- जीने के टूल्स इतनी तेजी से बदल रहे है की साला हर दस से बीस साल के बाद दुनिया का एक नया "वर्ज़न" लॉन्च हो रहा है . इस इश्तेहारी ज़माने में हर आदमी हाई लाइटर लिए खडा है .जिसकी स्याही का रंग भी रोज बदल रहा है डा.अनुराग आर्य
- समाचार चैनल आज मीडिया कर्म से अधिक प्रबंधन का काम हो गया है जिसमें समाचार निर्माण की पूरी प्रक्रिया, वस्तु निर्माण की प्रक्रिया की तरह,उनकी शब्दावलियों के बीच रहकर होने लगे हैं,वस्तु के लिए जो पैकेजिंग और वितरण है वह समाचार के लिए भी है,ऐसे में भाषा किस रुप में काम करती है,इस पर बात हो। विनीत कुमार
- जब मैं ओमप्रकाश को अपनी बेटियों को फ्रॉक पहनाते और तैयार करते देखती तो बहुत खुशी भी होती कि घर में एक स्त्री के होने से उसकी जिंदगी बदल गयी। ओमप्रकाश को देखकर मुझे यह कहावत याद आ जाती है-
‘बिन घरनी घरनी घर भूत का डेरा। रचना त्रिपाठी - अंग्रेजी को कोसना आसान है लेकिन हिंदी की जडें जिन भाषाओं में है उन तक फ़िर लौटना और उन्हें दोबारा प्रयोग करना, उन्हे बढाना कई गुना कठिन है. हमारा इन भाषाओं के लिये एक आकर्षण जरूर है लेकिन वहीं उनसे एक प्रकार की अजनबियत और भय भी है – चूंकि हमने इन्हे कुछ स्कूलों में जबरदस्ती पढाए जाने के अलावा स्वेच्छा से नही पढा है. तो हम अपने बच्चो को पौराणिक और अच्छे अर्थो वाले नाम तो देते हैं लेकिन जिन भाषाओं से वो नाम आए उन्हे कभी नही अपनाते. ई स्वामी
- सोचता हूँ तो छलक उठती हैं आँखें लेकिन
तेरे बारे में न सोचूं तो अकेला हो जाऊँ नीरज गोस्वामी - तेरा संग है , मां , तो जीवन में रंग है ,
आंखो में ललक है ,दिल में उमंग है ।
आसमान को छूती जिंदगी मेरी पतंग है ,
क्यूंकि बनके डोर हर उंचाई पर , तू मेरे संग है।संगीता पुरी - कितने चेहरा थे हमारे आस पास,
तुम ही तुम मगर दिल में बसते रहे !बबली - हिन्दी का प्रवेश लोक की संश्लिष्ट चेतना का प्रवेश है - चाहे सत्ता में, चाहे पाठ्यक्रम में, चाहे व्यवहार में, चाहे हमारी अंतश्चेतना में ।हिमांशु सच्चा शरणम
- हिंदी हमारी मातृभाषा है, हमारी राष्ट्रभाषा है लेकिन इसकी बदनसीबी यह है कि कुछ लोगों के सिवा इसकी याद हमें केवल हिंदी दिवस पर ही आती है शामिख फ़राज़
- "देखिए, यही बात है जिससे हिन्दी की ये दुर्दशा हुई है. आप चिट्ठे को ब्लॉग कहेंगे तो हिन्दी का विकास कैसे होगा?"शिवकुमार मिश्र
- पर आज तो "कंप्यूटर" का जादू तो और भी सर चढ़ कर बोल रहा है. संसार ही इसमें समाया सा लगने लगा है. "चौपाल" तो लोग भूलते ही जा रहे हैं, इसी कंप्यूटर पर ही सारी गुटरगूं हो जाती है. क्या बच्चे, क्या यूवा, क्या बूढे, क्या महिलाये, क्या बालाएं, सभी पर इसका जादू सर पर चढ़ कर बोल रहा है चन्द्र मोहन गुप्त
- भैया हिंदी डे को अपन भी एकाध प्रोग्राम करा कर सेलिब्रेट कर लेते!हम ही नेग्लेक्ट करेंगे तो कैसे चलेगा।अनिल पुसदकर
- हम तो उनकी इस मुक्ति और खुद को फिर पाने की इच्छा के फलीभूत होने की गाथा सुनकर बहुत प्रभावित हुए। अपनी ऐसी क़िस्मत कहां कि चाकरी से मुक्ति पाएं। अजित वडनेरकर
- नैनो के पलक द्वार पर
दस्तक देती रही सिसकियाँ
कांपते अधर बोल ना पाए
अंगारे बन धधकती रही हिचकियाँ सीमा गुप्ता - हाँ इतना जरुर कहूँगा कि व्यक्तिगत स्तर पर मैंने पाया है कि बहुतया हिंदी भाषी क्षेत्र अपने - आप में ही एक आत्ममुग्धता में रहते हैं, और अन्य भाषा तथा भाषियों के प्रति सामान्यतः एक उपहास तथा उपेक्षा सा भाव रखते हैं.अभिषेक मिश्र
