गुरुवार, अप्रैल 11, 2013

हिंदुस्तान के लड़के बदसूरत, बेढंग और बेहूदे होते हैं

पिछली चर्चा में बात शुरु हुयी जर्मनिया इनाम बांटने की। कुछ लोग पढ़े होंगे बाकी मटिया दिये होंगे। काहे का टाइम वेस्ट करना जी। वकील साहब दिनेश राय द्विवेदी जी ने कहा:
"ये इनाम शिनाम सब जोड़ तोड़ जुगाड के खेल हैं जी। फिर भी जीतने वाले को संतोष सुख तो मिलता ही है। कुछ हल्ला गुल्ला भी होता रहता है। हिन्दी ब्लागिंग में कुछ समय से सन्नाटा सा है। चलो इस बहाने ही कुछ तो हो रहा है। जो जीते उस की जय, हमारी एडवांस बधाई! हम ने अपने वोट डाल दिए हैं।"
गलत तो नहिऐ कहा द्विवेदी जी ने। इनाम जब छंटे हुये को मिलते हैं तो जोड़-जुगाड़ तो चलेगा ही कुछ न कुछ। समर्थन/विरोध होगा। हल्ला-गुल्ला होगा तभी न पता चलेगी कि कुछ बंट रहा है इनाम-सिनाम। जिनको जुड़ाव होगा, लगाव होगा कुछ वही तो न बहस करेंगे। वर्ना तो ज्ञानदत्त पांडेयजी की तरह ऊंची बात कहकर निकल जायेंगे:
ब्लॉग का इतिहास, सम्मान और ईनाम की रेवड़ी का इतिहास होगा शायद? जो उससे बचा, वह हाशिया बन गया।
बताइये भला जिसका पर्सोना तक हिन्दी ब्लॉगिंग ने बदल के धर दिया वह ही हिन्दी ब्लॉगिंग के इतिहास को सम्मान और रेवड़ी का इतिहास कहे तो कैसा लगेगा? यह हिन्दी ब्लॉगिंग के स्वर्णिम क्षणों को हंसिये से काटकर हासिये पर डालने साजिश है जी। सो हम उनकी बात से फ़ौरन असहमत हो जाते हैं और कहते हैं। अब छोड़िये कहना क्या अगली चर्चा करते हैं। और क्या कर सकते हैं इसके अलावा हम। सो आइये जरा हो जाये कुछ चर्चा-वर्चा ब्लॉग जगत के हिन्दी चिट्ठों की। इनाम की घोषणा के बाद संतोष त्रिवेदी ने सवाल किया नारी कोई सामूहिक ब्लॉग भी है ?? उन्होंने सवाल किया:
