अब तक तो यूपी और बिहार के चुनाव में मुसलमान वोट बैंक थे, वोट खैंच लाते थे. परंतु अब वे चिट्ठों में पाठक भी खैंच लाने लगे हैं!
अब जबकि चिट्ठों के नारदीय क्लिक-दरों व गुलदस्तों से हिन्दी चिट्ठों की दैनिंदनी रेटिंग चल निकली है, चिट्ठों में पाठक खींचने की प्रवृत्ति साफ झलक रही है. मोहल्ला कुछ शांत हुआ तो नारद में पाठकों के क्लिक कुछ कम दिखाई देने लगे. यूपी चुनाव बनाम अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक-न्यायालयीन फ़ैसलों के नाम पर फिर से मोहल्ले में हरा रंग चढ़ा तो जवाब में चंद चिट्ठे केसरिया बाना पहने दिखाई देने लगे. तारीफ़ की बात ये कि जहाँ मुसलमान और मुसलमान से जुड़े मोहल्ले का शब्द था, क्लिक दर सैकड़ा पार करने की जद में था. मसलन ये -
और जहाँ कुछ इतर बातें की जा रही हैं, वहां क्लिक दर है शून्य. जैसे कि ये-
जाहिर है, यूपी चुनाव की तरह मुसलमान भी हिन्दी चिट्ठा पाठकों को खींचने का भरपूर सामर्थ्य रखते हैं.
तो अज्ञानी चिट्ठाकारों, अपने चिट्ठे की रेटिंग की, क्लिक दर की कुछ चिंता करो और अपने चिट्ठे को हरा रंग दो. यदि तुम ऐसा नहीं कर सकते तो उसे केसरिया रंग में डुबो दो. इसके अलावा कोई रंग नहीं चलने का. या तो हरा हरा लिखो या चिट्ठे को केसरिया बाना पहनाओ. हिन्दी चिट्ठाकारी में इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं है जमे रहने के लिए. अगर इसके अलावा तुम कुछ और लिखते हो तो धिक्कार है तुम्हें और तुम्हारे लेखन को. न तुम्हारे पास बहस करने का माद्दा है न जज्बा है. तुम अगर तकनीकी बातें लिखते हो, तुम अगर हास-परिहास की बातें लिखते हो, कुछ सेंसिबल होकर कविता करते हो, और तुम हिन्दू-बनाम-मुसलमानों की बातें नहीं लिखते हो तो तुम पूरे बेकार हो. तुम्हारा लेखन कचरा है. तुम्हें कोई पढ़ने वाला नहीं, तुम्हारे लिखे को कोई पढ़ने वाला नहीं.
तो हे हिन्दी चिट्ठाकारों, अपने आप में, अपने लेखन में उत्तेजना लाओ, अपने लेखन को बहस के काबिल बनाओ, कुछ यूँ लिखो कि सब के सब टूट पड़ें पढ़ने को और प्रतिउत्तर में लिखने को. और यह सिलसिला चलता रहे अनंत - अंतहीन. इसी में मजा है इसी में सार है. बाकी सब तो बेकार है.
Tag चर्चा,चिट्ठा,ब्लॉग,हिन्दी
नारद का रन्ग हरा किया जाय...
जवाब देंहटाएंनारद पूरा हरा नहीं, नीचे केसरिया पट्टी भी.
जवाब देंहटाएंकूप मंडूक सा जिनका विस्तार है
जवाब देंहटाएंउनका सूरज सितारों से क्या वास्ता
दॄष्टि सावन में जिसके नयन की छिनी
एक ही र्ण्ग उसको दिखा है सद्द
चाहते हैं कहें पार्थ-सुत सब उन्हें
व्यूह रचना में निशिदिन लगे जो रहे
गंध अनुराग की लेके आती नहीं
आज कल इस तरफ़ कोई बहती हवा
वर्तनी की त्रुटि रह गई थी, इसलिये पुन:
जवाब देंहटाएंकूप मंडूक सा जिनका विस्तार है
उनका सूरज सितारों से क्या वास्ता
दॄष्टि सावन में जिसके नयन की छिनी
एक ही रंग उसको दिखा है सदा
चाहते हैं कहें पार्थ-सुत सब उन्हें
व्यूह रचना में निशिदिन लगे जो रहे
गंध अनुराग की लेके आती नहीं
आज कल इस तरफ़ कोई बहती हवा
बहुत सही कह रहे हैं आप ! अब यह नीति भी अपना कर देख लेती हूँ ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
इस प्रकार की अनाम टिप्पणियां ना ही प्रकाशित की जाय तो बेहतर होगा.. मुँह का स्वाद खराब करने और माहौल खराब करने के सिवा इन से क्या कोई मतलब भी हल होता है?
