जिन्ना, अडवाणी, भागवत आदि के अलावा इतवार की खास खबर हिन्दुस्तान प्रबंधन से मृणाल पाण्डेयजी की विदाई का समाचार रहा। खेल पत्रकार ने मृणालजी के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुये लिखा:
जहां तक मृणालजी का प्रश्न है तो एक कालमनिस्ट के रूप में वो कभी भी सर्वश्रेष्ठ नहीं लगी मुझे। मैं हर चंद कोशिश के बावजूद कभी भी उनका रविवासरीय स्तंभ पूरा नहीं पढ़ सका। काफी गरिष्ठ होता है और उसे मेरे लिए पचा पाना असंभव रहा। पर एक संपादक के रूप में वो शानदार हैं, श्रेष्ठ हैं auar उनके पास एक विजन यानि एक दृष्टि है। इससे उनका मुखर से मुखर आलोचक भी इनकार नहीं कर सकता।
शिरीष कुमार मौर्य लिखते हैं:
मैंने जाना उसका लौटना
वह जो हमारे मुहल्ले की सबसे खूबसूरत लड़की थी
अब लौट आई है हमेशा के लिये
शादी के तीन साल बाद वापस
हमारे ही मुहल्ले में
उसे कहां रखे समझ नहीं पा रहा है उसका लज्जित परिवार!
प्रेम की विडम्बनायें में राजकिशोर एकनिष्ठता का सवाल उठाते हुये बुढापे की परिभाषा बताते है:
मेरी दृष्टि में ‘सामने की ओर न देख पाना ही मन का बुढ़ापा है। हारे-थके मन द्वारा भविष्य के सुखों, आशाओं, और आकांक्षाओं की उपेक्षा करके अतीत में रमने को, कुछ पाने की इच्छा न रखने को, वर्तमान को एकदम नकारने को और भविष्य को निरर्थक समझने को मैं मन का बुढ़ापा मानती हूँ। अतीत को सब कुछ समझना, भोगे हुए सुख-दुखों की स्मृति को ही अमूल्य पूँजी मान कर उसके सहारे शेष जीवन जीना ही मन का बुढ़ापा है।आप लोग अपने-अपने बुढ़ापे का टेस्ट कर लीजिये।
रचनाकार पर रविरतलामी जी ने कौशल पंवार की कवितायें पोस्ट की हैं| एक कविता में वे लिखती हैं:
हे ईश्वर ! तेरे सत्य और शक्ति को
अब मैं जान गई हूँ
तेरी दलाली और कमीनेपन को भी ।
डा.सत्यकाम अपने प्राइमरी हेल्थ क्लीनिक पर न रहने के कारण बताते हैं।
द डिक्टेटर फ़िल्म में हिटलर की भूमिका में चार्ली चैपलिन का भाषण पढ़िये दखल की दुनिया में:
“जीवन का रास्ता मुक्त और सुन्दर हो सकता है, लेकिन हम रास्ता भटक गये हैं. लालच ने आदमी की आत्मा को विषाक्त कर दिया है- दुनिया में नफ़रत की दीवारें खडी कर दी हैं- लालच ने हमे ज़हालत में, खून खराबे के फंदे में फसा दिया है. हमने गति का विकास कर लिया लेकिन अपने आपको गति में ही बंद कर दिया है. हमने मशीने बनायी, मशीनों ने हमे बहुत कुछ दिया लेकिन हमारी माँगें और बढ़ती चली गयीं. हमारे ज्ञान ने हमें सनकी बना छोडा है; हमारी चतुराई ने हमे कठोर और बेरहम बना दिया. हम बहुत ज्यादा सोचते हैं और बहुत कम महसूस करते हैं. हमे बहुत अधिक मशीनरी की तुलना में मानवीयता की ज्यादा जरूरत है, इन गुणों के बिना जीवन हिंसक हो जायेगा.