"ब्लॉग की मुख्य अवधारणा ही पारस्परिक मंतव्यों का आदान -प्रदान होता है जबकि 'नारी' ने कई बार इसका उल्लंघन किया है,अपने व्यक्तिगत नियम बनाये हैं,जबकि इसे सामूहिक ब्लॉग बताया जा रहा है .जहाँ पढ़ने के लिए गंभीर सामग्री न हो,दूसरे ब्लोग्स के बारे में हमेशा नकारात्मकता हो,पढ़ने तक में आरक्षण हो,ऐसे में किन आधारों पर उसे वोट दिया जाए ??"
ब्लॉग जिसे हम फ़्राम द वेरी बिगनिंग लेकर 2005 से ,बजरिये रविरतलामी, अभिव्यक्ति का माध्यम मानते रहे हैं उसके लिये अब संतोष त्रिवेदी ने बताया कि ब्लॉग ब्लॉग की मुख्य अवधारणा ही पारस्परिक मंतव्यों का आदान -प्रदान होता है। मतलब जिसमें लिखने के अलावा टिप्पणी और प्रति टिप्पणी होती रही। मत और मंतव्य इधर-उधर होते हैं। मतलब कुछ तुम कहो कुछ हम कहें का जबाबी कीर्तन होता हो। अब अगर इसे सही माना जायेगा तो इस आधार पर तो हथकढ़ और अनुराग आर्य की दिल की बात ब्लॉग ब्लॉगिंग श्रेणी से निकल गये क्योंकि इनमें टिप्पणियां बंद हैं। इस कसौटी पर कुछ दिन तक तो सतीश पंचम, सतीश सक्सेना, प्रशान्त प्रियदर्शी के ब्लॉग का भी ब्लॉगिंग फ़ंक्शन फ़टा रहा क्योंकि उनमें टिप्पणियां बंद रहीं कुछ दिन। बेफ़ालतू की मानमनौव्वल के बाद इन खलीफ़ा लोगों ने अपने ब्लॉग का टिप्पणी बक्सा खोला। बहरहाल संतोष त्रिवेदी ने नारी ब्लॉग को सामूहिक ब्लॉग मानने से मना कर दिया और रवीश कुमार से निराश भी हो गये और लिखते भये:
"अगर कंटेंट के नाम पर भी देखा जाय तो यहाँ सिफर रहता है. जानकीपुल या मोहल्ला लाइव जैसों के मुकाबले रवीश कुमार ने इसे नामांकित करके निराश किया है !"
अब सिफ़र कंटेन्ट हो या जो हो लेकिन अब तो ब्लॉग नामांकित हो ही चुका है। जिनको वोट देना होगा देंगे ही। न देना होगा नहीं देंगे। खुशदीप ने भी आह्वान किया है नारी ब्लॉग को वोट देने का । जबर लाबीईंग भी कर रहे हैं। इसके अलावा सुरेश चिपलूनकर जी ने भी , जिनके फ़ेसबुक पर 5002 मित्र और 10707 समर्थक हैं, ने भी नारी ब्लॉग को समर्थन देने की अपील की है अपने स्टेटस में। हम एक बार अपना मत दे ही चुके हैं। अब आगे देखिये क्या होता है!

