पर चिट्ठाकारों ने नजरअंदाज करने की कला सीख ली है ओर विवादों के अनन्तर विवेक को विराम न देने की नीति अपनाई जा रही दिख रही है। कमल शर्मा की ओर से वैकल्पिक मीडिया के तौर पर रेडियो पर सूक्ष्म विचार-
रेडियो एफएम के साथ 30 रुपए से लेकर 500 रुपए तक की हर रेंज में ईयर फोन के साथ मिलते हैं। दो पैंसिल सेल डाल लिए, और जुड़ गए देश, दुनिया से। यह आकाशवाणी है...या...बीबीसी की इस पहली सभा में आपका स्वागत है...। आया न मजा.... क्या खेत, क्या खलिहान, पशुओं का दूध निकालते हुए, उन्हें चराते हुए, शहर में दूध व सब्जी बेचने जाते हुए, साइकिल, मोटर साइकिल, बस, रेल, दुकान, नौकरी, कार ड्राइव करते हुए सब जगह समाचार, मनोरंजन वह भी 30 रुपए के रेडियो में..
अन्य विवेकप्रधान विचारप्रधान पोस्टों मे ज्ञानदत्त पांडेय विकलांगता पर संवेदनशीलता की राय दे रहे हैं। दीपक भारतदीप का चिंतन में जलसंकट की ओर ध्यानाकर्षण है। छत्तीसगढ़ी नगाड़े के अनवरत स्वरों की सूचना सुनिए अंगारे पर। लचर भारतीय कूटनीति पर अफसोस मेरा कमजोर भारत शीर्षक पोस्ट में। उधर ममता को अझेल्य टीवी सीरीयल भी देख सकने की क्षमता पर गर्व है- जाओ आप भी समझाने की कोशिश कर देखो। मीडिया के गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार पर रोष व्यक्त कर रहे हैं विप्लव। अच्छी चीजों की तारीफ की सलाह मिल रही है अपूर्व से। प्रियदर्शन बॉलीवुड की मौलिकता पर सवाल करते हैं, मौलिकता ही कहानी से जुड़ाव देती है।
प्रेम करने की ललक, धोखा खाने की कसक, अकेले होने की तकलीफ, असहाय होने की कातरता, घुटने टेकने की मजबूरी, लड़ने की चाहत, तमाम उल्टे हालात के पार जाने का जज्बा- ये सब वो चीजें हैं जो दुनिया के किसी कोने में हो, उनमें हमारी परछाई होती हैं।
वैसे ज्यादा विचार करना भी ठीक नहीं वायुदोष का इससे गहरा संबंध है- आई हैव नो क्लयू। और हॉं अनुराग मुस्कान कुत्तों के बहाने आदमियत पर एक बहस चला रहे हैं
वैसे भी डॉगी आजकल बहुत पहुंच वाले हो गए हैं। इंसान जब से इंसान के लिए समस्या बना है तब से डॉगी समाधान बन गए हैं। डॉगी लोग को खतरा सूंघने की जिम्मेदारी देकर ही तो हम और आप आतंकवाद की तरफ से बेफिक्र हो लिए हैं। नतीजा यह कि इंसान अब इंसान से ज्यादा डॉगी पर भरोसा करता है।
फुरसतिया अपने सुभाषितों के नए बंडल के साथ आए हैं और नायिका भेद में ब्लॉगर का स्थान निर्धारण कर रहे हैं-
हर ब्लागर के अंदर एक अदद मुग्धा नायिका रहती है। जो अपनी खूबसूरती पर फिदा होती है। कोई नायिका किसी से भी पूछे- बताओ मैं कैसी लग रही हूं तो किसी के पास भी -बहुत अच्छी, खूबसूरत कहने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। ऐसे ही अगर कोई ब्लागर अपनी पोस्ट दिखाता है तो बहुत अच्छा लिखा है से कम कुछ नहीं सुनना चाहता है। अगर उसने सुन भी लिया तो इसके बाद निश्चित तौर पर वह आपके खिलाफ़ राशन पानी लेकर चढ़ जाता है