जवाब देंहटाएंअभयजी, आपके कहे अनुसार अनाम टिप्पणी हटा दी है।
जवाब देंहटाएंरवि जी, आपने मन की बात कह दी इसका जल्दी से हल निकालना चाहिये नही तो पता चला आने वाले दिनों में हर चिट्ठे के पोस्ट के टाईटिल में दो में से कम से कम एक शब्द तो जरूर मिलेगा। क्या कहा कौन से दो शब्द, अरे वही जो म से शुरू होते हैं। ;)
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही फरमाया आपने रवि भैया आपने... पिछले कुछ महीने से चिट्ठाजगत में नकारात्मक ऊर्जा का संचार हो रहा है जो गंभीर और संवेदनशील चिट्ठाकारों की रचनाधर्मिता पर असर डाल रहा है। अपना चिट्ठा लिखने के लिए हर कोई स्वतंत्र है... ब्लॉगर और वर्डप्रेस जैसे टूल का इस्तेमाल कर लिखें जिन्हें जो लिखना है, मगर नारद जैसे साफ-सुधरे और जिम्मेदार चिट्ठाकारों के सार्वजनिक मंच पर गंध फैलाने वालों पर रोक की मांग एक बार फिर प्रासांगिक हो जाती है। वरिष्ठ चिट्ठाकार इस बात की गंभारता को समझें और कुछ उपाय सुझायें। एक बार फिर कहता हूं मैं किसी भी तरह के विचारों पर रोक लगाने का बिल्कुल हिमायती नहीं... मगर जिन्हें ऊल-जलूल बातें करनी है या तो अपने घर पर कहे या फिर चौराहे पर चीखे-चिल्लाये... हमारे घर के बैठक (नारद) में आकर किया जाने वाला अनर्गल प्रलाप बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिये। नारद हम चिट्ठाकारों का घर जैसा रहा है... हमारी भावनायें जुड़ी हैं इस संस्था से। इसके हित में पिछले दिनों हमारे लोकमंच को इस बैठक में आने से रोका गया। अपने घर (नारद) और घरवालों (चिट्ठाकार बंधुओं) के हित में मैंने बिना किसी प्रतिकार के बड़ों के आदेश को सहर्ष स्वीकार किया। उन्हीं बड़ों से मैं अपील करता हूं नारद में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो इसके लिए न्यायोचित कार्यवाई करें ।
जवाब देंहटाएंसंजय दृष्टि ने आगाह किया था!!
जवाब देंहटाएंकि ऐसा होगा... पर....
आपभी क्या बकवास करने लगे.
जवाब देंहटाएंजिसे जो रंग में लिखना है लिखे. नीला, पीला, हरा, लाल. सबको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है. यह बात हमे ये टीवी वाले सीखा रहे है.
फिर नारद का काम फीड दिखाना है. पढना न पढना पाठको की समझ पर है. जिसे पसंद है, पढ़ेगा, जिसे नहीं पसन्द वह कुढ़ेगा.
चलने दो, हम भी देखें कितना जहर भरा है दिमागो में.