- ये अपनी हिंदी कमज़ोर कैसे हो गयी....बचपन से आज तक तो इसे वैसे ही ...सेहत मंद देखा है....घर से लेकर बाहर तक...दोस्त से लेकर दुश्मन तक.....गाने से लेकर ...रोने तक...और छोडने से लेकर ..लपेटने तक...सिर्फ़ हिंदी ही हिंदी दिखी मुझे तो .. अजय कुमार झा
- सहेलियों ने इसका भी हल ढूंढ निकाला।किसी लड़की से चार घंटे के लिए बुरका उधार लेने की बात भी कर डाली.शायद फिल्म देखने से भी ज्यादा थ्रिल, बुरका पहनने का था ,मैं भी सहर्ष तैयार हो गयी.सब बहुत उत्साहित थे और तय किया, एक बार हॉस्टल चलकर बुर्के का ट्रायल कर लिया जाए ताकि सड़क पर चलने में कोई परेशानी न हो चवन्नी चैप
- टॉक इन इंग्लिश .............टॉक इन इंग्लिश ..................वही घर में, वही स्कूल में . हिंदी में बात करने वाले बच्चे भी तो होशियार होते हैं न . आज का मंत्र" सभ्यता की पहचान इंग्लिश में बात ..........आरोही
- अंग्रेजी महलों में सोती
इसकी ही बढ़ी पिपासा है
झोंपडियों में जो रहती है
हिंदी निर्धन की भाषा है अरुण मित्तल 'अद्भुत' - ये सही है कि अंग्रेजी के विद्वान बन जाने से दुनिया में हमें बहुत इज्जत भी मिली और दुनिया से हमने बहुत पैसा भी बटोर लिया। लेकिन, अब हम इतने मजबूत हो गए हैं कि दुनिया हमारी भाषा, हमारे देश का भी सम्मान करने के लिए मजबूर हो।बतंगड़
और अंत में
आज विवेक सिंह की चर्चा का दिन था। लेकिन वे कुछ व्यस्त रहने के कारण चर्चा से कुछ दिन अलग रहेंगे इसलिये हम ही हाजिर हो गये जय बजरंगबली कह कर।खुशदीप सहगल कुछ ही दिन में काफ़ी जनप्रिय ब्लागर हो गये हैं। उत्साह के ब्लाग लिखते हैं। स्लाग ओवर उनके ब्लाग का खास आइटम होता है। कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपने ब्लाग में हिन्दी के टाप टेन ब्लागर का जिक्र किया जिसके बारे में कुछ लोगों ने लिखा भी कि यह ऐसी-वैसी ही बात है।
विवेक सिंह ने अपनी टिप्पणी में लिखा उस पोस्ट में: लिस्ट में महेन्द्र मिश्रा जी जैसे महान ब्लॉगर का नाम ही नहीं ?
विवेक सिंह की टिप्पणी में पोस्ट और महेन्द्र मिश्र दोनों से मौज थी।
इस पर किसी अनाम ब्लागर ने ब्लाग वकील के नाम से लिखा:
ऐतराज है तो इस बात पर कि आपके ब्लाग पर विवेक सिंह नाम ब्लागर , जिसे खुद आये कुछ ही अर्सा हुआ है उसने सरे आम महेंद्र मिश्र की इज्जत खराब करने वाली कटू टिप्पणी की और आपने उसे अभी तक मिटाया नही।
विवेक सिंह ने भी लिखा:
महेन्द्र मिश्र जी की पोस्ट लिखने की आवृति का मैं कायल हूँ,
मेरे उनसे कभी मतभेद रहे इसका मतलब यह नहीं कि हम आपस में दुश्मन हो गए,
यह तो लोगों की साजिश है हमें भिड़ाने की जिन्हें एक सच बात बेइज्जती नज़र आयी,
आखिरी टिप्पणियां होने के कारण लोगों ने पलटकर देखा नहीं होगा। न ही विवेक ने इसको अपने ब्लाग लाकर रोना रोया न ही महेन्द्र मिश्र ने अपने ब्लाग पर लिखा।
मेरी समझ में खुशदीप सहगल को इस बात पर विचार करना चाहिये कि कोई अनामी टिप्पणी किसी को खराब बताते हुये की गयी है तो क्या आप भी उससे सहमत हैं।
मेरी समझ में माडरेशन की आवश्यकता अपने खिलाफ़ अशोभनीय टिप्पणी बचाने से ज्यादा आपके ब्लाग के पाठकों का सम्मान बचाने के लिये हैं।
इस पर मेरी समझ में विचार होना चाहिये। साथियों को अपनी राय देनी चाहिये। मैं अगर खुशदीप सहगल की जगह होता तो अनामी टिप्पणी को हटा देता।
बाकी मौज-मजे वाले लोगों को यह समझना चाहिये कि उनके व्यंग्य वाण के आखिरी जबाब उनके लिये जूता लात ही हैं। लोग आपकी बात का जबाब न दे पायेंगे और जहां पकड़ पायेंगे धर के पीट देंगे। जबलपुर में परसाई जी के साथ हुआ था।
यहां तो सिर्फ़ बातचीत है भाई!
