बुधवार, सितंबर 30, 2009

चिट्ठा चर्चा एक नए कलेवर में..

नमस्कार चिटठा चर्चा में आपका स्वागत है.. दो दिनों से ब्लोग्वानी ने साथी ब्लोगरो को लिखने की एक वजह दे डाली.. कितने ही लोगो ने ब्लोग्वानी को वापस बुलाया और बुलाकर धन्यवाद् भी दिया.. पर इस मनाने और बुलाने में मूल समस्या की बात पता नहीं कहाँ चली गयी.. ब्लोग्वानी को समझना चाहिए यहाँ पर इल्जाम लगाने वाले कई लोग घात लगाए बैठे है.. आप चाहे जितना बढ़िया बना दे इसे फिर कोई आवाज़ उठा देगा..
हमने अपनी टिपण्णी के रूप में पियूष मिश्रा द्वारा लिखित गुलाल फिल्म का गीत लिखा

सभी जगत ये पूछे था, जब इतना सब कुछ हो रियो तो
तो शहर हमारा काहे भाईसाब आँख मूंद के सो रियो थो
तो शहर ये बोलियो नींद गजब की ऐसी आई रे
जिस रात गगन से खून की बारिश आई रे
ये तो रही हमारी बात, आइये पलटी मारते है आज की चर्चा की तरफ.. शुरुआत करते है मिथिलेश दुबे जी की पोस्ट से मिथिलेश जी कहते है

देखिए, जो कुछ भी होता है, इसी समाज में होता है और इस बात की दुहाई के साथ कि यह समाज का एक अंग है। मैं इससे इनकार नहीं करता। राइट टू इक्वलिटी की बात पर वे लिखते है..
अगर प्रकृति ने हमें यह बताया है कि दो विपरीत लिंगी विपरीत हैं तो प्राकृतिक ढंग से वे एक नहीं हो सकते। प्राकृतिक ढंग से जो विपरीत है, उसके लिए राइट टू इक्वलिटी की बात करना थोपा हुआ सच है। पश्चिमी संस्कृति में है, इसलिए हमारे यहां लागू करने में क्या हर्ज है, यह डिबेट का विषय है।
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आगे वे लिखते है..

न्युज चैनल हो या अखबार, अनर्गल विज्ञापनों और नग्न चित्रों से पटे हैं। तेल,
साबुन, कपड़ा सभी जगह यही नग्नता। यहाँ पर मेरा सवाल उन प्रगतिवादी
महिलाओं से है जो की महिला उत्थान के लिए कार्यरत है इस तरह के बाजारीकरण
से उन्हे समान अधिकार मिल रहें है या उनको बाजार में परोसा जा रहा है ?।

चुनाव प्रचार हो या शादी का पंड़ाल छोट-छोटे कपड़ो में महिलाओं को स्टेज पर
नचाया जा रहा है। यहाँ पर महिला उत्थान के लिए कार्यरत लोग न पता कहाँ है।
अब उन्हे ये कौन समझाये कि उनका किस तरह से बाजारीकरण हो रहा है।
टीवी पर दिखाए जा सारे धारावाहिक एक्सट्रा मैराइटल अफेयर पर केंद्रित हैं। तर्क
यह दिया जाता है कि जो समाज में हो रहा है, हम वही दिखा रहे हैं, अगर आपको
न पंसद हो तो आप स्विच ऑफ कर लें। कल को आप टीवी पर ब्लू फिल्में दिखाने
लगें और कहें कि आपको पसंद न हो तो स्विच ऑफ कर लें।

समाज का एक वर्ग तर्क दे रहा है कि हमारे शास्त्रों में समलैंगिक संबंधों और
यौनिक खुलापन को जगह दी गई है। ठीक है, चार पुरुषार्थो में काम को भी रखा
गया है। उसके ऊपर चिंतन करें, यह गलत नहीं, इसका उद्देश्य प्रकृति को
अनवरत रूप से चलने देना है। मगर मात्र खजुराहो के मंदिर व वात्स्यायन का
कामशास्त्र ही भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व नहीं करते। सामाजिक नियम
द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव के अनुसार बदलते रहते हैं।

खैर ये तो रही मिथिलेश जी की बात, अब मिलते है रवि रावत जी से
अपने परिचय में रवि रावत जी कहते है

किसी से वाद- विवाद करने से अच्छा है चुप रहना, लेकिन चुप रहने से दिमाग भारी हो जाता है। इंसान मनोरोगी हो जाता है। मैंने सोचा, क्यों न लिखकर दिमाग को हल्का कर लिया जाए, सो ये ब्लॉग रच डाला... अब मेरी हर मनोदशा आपके सामने होगी...
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रवि रावत जी अपने ब्लॉग मनोदशा पर श्री राम, कृष्ण को भगवान् मानने से इनकार कर रहे है..