कबाड़खाने पर आज सुनिये-कौन ठगवा नगरिया लूटल हो
हेमंत कुमार नारी मन के भाव बताते हैं:
अगर मैं भी लड़का होती
मुझसे जीवन में कुछ भी न छूटता
न मां-बाप का घर
ना ही सखि-सहेलियां
सब कुछ पास होते
अब तो पिया का घर
ही अपना आशियाना है।
प्रांजल के ब्लाग पर ये देखिये:
तेरे जजबात की खुशबू से कुछ ऐसे महक गयी हूँ मै
दरिया के सारे बंधन तोड़ किनारों से छलक गयी हूँ मै
कवि विजेन्द्र की ताजा कवितायें देखिये:
मेरे लिये तुम
एक आँच का फूल हो
एक पका सेव हो
एक बालक की हँसी हो
मेरे लिये तुम
शेफ़ाली पांडे जिन्ना के बहाने मौज ले रही हैं भाजपा से मतलब भाग जाओ पार्टी से। देखिये आप उनके ही ब्लाग पर काहे से कि वे ताला लगा के बैठी हैं अपने ब्लाग पर कि उनके जिन्ना कोई चुरा के न ले जाये।
द्विवेदीजी पुरुषोत्तम अग्रवाल की गजल पेश कर रहे हैं:
खुल कर बात करें आपस में
कुछ तो कम होंगे अपने ग़म
झूठी ख़ुशियों पर ख़ुश रहिए
व्यर्थ 'यक़ीन' यहाँ है मातम
अपने शिमला प्रवास के दिनों को याद करते हुये सिद्धेश्वर लिखते हैं:
न्यू गेस्ट हाउस की
खुली खिड़की से झाँकते ही रहते हो
भाई देवदार.
भूलने में ही है भलाई
पर
कहो तो
कैसे भूल पाउँगा
मैं तुम्हारा प्यार .
अरविन्द मिश्र ने ब्लाग के दस साल होने पर बुनियादी सवाल उठाये उस पर द्विवेदीजी ने बुनियादी राय चेंप दी:
मगर जो बात अब साफ तौर पर दीखने लगी है वह है कंटेंट (अंतर्वस्तु) की प्रधानता ! यदि कोई क्वालिटी आईटम नहीं दे पा रहा है तो उसके तम्बू अब उखड़ने से लगे हैं !
यही एक प्रधान और महत्वपूर्ण बात है।
लाल्टू की कुछ कवितायें इधर पढ़िये अफ़लातून के सौजन्य से।
स्विस बैंक के बारे में आलोक पुराणिक ज्ञान देते हैं:
जैसे आम तौर पर नेता धर्म-निरपेक्ष होते हैं, वैसे ही आम तौर पर बैंक रंग-निरपेक्ष होते हैं, रकम काली हो या सफेद, स्वीकार कर लेते हैं।
उधर ज्ञानजी अपनी 700 वीं पोस्ट ठेल रहे हैं और मन में वैराग्य भाव भी है किसी से तो इम्प्रेस होंगे जी आप:
गंगा किनारे एक मड़ई हो। एक छोटी सी नाव और यह लिखने-फोटो खींचने का ताम-झाम। अपनी बाकी जरूरतें समेट हम बन जायें आत्मन्येवात्मनातुष्ट:!
आभाजी लिखती हैं:
नींद में सुनती हूँ गालियाँ दुत्कार
मुझे दुत्कारता यह
कौन है ....कौन है ......कौन है.....
जो देता है सुनाई
पर नहीं पड़ता दिखाई
हर तरफ छाया बस
मौन है मौन है मौन है।
कौशल का कहना है कि ब्लाग लेखन के कुछ तो मानक होने चाहिये:
ब्लाग लेखन में सिफॆ लेखक की कुंठाएं झलकती हैं। आप कहीं अपनी वजह से पिट गए और आपको बचाने कोई वहां नहीं आया तो आप सारी दुनिया को कोस रहे हैं कि दुनिया में कोई मददगार नहीं रहा।
शरद कोकास बचपन से डायरी लेखन करते आये हैं। इस बारे में उनके रोचक संस्मरण पढ़िये|
अर्चना तिवारी लिखती हैं:
देखा तेरी आँखों में अक्स कुछ अपना सा
गाने लगा मन इक प्यार का नगमा सा
छू गई मेरे दिल का कोई तार कहीं
छाया था पलकों पे इकरार का सपना सा
हिन्दुस्तानी की साठवीं वर्षगांठ पर प्रकाशित अनामदास का यह लेख पढ़िये डा.अमर कुमार के सौजन्य से।
आज सुलभ जायसवाल सतरंगी का जन्मदिन है! उनको हमारी हार्दिक बधाई!
