मंगलवार, सितंबर 01, 2009

कछु ठेल-ठेलकर ठिनकत हैं

नमस्कार !

चिट्ठा चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है ।

फुरसतिया ने खुफिया सूत्रों के हवाले से सूचना दी है कि आजकल परेशान होने का मौसम है । समय रहते यदि सूचना न मिलती तो सोचिये कितना नुकसान हो जाता । हम परेशान ही न हो पाते और मौसम निकल जाता ।

सूचना मिलने से पहले हमें सब लोग प्रसन्न प्रतीत हो रहे थे । लेकिन इसे हमारी नज़रों का फेर समझें या मौसम की कारगुजारी ? अब जिसे देखिए परेशान नज़र आ रहा है ।

  • सुरेश चिपलूणकर परेशान हैं कि अमेरिका वालों ने शाहरुख खान को इतनी जल्दी कैसे छोड़ दिया ? जबकि उनके पास शाहरुख खान को रोके रखने के दो और मजबूत कारण थे ।
  • विनय बिहारी सिंह नौकरी जाने के डर से परेशान हैं ।
  • भारतीय जनता पार्टी जसवन्त सिंह के शाप से परेशान है ।
  • अलबेला खत्री को जब ब्लॉग से दूर होना पड़ा तो बड़ी छटपटाहट हुई । पूछते हैं :ये कैसी छटपटाहट थी भाई ? क्या आपको भी होती है ?
  • दूसरी शादी में रुकावट आ गयी तो दूल्हा परेशान हो गया । और ऐसा परेशान हुआ कि दर्जन भर मीडिया कर्मियों को ढिशुम-ढिशुम कर दिया ।
  • अनिल पुसदकर परेशान हैं कि हिंदुओं ने जागने का एक अवसर हाथ से जाने दिया । क्या करते पुलिस पहले जाग गई । चलिए कोई तो है जो पुलिस से भी बाद में जागता है ।
  • शास्त्री जी इसलिए परेशान हैं कि कहीं सरकारी अस्पतालों का उन्मूलन न हो । इसलिए पहले ही लेख लिखकर बता दिये हैं कि सरकारी अस्पतालों के रखरखाव और गुणवत्ता में सुधार लाया जाय न कि उनका उन्मूलन हो । अब कोई बाद में यह न कह सकेगा कि शास्त्री जी आपने पहले बताया नहीं था ।
  • बी एस पाबला उपहारों से परेशान हैं । दरअसल ब्लॉगस्पॉट की दसवीं सालगिरह पर कुछ ज्यादा ही उपहार मिल गए । बेचारे वैसे ही ब्लॉग-बुखार से पीड़ित रहते हैं । ऊपर से यह नई परेशानी । वाहे गुरु खैर करें ।
  • समुत्कर्ष उन नादान लड़कियों की नादानी से परेशान हैं जो अपने सौन्दर्य की सम्पत्ति की सरेआम नुमाइश करती फिरती हैं । कहते हैं :
    'यदि भेड़ियों के झुंड के बीच जाने की गलती हिरन नहीं करता है,
    बिल्ली के सामने जाने की गलती चूहा नहीं करता है, हाथी के पैरों से खरगोश दूर ही रहता है तो मेरी तुम्हे विशेष सलाह है कि पुरूष जिस तरह संपत्ति को गुप्त रखकर ही बाजार में निकलता है उसी तरह तुम भी अपने रूप को ढँककर ही बाहर निकलो। तुम्हारी सुरक्षा इसी में है।'
  • लेकिन ऐसा नहीं है कि लड़कियों से केवल यही महाशय परेशान हैं । और भी बहुत से लोग लड़कियों से परेशान रहते हैं । मसलन एक पिता महज इसलिए परेशान हो गया कि उसी की बेटियों ने उस पर बलात्कार का झूठा केस सिर्फ इसलिए लाद दिया क्योंकि पिताजी ने उन नाबालिगाओं को नए साल की पार्टी में जाने से रोक दिया था । वैसे ज्यादा परेशानी नहीं हुई । महज दो ही साल बाद उनको बरी कर दिया गया ।
  • प्रधानमंत्री भारतीय जनता पार्टी की हालत से परेशान हैं । आडवाणी जी प्रधानमंत्री की परेशानी से परेशान हैं ।
  • इन हालातों से दिव्यदृष्टि वाले भी कम परेशान नहीं हैं । कहते हैं :

पीएम बनने का नहीं दीख रहा अब चांस

अत: आडवाणी तजें पॉलिटिक्स का डांस

पॉलिटिक्स का डांस, गेरुआ करके धारण

ग्रहण करें 'संन्यास' तभी हो कष्ट निवारण

दिव्यदृष्टि अनमोल मशवरा 'मुफ्त' लीजिए

राजनाथ के साथ 'राम' का भजन कीजिए

  • कौशल, पुरुषोत्तम नाम के दो बिलागर बिलाग पर मानक बनाने की जिद पर अड़े हुए परेशान हैं । हमने तो कह दिया है कि 'मानक की नाक में नकेल, बलॉग पर सब मानक फेल' । अब बोलो । वैसे फुरसतिया का ग्यारह सूत्री ऐजेण्डा अभी उनके पल्ले नहीं पड़ा शायद । कह देना पढ़ लें ।
  • डॉ. योगेन्द्र मणि हिन्दी साहित्य मंच पर मलाईदार-मलाई से परेशान होते दिखे ।
  • रमेश दुग्गड़ गैस विवाद में सरकारी बेईमानी से परेशान हैं । सरकारी बेईमानी से परेशान होने वाले लोग कभी सुखी रह पाएंगे क्या ? शायद नहीं ।
  • कुछ विदेश में जा बसे हिन्दी ब्लॉगर देश से जुड़े रहने के लिए परेशान हैं । हमारी शुभकानाएं उनके साथ हैं । फेवीकॉल का जोड़ लगाकर जुड़ जाएं ।

