गुरुवार, अक्तूबर 01, 2009

कथावाचक ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही'

गंगा नदी पर सुनीता शर्मा जी की पोस्ट पढिये. सुनीता जी लिखती हैं;

"गंगा को सिर्फ स्वर्गिक नदी मान कर पूजा करने के व स्नान करने के अलावा यह सोचने की आवश्यकता है कि गंगा ने जो हमें समृद्वशाली संस्कृति ,सभ्यता ,उपजाऊ घाटी ,वन-सम्पदा ,मैदान ,जल-सस्थान ,विघुत -विकास की सम्भावनायें दी है उनका संरक्षण कितना आवश्यक है ।"

आप सुनीता जी की पोस्ट पढिये. दरअसल आज की उनकी पोस्ट एक सीरीज की आखिरी पोस्ट है. हो सके और अगर आपने अब तक बाकी पोस्ट न पढ़ी हो तो ज़रूर पढिये.

प्रोफेसर आनंद प्रधान की पोस्ट पढिये. वे स्वतंत्र पत्रकारिता पर मंडराते खतरे के बारे में लिखते हैं;

"यह कहने के बाद समाचार मीडिया के बड़े हिस्से के इस व्यवहार पर भी बात करना जरूरी है जो स्वतंत्र और जिम्मेदार पत्रकारिता के दायरे में नहीं आता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पत्रकारों पर एफआईआर दर्ज कराने का गृह मंत्रालाय का फैसला जितना हैरान करने और अपनी सीमा लांघनेवाला है उससे कम चिंचित और हैरान करनेवाला व्यवहार समाचार मीडिया का नहीं है जिसने पिछले कुछ सप्ताहों चीन के खिलाफ एक सुनियोजित सा दिखनेवाला संगठित प्रचार (प्रोपेगैंडा) अभियान छेड़ रखा है।"


वो जो बिछडे हैं कब मिले हैं फ़राज़ ......
फिर भी तू इंतज़ार कर शायद.....

पल्लवी जी ने अपने स्कूल के दिनों के उन दोस्तों को याद किया जिन्हें बिछड़े हुए कई साल बीत गए हैं. पल्लवी लिखती हैं;

"माधवी....तुम मेरी पहली पक्की सहेली थी! मुरैना के स्कूल में हमने एक साथ पहली क्लास में एडमिशन लिया था! तुम मेरी पहली दोस्त बनी थीं! आज तुमसे अलग हुए शायद पच्चीस साल हो गए ....अब शायद सामने भी आ जोगी तो नहीं पहचान पाऊँगी!"

बहुत प्यारी पोस्ट है. पढिये ज़रूर. हम सब के एहसास समाये हैं इस पोस्ट में.

ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' बहुत डिमांड में हैं आजकल. दशमी के दिन हम मिल आये थे उनसे. कल अनूप जी मिल आये और जैसा कि होता रहा है उनसे मिलने के बाद हर ब्लॉगर पोस्ट लिखता ही है. अनूप जी ने भी पोस्ट लिखी. उन्होंने लिखा;

"खुश होकर उन्होंने मुझे डायरी देना स्थगित करके आधुनिक विक्रम-बेताल कथा सुनाई! श्रम को भुलाने के लिये आप भी सुनें।"

अब आप अनूप जी के ब्लॉग पर ही कथा सुनें. ब्लॉग साहित्य में दर्ज शायद सबसे बढ़िया बोध-कथा है. ज़रूर पढिये.

गौरव सोलंकी जी की कविता पढिये. गौरव लिखते हैं;

एक उदास रात में
तुम खोलते हो अपने काले रहस्य
और अपनी अनिद्रा के चुम्बनों से उन्हें जला डालते हो,
फिर एक सुबह तुम घर से निकलते हो
पूर्व के जंगलों की ओर
और महान हो जाते हो.

वे अकेली जलाती हैं चूल्हे,
काली पड़ती हैं
और माँ हो जाती हैं.


पूरी कविता आप गौरव जी के ब्लॉग पर पढिये.

बचपन की मासूमियत और शरारत के बिना बच्चा कैसा लगेगा? नेहा जी ने इस बात पर लिखा;

"कुछ दिनों पहले ही मैंने टी-वी पर किसी अवार्ड शो में एक बाल कलाकार की स्पीच सुनी...कहीं से भी ऐसा नही लग रहा था की वो कोई बच्ची है....हमने कभी उस उम्र में ऐसी समझदारी की बातें नही की..."

यह पोस्ट केवल बच्चों के सामने सवाल नहीं कड़ी करती.

अनिल पुसदकर जी की माइक्रो पोस्ट पढ़कर हमें पता चला कि आज बुजुर्ग दिवस है. अनिल जी कहते हैं;

"बुज़ुर्ग दिवस पर अख़बारो मे विशेष लेख हैं।टी वी तो मैने अभी तक़ खोला नही है डेफ़िनेटली उस पर भी स्पेशल प्रोग्राम दिखेंगे।एस एम एस का भी दौर शुरू हो गया है।अचानक़ लगा कि बुज़ुर्गो की पूछ-परख बढ गई है।ऐसा लगा कि बस इस एक दिन ही हमे अपने बुज़ुर्गो का सम्मान करना है और उसके बाद दूसरे दिन से सब फ़्री है॥"

हमने रिश्तों के लिए एक-एक दिन अलाट कर दिया है. एक दिन माँ के लिए और एक दिन बाप के लिए. एक दोस्त के लिए भी. अब एक दिन में रिश्ता मज़बूत हो तो कैसे?