ब्लॉग संचालक द्वारा 'न की गई टिप्पणियों' को अपने ब्लॉग पर टिप्पणी के तौर पर डाल देना ग़लत है ,भले ही उन्हें किन्ही चिट्ठों से लिया गया हो और उन्हीं लेखकों के नाम से टिप्पणियाँ छापी जा रही हों । इसे पत्रकारीय कौशल नहीं तिकड़म कहा जाएगा । सम्भव है कि उक्त टिप्पणियाँ जिनके नाम से छापी गयी हैं वे उक्त चिट्ठे पर गये ही न हों ।
जवाब देंहटाएंकुछ टिप्पणीकर्ता भी कभी-कभी अपनी छपी प्रविष्टि को दूसरों के चिट्ठों पर बतौर टिप्पणी डाल देते हैं - इसे तो झेलना ही होगा क्योंकि यह स्वयं लेखक कर रहा है, दूसरा नहीं ।
प्रमेन्द्र की बहस अक्षरग्राम पर सार्वजनिक करने लायक है ।
शिकार हुए लोगों से तमाम मतभेदों के बावजूद यह नि:संकोच कह रहा हूँ ।
'न की गई टिप्पणियों' को 'टिप्पणियों' से हटा दिया गया है ? 'लेखक द्वारा हटाया गया' जिस पृष्ट पर है उसे बचा कर रखा जाए , ताकि सनद रहे ।
कल के लेख पढ कर हंसी आई - मेरी राय मे नारद पर भारत का तरिंगा लगादें लाल सफेद हरा भरा सब उसी मे ज़ाहिर है :-)
जवाब देंहटाएंमुझे चिड है लॉग इन होकर टिप्पणी देने मे (यारों ये मसला है, कुछ दूसरा उपाय डालो मेहरबानी आप सबकी)
शुएबजी ठीक कह रहे हैं। कुछ रंगीन (रंग का नाम नहीं लूँगा) चिट्ठों पर भी ऐसा ही लॉग इन का प्रतिबंध है। यदि किसी टिप्पणी की भाषा असंयत है तो आप उसे हटा सकते हैं या संपादित कर सकते हैं। आप कमेंट मॉडरेशन लागू कर सकते हैं। मेरा चिट्ठा वर्डप्रेस डॉट कॉम पर है और अभी तक मैंने ब्लॉगर खाता नहीं खोला था। आठ दिन पहले मैंने ब्लॉगर खाता बनाया था वो आज काम आया। सभी के पास ब्लॉगर या गूगल खाता हो यह जरूरी तो नहीं है।
जवाब देंहटाएंनारद का हेडर केसरिया है इसलिए क्यों न चिट्ठों के थ्रेड हरे कर दिए जाएँ।
वैसे मैंने देखा है कि किसी रंग पर बात करो तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और किसी अन्य रंग की बात करो तो कट्टरता, फासीवाद और भी न जाने क्या क्या हो जाता है।
हरा केसरिया हो गये..
जवाब देंहटाएंनीला क्रिकेटरों का...
लाल थोडा लेफ़्ट है..
काला-सफेद नेतागिरी में...
बचेगा क्या..?
वैसे सभी को मिला दें...इन्द्रधनुष बन जायेगा :)
वैसे ये कुछ कुछ जानी पहचान इबारत दिखाई दे रही है। विश्वविद्यालयी दुनिया में लाल, हरे, केसरिया विवाद आम हैं, मुझे कुद कुछ सदैव ही यहॉं भी भगवा एक अधिक बहता सा रंग दिखा दिखा है- श्शि, अमिताभ ही नहीं संजय, पंकज, प्रमेंद्र, सागर बंधु में ये अक्सर छलक जाता है बाकि अक्सर संभाले ले जाते हैं पर चिट्ठा पाठक विवेक भी कोई चीज है कि नहीं।
जवाब देंहटाएंजो भी कोई कहने चाहे कहने दीजिए अगर वह या यह गंदगी है तो वो दिमागों में है जो उबलकर आएगी ही- सेंसर, ब्लॉकिंग.......ये तो ब्लॉगिंग नहीं।
बडे भैया मै सिर्फ़ और सिर्फ़ एक अच्छा भारतीय होकर जीना चाह्ता हू पर जब कोई छेड देता है तो फ़िर नही रुकता तिरंगे के तीनो रंग मुझे अजीज है
जवाब देंहटाएंपर कीसी की मुह्जॊरी बर्दाश्त नही दंगे भी झॆले सिखो को भी बचाने की कोशिश की मुसलमानॊ कॊ भी पर जब मै फ़सा तॊ मिल्ट्री ने बचाया