कल हमने दोबारा नामांकन वाले ब्लॉग देखे। उनमें देखा कि सर्प संसार में कुल जमा अट्ठाइस पोस्टों में से 24 पोस्टें डा.जाकिर अली रजनीश ने डाली हैं और 23 पोस्टें डा.अरविंद मिश्र ने (उनकी भुजंग वाली पोस्टें गायब न होती तो शायद कुछ और पोस्टें उनके नाम होंती)। लेकिन अखबारों की कृपा से लखनऊ में हल्ला हुआ कि ब्लॉग डा. जाकिर अली रजनीश का है। डा. अरविन्द मिश्र जी नाम लगता हैं कि चिर अभिशप्त है ऐन टाइम पर गायब हो जाने के लिये। पहले भी उनका नाम गायब हुआ डार्विन वाली किताब से। अब जर्मनिया इनाम के नामांकन खबर से भी। मात्र मानस पिता कहलाकर संतोष करना भी कितना सुखकर है/कितना कष्टकर है। :)

इस हल्ले-गुल्ले में विज्ञान ब्लॉग की चर्चा रह गयी। हल्ले-गुल्ले से अलग विज्ञान की बातों को सरल भाषा में कहने की कोशिश करते रहे आशीष श्रीवास्तव। करीब सौ पोस्टें लिखीं गयीं इस ब्लॉग पर। सामग्री के लिहाज से देखा जाये तो इस बेहतरीन ब्लॉग की चर्चा भले ही ब्लॉग जगत में कम हुई लेकिन इसके लेखो में अंश अखबारों में लगातार आते रहे। सवाल-जबाब के माध्यम से विज्ञान से जुड़ी जानकारियां हैं। इस ब्लॉग को चलाने का उद्धेश्य बताते हुये आशीष ने लिखा:
"यह चिठ्ठा विज्ञान की नयी पुरानी जानकारी इंद्रजाल पर उपलब्ध कराने का एक प्रयास है। विज्ञान से जुडे हर विषय पर मैं लिखने का प्रयास करुंगा लेकिन मेरे पसंदीदा विषय जैसे ब्रह्माण्ड और उसकी उत्पत्ती , भौतिकी से जुडे लेख ज्यादा होने की संभावना है। इस चिठ्ठे मे मैं मौलिकता का दावा नही करता हूं, अधिकतर सामग्री इंद्रजाल पर उपलब्ध जानकारी या मेरे द्वारा पढ़ी गयी पुस्तकों, लेखो से ली गयी होगी। मेरा योगदान उन्हे अनुवाद और संपादन कर प्रकाशन करना मात्र होगा। यदि मेरा यह प्रयास सफल रहा तो मैं यह सामग्री हिन्दी वीकी के लिये उपलब्ध कर दूँगा।"
इंद्रजाल से शायद उनका मतलब अंतर्जाल होगा। वैसे अंतर्जाल भी तो एक तरह का इंद्रजाल ही है। अभी तक इस ब्लॉग को केवल एक प्रतिशत वोट मिले हैं। सामग्री के लिहाज से यह और वोट का अधिकारी है। विज्ञान ब्लॉग के लिये भी हम वोटिंग करेंगे भाई! जो नामांकित हो गये उनमें से कोई न कोई तो चुना ही जायेगा। लेकिन मेरी समझ में यहां मुकाबला हिंदी के नामांकित ब्लॉगरों का आपस में नहीं है। यहां दुनिया की 14 भाषाओं के ब्लॉगों की कुस्ती है। लगायत इंडीब्लॉगीस , तरकश इनाम और दीगर इनामों में हिन्दी के ब्लॉगरों के लिये वोटिंग बहुत पतली रही है। बहुत कम लोग वोट देते रहे हैं। अंग्रेजी और दूसरी भाषाओं के मुकाबले हिंदी ब्लॉग के लिये वोटिंग का स्तर अल्पसंख्यक सरीखा रहा। दुनिया की इस तीसरी नंबर की भाषा में वोट के मामले में लोग बहुत ढीले रहे हैं अब तक। मेरी गुजारिश है कि जिसको मन आये उसको वोट दीजिये लेकिन दीजिये जरूर। लोकसभा, विधानसभा के चुनाओं की तरह चुप बैठकर हिंदी ब्लॉगिंग को हासिये की चीज मती बताइये। यहां पर जाइये। अपने पसंदीदा ब्लॉग के लिये वोट डालिये और हिंदी ब्लॉगिंग को हाशिये से उठाकर केंद्र पर लाइये। चौदह ब्लॉग नामांकित हैं इस श्रेणी में जिसमें सर्प संसार सबसे अधिक 32% मत लेकर सबसे आगे है। इसको वोट देकर इस कैटेगरी में हिन्दी के एक ब्लॉग की जीत तो पक्की कर ही सकते हैं हिंदी ब्लॉग जगत के लोग! इस सिलसिले में डा.अरविंद मिश्र का यह आवाहन काबिले गौर है-