विवेक की सूचना के लिये बता दें कि मौज लेने के चलते बहुत पहले हमारे लिये तमाचा प्रस्ताव पारित हो चुके हैं!:
हिंदी ब्लोगिंग के स्वयम्भू दरोगा बनने की अनधिकृत चेष्टा करते कुछ अनूपों और अतुलों के मुंह पर करारे तमाचे लगाते रहिये। लिखिये, और लिखिये।
वैसे मेरी समझ में मौज लेने वालों को कम से कम खुल्लम-खुल्ला गाली सुनने को तो तैयार रहना चाहिये!
बकिया मौज है!
सही है. मौज लेने पर इतना तो हक़ बनता ही है. और मौज लेने वाले का हक़ मारा जाय, यह नहीं होना चाहिए....:-)
जवाब देंहटाएंचिट्ठाचर्चा अच्छी है.
मॉडरेशन बेहतर विकल्प है । निश्चय ही "माडरेशन की आवश्यकता अपने खिलाफ़ अशोभनीय टिप्पणी बचाने से ज्यादा आपके ब्लाग के पाठकों का सम्मान बचाने के लिये हैं।"
जवाब देंहटाएंचिट्ठों के अंश देकर उनकी चर्चा करना बेहतर लगा । श्रेष्ठांश चुनकर रख देंगे आप । आभार ।
अच्छी लगी आपकी चिठा चर्चा बधाइ
जवाब देंहटाएंअब जी क्या कहे ऐसी मौजो पर.. ऐसी मौज लेने वालो से हम्बल रिक्वेस्ट (हिंदी दिवस कल था आज थोड़े ही है) है कि पहले श्रीमान अनूप शुक्ल 'असली' से मौज की सही परिभाषा पूछ ली जाए..
जवाब देंहटाएंआगे श्रीमान खुशदीप जी का नाम हमने पहली बार चिटठा चर्चा के माध्यम से जाना है.. पर दाद देनी पड़ेगी उनकी पारखी नज़र की उन्होंने सही ताड़ लिया कि कौन टॉप ब्लोगर है..
वैसे हमें आज तक कोई ब्लोगर पसंद ही नहीं आया.. हाँ पोस्ट कई पसंद आई है जिन पर हमने टिप्पणिया दी है.. हिंदी ब्लॉग जगत की यही विडम्बना है कि यहाँ पर पोस्ट से ज्यादा ब्लोगर महत्वपूर्ण है.. जिस दिन अच्छी पोस्ट पर टिप्पणिया दी जायेगी तभी हम शैशव अवस्था (मैंने कही पढ़ा था कि हिंदी ब्लोगिंग शैशव अवस्था में है) से बहार निकलेंगे..
अभी हम चलते है.. ज्यादा बोलेंगे तो बोलोगे के बोलता है..
(नो ओफेंस)
ओह हिंदी ब्लॉग केवल मौज के लिये हैं आज पता चला . और अनूप और विवेक मे कौन सा सम्बन्ध हैं लैंगिक की बात नहीं हैं जी वो ना समझे . हाँ कोई ना कोई "सम " जरुर हैं वर्ना विवेक के लिये अनूप का दिल यूँ जार जार ना रोता . और सत्यानाश हिंदी ब्लोगिंग का यूँ ना होता .
जवाब देंहटाएं"अंग्रेजी को कोसना आसान है लेकिन हिंदी की जडें जिन भाषाओं में है उन तक फ़िर लौटना..."