पर आज भी उस हादसे कॊ जिन्दगी का साथी नही बनाया वही दोस्त वही मस्ती न कभी धर्म पूछा न बताने मे यकीन पर ये सब झूठ का पुलिन्दा नही ये मै नही सह सकता मानता हू कु्छ कर नही सकता पर फ़िर भी कहे बिना रह नही सकता
अब आप अदालत जो सजा दे
लाल रंग हो या हरा या फिर नीला या केसरिया। रंग बदलने से कुछ बदलने वाला नही। बदलना है तो मन के रंग को बदलो। मन की मैल को धो डालो। हिन्दू मुसलमान या वामपंथी बनने से पहले इन्सान बनो। मै ना तो हरे रंग वाला हूँ और ना ही केसरिया वालों की जमात मे और ना ही लाल रंग के झंडे उठाए लोगों में। क्योंकि मै जानता हूँ, कोई भी राजनैतिक पार्टी दूध की धुली नही, ये किसी के सगे नही।
जवाब देंहटाएंमै एक सच्चा भारतीय हूँ, मुझे तिरंगे के सभी रंग पसन्द है। कोई भी मेरे तिरंगे को किसी एक रंग से रंगने की कोशिश करेगा तो वो बर्दाश्त नही होगा।
रही बात नारद की, तो भैया, नारद कोई पहरेदार तो है नही। ना ही किसी ब्लॉग का संरक्षक ना भक्षक। किसी भी ब्लॉग को हटाने का निर्णय नारद एडवाइजरी बोर्ड लेता है। यदि आपको किसी चिट्ठे के बारे मे रिपोर्ट करनी है नारद को लिखे, एडवाइजरी बोर्ड यदि उचित समझेगा तो कार्यवाही करेगा। हम सभी चिट्ठाकारों को एडवाइजरी बोर्ड के विवेक का सम्मान करना चाहिए।
जीतू भैया, एडवाइजरी बोर्ड मतलब नारद के कर्णधार यानी teamnarad ही न? मुझे अपनी शिकायत हर सदस्य को व्यक्तिगत भेजनी होगी या सिर्फ सुनो नारद पर दुहाई देना काफी होगा?
जवाब देंहटाएंऔर हां सूचना के अधिकार और नारद के संरक्षकों में शामिल रहे होने के हक़ से मैं यह जानना चाहता हूं कि लोकमंच को हटाने की गुहार किसने की थी और एडवाइजरी में इस संबंध में क्या चर्चा हुई थी? कौन से सदस्य ने हमारे पक्ष और किसने हमारे विपक्ष में मत दिया था? - शशि सिंह
शशि भाई,
जवाब देंहटाएंआपको अलग से इमेल भेज दी गयी है। वैसे तो यह बात सार्वजनिक मंच पर उठाने लायक मुद्दा नही था, लेकिन आपने छेड़ ही दिया है तो सुनिए।
आज लोकमंच की बात कैसे उठ रही है और क्यों उठ रही है? लोकमंच को नारद के हटाने की वजह कुछ अलग थी, आज मसला कुछ अलग है? नारद एडवाइजरी बोर्ड ने लोकमंच के बारे मे जो निर्णय दिया था, आपने उसे स्वीकार भी किया था। लेकिन बार बार आप उस निर्णय के बारे मे बात करके और उस निर्णय की दुहाई देकर आप क्या साबित करना चाहते है? या तो आप पहले कहिए कि हम लोगों ने लोकमंच वाला निर्णय गलत लिया था, या फिर आप उसको स्वीकार करके आगे बात करिए।
एडवाइजरी बोर्ड का निर्णय अंतिम है और सभी को मान्य है, इस बारे मे कोई भी सूचना सार्वजनिक नही की जा सकती। इस बारे मे प्रति टिप्पणी/इमेल से समझा जाएगा कि आपको नारद के एडवाइजरी बोर्ड के निर्णय पर भरोसा नही है और आपको एडवाइजरी बोर्ड के सदस्यों के विवेक पर संदेह है। आप वरिष्ठ चिट्ठाकार है आपसे इतनी तो उम्मीद रखता ही हूँ कि आपको पता होना चाहिए, कि क्या चीजें सार्वजनिक मंच पर उठाने लायक है और क्या नही।
जीतू भाई,
जवाब देंहटाएंकम से कम इतना तो बता ही सकते हैं कि एडवाइजरी बोर्ड में कौन-कौन हैं? छोड़िये मत बताइये... इससे मन खट्टा ही होगा।
लेकिन कुछ बातें दिल से...