आज छल-कपट का मायाजाल चारों ओर फैला हुआ है। लेकिन क्या राम ने छल नहीं किया या फिर कृष्ण इससे अछूते रहे। कृष्ण का तो एक नाम ही छलिया था। मुझे ऐसा लगता है कि कृष्ण ने सिर्फ अपनी सत्ता मनवाने के लिए महाभारत जैसा दुनिया का सबसे बड़ा युद्ध करवाया था। इसे नाम दिया धर्म युद्ध। जबकि मेरी नजर में कदम- कदम पर यह युद्ध छल और अधर्म की विसात पर लड़ा गया।

आगे वे लिखते है

अब राम की बात करें तो बाली वध में उन्होंने भी छल से ही काम लिया। किसी को भी छिपकर मारना राम जैसे मर्यादापुरुषोत्तम को शोभा नहीं देता।

हालाँकि यदि कोई उन्हें इन बातो पर विस्तृत जानकारी दे पाए तो वे अपनी ये सोच बदल भी सकते है.. ऐसा कहते हुए उन्होंने आगे लिखा है..

हो सकता है कि मुझे उचित तर्क नहीं मिले हैं, इसलिए मैं राम से थोड़ा खफा हूं। अगर कोई भी राम और कृष्ण को लेकर मेरे कुछ सवालों को सही उत्तर देता है, तो शायद में उन पर विश्वास करने लगूं।

यदि आप उनके सवालों के जवाब देना चाहे तो यहाँ क्लिक कर सकते है

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rashmiब्लॉग जगत में हाल ही में एंट्री लेने वाली रश्मि रविज़ा  जी अपने ब्लॉग मन का पाखी पर समाज की विसंगतियों पर लिखती है कि किस प्रकार नवरात्रि में माँ बाप अपने बच्चो पर नज़र रखने के लिए गुप्तचर सेवाए लेते है..

पहले पहल यह खबर पढ़कर मैं हैरान रह गयी थी कि गुजरात में संपन्न माता-पिता अपने बच्चों की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए गुप्तचर संस्थाओं का सहारा लेते हैं.

पर मन यह सोचने पर मजबूर हो गया कि आखिर ऐसी नौबत आयी ही क्यूँ? माँ-बाप को इतना भी भरोसा नहीं, अपने बच्चों पर ?और अगर भरोसा नहीं है तो फिर उन्हें देर रात तक बाहर भेजते ही क्यूँ हैं? बच्चों को वो जाने से नहीं रोक पाते यानि कि बच्चों पर उनका वश भी नहीं.

जाहिर है उनकी परवरिश में कोई कमी रह गयी.अच्छे संस्कार नहीं दे पाए.अच्छे बुरे को पहचानने कि समझ नहीं विकसित नहीं कर पाए. वे अपने काम में इतने मुब्तिला रहें कि बच्चे नौकरों और ट्यूशन टीचरों के सहारे ही पलते रहें.

रश्मि जी का मानना है कि अच्छे संस्कारों की कमी की वजह से ही ऐसा करने की नौबत आती है..

मुंबई में जन्मी,पली,बढ़ी मेरी कई सहेलियां बताती हैं कि वे लोग नवरात्रि के दिनों में डांडिया खेलकर सुबह ४ बजे घर आया करती थीं.साथ में होता था कालोनी के लड़के ,लड़कियों का झुण्ड. उन सबके माता पिता ने उनपर कैसे विश्वास किया?...लोग कहेंगे अब ज़माना खराब है.पर ज़माना हमसे ही तो है. इस ज़माने में रहकर ही,खुद को कैसे महफूज़ रखें, अपना चरित्र कैसे सुदृढ़ रखें,अपने संस्कारों को न भूलें.यह जरूरी है न कि किसी गुप्तचर के साए की दरकार है.

मेरे पड़ोस की मध्यम वर्ग की दो लड़कियां २० साल की कच्ची उम्र में उच्च शिक्षा के लिए विदेश गयी हैं.कभी लिफ्ट में मिल जातीं तो हलके से मुस्करा कर हेल्लो कहतीं.स्मार्ट हैं, पर कभी उन्हें उल्टे सीधे फैशन करते या बढ़ चढ़कर बांते करते नहीं सुना.मैं सुनकर चिंता में पड़ गयी थी,वे लोग वहां अकेले कैसे रहेंगी? पर उनके माता पिता को अपनी परवरिश पर पूरा भरोसा है.