जवाब देंहटाएंपर यहां तो ब्लागिंग की जडें खोदने में लगे है कुछ वकील!!! समटोटल यही कि मौज करो मस्त रहो:)
अरे, वकील साहब, लगता है कल हिंदी में हिंदी दिवस मना लिए भाई. ऐसी भाषा! और आप कोई हैं, यह साबित करने के लिए ब्लॉग भी बनाना पड़ा. गरियाने के लिए इतनी मेहनत? सही है. ब्लॉग को गंभीरता के साथ आपने ही लिया है. बाकी तो सब ऐं-वें ही हैं जी.
जवाब देंहटाएंआपका शब्दकोष देखकर लग रहा है कि हिंदी ब्लागिंग अब शैशव-काल से निकल कर जवानी की सड़क पर भाग रही है.
अच्छी चिट्ठा चर्चा रही ,
जवाब देंहटाएं"तेरा संग है , मां , तो जीवन में रंग है ,
आंखो में ललक है ,दिल में उमंग है ।
आसमान को छूती जिंदगी मेरी पतंग है ,
क्यूंकि बनके डोर हर उंचाई पर , तू मेरे संग है।"
इन पंक्तियों की चिट्ठा चर्चा में चर्चा मेरे बेटे को प्रेरित करने के लिए काफी है .. धन्यवाद !!
अनूप जी, आपका हुक्म सर-माथे पर, मैंने दोनों कथित टिप्पणियां अपनी पोस्ट से हटा दी हैं, लेकिन जिस अनामी टिप्पणीकार के बारे में आपने इशारा किया, उनकी टिप्पणी आपकी इस ताजा पोस्ट पर भी आ चुकी है...वैसे मुझे अच्छा लगता कि आप इस बारे में मेरे स्पष्टीकरण की कुछ लाइन भी छाप देते जो मैंने इस बारे में दिया था...उस स्पष्टीकरण को मैं यहां रिपीट कर रहा हूं-
जवाब देंहटाएंमेरी इस पोस्ट पर सभी तरह की टिप्पणियां आईँ...एक बंधु ने यहां तक कहा कि मैंने प्रतिकूल टिप्पणी को हटाया क्यों नहीं...देखिए भाई...यही तो लोकतंत्र की खूबी है...हर एक को अपनी बात ऱखने का पूरा अधिकार है...अगर कोई आपकी आलोचना करता है तो उसे भी संयम के साथ सुनना चाहिए...अगर मीठा-मीठा गप गप और कड़वा-कड़वा थू-थू करेंगे तो ये अपने आपको ही धोखा देना होगा...ये हो सकता है कि मैं ही कहीं अपनी बात को ठीक तरह से रखने में चूक गया हूं...इसीलिए तो मैं कहता हूं कि दिनेशराय द्विवेदी जैसी हस्तियां मेरे लिए आइकन हैं...ऐसे सद्जन ठीक वैसी डाल के समान होते हैं जिनके जितने फल लगते है वो उतना ही झुकती हैं...वो अगर आपको कोई नसीहत देते हैं तो उसमें आपके लिए ही कोई भलाई छिपी होगी...ठीक वैसे ही जैसे घर के बड़े-बुज़ुर्ग हक के साथ आपसे कोई बात कहते हैं...रही बात टिप्पणी हटाने की तो मैं तब तक सेंसर के पक्ष में नहीं हूं जब तक कोई मर्यादा की सीमा न लांघे...बाकी फूलों के साथ आपके पत्थर भी मुझे बर्दाश्त हैं...
महाराज मुझ जैसे अदने को वाह वाह वाह खूब लपेटा है ..... खूब मौज कर रहे है अच्छा है सभी की सेहत के लिए फायदेमंद है . पंडित जी मेरे मित्र एकलव्य ने थोडी से मौज क्या कर ली थी वहां तो धडाम धडाम कलई खुलने लगी थी . रहा विवेक हम कलमकार है भाई भाई है . मुझे ख़ुशी है की आप जैसे महान चिठ्ठाकार ने मुझ छोटे अदना से ब्लॉगर का जिक्र तो किया .... चलिए हम इसी में मौज कर लेते है खुशियाँ मना लेते है और आपस में खुशियाँ बाँट लेते है .. आभार बहुत बहुत .......
जवाब देंहटाएंवैसे मेरी समझ में मौज लेने वालों को कम से कम खुल्लम-खुल्ला गाली सुनने को तो तैयार रहना चाहिये!