मैंने सहर्ष स्वीकार किया था... मुझे वजह बतायी गयी थी कि लोकमंच के एक साथ आये दस पोस्ट की वजह से नारद का संसाधन ज्यादा खर्च हुआ। (ऐसा सिर्फ एक बार ही हुआ था कि हमने एक साथ दस पोस्ट कर दिया... ज्यादातर समय दो-चार पोस्ट ही हम एक साथ करते थे... वो दस पोस्ट भी उस दिन बजट से संबंधित थी सूचनायें थीं जिसे हमने उत्साह में आकर पोस्ट किया था)
पहली बात कि अगर दस पोस्ट एक साथ करना ग़लती है तो कम-से-कम मुझे एक बार हिदायत दी जानी चाहिये थी... मगर ऐसा न करके सीधे लोकमंच को हटा दिया गया और फिर मुझे सूचित किया गया... यानी बिना पक्ष रखे मुझे अपने उत्साह की सज़ा दी गई। इस बात से मन आहत हुआ।
दूसरी बात, इस घटना के बाद कई बार मैंने नारद पर ऐसा पाया कि कुछ ब्लॉग भी मेरी तरह उत्साह में कई - कई पोस्ट एक साथ कर रहे थे... तब मुझे लगा कि अब शायद उन पर भी गाज़ गिरेगी, मगर मेरे साथी ब्लॉगर्स की किस्मत अच्छी थी लिहाजा उन्हें नाराजगी नहीं झेलनी पड़ी।
लोकमंच को हटाये जाने की जब खबर मिली तो विचार आया कि लोकमंच को बंद ही कर दूं। लेकिन लोकमंच के प्रति लगाव ने मुझे ऐसा करने से रोक लिया। बिना नारद के आशीर्वाद के लोकमंच को चला पाना पहले तो अकल्पनीय लगा। मेरा मन तो आहत था ही मगर आप मेरे श्रद्धेय थे इसीलिए आपका मन रखने के लिए मुम्बई ब्लॉग की वैशाखी वाला प्रस्ताव मैंने ही सुझाया। शुरुआत में इस वैशाखी ने लोकमंच को सहारा देने की कोशिश की मगर यह व्यवस्था लोकमंच के आत्मसम्मान पर भारी पड़ रही थी। फिर से लोकमंच को बंद करने के विचार आने लगे, मगर इस बार भी लोकमंच को नहीं बंद कर पाया लेकिन उसके आत्मसम्मान के लिए वैशाखी पर निर्भरता को लगभग बंद करने का निश्चय किया। साथ में यह भी निर्णय लिया की नारद मुनि को अपना द्रौण बना लोकमंच के लिए खुद एकलव्य की तरह साधना करूं... गुरू की ज्ञान आभा और मेरी मेहनत रंग लाने लगी, आज लोकमंच को दैनिक 15 से 20 हजार हिट्स मिल रहे हैं। हालांकि आज भी अधूरेपन का अहसास होता है।
पिछले दो साल में मिले असीम प्रेम के लिए आपका आभारी हूं अगर मेरी किसी बात से आपको दु:ख पहुंचा तो क्षमाप्रार्थी हूं। गुरू दक्षिणा में अंगुठे की जगह अपना मुम्बई ब्लॉग आपके चरणों में समर्पित करता हूं। आपका आदेश होते ही इस ब्लॉग को डिलीट कर दूंगा या कहें तो यूजरनेम व पासवर्ड भेज दूं आप ही डिलीट कर देना।
... और अब मैं ये ऐलान करता हूं कि कोई भी षडयंत्रकारी साधन सम्पन अर्जुन आपके इस साधनविहीन परित्यय एकलव्य के मुकाबले किसी भी मैदान में टिक नहीं पायेगा। बिल्कुल नहीं।