लेख का अंत वे एक शेर से करती है

"ये पत्थरों का है जंगल,चलो यहाँ से चलें
हमारे पास तो, गीली जमीन के पौधे हैं"
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 photo 3राजेश मिश्रा जी की पोस्ट आह दिल्ली शरीफ दिखने वाली दुनिया के गाल पर एक तमाचा है.. समाज की एक
गन्दी सच्चाई दिखाती है उनकी ये पोस्ट

अरे सुनो मैं आवाज लगा देता हूं।ये कौन है तुम्हारी बीवी?
मै पूछता हूं, यह सोचकर कि किसी जगह कुछ जानकार मित्रों से कह कर कहीं इसे दिहाडी पर लगवा दूंगा । लड़की अबतक सड़क के उस पार जा चुकी है।लड़की के जाते ही वह कहता है
"बेटी है बाबू, ऎसी कुलखनी औलाद भगवान किसी को न दें! अविवाहित बेटी का कुंवारापन टूट जाए तो बाप के लिए गाँव में जगह कहां बचती है बाबू "? इसलिये दिल्ली आ गया हूं।

वह मेरा कंधा बड़े इत्मीनान से झकझोर कर कहता है,मेरी नजर में तो मेरी बिटिया आज भी कुंवारी है बाबूजी!आओ न तुम्हारे थके हुये जिस्म की मालिश करवा दें।
मेरी बेटी कर देगी न! महताना कुल बीस रूपए दे देना।
पीछे किसी गाडी की लंबी हार्न सुनकर मैं आगे बढ़ जाता हूं ।
देखता हूँ सडक के उसपार एक सेंट्रो कार का दरवाजा खुलता है और खटक से बंद हो जाता है।उसकी बेटी अब सड़क पर नहीहै और मेरे पास से उसका बाप भी जा चुका होता है।
अनायास मेरे दिल से निकल पड़ता है "आह दिल्ली"।
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प्रवीण सिंह जलते हुए रावण को देखकर कुछ यु लिखते है..

राम ने जैसे ही नाभिकुण्ड में दागा तीर
महिला झुंड में बरसा खुशी का नीर
एक बोला ये इतना क्यों हरस रही है
चेहरे पर इतनी खुशी क्यों बरस रही है
दूजे ने कहा यह है राज
सुनो बहुत खुश ये आज
इसलिए
बार-बार आपस में तालियां टेक रही है
भाई भले रावण पुतला ही सही
पुरुष को जो जलते देख रही है।
000
आज रावण का कद हर साल बढ़ रहा है
जैसे आतंकवाद हमारे सीने पर चढ़ रहा है।
नगरपालिका हर साल बढ़ाती है उसका कद
इधर भी बड़ी होती जा रही है आतंक की हद।
न जाने कब रावण का कद कबसे छोटा होना होगा
आतंक मिटाने को अब हमें और कितना खोना होगा।

अर्चना जी अपनी प्रोफाइल में अपने बारे में कुछ यु लिखती है..

मै, सबसे पहले एक बेटी,फ़िर बहन,फ़िर सहेली,फ़िर पत्नी,फ़िर बहू, फ़िर माँ,फ़िर पिता,फ़िर वार्डन, फ़िर स्पोर्ट्स टीचर और फ़िलहाल "ब्लॊगर" के किरदार को निभाती हुई,"ईश्वर" द्वारा रचित "जीवन" नामक नाटक की एक पात्र।

इसी जीवन के कुछ किरदारों से परिचय कराती उनकी ये पोस्ट त्योहारों पर अकेले रहते बुजुर्गो की व्यथा बताती है..

Zyu0oneमैंने पूछा आ गए आंटी कुछ दिन और वही आराम करलेते ------उनका जबाब था ----अपने घर में ही अच्छा लगता है ........मैंने कहा ----फ़िर भी थोडी देख-भाल हो जाती ,-------उसके लिए तुम हो न ........तुम्हे भगवान ने मेरे लिए भेजा है ....मेरे घर के सामने ...........और मै उनका मुझे पर विश्वास देखकर दंग रह गई ....(बाद में पता चला बहन के बेटी- दामाद आने वाले थे इसलिए वे उन्हें वापस छोड़ गई थी )

ईद के दिन सुबह-सुबह फ़िर मुझे जगाया ------आओ गले मिल लो आज मेरी ईद है ----( सुबह से तैयार होकरबैठी आंटी से शाम तक उनका कोई रिश्तेदार मिलने नही आया ........)

