सोमवार, अप्रैल 23, 2007

दूरदर्शन का अदूरदर्शी चेहरा...



पिछले दिनों भारतीय टीवी समाचार चैनलों ने हिन्दी चिट्ठाकारों को इतना आंदोलित और उद्वेलित कर दिया कि अंततः उन्होंने विरोध स्वरूप अपने कम्प्यूटर के कुंजीपट उठा ही लिए.

सुनील तथा रीतेश को एक तालिबानी किशोर द्वारा एक मासूम व्यक्ति का गला काटने के फुटेज दिखाया जाना जहाँ परेशान करता है वहीं मीडिया युग विदेशी चैनल द्वारा विदर्भ के किसानों की आत्महत्या पर एक विदेशी टीवी चैनल के कवरेज की जानकारी देते हुए सवाल खड़ा करते हैं कि सरकार और प्रधानमंत्री चुप क्यों हैं?

टेलिविजन के नव पपाराजियों की धुलाई को सुरेश सही मानते हैं - जिससे इत्तेफ़ाक नहीं रखा जा सकता - क्योंकि, फिर, ये भी तो एक तरह की तालिबानी विचारधारा ही हुई. ममता को टीवी पर ऐशअभि की अधिकता से बदहजमी हो गई. सर्वेश ऐशअभि शादी के दौरान दिखाए गए हया उर्फ जाह्नवी के नाटक को टीवी चैनलों के टीआरपी की ललक से जोड़कर सवाल खड़े कर रहे हैं. हर्षवर्धन बालाजी भगवान के दरबार में बिग बी भगवान के हाजिरी की कहानी बताते हुए टीवी भक्तों की भी बातें बता रहे हैं. दीपक, मीडिया के उस शोर को यह कह कर खारिज करते हैं - ‘जिन पर माया का वरद हस्त, उनको मिलना ही चाहिए दर्शन का पहला हक.' रियाज़ भी व्यथित हैं कि जब भारत का मीडिया बाज़ार के दो देवताओं की एक आडंबरपूर्ण शादी के पीछे पगलाया हुआ था तब किसी ने एलेन जांस्टन के बारे में पूछा भी नहीं. उमाशंकर तो सीधे-सीधे टीवी संपादकों को मदारी की श्रेणी का मानने के लिए कुछ अकाट्य तर्क दे रहे हैं.


और, अब चिट्ठाचर्चा पाठकों से कुछ सवाल -

अंकुर दुविधा में है. क्या आप उसकी मदद कर सकते हैं? दीपक को बताएं कि सौंदर्य-बोध दिल से होता है या फिर नज़रों से? विकास का स्थायी भाव क्या है? ज्ञानदत्त की असली खुशी की दस कुंजियाँ क्या हैं? काकेश किसके आदेश पर काक-वाणी प्रसारित कर रहे हैं? कमल किसे तो हीरो और किसे मालामाल बना रहे हैं? चतुर्भुज को बताएँ कि क्या मनुष्य पशु-पक्षियों के बराबर पहुंच गया है? यूनुस को समझाएँ कि मुम्बई, मुम्बई है या महज़ एक बड़ा कूड़ाघर? चन्द्रशेखरन को यह स्पष्ट किया जाए कि किसान सो रहे हैं या जाग रहे हैं?

चलते चलते -

एक दोहा:

लिखता है तो बिकना सीख

नहीं तो भूखा रहना सीख

एक शेर-

अब नहीं काफी महज़ आलोचना

आग कलमों को उगलना चाहिए

एक संस्मरण :

लोग कह रहे हैं उसके जाने के बाद

तू उदास और अकेला रह गया होगा

मुझे कभी वक़्त ही नही मिला

ना उदास होने का ना अकेले होने का ..

और, अंत में -

सुनील की खुशी से मनोरंजक बातचीत सुनें तरकश पर तथा सुनील के चिट्ठा- व्यक्तित्व पर नीलिमा द्वारा डाली गई एक शोध-परक दृष्टि यहाँ पढ़ें.

चित्र : ऊपर दिया गया चित्र, ठोकरें खाने वाले किस चिट्ठे के बाजूपट्टी का हिस्सा है?

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12 टिप्‍पणियां:

  1. हमेशा की तरह अच्छी चर्चा रही. अंत मे आपके दोहे और गजल कमाल के हैं.

    वैसे 806 ठोकरें क्या कहती हैं उसका जिक्र तो चर्चा में हुआ ही नहीं.

    काकेश

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  2. रवि जी बहुत कम लफ्जों में आप बात कह देते हैं . वैसे ठोकरों वाली बात को जरा खोल कर बताएं तो आनंद आए .

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  3. चित्र शायद जय जवान जय किसान चिट्ठे से है..
    पहले मैं भी ठोकर ही लिखता था.. :)

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  4. 806 ठोकरें तो मेरा ही पन्ने की हैं। क्यों कि मैं एक नया ब्लोगर जो हिन्दी में कम लिखते हैं। शुक्रगुजार हूँ मेरा पन्ने की support केलिए।

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. रवि जी,

    बहुत खूब चर्चा की आपने ..बधाई
    हमारी चिट्ठी को शामिल करने के लिये धन्यवाद

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  7. काकेश जी,

    दोहा और शेर मेरे लिखे नहीं है, दरअसल वे कड़ियाँ हैं और ब्लॉग प्रविष्टि की हैं. उन पर क्लिक करें - पूरी रचना पढ़ने के लिए :)

    नीलिमा जी,

    उम्मीद है अब आपकी जिज्ञासा शांत हो गई होगी. यह चित्र जयजवान जयकिसान चिट्ठे के बाजू पट्टी का ही है.

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  8. मेरे ब्लोग को शामिल करके तो आपने मुझे आसमान पर ही चढ़ा दिया. :)

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  9. शुक्रिया जी...मेरा ब्लॉग भी यहाँ शामिल हो गया :)

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