एक लाईना
- दुनिया जिसे कहते हैं : ऊ त इसी ब्लाग पर मिलेगी आज
- एनसीसी कैडेट या वेटर?कमेंट्स प्लीज़ : मत करियो कोई
- क्या होगा भाजपा का????? : बतायेंगे पोस्ट लिखने के बाद
- आरएसएस ने सुधारी साठ साल पुरानी गलती! :सुधार की गति भयावह रूप से धीमी है जी
- इनका हल हो आपके पास तो हमें भी बताएं : हम बैल लाकर जुताई कर देंगे
- आप को देख कर देखता रह गया.... :असल में कोई और काम भी नहीं था न आक संडे को
- क्यों नाराज़ है, यह शायर ?: अभी तक नहीं बताइस यार
- का सोच का का टिपिया गए . . आपो सोचो ना ! : टिपियाने के पहले और बाद में सोचना ब्लागधर्म के प्रतिकूल है!
- जिलाधिकारी का वर्क प्लान जारी : परेशान हैं बेचारे जिले भर के अधिकारी
- डेयरी उद्योग पर भी सूखे की मार:थोड़ा पानी मिलाओ यार
- पत्रकार की क्या हैसियत जो मुङासे बात करे : लड़कों तक को मुर्गा बना देते हैं पत्रकार कऊन चीज हैं?
- नेहरू और पामेला मांउटबेटन :में कोई लफ़ड़ा नहीं था भाई
- कुछ कहता हैं ब्लॉगर क्या कहता है :ई तो ब्लागर को भी नहीं पता बस वाह-वाह किये जा रहा है
- ये है ब्लौगिंग मेरी जाँ. : लेकर ही मानेगी
- फीस ना देने पर मासूम को स्कूल में नंगा किया :शेम शेम
- जरूरी है सड़क पर आना : भले ही घर में हो झकास पाखाना
- अच्छे चिट्ठाकार के गुण :पढ़ लो अपनाने के लिये कोई थोड़ी न कहेगा
- स्त्री (18) और पुरुष (37) के विवाह में उन की उम्र का यह बड़ा अंतर बाधक है? : उम्र के अन्तर में कानून अपनी टांग नहीं अड़ाता
- शमीम मोदी पर हमले की जाँच सी.बी.आई को :छुट्टी सालॊं तक के लिये
- हिन्दी ब्लोगिंग - जो पेज पाया ही नहीं गया उसे भी तीन लोगों ने पसंद किया :और क्या चाहते हैं आप कि चार लोग पसंद करें?
- वोटे ना देहबा त लईटिया कहां से आई ?: वोट देहबे से का लाईट आ जाई!
- "थोड़ा - थोड़ा है प्यार अभी, और ज़रा बढने दो :इसके बाद लड़ना -झगड़ना शुरू करेंगे
- व्यंग्य : आओ मिलकर देखें !!! :पहले आंखे तो बंद कर लो
- आपके इंटरनेट कनेक्शन की स्पीड कितनी है? :क्यों बतायें जी?