कायरे मामी की उम्र भी अस्सी साल के लगभग होगी , इस उम्र में भी क्रोशिये से बुनाई करती है , और सबको सीखाती भी है ,अकेले रहती है ............वे अपने पति की दूसरी पत्नी है ,पति अपने ज़माने के बहुत बड़े वकील थे


प्रमोद जी के ब्लॉग से कुछ तस्वीरे

azdak

रचना जी का मानना है कि ब्लोग्वानी को सदस्यता शुल्क लेना चाहिए.. 1200 रूपये मात्र.. 

अगर हम ब्रॉड बैंड के लिये ३०० - १००० रुपए महिना खर्च कर सकते हैं तो १२०० साल कि सदस्यता ब्लोग्वानी कि ले कर अपने लिखे को पढ़वा भी सकते हैं । जो सदस्यता ना ले वो पढ़ तो सकते हैं पर उनका लिखा ब्लॉगवाणी पर आयेगा नहीं । हिन्दी को आगे ले जाने के लिये हम इतना तो कर ही सकते हैं ।

बल्ली राय अपने बारे में कुछ यु लिखते है अपनी पोस्ट में..

000बारिश मे भीगना बहुत पसन्द है, जाहिर बचपन मे कागज की नावें बहुत चलायी.
बचपन मे मै बहुत शरारती था ‌और मोहल्ले की वानर सेना का लीडर था.
मै ईश्वर मे विश्वास रखता हूँ.
मै हिन्दी, उर्दू,अंग्रेजी, पंजाबी और फ्रेंच भाषायें बोल लेता हूँ, अब फ्रेंच बोलने के लिये मत बोल देना, मिट्टी पलीत हो जायेगी.
लेकिन मेरे को हिन्दी भाषा सबसे अच्छी लगती है.
कालेज टाइम मे धूम्रपान के कई रिकार्ड तोड़े…..अब स्मोकिंग एकदम बन्द,हालात यहाँ तक कि यदि कोई मेरे सामने स्मोक करे तो धुँए से परेशानी होती है.
पूरी पोस्ट में एक मासूमियत का भाव आपको भिगोये रहता है

जिन्दगी हर रोज कुछ ना कुछ नया सिखाती है, बहुत कुछ सीखा…….नही सीख पाया तो बस किसी से नफरत करना.
मेरा मानना है प्यार के लिये जिन्दगी कम पड़ती है, नफरत के लिये कहाँ जगह है इसमे?
मै किसी को बाय बाय नही कर सकता, मुझे बहुत दुःख होता है किसी को बाय बाय करने मे.
जीवन मे अपनी माताजी से बहुत प्रेरित रहा, अब वो तो नही रही, लेकिन उनके कहे एक एक शब्द आज भी मेरा मार्गदर्शन करते रहते है.

व्यापार के लिये एकदम अनफिट, पिछले अनुभव तो यही बताते है, शायद कई बार दिल से डिसीजन लिये इसलिये.
आत्मनिर्भरता के शौंक की वजह से जल्द ही अपने पैरों पर खड़ा हुआ, पढाई के साथ साथ नौकरी मे भी हाथ आजमाया.
कहते है हर सफल व्यक्ति के पीछे किसी महिला का हाथ होता है, अब मै किस किस का नाम लूँ?

ब्लाग लिखने का मकसद, लोगों तक अपने विचार पहुँचाना और लोगो के विचारों तक पहुँचना.
ब्लाग लिखने के लिये कभी भी ड्राफ्ट का प्रयोग नही किया, जो जी मे आया लिख दिया, हालांकि बाद मे कई बार लगा, कि इससे भी बेहतर लिखा जा सकता था.
आस पास की सबसे बड़ी उपलब्धि-हिन्दी ब्लागजगत के साथियों का सानिध्य पाना.
सपने देखना बहुत पसन्द है, खासकर पिछली जिन्दगी से मुत्तालिक……

प्रेमचंद का सेवासदन डाउनलोड करें
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प्रेमचंद को हिन्दी साहित्य में उपन्यास सम्राट की उपाधि प्राप्त है। 'सेवासदन' ,प्रेमचंद का प्रमुख उपन्यास है,इसका प्रकाशन सन १९१८ में हुआ था। प्रेमचंद को हिन्दी में प्रतिष्ठित करने वाला पहला उपन्यास सेवासदन पहले उर्दू में 'बजारे हुस्न' शीर्षक से लिखा गया था,पर उसका उर्दू रूप हिन्दी रूपांतरण के बाद प्रकाशित हुआ। इसी आधार पर सेवासदन को प्रेमचंद का पहला उपन्यास माना जाता है। आप इस उपन्यास को  यहाँ से डाउनलोड करें

तो दोस्तों ये थी आज की चिटठा चर्चा.. अंत में बात करते है चिटठा चर्चा के बदले हुए रूप की