जवाब देंहटाएंबात तो सही है पर कुछ मौज संयत और मर्यादित भाव से ली जाती है जिसे हम फ़ुरसतिया मौज कहते हैं और कुछ खुंदक के लिये ली जाती है. यहां हर तरह के प्राणी के हैं...क्या कर सकते हैं? हम भी आपके साथ साथ बजरंगबली की जय बोल कर विदा होते हैं.
रामराम.
जो हुआ वाकई बुरा हुआ। फुरसतिया जी इस मुद्दे को इतने सशक्त मंच पर उठाने के लिए बधाई के पात्र हैं और खुशदीप सहगल जी इस विवादित कमेंट को हटाने के लिए। हिन्दी ब्लॉगिंग को सकारात्मक दिशा में ले जाने के लिए इस तरह के प्रयास आवश्यक है।
जवाब देंहटाएं"मेरी समझ में खुशदीप सहगल को इस बात पर विचार करना चाहिये कि कोई अनामी टिप्पणी किसी को खराब बताते हुये की गयी है तो क्या आप भी उससे सहमत हैं।
मेरी समझ में माडरेशन की आवश्यकता अपने खिलाफ़ अशोभनीय टिप्पणी बचाने से ज्यादा आपके ब्लाग के पाठकों का सम्मान बचाने के लिये हैं।
इस पर मेरी समझ में विचार होना चाहिये। साथियों को अपनी राय देनी चाहिये। मैं अगर खुशदीप सहगल की जगह होता तो अनामी टिप्पणी को हटा देता।"
अगर ब्लॉग के पाठक का सम्मान बचाने के लिए फुरसतिया जी ब्लॉग से टिप्पणी मिटाने के पक्ष में हैं तो चिट्ठाचर्चा की इस पोस्ट पर मेरे सम्मान को निशाना बनाने वाली छह टिप्पणियां पिछले करीब डेढ़ महीने से मौजूद क्यों है?
हैपी ब्लॉगिंग
अनूप जी की इस बात से सहमति है कि मौज लेने वालों को गाली सुनने को लिए तैयार रहना चाहिए। यह तो सच्चे लेखन कर्म का छोटा पुरुस्कार है। इस से आगे की संभावनाओँ के लिए अर्थात उच्च और उच्चतम पुरुस्कारों के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
जवाब देंहटाएंकल-परसों पुरुस्कार पर बात चल रही थी तो मैं ने कहा था अच्छे लेखन का पुरुस्कार ही यही हैं। परसाई को सब से बड़ा पुरुस्कार उन पर लठिया भांजने वालों ने ही दिया था और प्रेमचंद को सोजे वतन की जब्ती ने।
हमें आदत है, गाली सुनने की।
जवाब देंहटाएंउनके पास जो होगा वही तो देंगे।
वो तो बस बकते रहें।
मैं चुप रहूँगा!
ऐसा लगता है की अगर आप चार पांच दिन भी ब्लोगिंग से दूर रहते है तो क्लास की कई गतिविधियों को मिस कर जाते है ....दिक्कत ये है की हम जैसा कागजो में दिखना चाहते है असल जिंदगी में वैसे होते नहीं है..."आजकल की दुनिया मे "नोर्मल" रहना ही असाधारहण होना है, हम हमेशा उन्हें पसंद करते है जो हमारी तारीफ़ करते है ..वक़्त के साथ हम केवल ओर केवल असहमतियों को फिल्टर करते है ......यूँ भी वक़्त बड़ी अजीब शै है ..इसके एक पन्ने पर जो आदमी हीरो दिखता है अगले कुछ पन्नो में विलेन नज़र आता है ..
जवाब देंहटाएंसवाल ये उठता है की आप ब्लोगिंग क्यों करते है .आपका उद्देश्य क्या है ....क्या आप विचारो को बांटना चाहते है ओर अच्छे विचारो को पढना ...".अभिव्यक्ति जब सामूहिक हो जाती है तो अपने साथ जिम्मेदारी भी परोक्ष रूप में ले आती है ....इसलिए अभिव्यक्ति की लगाम आपने ही अपने हाथ में रखनी है ...
अभी आधी टिपण्णी .बाकी ब्रेक के बाद......
वैसे मेरी समझ में मौज लेने वालों को कम से कम खुल्लम-खुल्ला गाली सुनने को तो तैयार रहना चाहिये!
जवाब देंहटाएंबात तो सही है पर कुछ मौज संयत और मर्यादित भाव से ली जाती है जिसे हम फ़ुरसतिया मौज कहते हैं और कुछ खुंदक के लिये ली जाती है. यहां हर तरह के प्राणी के हैं...क्या कर सकते हैं? हम भी आपके साथ साथ बजरंगबली की जय बोल कर विदा होते हैं.
