गुरुवार, जुलाई 05, 2012

भारत के भावी प्रधानमंत्री, बतकुचनी और चश्मेबद्दूर

आजकल दुनिया में हिग्स बोसान माने भगवान कण मिलने के हल्ले हैं और इधर देश में मानसून की आरती उतारने में प्रतीक्षारत लोगों की चिन्तायें हैं। बीच-बीच में राष्ट्रपति चुनाव की लहर भी चलती रहती है। कल क्रिकेट टीम भी घोषित हो गयी। कल ही दो समाचार एक साथ झलक दिखा रहे थे। ऊपर जिनेवा में हिग्स बोसान कण मिलने की खुशी की चहल-पहल दिख रही थी। नीचे एक समाचार था बिजली कटौती से दिल्ली के निवासी हैरान। एक बार तो ये भी लगा कि शायद दिल्ली की बिजली काट के क्या जिनेवा की महामशीन को सप्लाई दे दी गयी क्या भाई! वैसे आपको तो पता ही है कि जो दुनिया में आज कहीं हो रहा है वो हमारे पुराणों में सदियों पहले हो चुका है। हिग्स बोसान कण के बारे में भी यही बात सच है। यह जिनेवा में आज दखा लेकिन गरूण पुराण में न जाने कब से टहल रहा है।

बीच-बीच में भारत का प्रधानमंत्री पद के अगले उम्मीदवार की भी चर्चा होती रहती है। कभी इनका नाम उछलता है कभी उनका उभरता है। उनमें से कुछ के ब्लॉग भी चलते हैं। एक भारत का एक भावी प्रधानमंत्री ऐसा भी है जो लगाता सन 2011 से लगातार ब्लॉग लिख रहा है लेकिन मीडिया उनकी चर्चा नहीं करता। हां भाई चंदन कुमार मिश्र के ब्लॉग का नाम है भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी। भावी प्रधानमंत्री जी देश की तमाम समस्याओं पर विचार करते रहते हैं। उनमें भाषा समस्या सबसे प्रमुख है। अंग्रेजी के खिलाफ़ उनकी किताब का नाम रखा है-'देशद्रोहियों की भाषा है अंग्रेजी'। भाषा समस्या पर विभिन्न विद्वानों के विचारों पर अपने विचार लिखे हैं चंदन ने। ग्रामीण इलाक़े में अंगरेज़ी माध्यम का एक स्कूल की झलक देखिये जरा-
बच्चे से शिक्षक कहता है कि कॉपी निकालो, तब बच्चा फिर अपनी बात दुहराता है कि तीन कॉपियाँ ही उसके पास हैं। शिक्षक पूछता है कि ‘इंग्लिश’ की कॉपी नहीं है? तब बच्चा कहता है कि ‘बाऽ’ यानी ‘है’। बच्चा हिन्दी समझ लेता है, लेकिन बोलने में असमर्थ रहता है। बच्चा कहता है- ‘मिस जी! हमरा के टास दे दीं। हमरा हिन्दी बोले ना आवेला।’ (मिस जी, मुझे टास्क दे दीजिए। मुझे हिन्दी बोलने नहीं आती। शिक्षक स्त्री है, इसलिए मिस जी कहा है, वह भी दूसरे बच्चों की देखादेखी ही कहा होगा बच्चे ने।) फिर उसके पड़ोस की एक बच्ची कहती है कि वह अभी नया है, हिन्दी बोलना नहीं जानता, हिन्दी सीख लेगा।


इन स्कूलों के बारे में चंदन की कामना है:
फ़िलहाल ऐसे स्कूल असफल हों, इस कामना के साथ... ... ... क्योंकि जलचर नभचर हो नहीं सकता, वह मर जाएगा, मर जाएगा और मरेगा ही अग़र जल की भाषा छोड़ नभ की भाषा बोलेगा... हाँ, यह बता दें कि वह स्कूल चलाने वाले और उसके ‘प्रिंसपल’ भारतीय संस्कृति के बड़े पक्षधर बनते हैं।


