शुक्रवार, जून 01, 2007

पेश है देसी गूगलवा...

दोस्तों अब से नियमित सोमवारी चर्चा के बजाए अब अनियमित, जिस वक्त कुछ उल्लेखनीय दिख गया या सूझ गया की तर्ज पर चर्चा जारी रहेगी. कोशिश रहेगी कि सप्ताह में कम से कम एकाध चर्चा गाहे बेगाहे तो मार ही दें...

इसे नियमित चिट्ठाचर्चाकार कतई व्यवधान स्वरूप न समझें. नियमित चर्चा जारी रहेगी. यदि किसी नियमित चर्चा में व्यवधान सा महसूस होता है तो अपनी राय अवश्य रखें.

तो चलिए आज से इस अनियमित चर्चा की शुरूआत देसी गूगल से करते हैं -

पियवा गइले परदेश फगुनवा रास ना आवे,
ना भेजले कउनो संदेश फगुनवा रास ना आवे।।

ननदी सतावे देवरा सतावे,
रही रही के जुल्मी के याद सतावे।
सासुजी देहली आशीष फगुनवा रास ना आवे।।

सखिया ना भावे नैहर ना भावे,
गोतीया के बोली जइसे आरी चलावे।
नींदियो ना आवे विशेष फगुनवा रास ना आवे।।

बैरी जियरवा कइसो ना माने,
रहि रहि नैना से लोरऽवा चुआवे
काहे नेहिया लगवनी प्राणेश फगुनवा रास ना आवे।।


आगे इस चिट्ठे पर पढ़ें, जहाँ और भी मजेदार चीजें पढ़ने और देखने के लिए हैं!

और, यहाँ भी एक नजर मार सकते हैं - यदि बॉलीवुड गॉसिप में आपको कोई तत्व नजर आता है.

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6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही। सभी साथी चर्चाकार इसी तरह जब मन आये तब चर्चा करना भी शुरू करें तो अच्छा है। लेकिन नियमित कम से कम एक चर्चा हो तो मजा है।

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  2. रोहिणी तप रही है] बैरन बरखा सामने है और यह विरि‍हणी फागुन की आग में जल रही है । सच मानिए, हिंगलिश के इस समय में, 'देसी गुगलवा' ने मन के जेठ में गुलमोहर खिला दिए ।

    चर्चा जारी रखिएगा । हम प्रतीक्षा करेंगे ।

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  3. रवि जी गर्मी और क्या गर्म गर्म आइटम ढूंढ लाए हैं। अच्छी रिसर्च की है। :)

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  4. कहाँ से खोद लाये? :)
    अच्छे स्वास्थय के लिए नेट भ्रमण कम करें :)

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  5. संजय जी,

    इस कड़ी को देखें -

    http://raviratlami.tumblr.com/

    यहाँ पर गूगल देव ऐसी चीजों को खुद ब खुद ढूंढ कर लाते रहते हैं.:)

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  6. बढ़िया आईड़िया है अनियमित चर्चा का भी...साथ ही साथ नियमित वाली भी चलती रहे. और हमारे कॉफी कप वाले संजय महाराज भी हफ्ते में एक दो बार लिखते रहें तो मौज बनी रहे. :)

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