हम भी ताऊ रामपुरिया जी से सहमत है और इस मुद्दे पर ऐसे ही विचार रखते है !
आइकॉन वह चीज है जिसकी नाक पर माउस रख कर क्लिक किया जा सके! :-)
जवाब देंहटाएंडॉ. अनुराग जी की बात से मैं सहमत हूँ
जवाब देंहटाएंभाग दो -
जवाब देंहटाएंहमें तो हिंदी अब दिन दुगुनी चार चौगनी बढती नजर आती है ...कम से कम कम्पूटर पे ओर कार्यालयों में ..नोकिया के लेटेस्ट मोबाइल में भी अब हिंदी एस एम एस की सुविधा आ रही है ..देश ओर विदेशो में मौजूद कुछ मेहनती लोग यहाँ वहां से सामग्री इकठा कर नेट पे कुछ सामान जुटा रहे है .....बस समस्या एक है हिंदी की प्रसिद्द कहनिया ओर उपन्यास का अनुवाद अंग्रेजी में नहीं हो रहा है ..तभी बहुत सारे लोग बहुत सी चीजो से अन्जान है ...इसका एक कारण ये भी है ज्यादातर साहित्यकार कम्पूटर से दूर है ...साहित्यिक पत्रिकाए ..हंस ,कथादेश ,नया ज्ञानोदय भी रोज अपडेट नहीं होते है ..न ही उनके पुराने अंक नेट पर पढ़े जाए इसका कोई प्रावधान है ....
विदेशो में एक मात्र हिंदी का प्रसार करने वाली हिंदी फिल्मे अच्छी स्क्रिप्ट का रोना रोती है .पर उपन्यास ओर कहानियो पे फिल्मे नहीं बनती है ..इसका एकमात्र कारण उनकी अज्ञानता है ...जबकि होलीवूड में ऐसा नहीं है ...
अब आखिर में मौज लेने की बात ..मौज जैसे गंभीर विषय पर एक विचार घोष्ठी अलग से बुलाई जाये तो अच्छा है ...नाम बदलकर ....किसका मौज का .....
सम भाव का आभाव आशीष खण्डेलवाल जी के कमेंट से स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है. इस पर प्रकाश डालें, तो बेहतर होगा.
जवाब देंहटाएंमौज लेने वाले को गाली खाने के लिए तैयार रहना चाहिये-इस बात को मैं नहीं मानता बल्कि इसे यूँ कहिये कि मौज ऐसी लिजिये कि गाली न पड़े. गाली तो तभी निकलती है, जब दिल दुखता है तो ऐसी मौज किस काम की जो किसी का दिल दुखा जाये. वो तो अपरोक्ष रुप से मौज नहीं, किसी को छेड़ना या परेशान करना ही कहलाया.
व्यंग्य बाण एक प्रकार से अपरोक्ष वार ही है और अपनी बात कहने का/ विरोध दर्ज करने का तरीका. इसीलिये कटाक्ष कहलाता है. सीधे न लड़ कर कलम और शब्दों की जादुगिरी से किसी नाजायज या नापसंद बात पर प्रहार करना. व्यंग्य के उद्देश्य की पूर्ति ही तभी होती है जब उससे सामने वाला, जिस पर व्यंग्य किया जा रहा वो तिलमिला जाये.
व्यंग्य से अलग मौज मस्ती हास्यपरक हल्की फुल्की और सामने वाले की बर्दाश्त के अनुरुप ही होना चाहिये. सबके बर्दाश्त की सीमा अलग अलग होती है. शायद मुझमें ज्यादा हो और किसी में कम. इसका आंकलन पहले कर लेना चाहिये तो ही बेहतर.
मात्र मेरे विचार हैं. मन में आया सो कह दिया.
चलिए कुछ दे ही रहा है
जवाब देंहटाएंअपने राम का क्या ले रहा है
गाली दे रहा है
मौज ले रहा है
एक दिन मौजा भी पहन लेगा
वैसे गाली देने वाले को भी तो
मौज लेने का हक है
जो गाली से बचना चाहते हैं
वे हेलमेट धारण करें
कहते हैं कि गाली यानी शब्दों की चोट
घणी तीखी होती है
चैनल से भी तेज होती है
पर कितनी ही हो तेज
एक बहरे का तो कुछ बिगाड़ भी ले
पर जो सुनना ही नहीं चाह रहा है
या सुनकर भी अनसुना कर रहा है
उसका कोई क्या बिगाड़ लेगा
उससे तो मौज भी नहीं मिलेगी।
वहां तो मौजा पहन कर ही चलाना होगा काम
बहुत हो गई टिप्पणी
हम तो चले पुरस्कार प्रतियोगिता के नियम तय करने
कोई सलाह देना चाहे तो
स्वागत है आये और नुक्कड़ पर दे जाये।
हम इंतजार करेंगे
नियम एवं शर्तों की घोषणा किए जाने तक।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंइत्ती सारियाँ टिप्पणी शीप्पणी.. हाय रब्बा !