भारत के इस भावी प्रधानमंत्री के ब्लॉग की पंचलाइन चेग्वारा का यह कथन है-"कैसा प्रदर्शन, क्या सिर्फ पुलिस की गालियाँ और मार खाने के लिए…हरगिज नहीं! इस तरह का कोई भी कदम मैं उस समय तक नहीं उठाऊंगा, जब तक मेरे पास एक अदद बंदूक न हो" भगतसिंह, राममनोहर लोहिया, राहुल सांकृत्यायन, गांधी जी आदि महापुरुषों के विचारों और उनके कामों पर अपनी राय रखने वाले चंदन मिश्र अपने नायकों की कमियों को भी रेखांकित करते रहते हैं। स्वामी विवेकानंद वह पहले प्रसिद्ध व्यक्ति हैं जिनसे चंदन का परिचय हुआ। स्वामी विवेकानंद का दूसरा पक्ष लेख में चंदन मिश्र ने स्वामी जी संबंधित कुछ वे बातें लिखी हैं जिनको वे सही नहीं समझते। भारत का भावी कविता भी करता है। एक कविता आजादी का अंश देखिये:
राजधानी की सड़कों पे
15 अगस्त को
7-8 बरस के
उन बच्चों के हाथों में
एक रूपये वाले
झंडों को देखकर
समझ जाता है पूरा देश
आजादी क्या होती है ?
कभी-कभी कुछ अलग हटकर भी लिखते हैं चंदन और ऐसे लेखों में से एक का शीर्षक है- महाभारत का सबसे मूर्ख पात्र कौन? कृष्ण या अर्जुन ! चंदन लिखने के साथ-साथ पढ़ते भी बहुत हैं। मेरे तमाम सारे लेख उन्होंने पढे हैं। उनमें उनकी प्रतिक्रियायें तमाम लोगों की प्रतिक्रियाओं से अलग हैं। किसी पोस्ट पर कई पाठकों की वाह-वाही टिप्पणी से अलग उनकी प्रतिक्रिया इस तरह की है जिसका मतलब निकलता है- फ़ालतू की लफ़्फ़ाजी की है। आज ही मैंने उनके ब्लॉग पर अपना लिंक देखा तो वहां इस नाम से मौजूद है मेरा ब्लॉग- अन्तर्जाल का खुराफाती फुरसत में है! चंदन के ब्लॉगरोल में ही एक ब्लॉग का नाम है-बतकुचनी! उनके प्रोफ़ाइल के हिसाब से उनका परिचय देखिये:
महान साहि‍त्‍यकारों और पत्रकारों की जन्‍मभूमि‍, गाज़ीपुर जि‍ले की रहने वाली हूं और पि‍छले चार साल से दि‍ल्‍ली का अनाज उठा रही हूं। पत्रकारि‍ता के क्षेत्र में अच्‍छा करना ही पहला लक्ष्‍य है लेकि‍न उतने से ही संतुष्‍ट नहीं होना चाहती। कि‍सी ने समझाया है कि‍ केवल एक क्षेत्र में अच्‍छा करके संतुष्‍ट हो जाना वि‍कलांग सफलता है.. हर रोज नए लक्ष्‍य तय करना ही जि‍न्‍दगी है .....। हालांकि अपने आयाम खुद ही तय करने में भरोसा करती हूं लेकि‍न कहीं से कुछ भी अच्‍छा सुनने या सीखने को मि‍ल जाए तो उसे अपनाने में खुद को छोटा नहीं समझती....।