नया कलेवर


चिटठा चर्चा का हमेशा से प्रयास रहा है अच्छे चिट्ठो की पोस्ट को एक स्थान पर उपलब्ध करना.. खैर पिछले कुछ समय में चिटठा चर्चा की तर्ज़ पर और साथी ब्लोगरो ने प्रयास किये है और कर रहे है ये अच्छी बात है परन्तु चिटठा चर्चा की ही तरह ले आउट बनाकर पाठको को गुमराह करना ठीक नहीं.. फिर भी चूँकि चर्चा का टेम्पलेट एक निशुल्क टेम्पलेट है जिसका उपयोग कोई भी कर सकता है इसलिए हमने चिटठा चर्चा का ही टेम्पलेट बदलना उचित समझा..  और इसीलिए आज आप चर्चा का नया ले आउट देख रहे है..

हमारे लिए ख़ुशी की बात होगी यदि आप टिपण्णी के साथ साथ इस ले आउट से सम्बंधित अपनी प्रतिक्रिया भी दे और साथ ही आपका सुझाव भी दे.. हम इसे और बेहतर बनाने के लिए प्रयत्नरत है..

आभार

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52 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लुक है, इस मेकओवर की बधाई…

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  2. नया नया होते रहना चाहिए....उर्जा बनी रहती है.

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  3. बहुत ही बढिया कलेवर है आपको बधाई,एवम भविष्य के लिये शुभकामनाए,

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  4. चर्चा का नया गेट उप बहुत खुबसूरत हैं । जिसने मे भी किया हैं बधाई स्वीकारे

    yae baat pichchli post par he keh dee thii lekin aaj aapki post kattii katti dikh rahee haen jab ki pichchli post aaj bhi bilkul sahii dikh rahee haen kahii taknik ki koi kami hui haen agar sudharr ho sakey to kar laey

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  5. And Kush thank you very much for telling me you are responsible for this remarkable layout change . Keep the good work going

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  6. काफी विस्तार से बेहतर चिट्ठों का उल्लेख ।
    चिट्ठा चर्चा का यह नया कलेवर बहुत ही खूबसूरत है । आभार ।

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  7. chitta charcha main shamil hone ka shulk bhi ho jaana chahiye ab to :1200/-

    itna accha kalewar jo hai...

    ..badhiya charcha !!
    Sabhi links acche the...
    :)

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  8. भाई कुश, नव आवरण अच्छा लगा. चर्चा भी!

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  9. बढिया चर्चा. कुछ लोग खांटी मौलिक होते हैं और कुछ खांटी नकलची.

    रामराम.

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  10. रंग बिरगीं चर्चा.. मजेदार..

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  11. "चिटठा चर्चा की ही तरह ले आउट बनाकर पाठको को गुमराह करना ठीक नहीं.. फिर भी चूँकि चर्चा का टेम्पलेट एक निशुल्क टेम्पलेट है जिसका उपयोग कोई भी कर सकता है इसलिए हमने चिटठा चर्चा का ही टेम्पलेट बदलना उचित समझा.. "

    तो गोया चिट्ठाचर्चा भी भारत के करेन्सी नोटों की तरह फ़ेक चिट्ठों से जूझ रही है और रूप बदल कर इस समस्या का समाधान खोज रही है। नया टेम्प्लेट बढिया बना है पर क्या इसे भी चुराया नहीं जाएगा:) हर अच्छी चीज़ चोर को आकर्षित करती है॥

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  12. भई, बढिया है, नये कलेवर में चर्चा।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  13. वैसे मेरे हिसाब से पाठक इतने बुद्धू नहीं है कि टेम्प्लेट देखकर गुमराह हो :) उनको तो हकीकत पता होता है .

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  14. @पंकज भाई
    मैंने कब कहा पाठक गुमराह होते है.. मैंने तो कहा कि उन्हें गुमराह किया जाता है..
    गलती पाठको की नहीं गुमराह करने वालो की है :) :)

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  15. http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/08/auar.html?showComment=1251694640136#c4459533268834286442

    charcha ki copy hui haen is baat ko maene kafii pehlae charcha kae manch par hi apnae kament mae kehaa thaa us taraf bhi kush ki yahii baat मैंने तो कहा कि उन्हें गुमराह किया जाता है..
    गलती पाठको की नहीं गुमराह करने वालो की है :) :)
    laagu hogii
    meri post kaa link daekahe http://mypoeticresponse.blogspot.com/2009/08/blog-post_30.html

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  16. कलेवर के साथ बदल देते तेवर