अब हम आपका अधिक समय नहीं लेंगे क्योंकि रवि रतलामी ने अमित वर्मा के हवाले से कहा है कि संक्षिप्तता में गुरुता है । कहा तो और भी बहुत कुछ है पर हमने उसे यहाँ चेपने का ठेका नहीं लिया है ।

हाँ ठेका लेने की बात से याद आया । ब्लॉग जगत में ऊपर ये जितने लोग परेशान हुए हैं । उनके खिलाफ कार्यवाही होगी । क्योंकि यहाँ परेशान होने का ठेका तो किसी और ने लिया हुआ है । फिर ये लोग कैसे परेशान हो गए ?

चलते-चलते

कछु ठेल-ठेलकर ठिनकत हैं, कछु बिन ठेले डकरावें ।

कछु ठूँस-ठूँसकर ठोकत हैं, कछु ठुसकोरियाँ उड़ावें ॥

कछु ठकुराइस दिखलावत हैं, कछु ठग-विद्या सिखलावें ।

कछु ठोक बजाकर परखत हैं, कछु तुरत ठूँठ ठहरावें ॥

कछु ठाठ-बाठ से ठेल रहे, सबको ठेंगा दिखलावें ।

कछु ठिठोलिए ठिगनों को ठगकर ठुमका रोज लगावें ॥

कछु ठौर-ठौर पर ठिठक रहे, कछु ठोकर खा गिर जावें ।

कछु लोग ठहाके लगा-लगा गिरते में लात जमावें ॥

कछु ठाकुर लेते मौज ठीकरा ठलुओं के सिर फोड़ें .

कुछ ठेल-ठेलकर माल अधिक औरों का ठेला तोड़ें .

एहि भाँति सभी हैं परेशान नैनन सों नीर बहावें ।

हम ठोड़ी नीचे हाथ धरे ठाड़े-ठाड़े मुसकावें ॥

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21 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा परेशान किया आपने भी, अभी अभी अनूप जी की करी चिटठा चर्चा पढ़ कर हटे और आप फिर ठेल दिए :()

    वीनस केसरी

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  2. चलते-चलते ने मोह लिया । चर्चा का आभार ।

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  3. ढेर सारा समेट दिया पढ़ने के लिये और हम ठुनकते हुये पढ़ना शुरू कर दिये। दू ठो लेख बांच भी लिये सो जानना!

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  4. बहुत अच्छा ..सबको खुद की परेशानी से बचा लिया ..अपनी परेशानी में फंसा लिया ...आभार ..!!

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  5. दिया दिया आपको अनुप्रास अलंकार का ठीका दिया

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  6. कुछ चिट्ठा चर्चा में..ऐसन ही ठिच्चा ठर्चा लटकावें..बहुते बढिया विवेक बाबू....ई तो ठ पर बना हुआ ..पहला गीत है..बकिया चर्चा भी मस्त है..एक दम ठकास...

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  7. आज तो बड़ी मजेदार चर्चा ठेल गए |

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  8. ठोड़ी के नीचे हाथ नहीं ऊंगली धर कर
    मुस्‍कराना होता है विवेक जी।

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  9. परेशानी के मौसम वाह क्या चर्चा ठेला है! जय हो!

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  10. क्या मौसम हैssssss ...

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  11. चलते चलते....
    बढ़िया है विवेक बाबू ।
    बढ़िया है ।

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  12. सब बिलागर परेशान है और हम हैरान है कि इनकी परेशानी का नाज़ायज़ फ़ायदा उठा कर आपने ऐसी चर्चा ठेल दी कि सब ठठा लगा कर ठहाका लगा रहे हैं:)

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  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  14. हम पहले ही अनूप जी को बोले थे की आपके कारण ब्लॉगजगत में सबको परेशानी का बुखार चढ़ जाएगा....बताइए चिट्ठाचर्चा तक परेशानी पहुँच गयी :)

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  15. विवेक जी, किसी के लिए तो आप भी परेसानी का कारण बन ही रहे हैं:)

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  16. देर से पढ पा रहे हैं क्या करे परेशान जो थे।

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  17. विवेक सिँह जी,

    कछु ठेल-ठेलकर ठिनकत हैं, कछु बिन ठेले डकरावें ।

    कछु ठूँस-ठूँसकर ठोकत हैं, कछु ठुसकोरियाँ उड़ावें ॥

    कछु ठकुराइस दिखलावत हैं, कछु ठग-विद्या सिखलावें ।

    कछु ठोक बजाकर परखत हैं, कछु तुरत ठूँठ ठहरावें ॥
    ........

    बहुत ही अच्छा लिखा है कि पढते हुये मुँह खुला और होंठ चौडे हो जाते हैं, वाकई साहित्य के क्लासिक अंदाज क एक नव-विधा प्रारूप में स्वागत है।

    बधाईयाँ,


    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  18. ठाएँ ठाएँ ठोकें हैं
    ठुमकत-ठुमकत आवत
    ठांव-ठांव ठाढें हैं
    ठाकुर ठकुराई ठेलावत
    चिटठा चर्चा पढावत

    ज़बरदस्त चिटठा चर्चा है विवेक जी..

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