अब आप पूछोगे कि बतकुचनी का मतलब क्या होता है तो जानिये -बतकुचनी, जो बहुत-बहुत बातें करती हो... और उसकी कई बातें तो घाव भी कर-भर देती है.....औघड़ई करना, कुछ अच्‍छे लोगों को दोस्‍त बनाना, गाने सुनना और खूब बति‍याना... में रुचि रखने वाली बतकुचनीजी छोटी-छोटी पोस्टों में अपने विचार व्यक्त करती हैं। अपने एक लेख मुंबई के चॉल का छोटा प्रति‍रूप हैं दि‍ल्‍ली-नोएडा के पीजी.... में वे एक पीजी माने कि पेइंग गेस्ट हाउस के बारे में बताती हैं:
दि‍ल्‍ली-नोएडा जैसे शहरों में पीजी में रहना शौक कम मजबूरी ज्‍यादा है... वरना कौन एक ही बाथरूम एक ही टॉयलेट चार-पांच अनजाने लोगों के साथ बांटना पसंद करेगा...। एक ही कि‍चन में कौन लाइन लगाकर खाना बनाने का इंतजार करेगा...कौन अपने टूथपेस्‍ट से लेकर शौच के बाद हाथ साफ करने वाले डेटॉल पर ताला लगाना पसंद करेगा...आदमी अठन्‍नी और खर्चा रुपइया के फलसफे ने पीजी को आज का लेटेस्‍ट ट्रेंड बना दि‍या है....रह रही हूं इसलि‍ए इसकी तुलना मुंबई के छोटे-मोटे चॉल से कर सकती हूं.....पर ये भी सच है कि घर से दूर रहकर आपको जहां आटे-दाल का भाव पता चलता है वहीं आपमें कुछ ऐसी आदतें भी वि‍कसि‍त हो जाती हैं जो शायद घरवाले जिंदगी भर सीखाते रहें पर बच्‍चा सीख नहीं पाता है.; अपना ख्‍याल करना...;जि‍म्‍मेदारी उठाना..,कि‍फायत करना।
कापी पेस्ट प्रतिबंधित होने के चलते उनकी और पोस्टें यहां उद्धरत नहीं कर रहे हैं कि लेकिन आप उनके ब्लॉग पर जाकर पढ़ सकते हैं उनके विचार। वहीं ताक-झांक करने आपको लिंक मिलेगा चश्मेबद्दूर का। मिजाज से चित्रकार और पेशे से अध्यापिका दिल्ली निवासिनी अपराजिता की छोटी सी गृहस्थी उनके लेखन और चित्रकारी दोनों की प्रेरणा है।कुछ कविताओं में चित्र भी उनके ही बनाये हुये हैं। वे मधुबनी पेंटिंग भी करती हैं। उनके ब्लॉग पर भी कापी ताला लगा हुआ है। लेकिन एक कविता देखिये:
बस स्टैंड पर बैठी लड़की कि नज़र
डूबते सूरज कि लालिमा पर पड़ी और उसकी आँखे चमक उठी
उसने तुरंत उस बेहद दिलकश नज़ारे को साझा करने के लिए
बगल ही में बैठे प्रेमी से कहा
देखो मुझे उसमे तुम ही दिख रहे हो.....
तुम्हारा नाम आसमान कि लाल बिंदी बन गया है......
प्रेमी ने उसकी उत्सुक आँखों में डूबते हुए
हिंदी फिल्म के गाने कि एक लाइन दोहराई
''तेरे चेहरे से नज़र नहीं--
हटती नज़ारे हम क्या देखें''....
लड़की समझी बस दुनिया इसी एक पंक्ति में सिमट आई है ......
समय के घूमते पहिये पर एक शाम ऐसी भी आई
जब उसी लड़की ने डूबते सूरज को देख प्रेमी को देखा
और उसने कहा......
क्या ?
कुछ कहना चाहती हो ?
बाकी की कवितायें, लेख पढ़ने और चित्रकारी/कार्टून देखने के लिये आप इधर ही चलिये चश्मेबद्दूर ब्लॉग पर।