रचनाकार पर यशवंत कोठारी जी का आलेख पढें; 'तमसो माँ ज्योतिर्गमय'. यशवंत जी लिखते हैं;

आलोक की तलाश अपने अन्दर ही की जानी चाहिए । यह तलाश अपने भीतर करें , दर्शन के अन्दर करें । अन्धकार बार बार आये हैं । ओयेंगे मनुप्य और समाज इस अन्धकारों को पार कर जायेगा । अन्धकार तो प्रकाश के आने की दस्तक है , और दस्तक आ जाने के बाद किरण आने ही वाली है , ये सोचकर इंतजार करें ।"

श्री अमिताभ बच्चन के प्रसिद्द गाने "ई है बम्बई नगरिया तू देख बबुआ" की तर्ज पर मुकेश कुमार जी ने लिखा; "ई है झारखण्ड नगरिया तू लूट बबुआ". उन्होंने ऐसा क्यों कहा, यह उनकी पोस्ट पढ़कर पता चलेगा आपको. मुकेश लिखते हैं;

"ये है झारखण्ड नगरिया तू लूट बबुआ। यहाँ सोने चांदी के अनेकों खजाना , जितना चाहे दोनों हाथ से तू लूट बबुआ। जी हाँ ,चौंकिए मत। ये झारखण्ड राज्य है । हर तरफ़ लूट ही लूट । कोई जंगल लूट रहा है। कोई जमीन लूट रहा है। कोई पठार-पर्वत लूट रहा है तो कोई नदी लूट रहा है।"

अब वो ज़माना तो रहा नहीं जब लोग राम नाम लूट लेते थे. अब ज़माना खराब आया है तो नदी वगैरह ही लुटेगी.

विष्णु बैरागी जी की पोस्ट पढिये. समुदाय केन्द्रित 'भारतीय' के बारे में है. विष्णु जी लिखते हैं;

"मुझे लगता है कि हम सब किसी न किसी स्वार्थ-भाव या अज्ञात हानि से बचने की चिन्ता या लोकाचार के अधीन ही परस्पर जुड़े हुए हैं। अपने-अपने जाति-समुदाय में भी हममें से अधिकांश केवल लोकाचार जनित विवशता के अधीन ही उपस्थित होते हैं। नागरिकता बोध तो हमें आज तक जोड़ नहीं पाया।"


मन्ना डे साहब को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिलेगा. अविनाश वाचस्पति जी ने मन्ना डे साहब के ऊपर एक बहुत ही प्यारी पोस्ट लिखी है. ज़रूर देखें.

चुनावी राजनीति जो न करा दे. राम और रावण अगर चुनाव जीतने के लिए गठबंधन करते तो क्या होता? श्यामल सुमन जी बता रहे हैं;
"रावण बोला हे राम,
तुम व्यर्थ ही हो परेशान।
आओ हम तुम मिलकर,
चुनाव पूर्व गठबंधन बनायें।
जीत जाने पर
प्रजा को ठेंगा दिखायें।। "


निशांत जी ने मुंशी प्रेमचंद के जीवन की एक घटना के बारे में लिखा है जो कथा सम्राट के चरित्र को उजागर करती है. ज़रूर पढें.

अभिषेक ओझा जी ने सपना देखा. वो भी सुबह. कहते हैं सुबह का सपना सच हो सकता है. वैसे १ अक्टूबर २०३० को होने वाली कुछ अखबारी हलचलों का लेखा-जोखा है. पढिये वे क्या लिखते हैं?

"मंत्रीजी ने अपनी पोस्ट में कहा है कि ये तो होना ही था. इतिहास इस बात का गवाह रहा है... जो कुछ भी राष्ट्रीय घोषित हो जाता है वो धीरे-धीरे विलुप्त हो जाता है. चाहे वो राष्ट्रीय पक्षी हो, पशु हो, खेल हो, भाषा या नदी. गंगा के राष्ट्रीय नदी घोषित होने के बाद ही मुझे तो ये समझ में आ गया था. कैबिनेट मीटिंग में तो पानी को राष्ट्रीय सम्पदा घोषित करने पर भी विचार चल रहा है."


रजनी भार्गव जी का "क्वार गीत" पढिये. वे लिखती हैं;
.............................
............................
रास्ते में जब रुकी तो
मेरे अंदर डूब गई थी सब आवाज़ें
उग आया था एक दरख्त जहाँ
बसती है लाल गौरैया
गाती है वो क्वार गीत जो
पतझड़ में भी बसंत का आभास दिला जाता है।


आज के लिए बस इतना ही. कोशिश करूंगा कि अगले वृहस्पतिवार को फिर से चर्चा करूं.

Post Comment

Post Comment

13 टिप्‍पणियां:

  1. मस्त चर्चा भाई !
    आज आपने फिर से कलेवर बदल दिया . ये तो और भी अच्छा लग रहा है

    जवाब देंहटाएं
  2. The new template is also nice . If the sea green colour can be changed to blue tones of the trumpet "signature of charcha " then it may look nicer { presumption } and the चिठ्ठा चर्चा on top should be in white or some other colour as its not clear {suggestion}

    जवाब देंहटाएं
  3. हम तो समझे थे कि विद्रोही आप ही को हलकान करता है....ई तो फुर्सतिया जी को भी फुर्सत से लपेटे में ले लिए ह:)

    जवाब देंहटाएं
  4. सर जी,

    एकदम अच्छी चर्चा वो भी सुन्दर कलेवर में।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  5. पहली बार आपकी चर्चा पढी जिसमें आपने मेरी गंगा नदी पर लिखी पोस्ट का जिक्र भी किया धन्यवाद। घरेलू हिसां पर मेरी पोस्ट पढिए मेरे ब्लाग पर
    Emotion's http://swastikachunmun.blogspot.com
    अपने विचारों से भी अवगत करायें ।

    सादर

    सुनीता शर्मा
    स्वतंत्र पत्रकार
    उत्तराखण्ड

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Google Analytics Alternative