" विश्व की अनेक भाषाओं में मोस्ट क्रिएटिव एंड ओरिजिनल कटेगरी में हिन्दी के ब्लॉग सर्प संसार को कृपया वोट करें!https://thebobs.com/english/category/2013/most-creative-original-2013/"
जहां तक रवीश कुमार द्वारा नारी ब्लॉग को नामांकित होते देखने में निराश होने वाली बात है तो मेरी समझ में इसमें निराशा जैसी बात ठीक नहीं लगती। जिन लोगों ने रवीश कुमार को जूरी बनाया उनके कुछ मापदंड रहे हों शायद। रवीश कुमार स्वयं संवेदनशील इंसान हैं। बचपन से आसपास/मोहल्ले की लडकियों की समस्यायें देखीं। लड़कियों के बाप के हाल देखे। ऐसे में अगर उन्होंने नारी मुद्दों से जुड़े ब्लॉगों (नारी, चोखेरबाली और औरत की हकीकत को नामांकित किया तो किया। उससे क्या निराश होना? इसी बहाने मैंने उनके ब्लॉग की पुरानी पोस्टें देखीं। खासकर यह पोस्ट! इसका यह अंश देखिये:
"हिंदुस्तान के लड़के बदसूरत, बेढंग और बेहूदे होते हैं। लड़कियां तो सज कर कुछ बेहतर से बहुत बेहतर लगती रहती हैं। लड़कों के पास नौकरी न हो और समाज में शादी का चलन न हो तो मेरा यकीन है कि लाखों की संख्या में लड़के कुंवारे रह जाते।"
पता नहीं कैसे नारी मुद्दों पर लिखने वालों से यह पोस्ट कैसे छूट गयी। इसका जिक्र धड़ल्ले से करना चाहिये उनको । :) रवीश कुमार बेटियों के ब्लॉग पर एक पोस्ट में अपनी पत्नी और बच्ची के चलते खुद में आये बदलावों को रेखांकित करते हुये लिखते हैं:
"मेरी बेटी हर दिन मुझे बदल देती है। आज ही दफ्तर से लौटा तो स्वेटर का बटन बंद कर दिया। चार साल की तिन्नी ने कहा कि ठंड लग जाएगी। तुम्हारे एनडीटीवी में ठंड नहीं लगती। बाबा तुम एकदम पागल हो। बेटियों को ख्याल करना आ जाता है। बस हमलोग यानी पुरुष पिता उस ख्याल को अपने अधिकारों से नियंत्रित कर नियमित मज़दूरी में बदल देते हैं। तिन्नी हर काम करना चाहती है। अक्सर पूछती है तुम किचेन में क्यों नहीं जाते। तुम भात क्यों नहीं बनाते। मेरा किचेन में जाना न के बराबर होता है। पत्नी भी नहीं जाती। लेकिन उसे सब कुछ बनाना आता है। मुझे चाय बनानी आती है। जब काम करने के लिए कोई और नहीं था, तब बर्तन धो कर श्रमदान करता था। पोछा लगाता था। लेकिन किचन में काम करना ही पड़ता था। फिर भी खाना न बना पाने की इस एक कमज़ोरी और असमानता के अलावा हर काम में बराबर का बंटवारा होता है। नयना की इस आदत का असर तिन्नी पर भी हो गया है। नयना ने ही मुझे सिखाया कि काम दोनों बराबर करेंगे। फिर भी मेरे घर और शहर से बाहर होने के कारण उसे ही अधिक ज़िम्मेदारी उठानी पड़ती है। लेकिन वह बता देती है कि इसकी कीमत है। फ्री नहीं है।