कुछ एक लाइना

  1. एकलव्य की व्यथा लिखूंगा : बस जरा अंगूठा कटने दो
  2. सावन को झूमकर आना ही पडा :वैसे नखरे बहुत दिखाये उसने
  3. दिल्ली के दिल पर पाकिस्तान का प्रहार :चलो एक बार फ़िर से करें हाहाकार
  4. और हम पहुँच गए वतन!!!! :और आते ही लिखने लगे पोस्ट
  5. रूठ गया निष्कर्ष दिशा से : और गृह स्वामी कविता लिखने लगा
  6. राजकुमारियां कपड़े नहीं धोतीं...! : बल्कि मेढ़क की हल्की भुनी टांग चबाती हैं
  7. बेहूदा हिदायतें : शब्दों का सफ़र पर
  8. विज्ञान और कला: एक अध्ययन: करने की कोशिश में एक कवि
  9. हिंदी ब्लॉग्गिंग अब सही दिशा की ओर जा रही है... :लेकिन रोज लोग इसकी दिशा बदल देते हैं।
  10. " गलबहियां कपड़ों की ......" :शर्ट की बटन में मोचा और रूमाल तौलिये के आगोश में
  11. हनी जैसी स्वीट, मिर्ची जैसी हॉट:आइये देखिये जरा पटनिया किस्से का ठाठ

मेरी पसंद

वाशिंग मशीन में सब कपडे आपस में कितने प्यार से गलबहियां करते हैं और उन्माद में नाचते रहते हैं | जबकि वे सब जानते हैं कि अंत में उन्हें निचोड़ा भी जाएगा और दर्द भी होगा | जिससे जिस्म पर सलवटें भी पड़ेंगी परन्तु दाग छुडाने को वे इतनी पीड़ा भी सहने को तैयार रहते हैं | किसी कपडे का किसी दूसरे से कोई बैर नहीं | जींस अपनी दोनों बाहें फैलाए समेट लेती है शर्ट को , शर्ट के बटन में मोजा किलोल करता रहता है | तौलिया अपना बड़प्पन दिखाते हुए रुमाल को अपने आगोश में भर लेती है | "वीआईपीफ्रेंची" टाइटेनिक की तरह कभी एक ओर से कभी दूसरी ओर से डूबने उतराने के प्रयास में बड़ा सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करता है | सभी कपड़ों में न किसी धर्म का बैर न किसी सम्प्रदाय का , न कोई लिंग भेद न कोई वर्ण भेद | सब आपस में मिल कर एक दूसरे का दाग छुड़ाने में मददगार ही साबित होते हैं | यहाँ तो जो कमजोर वर्ण का होता है वही सब पर अपना रंग छोड़ देता है | यहाँ दबंग बे असर होता है |
धोबी के यहाँ तो मुसलमानी बुरका हिन्दू की जींस के साथ ,पठानी कुर्ता पंडित जी की धोती के साथ , सरदार जी का साफा घाघरा -लहंगे के साथ लिपट सिमट जाता होगा |
"जब कपडे आपस में कोई बैर , भेद नहीं करते और साथ साथ पीड़ा सह कर बेदाग़ होने को तत्पर रहते हैं ,तब उन्हें पहनने वाले उनकी तरह व्यवहार क्यों नहीं कर सकते !"
अमित श्रीवास्तव

और अंत में

पिछली चिट्ठाचर्चा रचना जी ने की। वे अपनी सुविधा के हिसाब से चर्चा करेंगी। चर्चा मंच में उनका स्वागत है।
आज के लिये फ़िलहाल इतना ही। नीचे का चित्र चंदन कुमार मिश्र के ब्लॉग से।

Post Comment

Post Comment

23 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी पसंद में खुद को पाकर शर्म से लाल हो गए हम तो |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जिस की-बोर्ड से लाल होने की बात लिखी गयी है उसी को इस्तेमाल करने वाला दूसरा ब्लॉगर लाल-पीला हो भी रहा होगा! :)

      हटाएं
  2. फेसबुक महाराज नहीं होते तो हम यहाँ पहुँचते ही नहीं... बाकी क्या कहें...
    हाँ, प्रधानमंत्री नाम पर कई बार हल्ला मचा है, कई बार सवाल हुए हैं... इसलिए कहना चाहते हैं कि ऐसी कोई 'खास' इच्छा अपनी नहीं है... बस एक मजाक-सा है वह...

