किन्तु आज बस पढ़ना केवल, बनती एक गज़ल
आये वे फिर चूमा फिर वो चले गये निज पथ पर
कहाँ गये वे ढूँढ़ रही है नजर अभी भी सत्वर
व्यवसायिकता की उड़ान ले दॄश्य देख अनचाहे
फ़ुरकत की शब बिना शीर्षक गाहे और बगाहे
मैं आवारा ढूँढ़ रहा खुश्बू में रँगा ज़माना
जिसमें सबका एक ध्येय हो चिट्ठों पर टिपियाना
सही जगह पर महानगर की दीवारों मे बचपन
ज़हर सभ्यता की पी, बाँधें माफ़ी के अनुबन्धन
नज़्म फ़ैज़ की सुन कर देखें घुंघरू क्या क्या बोले
बाकी के चिट्ठों का बक्सा बस नारदजी खोले
विघ्नविनाशक के वाहन की गाथा जो कोई गाये
हर कोई उसके चिट्ठे पर जा जाकर टिपियाये
बहुत खुब महारज!!
जवाब देंहटाएंविघ्नविनाशक के वाहन की गाथा जो कोई गाये
क्या बात कही है,,,,बहुत दिन बाद आनन्द आया कि कवर हो गये. :)
बहुत बढिया पर छोटी रह गई लगता है् लिखते समय राकेश जी मूषक जी के साईज से प्रभावित हॊ गये अरे जरा सा आप रचना का साईज या फ़िर रचनाकार को याद कर लेते...?
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया । लिखने का तरीका बहुत पसन्द आया ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
समय अगर मिल पाता तो हम लिखते एक गज़ल
जवाब देंहटाएंकिन्तु आज बस पढ़ना केवल दिखती एक गज़ल
आये वे फिर चर्चा करने ,चले गये निज पथ पर
लेकिन लिखदी एक गजल जो छाप छोड़ गयी मन पर
सही जगह पर सही पंक्तियां ऎसा ही वो करते
अपनी कविताओं से वे नित नये रंग हैं भरते
नज़्म फ़ैज़ की सुन कर देखें घुंघरू क्या क्या बोले
अपनी चर्चा में ही कितने राज नये हैं खोले
विघ्नविनाशक के वाहन की गाथा जो कोई गाये
विघ्नविनाशक जैसा होके 'पूजनीय' बन जाये
विघ्नविनाशक के वाहन की गाथा जो कोई गाये
जवाब देंहटाएंविघ्नविनाशक जैसा होके 'पूजनीय' बन जाये
--हा हा...इतना भी सरल नहीं, मेरे मित्र काकेश.....सही संगत बैठाओ हमरे साथ. :)