
ये सच नहीं है कि चिट्ठापाठकों द्वारा और चिट्ठाचर्चा में भी कविताओं को तरजीह नहीं दी जाती. ये क्या - देखिए तो, आज चिट्ठाचर्चा में धुंआधार कवि सम्मेलन हो रहा है -
अनहद नाद
मां सब कुछ कर सकती है
रात-रात भर बिना पलक झपकाए जाग सकती है
पूरा-पूरा दिन घर में खट सकती है
धरती से ज्यादा धैर्य रख सकती है
बर्फ़ से तेजी से पिघल सकती है.....
हिन्द-युग्म
माँ, क्या तुम्हारा कर्तव्य नहीं?
...तुम कहती हो,
हर सवाल का जवाब है
तुम्हारे पास...सच?
जवाब दे पाओगी?
कल, जब पूछा जायेगा...
"दादी, पेड़ क्या होता है?....
शब्द सृजन
देख उजड़ती फसल को, रोता रहा किसान.
बेटा पढ लिख कर गया, बन गया वो इंसान.
देख उजडती फसल को, रोता रहा किसान.
सारी उम्र चलाया हल, हर दिन जोते खेत.
बूढा हल चालक हुआ, सूने हो गए खेत.
दो बेटे थे खेलते इस आंगन की छांव.
अब नहीं आते यहां नन्हें नन्हें पांव. ......
हिन्द युग्म
मिथ्या
क्या है जीवन, क्या है लक्ष्य,
क्या है इस जीवन का लक्ष्य,
क्या है इन श्वासों का मतलब,
क्या वह जीवन व्याख्या है?
अजब है अचरज, अजब अचंभा,
इस दुनिया का गोरखधंधा,
जिस आयाम में रहता है,
अनभिज्ञ उसी से रहता है,....
हम भी हैं लाइन में
प्यार की निष्ठाओं पर उठते सवालों के बीच रहता हूँ इस घर में
शब्द ,जब मौन की धरातल पर सर पटक चुप हो जायें
आस्था, जब विडम्बना की देहली पर दस्तक देने लगे
गीली आँखों के कोने में कोई दर्द , बेलगाम पसरा हो
तनहाइयां ,जब चीख के बोलना भूल जायें....
दीपक बाबू कहिन
अपने मौन से मैत्री कर लो
मैं बोलूँ अपनी बात
वह सुनते नज़र आते हैं
कभी लगता है कि मुझे कुछ
कहते देख रहे हैं
पर गुनते नज़र नहीं आते
मुझे नहीं लगता कि वह
मेरा कहा सुन पाते हैं....
घुघूती बासूती
मेहरबानी मेरे दोस्त
मेहरबानी मेरे दोस्त तूने मुझे उड़ना सिखा दिया,
चाँद सितारों की सैर करा स्वर्ग दिखा दिया,
सुनहरे सपनें दिखा मुझे प्यार करना सिखा दिया,
तूने ही तो मुझे प्रेम सोमरस प्याला पिला दिया,
जड़वत थी मैं अब तक तूने हिला दिया,
मर मर कर जी रही थी, जी जी कर मरना सिखा दिया ।....
राजीव रंजन प्रसाद
शक
तुम याद आये और हम खामोश हो गये
पलकों पे रात उतरी, शबनम से रो गये
सौ बार कत्ल हो कर जीना था फिर भी मुमकिन
अश्कों के सौ समंदर पीना था फिर भी मुमकिन
फटते ज़िगर में अंबर आ कर ठहर गया है
टुकडे बटोर कर दिल सीना था फिर भी मुमकिन
नफरत नें तेरे दिल को पत्थर बना दिया है
सपनों नें तेरी आँखें देखीं की सो गये
पलकों पे रात उतरी, शबनम से रो गये....
ब्रह्मराक्षस का शिष्य
ब्रह्मराक्षस का शिष्य
बावड़ी की उन घनी गहराईयों में शून्य
ब्रह्मराक्षस एक पैठा है ,
व भीतर से उमड़ती गूँज की भी गूंज ,
हड़्बड़ाहट- शब्द पागल से
गहन अनुमानिता
तन की मलिनता
दूर करने के लिए, प्रतिपल
पाप-छाया दूर करने के लिए, दिन-रात
स्वच्छ करने -
ब्रह्मराक्षस....
कुछ लम्हे
सपने..जो अक्सर टूट जाया करते हैं......
खामोश शाम के साथ -साथ
सपने भी चले आतें हैं।
बिस्तर पर लेटते ही
घेर लेते हैं मुझे
और नोचने लगते है अपने पैने नाखूनो से ..
जैसे चीटियों के झुंड में कोई मक्खी फंस गयी हो
घर , कार, कम्प्यूटर, म्यूजिक सिस्टम, मोबाईल , महंगे कपड़े ,डांस पार्टी ,वगैरह -2
मक्खी के शरीर से खून टपकने लगता है.....
हिन्द-युग्म
आओ जेहादियों
साठ सालों से सभी नोचते आ रहे हैं,
आ , तू भी आ
आ ,मेरी पथराई निगाहों से पानी निचोड़ ले,
ओ , धर्म के रखवाले,
इंसानियत के ठेकेदार,
इस जहां से
मिटती मानवता की कहानी निचोड़ ले।....
और, अंत में...
कवि सम्मेलन के दौरान हिन्दी कवि का परिचय पढ़ा गया. आप भी अवश्य पढ़ लें.
चित्र - क्या आप बता सकते हैं कि यह किस हिन्दी चिट्ठे से लिया गया है?
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