पाठकों के सम्मान की रक्षा की दुहाई, कही पाठकों के स्वयँ के विवेक पर प्रश्नचिन्ह तो नहीं है ?
ओल्ड मॉन्क में बैगपाइपर का कॉकटेल मुझ कैसे बाटलीपलट को हज़म नहीं हुआ करता था,
पुनः प्रयास करता हूँ, शायद ब्लागर पर यह सँभव हो,देखिये आगे आगे होता है, क्या ?
लगता है, यह बेमेल कॉकटेल मुझे शर्तिया गटर में पहुँचायेगी ।
मौज कुछ ज्यादा तो नहि होगई जी.:)
जवाब देंहटाएंरामराम।
जो टिप्पणी मैने हटाई है वो सिर्फ इसलिए कि आप जिस आई डी से चाहें, उससे उसे पोस्ट करके दिखा सकता हूँ. चाहें तो उड़न तश्तरी से/ चाहें तो ब्लॉग वकील से या जिस नाम से चाहें मगर मैं तो ताऊ हूँ, क्यूँ किसी और को लफड़े में डालूँ. इसलिये ब्लॉग वकील की मन की बात फिर अपनी आई डी से ही भेज देता हूँ. मन तो क्या है, दिल पढ़ने का हुनर रखता हूँ, बस, तबीयत जरा नासाज है. इसे मौज ही मानें मगर गाली मत बकना. हम तैयार नहीं हैं उसके लिए वरना गुरुदेव की सीख से व्यंग्य कसते. :)
जवाब देंहटाएंअब फिर से वही टिप्पणी पढ़िये:
माननिय ब्लाग कोर्ट में १३. सुत्रिय अपील
पहली बात ये कि ये ब्लाग वकील जिनकी ऊपर टिप्पणी है वो अलग है। हमारा उनसे कुछ लेना देना नही है।
ये कौन हैं आप सब भली भांति जान ही गये होंगे.
१.अनूप जी और विवेकजी के जो भी संबंध हो..उनको क्या इनका तलाकनामा कराने का पावर आफ़ अटार्नी दिया गया है?
२. मी लोर्ड..सब जानते हैं कि जब अपने वाले को कोई गरियाता है तो दुख तो होबे ई करता है ना? तो विवेकजी की गंदी टिप्पणी के बावजूद अनूपजी ने वहां जाकर पैरवी की तो इसमे आश्चर्य की कोई बात नही होनी चाहिये। अपने वाला गलती करे तो उसे बचाना तो पडता ही है ना।
३. अब यहां पर अनूपजी गलती ई किये हैं कि ऊंहा विवेकजी की साफ़ गलती को उजागर करने की बजाय दबाने के लिये टिप्पणी हटाने की व्यवस्था देदी..और भाई ने हटा भी दी..कोई बात नही जी..रेवडी बटेगी तो अपने वाले को ही दी जायेगी।
४. पर मी लार्ड आप यह भूल गये की जब कोई सार्वजनिक चौपाल मुखिया बनता है तो उसको कई बार अपनों कॊ भी दंडित करना पडता है। भले ही दिखावे के लिये ही हो।
५. आपकी टिपणी हटाने की व्यवस्था दिये जाने पर टिपणि हटा ली गई।
६. मी लार्ड..सारी तकलीफ़ यहीं से शुरु होगई। हुजुर आपकी इसी व्यवस्था के तहत एक अपील आपके इस चौपाल पर आई "नैतिकता पर प्रहार करने वाली टिप्पणियों" को हटाने के लिये ।
७. मी लार्ड..आश्चर्य और खेद की बात तो यह है कि आपने उस अपील को सुनवाई के लिये भी मंजूर नही किया।
८. उसके बाद आपके इस चौपाल के स्वनाम-धन्य ब्लागर आये और अपनी अपनी टिप्पणियां सांस ले लेकर यानि ब्रेक ले ले कर, कर गये..पर जिस तरह से अपील बिना सुनी पडी रही..उस पर किसी भी वरिष्ठ ने कुछ कहना तो दूर..बल्कि ध्यान तक नही दिया। ऐसे हैं आपकी चौपाल के ब्लागरत्न। बुरा मत मानियेगा आज सब बात हम कह के रहेंगे। हमारी बहस के बीच टोका टाकी नही चलेगी। जब आप अपनी बात रखेंगे तब हम सुनेगे..आखिर हम भी ब्लाग कोर्ट की ब्लाग वकील हैं।
९. हां तो हम यह कह रहे थे मी लार्ड कि अब एक ब्लाग शिरोमणि ब्लागर ने कुछ कायदे की बात रखी है कि उस अपील को संज्ञान मे लिया जाना चाहिये।
१०.वैसे तो आपके यहां कोई न्याय की उम्मीद नही है क्योंकि आप लोगों की अपनी एक स्वांत: सुखाय दुनिया है. आप अपने ग्रुप के बाहर के लोगों को सिर्फ़ आपस में भिडाकर अपना अहम शांत करते हैं। करते रहिये..हमको कौन रोज आपके दरवाजे आने का शौक है?