    तो ब्‍लॉग पोस्‍टों का रच जाता स्‍वयंवर

    फिर राखी का क्‍या होता

    क्‍या होता होली का
    और दिवाली का

    चर्चा की मनमानी का

    या मन से मनी का

    फन से फनी का।

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  17. मुझे लगता है कि ये इशारा ..शायद टिप्पणी चर्चा नामके उस ब्लोग से जुडा हुआ है ..जिससे जाने अनजाने मैं खुद जुडा हुआ हूं..जबकि आज तक मैं खुद नहीं जानता कि उस ब्लोग के संचालक ...टिप्पू चचा कौन हैं...हां विचार नया और अनोखा लगा सो भागीदारी की इच्छा प्रकट की थी...आमंत्रण मिला तो स्वीकार भी कर लिया...लगता है ..इसमें भी कुछ गलत हुआ मुझसे ..कम से कम यहां तो यही एहसास कराया जा रहा है...मैं टेम्प्लेट के बारे में नहीं जानता....ये उस ब्लोग के संचालक का अधिकार है....मगर हां ये मेरे हाथ में जरूर है कि ...उस ब्लोग से अभी के अभी अपनी भागीदारी वापस लेता हूं....कम से कम अपने ऊपर तो कोई आरोप मैं नहीं चाहता.....एक और गुजारिश ये कि.....लगता है इन दिनों विवाद की हवा सी चली हुई है....बहरहाल कुश भाई नया कलेवर अच्छा है...और पुराने वाला जो कि आपके अनुसार टिप्पू चचा ने लोगों को भटकाने के उद्देश्य से लगाया था..तो इसका उत्तर तो वे स्वंय ही दें.....मैं जितना जानता था बता दिया..........धन्यवाद....

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  18. कुश की चर्चा धांसू है।
    कलेवर बढ़िया फ़ांसू है।

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  19. @अजय झा,टिप्पणी चर्चा के टेम्पलेट से हमें कोई आपत्ति नहीं हैं। चिट्ठाचर्चा का टेम्पलेट ऊ कभी कापी किये त किये। उसमें काहे के लिये परेशान होना! आप बेकार में अपराधबोध मती पालिये। सफ़ाई देने का जरूरत भी नहिये था लेकिन अब जब दे दिये त दे दिये। पड़ी रहेगी यहां पर। किसी के नहला-दहला के काम आयेगी कभी। ब्लाग से भागीदारी भी काहे को वापस लेने की बात करते हैं जी? मौका मिले तो एकाध टिप्पणी चर्चा धांस दिया करिये। और ई टिप्पू चचा को जरा हड़काइये कि काहे के लिये कामचोरी कर रहे हैं! कुछ टिप्पणी चर्चा काहे नहीं करते! इत्ती तो धांसू टिप्पणियां की जा रही हैं !

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  20. जिस पोस्ट पर जगजीत सिंग का अंदाजा भी न था उस पर खोज कर बवाल मचाया और जहाँ Balli के ब्लॉग पर साफ साफ कमेंट में चोरी की बात लिखी है, वह मासूम पोस्ट-..वाह  ...यह कैसी खोजी चर्चा  है?   इसमें कोई बदनाम नहीं होगा?   इसलिये क्या? :)

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  21. चर्चा मंच का ये नया रूप रंग बहुत बढिया है.... वैसे भी दीपावली आने वाली है तो थोडी लिपाई-पुताई तो कर ही लेनी चाहिए:))

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  22. चिट्ठा चर्चा का यह नया कलेवर बहुत ही खूबसूरत है । आभार ।

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  23. कुश भईया, ई टेम्पलेट्वा पर रीझ कर हम पहिले बधाई दे डाला रहा ।
    पीछला पोस्ट पर टीप्पणि का समय नोट करो 11.09 AM, अब ?
    टिप्पणिया दोहराय दिया जाय का..
    " ऑय हॉय, जियो मेरे रजा, क्या निखर कर निकली है, जैसे मीट्ठी खुरचानी !
    हम तो यहीं धरना दिये रहेंगे, इस गेट-अप से नज़र नहीं हटतीऽऽ, पोस्टिया हम क्या देखें !