चर्चा लिखे जाने तक 22 लोग टिप्पणी में इसे अच्छा बहुत अच्छा ही कह चुके थे, जिन्होंने इससे कम कहा है उनके साथ क्या होने वाला है अनूप बता चुके हैं :)
हम खचेढ़ू चिंतामणि के अगले अंक में उत्साह पर विचार कर रहे हैं। और हॉं आज की बड़ी खबर है कि कल कि बड़ी खबर होगी हिंदी ब्लॉगिंग पर पहली कवर स्टोरी जन सत्ता में । इसी बात की तस्दीक बाद में खुद लेखिका ने नोटपैड पर की। एक और जोरदार खबर यह कि जाने अनजाने नए ब्लॉगर से एक प्रयोग हो गया कि एक ब्लैंक पोस्ट डल गई, टाईटल ये इशारा करता था कि चिट्ठाचर्चा है ( ड्यू भी थी....आखिरकार अब तक न हो सकी है) इस खाली पोस्ट को खूब हिट मिले और यह दिन भर की चौथी सबसे लोकप्रिय पोस्ट बन गई- अरे भई कुछ करो इस रेटिंग का।
कुछ सूचनाएं भी हैं- मसलन ये कि अब हिंदी में ब्लॉगिंग हो सकती है....नहीं समझ आया न। जाकर देखो तब भी नहीं समझ आएगा। और जीतू लाएं हैं बिछुड़े लोगों को खोजने का तरीका। रवि रतलामी ने यह भी बताया कि दीवानापन उनके शहर भी पहुँच गया है। और है सूचना एक बड़ी शादी की। और चंद महत्वपूर्ण पुस्तकानुभव जो हमारी मानें तो जरूर पढ़े जाने की मांग करते हैं। घर से भागकर शादी करके कोई कैसा महसूस करता है या आवारा कुत्ते की मौत पर शहर कैसा महसूस करता है जाने अंकुर से। अविनाश नाराज न हों ये पहले ही कह दिया गया है।
अब बातें कविताओं की-
रीतेश की कविता का शीर्षक है न्यायप्रिय और सत्यनिष्ठ, शुभ्रा की कविता का शीर्षक है एक बुत-
पहले होठों से मुस्कान छीनी
फ़िर मन मस्तिष्क से विचार,
फ़िर भावनाओं को दफ़न कर,
उसे भावशून्य बना दिया गया
अब वह एक शून्य था
हरिहर ने टीसती रचना मेरी मर्जी शीर्षक से लिखी है। रमा द्विवेदी दो रचनाएं बेशुमार तन्हाइयाँ और एक और परीक्षा शीर्षक से लाईं हैं। बेजी की रचना से कुछ पंक्तियॉं
तू कहे तो…
इन बूँदों को...
सागर से बढा दूँ मैं ...
सावन में बरसा दूँ ...
झरने में गिरा दूँ मैं ...
सरगम की रागों में ...
रंगों की महफ़िल में...
आँछल के तारों में ...
गोदी में छिपा दूँ मैं...
इन सबके अलावा कुछ टेलीग्राम मार्का पोस्ट भी हैं। गद्य में भी और कविता में तो हैं ही।
आज की तस्वीर आरंभ से
बहुत सही चर्चा किये हो, महाराज. बधाई...करते रहो इसी दिलेरी से!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा की। बधाई!
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा के लिये धन्यवाद और बधाई
जवाब देंहटाएंइतनी सुंदर चर्चा के लिये धन्यवाद और साधुवाद
जवाब देंहटाएंकाकेश
मसिजीवी जी, सारा कुछ बहुत थोडे मे बडी अच्छी तरह समेट लेते हैं आप.चर्चा रुचिकर रही.
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