नयना के कारण मैं बिहार के एक अर्धसामंती परिवेश में पला बढ़ा एक मर्द काफी बदला हूं। सोच से लेकर बोल तक में। भाषा में अनायास और स्वाभाविक रूप से आने वाले स्त्रीविरोधी शब्दों की पहचान उसी ने करायी। कहा कि देखो यह तुम्हारे भीतर का मर्द बोलता है।

बाकी का बदलाव तिन्नी ला रही है। छुट्टी के दिन तय करती है। कहती है आज बाबा खिलाएगा। बाबा घुमाएगा। बाबा होमवर्क कराएगा। मम्मी कुछ नहीं करेगी। मैं करने लगता हूं। वही सब करने लगता हूं जो तिन्नी कहती है। मैं बदलने लगता हूं। बेहतर होने लगता हूं। बेटियों के साथ दुनिया को देखिए अक्सर मन करता है इसे इस तरह बदल दें। इसके लिए खुद बदल जाएं।"
अगर नारी (और चोखेरबाली भी) ब्लॉग को नामांकित करने का चुनाव रवीश कुमार का है तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ है।

बहरहाल बहुत हुआ। आप अब अपना वोटिंग का कार्यक्रम शुरु करिये न!

मेरी पसंद

संध्या के बस्ते से पीली दो नम्बर की पेन्सिल लेकर किया गगन के नीले पन को श्यामल उसका सुरमा घिस कर और शरारत से मुस्का कर रजनी हौले से यों बोली देखूँ कैसे जीते मुझसे ऊषा खेले आँख मिचौली लेकिन ऊषा ने पेंसिल के पीछे लगे रबर को लेकर मिटा दिया सुरमाये पन को प्राची की चौखट से घिस कर दरवाजे की झिरी खोल कर किरण झाँकती इक यह बोली जीतेगी हर बार उषा ही कितनी खेलो आँखमिचौली कुहनी के धक्के से लुढ़की मेज रखी पानी की छागल छितराई बन ओस भोर की खोल निशा की मोटी साँकल हार मान रजनी ले गठरी अपनी फिर कर गयी पलायन भोर हो गई लगा गूँजने नदिया तट पाखी का गायन. राकेश खंडेलवाल

और अंत में

आज के लिये फ़िलहाल इतना ही। बाकी फ़िर कभी। व्यस्त रहिये ,मस्त रहिये।

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16 टिप्‍पणियां:

  1. हमहू कर आये वोट विज्ञानं ब्लाग को . एकदम चौचक बा

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  2. हमारी बात से बड़ी हमारी फोटू ? देखकर नीक लाग :)
    .
    .
    ब्लॉग को पढ़ने से रोकने के नाम पर भयानक चुप्पी :)

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    1. चुप्पी नहीं।

      और सच की तरह यह भी एक सच था। क्या पता आगे भी फ़िर कभी ऐसा हो। लेकिन नामांकित है इनाम के लिये यह भी आज का सच है।

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    2. फ़ोटो जैसी ब्लॉग में थी वैसी ले ली। हमने कोई कांट-छांट नहीं की। बात से बड़ी लगी इसका मतलब यह है कि बात छोटी ही रही होगी। :)

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  3. शीर्षक वाली लाइनें बेचारे फ़्रस्ट्रेटिड किस्म के लोग ही कह सकते हैं :) जहां तक बात इनाम-शिनाम की है, एेसे शगल समय-समय पर होते ही रहने चाहिए... यहां-वहां तरह-तरह से निकलती भड़ास पढ़-पढ़ के मुआ दिल भी लगा रहता है

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    1. शीर्षक वाली बात तो उस पोस्ट का एक हिस्सा हैं जिससे यह वाक्य लिया गया। पोस्ट को पढिये तब शायद यह बात उतनी असंगत न लगे। :)

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    2. काजल भाई ने तो मेरा कमेंट मेरे दिमाग से चुरा लिया और पहले ही पोस्ट कर दिया है. अब मैं क्या करूं? :)

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  4. http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2012/09/blog-post_24.html
    ek link dae rahii hun content kyun sifar haen naari blog kaa pataa chal jayega


    aur waese bhi jab koi " sifar" ki baat kartaa haen to mujhae manoj kumar kaa
    zero diyaa maere bharat ne yaad aataa haen

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  5. अनूप जी ,आप दुखती रग पर उंगली रखे बिना बाज नहीं आते -पर पीडक हैं आप !
    दूसरो के दुःख से आप आनंदित होते हैं :-(
    अभी एक विवाद तो आना बाकी है -पोस्टर है तस्लीम का और वोट दनादन ब्लागर्स असोसिएशन को दिए गए हैं/दिए जा रहे हैं
    और अगर आप डोयिचे वेले के चयन की टिप्पणी पर ध्यान दें तो वह अनेक वैज्ञानिकों के द्वारा विज्ञान की जानकारी लोगों तक पहुचाने के विशिष्टता का उल्लेख करता है जो साईंस ब्लागर्स पर सटीक बैठता है न कि तस्लीम पर और लिंक भी साईंस ब्लागर्स का लगा है -यह एक भ्रामक स्थिति है जिसे आयोजकों द्वारा स्पष्ट करना चाहिए नहीं तो यह पुरस्कार विवादित हो जाएगा ! रचना सिंह जी ने इसे पहले पाईंट आउट किया था और बात तबसे वहीं अटकी हुयी है ! मैं आज डोयिचे वेले को लिख रहा हूँ !