    खुरचानी = ( नेपाली भाषा में ) मोहक खुशबू की हरी मिर्च "
    अब इसको मीरची इस वास्ते मूँ से निकल गवा, काहे की रोजई ईहाँ किसी न किसी को मीरची लग हि जाती है ।

    श्री पँकज मिश्रा कैबेज़ बेबी फोटू वालेबल्ली-ब्लाग को लेकर कुछ इशारा करते देखे गये हैं । प्रथम दृष्टया तफ़्शीस तो उसकी तस्दीक भी करती है । भाई, मौज़ियन ही सही हमने तो पहले ही अपनी मौज़ूँ शँका का निवारण चाहा कि,आज का स्कूप ज़ेन्डर-बायस्ड क्यों नहीं ?
    अब देख लेयो, ई बाल्ली जी दूर के चश्में वालेकितने शार्ट साइटेड ढँग से कापी पेस्ट किये हैं । वईसे एक लघु सी शँका यह भी है कि उन 36 नामज़द टिप्पणीकारों की शह पर यह प्लान्टेड पोस्ट है, अउर आप इन्हीं को चर्चिया बैठे । नारायण नारायण, आपसे छूट जाता तो आगे कोई सवाल उठाता की ईहाँ स्टिंग काहे नाहीं हुआ । जो भी है, जैसे भी है, ऊ त एही है.. हॉम बोलेंगा त लोग बोलेगा कि बोलता है, ईशलिए हॉम कुश्श नेंईं बोला !

    जवाब देंहटाएं
  24. हिंदी ब्लोगिंग में एग्रीगेटर का जितना योगदान है ..उतना आठ हज़ार चिट्ठो का नहीं ...ओर हिंदी ब्लोगिंग को यदि वास्तव में विस्तार देना है तो अखबारों ओर दुसरे माध्यमो में इनका जिक्र अक्सर बार गाहे बगाहे होना चाहिए ...क्यूंकि आम आदमी को नहीं मालूम उसे ब्लोगों तक कैसे पहुंचना है ....इसलिए ब्लोग्वानी ओर चिटठा जगत का रहना महत्वपूर्ण है .ओर जाने अनजाने हमें उन्हें बेहतर बनाने के लिए प्रत्यक्ष ओर परोक्ष दोनों रूपों में अपना योगदान देना चाहिए ....चिठाकारो को भी अपने सुझाव भेजने चाहिए ...
    नए कलेवर का फ्लेवर अच्छा है ....एक दम झकास ..... नये चिट्ठो को देखकर भी भला लगा .....रही इश्टाइल चुराने की बात ..तो भाई अब तो लोग खुलेआम लिखने की भी कोपी कर रहे है ....शुक्र है उसे रिमिक्स का नाम नहीं दे रहे ....वैसे जब चचा गालिब तक बख्शे नहीं गये तो बिलोगर की क्या बिसात ....
    खैर कुछ पोस्ट पे नजर पड़ी....

    हमारे सपनो की भाषा क्या है

    बेजी का
    अनकही बाते
    शारदा जी एक नज़्म

    मटमैला दिन
    अनुजा का एक ओर बहस को खोलता .....
    मत विमत




    अभी इत्ते ही पढ़े है ...कुछ ओर बांच लेते है .....

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  25. sabhee bahut hi achchhe link hai saath hi chithtao ko ek alag dang se prastutikaran achchhi lagi..........

    जवाब देंहटाएं
  26. आनंददायी प्रसंग जुडते जा रहे हैं
    डूबे जी के ब्लाग का कलेवर भी
    नया नवेला हो गया ...ब्लागवाणी
    वापस आ गई .... हर नए नवेले
    ब्लागर का स्वागत भी साथ साथ
    किए देता हूं.... मुझे सब कुछ पाजिटिव
    नज़र आ रहा है..... "इब कोई पानी की टंकी पै
    न चढ पावै"इसी अपेक्षा के साथ
    इस चिठैत का नेह भी स्वीकारियो जी

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  27. अजय झा नाहक ही भावुक हो रहे। क्या ज़रुरत है ऐसी मामूली से मामले पर किसी दूसरे ब्लॉग की भागीदारी छोड़ने की।
    जहाँ तक मेरा ख्याल है कलेवर बदलते रहना चाहिए। कई बार तकनीकी कारणों से भी बदला जाता है टेम्पलेट। चिट्ठाचर्चा का पुराना टेम्पलेट व नया टेम्पलेट सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध हैं व कोई ही इस्तेमाल कर सकता है।

    टेम्पलेट से गुमराह करना या गुमराह होना सम्बंधित व्यक्ति के नज़रिए पर निर्भर करता है।

    बी एस पाबला

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  28. @पंकज भाई
    पंकज जी मासूमियत इसीलिए कहा है..
    वैसे हमको अब अक्ल आ गयी है कि सीधे सीधे किसी को कुछ नहीं कहा जाए वरना लोग बुरा मान जाते है.. :) अब अगर हम फोटू छाप के लगा देते तो क्या गारंटी की कोई वकील खडा नहीं होता..
    जिन समीर लाल जी ने वहा चोरी होने की शिकायत की है ये वही समीर लाल है जो की बबली जी वाली चर्चा को वकील बाबु के ब्लॉग पर गलत ठहरा चुके है..
    हम तो सच बोलकर पहले ही आशीष खंडेलवाल जी द्वारा संदिग्ध हो गए है.. इस बार फिर बोल देते तो आशीष जी को दोबारा एक पोस्ट लिखने की तकलीफ करनी पड़ती है..