११.पर फ़िर भी मरता क्या ना करता? आपसे अपील तो करनी ही पडेगी।
१२.तो मी लार्ड ...आपसे गुजारिश है कि इकतरफ़ा अपनों अपनों की ही ना ढकें..दूसरे भी आपसे उम्मीद करते हैं।
१३.हुजुर उम्मीद है कि इसी पेशी पर फ़ैसला दिया जाये ना कि बार बार तारीखें बढाकर समय खराब किया जावे।
डायरेक्ट फ़ैसले की उम्मीद के साथ..
ब्लाग वकील
acchi charcha...
जवाब देंहटाएंsabhi link behtarin they...
:)
जवाब देंहटाएंताऊ, मैं सारी पँचायत को बता दूँगा कि, इस वाली टिप्पणी में तैंने एक 14वाँ सूत्र दबा लिया है ।
oh wat a lovely charachaa.
जवाब देंहटाएंबस चैक कर रहा हूँ कि टिप्पणी काम कर रही है कि नहीं. एकदम शांति पड़ी है इस करके. देखो, टेस्ट का क्या रेजेल्ट निकलता है ..टिप्पणी पोस्ट करें दबाने पर. अब आये हैं तो एक मुक्तक सुनाते चलें:
जवाब देंहटाएंचाँद के पास वो जो सितारा है
वो न मेरा है और न तुम्हारा है
फिर ऐसी भी क्या कशिश है उसमें
कि वो तुमको यूँ जान से प्यारा है.
-लिखा था सो सुना दिया..कोई खास मकसद नहीं.
@ आशीष खंडेलवाल जी, यह गुरू शिष्य का मामला है, बात को 6 टिप्पणियों में हीं रहने दें इसी में आपका सम्मान भी है, अन्यथा मेरे पास आपके लिये टिप्पणियों का भण्डार है, अगर फिर भी अगर delete कर दी जाती हैं तो कैरानवी की नाराजगी में चिटठा चर्चा का 60 टिप्पणियां झेलनी पडेंगी, कहां कहां अर्जियां लगायेंगे, फिर आपके सम्मानित पाठक की टिप्पणियां हैं या फिर से दिया सम्मान वापस लेना चाहते हैं,
जवाब देंहटाएंनोटः अगले Para कमेंटस को समझने के लिये पाठकों को उमर चालीसा अर्थात ''ज़रा देखिये तो इन बेशर्म ब्लोग्गरों को कहीं भी घुसे आते हैं ........'' पढ लेना चाहिये
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''ऐ janokti के निवासियों (ब्लागरों), मेरी गुरू दक्षिणा स्वीकार कर ली गई, गुरू आशीष खण्डेलवाल जी को मुझ पर गर्व है, उन्होंने मेरे से दक्षिणा मांगी थी जो उपर के comments में फिरसे पढलो कि मैंने उनसे कहा था कि मैं उन्हें दक्षिणा में आलोचना दूंगा, मैंने दी उन्होंने स्वीकार की देखो एक आलोचना के जवाब में वह मुझ पर गर्व करते हैं, और ईमेल में लिखते हैं
''आप मेरे ब्लॉग के सम्माननीय पाठक हैं, अच्छे आलोचक हैं और आप जैसा पाठक पाने पर मुझे गर्व है।''
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मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध् मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा? या यह big Game against Islam है?
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छ अल्लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्लामिक पुस्तकें
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विचित्र चर्चा...।
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