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    1. अरविंद जी, वास्‍तव में 'बॉब्‍स' की वेबसाइट में कोई गलती नहीं है। संभवत: 'तस्‍लीम' ब्‍लॉग की सेटिंग में ही कोई गडबडी हो गयी है, जिसकी वजह से scientificworld.in/ लिंक खोलने पर ब्‍लॉग आटोमैटिक रूप में http://blog.scientificworld.in/ पर फारवर्ड हो रहा है। इस तकनीकी दिक्‍कत को जल्‍द ही दूर कर लिया जाएगा।
      'बॉब्‍स' में वास्‍तव में 'तस्‍लीम' का ही लिंक लगा है, इसे कन्‍फर्म करने के दो तरीके हैं। पहला उस लिंक के ऊपर अपना कर्सर ले जाएं। ऐसा करने पर उसमें लगा हुआ लिंक स्‍क्रीन पर 'स्‍टार्ट' बटन के पास दिखने लगेगा। दूसरा तरीका यह है कि वेबसाइट में जहां पर 'तस्‍लीम' का यूआरएल लिखा है, उस पूरे मैटर को सेलेक्‍ट करके माउस का राइट बटन दबाएं और 'व्‍यू सेलेक्‍शन सोर्स' को क्लिक कर दें। इससे एक नई विंडो खुल जाएगी और सेलेक्‍ट किये गये मैटर में लगाया गया लिंक लिख कर आ जाएगा।
      आशा है इससे आपका भ्रम दूर जाएगा।

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  6. अनूप जी, तस्‍लीम को तो आप कन्‍ने से काट गये, कौन बात की नाराजगी है ?

    वैसे आप चर्चा नहीं किए, तो कोई बात नहीं, और भी ब्‍लॉगाचार्य हैं जमाने में। लीजिए एक तस्‍लीम दृष्टि इधर भी मार लीजिए::http://www.parikalpnaa.com/2013/04/blog-post.html

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    उत्तर
    1. कन्नी काटने के लिये क्या है? नाराजगी कैसी?

      इसके पहले की पोस्ट में सारे ब्लॉग की चर्चा की है। देखियेगा अगर न देखा हो तो:

      सबसे बढिया ब्लॉग -इंडीब्लॉगीस से डायचे वेले तक

      हटाएं
  7. "खलीफ़ा लोग" हा हा हा...

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  8. कल की गई यह टिप्‍पणी लगता है आप तक पहुंची ही नहीं।

    हल्‍ला मचे न
    मोहल्‍ला जाने न
    चौराहे पर कोई देखे न
    फिर नुक्‍कड़ पर बैठे कर करें चर्चा

    हिंदी ब्‍लॉगिंग से नहीं निकल रहा
    इंटरनेट, कंप्‍यूटर, मोबाइल की खरीद पर
    आने वाला खर्चा

    फिर काहे के इनाम
    किसके इनाम
    इस इनाम की नाम दौड़ में
    फुरसतिया जी का बड़ा नाम है

    कोई मीठा तरबूज धाम है
    किसी पर जेठ दोपहर की घाम है
    कोई लगाता पढ़ने पर पोस्‍टें
    अपने माथे पर झंडू बाम है

    राखी सावंत निहाल है
    बिपाशा बसु कमाल है
    कैटरीना कैफ की चर्चा का
    फिल्‍म जगत में
    खूब धमाल है

    फिर पूछते हैं
    इनामों में ई नाम का
    क्‍या हाल है
    खर्चा निकले सबका
    यही सबसे बड़ा सवाल है

    जरुरी नहीं पूछे
    गणित का मास्‍टर
    सवाल
    किसी भी विषय का ज्ञाता
    खूब है बताता

    मस्‍ती में गाता
    मस्‍ती में आता
    अखबारों में छपने पर
    इतिहास बनाता

    मैं तो यह कहूंगा
    कि तकनीक के इस धाम का
    खूब बढि़या कमाल है

    सब कुछ कमाल है
    सब हो रहे मालामाल हैं

    जवाब देंहटाएं

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