    जिस पोस्ट पर जगजीत सिंह के अंदाजा नहीं होने की बात आप कर रहे है तो उसी चर्चा पर पल्लवी त्रिवेदी और कंचन चौहान के कमेन्ट देख लीजिये आपको खुद ब खुद यकीं हो जायेगा..

    @अजय कुमार झा
    अजी टिपण्णी चर्चा तो भूले बिसरे गीत बन चुकी है.. दो टेम्पलेट समान होना गलत नहीं है.. पर इसके पीछे भावनाए गलत नहीं होनी चाहिए.. टिपण्णी चर्चा के बारे में नहीं कहा गया.. जिसके बारे में कहा गया है उन्हें पता है.. आप व्यर्थ में चिंतित न हो..

    @स्वार्थी जी
    आपकी इसी निस्वार्थ भावना ने हमें प्रसन्न कर दिया है.. अब तो हम आपको छोड़ने नहीं वाले हमेशा आपके साथ रहेंगे.. शर्त लगा लो

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  29. अरे बाप रे इत्ता गंभीर मामला...हम तो अब सच में ही इस राह में आ कर गुम से हो गये हैं......भाई कुश मियां....यार ये तो महाभारतकालीन तीर था...जैसे ही निकलता था..कि बस एक दो तीन ..रास्ते में जाने कित्ते तीर हो जाया करते थे...और म्युजिक आता था...टैण....टैणेण......

    टिप्पी चर्चा ..भूले बिसरे गीत ....विविध भारती का भी अपना ही मजा था और रहेगा...एफ़ एम ....लाख जिते भी आ जायें..

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  30. चलो, चर्चा की तरह टिप्पणी में हमारा नाम लिखने में अभी तक हिचकिचाहट नहीं आई है, यह जानना सुखद रहा.

    कलेवर अच्छा लगा.

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  31. एक सपेरा बोला - नागिन, चलती है पिटारे में? या बीन बजाऊं?:)

    रामराम.

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  32. @ताऊ इस चुटकुले का नया वर्जन शेर में आ गया है:-
    संपेरे बांबियों में बीन लिये बैठे हैं,
    सांप चालाक हैं दुरबीन लिये बैठे हैं।

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  33. @ अनूप शुक्ल जी

    वाह वाह...वाह वाह मजा आगया.

    रामराम.

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  34. हर बदलाव अच्छा होता है...यह बदलाव भी स्वागत के लायक है

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  35. चिट्टा चर्चा में शामिल करने के लिए आभार।

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  36. धन्यवाद ,नये कलेवर मे मेरे चिठ्ठे का जिक्र करने के लिए.......... मैने नहीं सोचा था कि इतने लोग मेरी पोस्ट को पढ पायेंगे.........आभार...

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  37. परिवर्तन प्रगति का परिचायक़ है।

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  38. भाई ! कुल मिला कर टेम्लेट, कलेवर औ चर्चा खूबे बढियां रहा...
    औ तिपिनियाँ में जोन झिकझिक रहा उहो बढियाँ रहा....

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  39. टेम्पलेट होली दिवाली बदलता रहे तो अच्छा लगता है, त्योहार की अनुभूति होती है। चर्चा विस्तृत है।

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  40. अच्छा लगा। प्रशंसनीय कोशिश।

    सादर
    श्यामल सुमन
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  41. "चिटठा चर्चा की ही तरह ले आउट बनाकर पाठको को गुमराह करना ठीक नहीं.."
    क्यों नहीं (?) पाइरेसी का ज़माना ख़त्म हो गया क्या ?

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  42. संपेरे बांबियों में बीन लिये बैठे हैं,
    सांप चालाक हैं दुरबीन लिये बैठे हैं।.nice

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  43. चिट्ठा-चर्चा एक अच्छे स्तर का चिट्ठा है।

    पर हमें किसी तरह का बन्धन पसन्द नहीं।
    लो भई हमने तो "असभ्य भाषा" और और "व्यक्तिगत आक्षेप"
    दोनो का प्रयोग किया - और बिल्कुल शब्दश: ; अब संपादक जी !
    आप चाहें तो मेरी टिप्पणी हटा दें - मुझे फ़र्क नहीं पड़ता :)

    जवाब देंहटाएं
  44. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

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