- तुम कहती रहो : यहां सुनता कौन है
- कसाब के वकील को फीस ही नहीं मिल रही :बहुत नाइन्साफ़ी है ज्ञानजी कर ही डालिये
और अंत में
इतवार के रात साढ़े दस बजे तक के चिट्ठों का ये रहा लेखा जोखा। आज रात को ही ठेल दिया। रात को बारह बजे के बाद प्रकाशित होने के लिये। सुबह जो लिखेंगे उनको सुबह पढ़ा जायेगा।ई तो रात को लिखे थे लेकिन पोस्ट नही किये फ़िर। सोचा एक साथ सुबह के चिट्ठे देखकर ही पोस्ट किया जाये। सुबह देखे तो सतरंगी जायसवाल जन्मदिन, ज्ञानजी का सात सौवीं पोस्ट के साथ नौकाचालन और आलोक पुराणिक का स्विसबैंक मिल गया।
आपका दिन शुभ हो। हफ़्ता चकाचक बीते । आप व्यसत रहें, मस्त रहें। और कोई बात हो तो अपने ब्लाग पर लिखियेगा। हम देख लेंगे।
बढ़िया चर्चा :)
जवाब देंहटाएंमाशाअल्लाह, अनूप भाई ऐसे ही पैनी नज़र बनाए रखिए.कोई ब्लॉगर आपकी दिव्यदृष्टि से बचा नहीं रहना चाहिए
जवाब देंहटाएंबेहतरीन विस्तृत चर्चा!! आनन्द आया!!
जवाब देंहटाएंआप को ज्ञान जी में हरदम वैराग्य ही क्यों नजर आता है?
जवाब देंहटाएंइस के सिवा बढ़िया चर्चा। आज कविताओं पर केन्द्रित रही।
बढ़िया!
जवाब देंहटाएंअच्छा समेटन !
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंई तो रात को लिखे थे लेकिन पोस्ट नही किये , तो इ अच्छा ही किये ना .....स्विसबैंक मिल गया सुबह सुबह वरना पछताना पड़ता ना.......हा हा हा हा हा
जवाब देंहटाएंregards
चिट्ठा चर्चा बढ़िया रही।
जवाब देंहटाएंकुछ कहता हैं ब्लॉगर क्या कहता है :ई तो ब्लागर को भी नहीं पता बस वाह-वाह किये जा रहा है
जवाब देंहटाएंcheck the similarity of both the templates even the copy right is same 2008 . widgets are also in same order and so is the colour of heading . few months back anup wrote a story on how they had to free the "charcha " from someone and had to approach google also .
many charchakaar are there commenting on the second link in my post but none has felt the need to preserve the authencity of chittha charcha
if tippani charcha is also a offshoot of chitthacharcha then its ok
बेहतरीन चर्चा बधाई
जवाब देंहटाएंहाय/वाह/ओह/आह गजब चर्चा!
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा !!
जवाब देंहटाएंकुछ कहती है ये चर्चा... क्या कहती है ?
जवाब देंहटाएंhttp://tippanicharcha.blogspot.com/2009/08/blog-post_27.html
जवाब देंहटाएंइतने सारे ब्लागों का वाचन करके इतनी लंबी चर्चा करना आसान नहीं है। ऐसा करना तो कोई आप से सीखे।
जवाब देंहटाएंअनूप जी,
जवाब देंहटाएंइतना विस्तृत और पैना नज़रिया ही ब्लॉग चर्चा को लज्जत और स्वाद देता है। कि पढने वाला पढ भी ले और दिन भर उंगलियाँ भी चाटता रहे।
रूचिकर चर्चा।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
जवाब देंहटाएंसाम से पन्नरह ठो लिंक चर आये हैं,
अरे भगवन, अब आज चरचा सब लिंक नहीं चरा जायेगा, आक्कहो हरि ओम !
अनूप शुक्ल जी
जवाब देंहटाएंआपके चिठठा चर्चा पर पहली बार और जरा देर से आया। पर रोचक जानकारियां यत्र तत्र सर्वत्र मिलीं। इसलिए एक ही बार में पूरा चिठठा पड़ डाला।
कुछ नहीं है कहने को इसलिए पढ़ कर फूट लिए
जवाब देंहटाएंहम इ तो कहने से रहे की चर्चा बहुत अच्छी जमाये हैं
वीनस केसरी