    जवाब देंहटाएं
  3. Ab itminan se sab padha....bade dino baad.....bahut badhiya...

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह ......आज की चर्चा से कई नए लिंक मिले - नए ब्लॉग से रूबरू होने का सौभाग्य प्रपात हुआ, दिन सफल.

    जवाब देंहटाएं
  5. abhi batkuchni aur chashmebaddur tak pahunche hai aur khushi kaa thikana nahi hai ....saarthak kavitaayein aur rochak lekhan ...dhanyawaad

    जवाब देंहटाएं
  6. दिल्ली और नॉएडा के बच्चों ke लिए पढ़ाई और नौकरी का गढ़ होने के नाते पी जी में रहना एक मजबूरी है तो एक दूसरे के साथ सामंजस्य स्थापित कर पाने की आदत का विकास भी है. घर से दूर दूसरों में अपनों की तलाश और फिर अपनत्व का एक भाव पैदा करता है.
    अमित जी का लिखा यथार्थ निर्जीव वस्त्रों के बहने सजीव और विचारशील मानवों पर कटाक्ष कर गया और बहुत ही अच्छा लगा.

    जवाब देंहटाएं
  7. अनूप साहेब,
    अब घुरी-घुरी, आपकी चर्चा पढ़ कर तारीफ़ का कसीदा पढ़ने के लिए, रंग-रंग का अनुप्रास, अलंकार नहीं लावे सकेंगे हम... काहे से कि भाषा के मामले में तनिक हाथ तंग है हमरा ...सोझा-सपाटा बात कहते हैं...आप जैसन चर्चाधिपति, चर्चारेश्वर, और चर्चावान और कौन है भला !!! डम्पलाट चर्चा रही आज की भी..
    आप कहते हैं कि हिंदी ब्लॉग्गिंग अब सही दिशा की ओर जा रही है... :लेकिन रोज लोग इसकी दिशा बदल देते हैं।
    अरे हमरा तो बस अब एके गो फार्मूला है..जोन दिशा में ऊ चल पड़ती है, हमरे लिए वही दिशा (दीसा), सही दिशा बन जाती है...इफ यू कांट बीट देम, ज्योइन देम :)
    अनित श्रीवास्तव जी को आज कल पढ़ रहे हैं...बहुत ही अन्वेषी निग़ाह है उनकी..
    बाक़ी तो आपकी चर्चा के लिए कहते हैं .'चश्मेबद्दूर'...
    'हाँ नहीं तो !' कहना छोड़ दिए हैं अब, बहुते कम्पीटीसन हो गया है अब :)...बकिया 'बातकूचे' में पारंगत होवे का कौनो कोर्स-उर्स आप भी शुरू करिए दीजिये, पहिला इस्टूडीनटनी हमको मानियेगा .. हाँ न...!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हां नहीं तो कहना किसकी सहमति से छोड़ीं जी। कोई कैसे पहचानेगा कि कमेंट आपका है।

      हटाएं
  8. अरे ई का हो गया..!!
    आधे कमेन्ट छापा..बुझाता है कॉपी-पेष्ट में ग़लती से मिश्टेक हो गया..गुरुदक्षिणा का तो बात रहिये गया...
    हाँ तो हम कह रहे थे...
    अनूप साहेब,
    अब घुरी-घुरी, आपकी चर्चा पढ़ कर तारीफ़ का कसीदा पढ़ने के लिए, रंग-रंग का अनुप्रास, अलंकार नहीं लावे सकेंगे हम... काहे से कि भाषा के मामले में तनिक हाथ तंग है हमरा ...सोझा-सपाटा बात कहते हैं...आप जैसन चर्चाधिपति, चर्चारेश्वर, और चर्चावान और कौन है भला !!! डम्पलाट चर्चा रही आज की भी..

