जाकर बाईस का बीड़ी का बंडल और सत्ताईस की माचिस ले आ"। सासू ने सुना तो सोच उठी कि जमाई तो बहुत पैसे लुटाने वाला है। हैरान होकर पूछने लगी, "इत्ते इत्ते रूपये तुम फ़ूंक देते हो, बीड़ी वीड़ी में"? फ़त्तू के मौका हाथ आ गया, बढ़ाई चढ़ाई का, बोला, "सासू मां, ये तो ससुराल हल्की मिल गई हमें जो बाईस सत्ताईस से काम चला रहे हैं, न तो हम तो 501 या 502 से कम की बीड़ी फ़ूंका ही नहीं करते थे कभी भी"।
:) फ़त्तू ने कंधे पर अपनी जेली(भालानुमा लाठी, जिसके सिरे पर तीखे फ़लक लगे होते हैं, और जो बनी तो तूड़ी वगैरह निकालने के लिये थी पर उसका उपयोग सबसे ज्यादा लड़ाई झगड़े में किया जाता है) रखी हुई थी और वो शहर में पहुंचा। एक दुकान पर उसने देखा कि एक मोटा ताजा लालाजी(हलवाई) चुपचाप बैठा है और उसके सामने बर्फ़ी से भरा थाल रखा था। फ़त्तू ने देखा कि लालाजी बिना हिले डुले बैठा है तो वो अपनी जेली का नुकीला हिस्सा एकदम से लालाजी की आंखों के पास ले गया।
लालाजी ने डरकर अपना सिर पीछे किया और बोले, "क्यूं रे, आंख फ़ोड़ेगा क्या?"
फ़त्तू बोला, "अच्छा, इसका मतलब दीखे है तन्ने, आन्धा ना है तू।"
लालाजी, "तो और, मन्ने दीखता ना है के?"
फ़त्तू, "फ़ेर यो बर्फ़ी धरी है तेरे सामने इत्ती सारी, खाता क्यूं नहीं?"
लालाजी, "सारी खाके मरना थोड़े ही है मन्ने।"
फ़त्तू, "अच्छा, खायेगा तो मर जायेगा?"
लालाजी, "और क्या?"
फ़त्तू ने बर्फ़ी का थाल अपनी तरफ़ खींचा और बोला, "ठीक सै लालाजी, हम ही मर लेते हैं फ़िर।"
कहानी नं. 4
रुकिए, फत्तू की सारी कहानी यहीं छाप देंगे तो मूल ब्लॉग में कौन जाएगा? तो, बाकी की कहानी वहीं पढ़ें. वैसे भी, ब्लॉग पोस्टों में फत्तू तो फिलर की तरह है. सोचिए, फत्तू जब इतना नमकीन है, तो पूरा पकवान कैसा होगा!
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चलते चलते -
देसी पंडित में हर शुक्रवार को कुछ फोटो ब्लॉग से फोटो प्रदर्शित किए जाते हैं. अभी-अभी फ्राइडे फ़ोटो के अंतर्गत 100 पोस्टें पूरी हुईं. कमाल का चयन. हर फोटो दर्शनीय. एक खासतौर पर आपके लिए, शीर्षक है – लाइट इन द शेडो :
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वाह भई फत्तू तो फत्तू ही निकले. चित्र वास्तव में ही बहुत सुंदर है.
जवाब देंहटाएंफत्तू की कहांनियां तो मजेदार हैं ही चित्र भी अच्छा है। देसी पंडित से हो कर आ रहा हूँ। बहुत सुंदर चित्र हैं वहां पर तो।
जवाब देंहटाएंजानकारी देने के लिए धन्यवाद।
ये चर्चा पढ लिया है।
जवाब देंहटाएंफत्तू से मिलना बहुत रोचक लगा, ओर बहुत सुंदर चित्र
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा..सुंदर चित्र.
जवाब देंहटाएंमजेदार....
जवाब देंहटाएंवाह ! आनन्द आ गया। ये फत्तू मियाँ तो बड़े सयाने निकले।
जवाब देंहटाएंआपको धन्यवाद दिये बगैर मूल पोस्ट पर नहीं जा सकता। यह फोटो भी बहुत अच्छी लगी।
janab fattu ki kahaniyon ke to ham bhi FAN hain aur foto ki to baat hi ghazab hai...
जवाब देंहटाएंbahut bahut bahut sundar...
charcha bemisaal rahi...
haan nahi to...!!
Fattu naam kaa paatra laajawaab hai. to
जवाब देंहटाएंFattu kaa janmdaataa haajirjawaab hai.
रवि साहब,
जवाब देंहटाएंमो सम का बेमौसमी धन्यवाद स्वीकार करें। आज एक मित्र के माध्यम से यह लिंक मिला। शुक्रिया, चुपचाप रहकर उद्यम करने के लिये।