    आप कहते हैं कि हिंदी ब्लॉग्गिंग अब सही दिशा की ओर जा रही है... :लेकिन रोज लोग इसकी दिशा बदल देते हैं।

    अरे हमरा तो बस अब एके गो फार्मूला है..जोन दिशा में ऊ चल पड़ती है, हमरे लिए वही दिशा (दीसा), सही दिशा बन जाती है...इफ यू कांट बीट देम, ज्योइन देम :)
    अनित श्रीवास्तव जी को आज कल पढ़ रहे हैं...बहुत ही अन्वेषी निग़ाह है उनकी..
    बाक़ी तो आपकी चर्चा के लिए कहते हैं .'चश्मेबद्दूर'...
    'हाँ नहीं तो !' कहना छोड़ दिए हैं अब, बहुते कम्पीटीसन हो गया है अब :)...बकिया 'बातकूचे' में पारंगत होवे का कौनो कोर्स-उर्स आप भी शुरू करिए दीजिये, पहिला इस्टूडीनटनी हमको मानियेगा... गुरुदक्षिणा में एकलव्य जैसन अंगूठा दे नहीं पावंगे हम, अंगूठा देखा ज़रूर सकते हैं :) हाँ न...!

    जवाब देंहटाएं
  9. वैसे आपको तो पता ही है कि जो दुनिया में आज कहीं हो रहा है वो हमारे पुराणों में सदियों पहले हो चुका है।


    धोबी के यहाँ तो मुसलमानी बुरका हिन्दू की जींस के साथ ,पठानी कुर्ता पंडित जी की धोती के साथ , सरदार जी का साफा घाघरा -लहंगे के साथ लिपट सिमट जाता होगा |
    "जब कपडे आपस में कोई बैर , भेद नहीं करते और साथ साथ पीड़ा सह कर बेदाग़ होने को तत्पर रहते हैं ,तब उन्हें पहनने वाले उनकी तरह व्यवहार क्यों नहीं कर सकते !"

    अमित जी! वाह! बहुत सुन्दर!

    जवाब देंहटाएं
  10. चन्दन कुमार मिश्र जी का लिंक देखा हुआ है ! बाकी सारे लिंक भी देखे ! एक लाइन कहूं तो सभी बीस पर शब्दों के सफ़र वाली पक्का इक्कीस :)

    जवाब देंहटाएं
  11. शब्दों के सफर वाली लिंक कहां गई ?

    जवाब देंहटाएं
  12. अली साहब लिंक तो एक और भी गायब कर दी गई है,क्वचिदन्यतो$पि की,अब का करें,आजकल बड़े प्रेशर रहते हैं,चर्चाकारों के ऊपर !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रेशर कुछ नहीं है जी। बस यह चिंता है कि कहीं मजाक के चलते आपके गुरुजी का ब्लड प्रेसर इतना न उचक जाये कि मानस मर्मज्ञ वैज्ञानिक चेतना संपन्न मत्स्य अधिकारी की तबियत गड़बड़ा जाये इसलिये उनकी एक लाइना को हटा दिये।

      हटाएं
  13. अनूपजी आजकल तो आप कमाल ही कर रहे हैं। इतनी अच्‍छी जानकारी और इतने अच्‍छे लिंक दिए हैं कि अकाल के दिनों में वर्षा की झड़ी लगा दी है। आपका आभार। एक-एक लिंक को अवश्‍य पढा जाएगा।

    जवाब देंहटाएं
  14. आदरणिय, जब भी आपकी चिट्ठा चर्चा को पढ़ता हूँ तो बहुत मजेदार बातें पता चलती हैं, और हमारे लिये ये बड़े ही सौभाग्य की बात है कि आपकी चिट्ठाचर्चा के माध्यम से कई बेहतरीन ब्लॉग्स के लिंक भी मिल जाते हैं......आपका बहुत शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Google Analytics Alternative