शुक्रवार, मई 28, 2010

देसी तबेले में गर्मी बहुत है

उफ्फ गर्मी बहुत है...आग लगी है...प्‍यास लगी है। बिजली है...पंखे हैं...एसी भी है पर गर्मी फिर भी है। कमरा ठंडा है पर एसी अंदर की गर्मी बाहर फेंके दे रहा है पर यहॉं से वहॉं चले जाने से गर्मी खत्‍म नहीं होती, बनी रहती है। इस भीतर बाहर गर्मी के माहौल में ब्‍लॉगजगत में झांकना शीतल अनुभव तो होने से रहा। माहौल यहॉं भी गर्म ही है पर चिपचिपाती गर्मी में तापमान बढ़ाती पोस्‍टों पर लोग कान नहीं दे रहे हैं...भला है। मीट में पहुँचने से हम चूक गए पर अजयजी भी अब खिन्‍‍न हो गए हैं... वे भी शायद अब ब्‍लॉगिंग को ब्‍लॉगिंग ही रहने देने का मन बना चुके हैं-

आखिर संगठन बनेगा किसके लिए । हमने क्या कोई प्रधानमंत्री चुनना है , क्या कोई आंदोलन खडा करना है , देश की स्थिति बदलनी है , या कि हमें इस संगठन बनाने से अपने अपने घरों की रसोई का जुगाड करना है भाई ?

तापमान दिल्‍ली-कोडरमा का ही नहीं बढ़ रहा काश्‍मीर का भी बढ़ रहा है, पंकज ने सूचना दी है कि हमारे काश्‍मीर के के बारे में बताया जा रहा है कि 95 प्रतिशत लोग आजादी चाहते हैं पर कहीं भी बहुमत 'आजादी' के पख में नहीं है। अरे भई हमारे गणितज्ञ दोस्‍त अभिषेक ओझा कहॉं हैं बताएं किस गणित से बीबीसी ऐसा कह रहा है।

एक तरफ लिखा है कि घाटी के 74% से 95% लोग आज़ादी चाहते हैं (इतना बड़ा फर्क?). चलो ठीक है मान लेते हैं. परंतु आगे लिखा है भारतीय प्रशासित कश्मीर के 43% लोग आज़ादी के पक्षधर हैं. कमाल है!

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अब आगे देखिए - कश्मीर के किसी भी हिस्से में (यानी कि घाटी भी) आज़ादी को लेकर बहुमत नज़र नहीं आया. तो पहली पंक्ति में ऐसा क्यों लिखा है कि 95% लोग आज़ादी चाहते हैं. क्या 95% बहुमत नहीं होता?

रही आजादी चाहने की बात तो चाहें न... आजादी चाहने की पूरी आजादी है भारत देश में। पड़ोस में एक देश है चीन वहॉं आजादी चाहने भर की आजादी नहीं है करो क्‍या कल्‍लोगे।

 

गंदा नाला, गर्म गड्ढा, डबरापारा, ढिबरापारा, गधा पारा.... सुनकर अगर आपका पारा गर्म हो रहा हो तो जान लें कि ये सब जगह के नाम हैं। जो टिप्‍पणी पूरित पोस्‍ट से निकले हैं। जब जगहों की बात हो ही रही है तो हमारी संस्तुति तो ये है कि आप राजजी के साथ उनके गॉंव की सैर पर निकलें ... अजी गॉंव काहे का हमें तो एम्‍यूजमेंट पार्क सा लगा... जहॉं सबकुछ इतना व्‍यवस्थित हो... न कोई खाप पंचायत न दलित उत्‍पीड़न...बहू जलाने की कोई व्‍यवस्‍था नहीं... ऑनर किलिंग के लिए स्पेस नहीं....  खेत में बंटाईधार के शोषण का इंतजाम नहीं... नो नो नो नाट गुड। आप खुद ही देखें राजजी के इस गुड फार नथिंग गॉंव को पहली किस्त, दूसरी किस्त अब तीसरी किस्‍त   हम सेंपल के लिए वहॉं के तबेले का अगाड़ी व पिछाड़ी दिखा रहे हैं। दूध (और मॉंस) का भरपूर स्रोत हैं ये तबेले।

 

नीरज की रोचक टिप्‍पणी -

आज अपने देसी गांव के बारे में कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि मुझे अपने गांव की धूल से, गांव की गन्दगी से, असुविधाओं से बेहद प्यार है।
हां, आपका गांव देखकर लगा कि तकनीकी इन्सान का काम कितना आसान कर देती है।
हम तो जी आज के समय में भी चिलम भरना, दूध दुहना, खाट बुनना, भैंस के ऊपर बैठकर जोहड में जाना जानते हैं

अब कहॉं ये सजे संवरे तबेले जहॉं पशुओं तक को सीवर सुविधा उपलब्‍ध है, कहॉं गर्मी से बेहाल हमारे पशु-पक्षी जिन्‍हें पीने का पानी भी मयस्‍सर नहीं

 

अगर हो सके तो अपने घर के आस पास कुछ मित्रो पड़ोसियों के साथ मिलकर किसी पेड़ के नीचे अथवा किस अन्य छायादार स्थान पर कुछ घड़े थोड़ी रेत ड़ालकर रखा दे . तथा उस पर किसी साफ़ बोरी को लपेट कर गीला करदे . आपका थोड़ा सा श्रम किसी के लिए जीवन दाई हो सकता है

 

इस संबंध में कुछ दिनों पुरानी इस पोस्‍ट को भी देखें-

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6 टिप्‍पणियां:

  1. आधा नेहरु जी लुटा गए थे बाकी राहुल के लिए रख छोड़ा है.... इसके बाद देश में ९० जिले ऐसे हैं जहाँ इनका बहुमत है फिर वे भी मांगेंगे ...आज़ादी ???
    तबेले को लालूजी से बचा कर रखिये। न अगाडी बचेगा न पिछड़ी ।
    यदि एक कटोरा छत पर पक्षिओं के लिए भी रख दिया जाए तो क्या बात है।

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  2. वाह जी वाह आप ने तो आज रोनक ही लगा दी, बहुत अच्छी लगी आप की चर्चा ओर यह घडो वाला प्याऊ, कभी हम भी ऒक लगा कर ऎसे ही प्याऊ से पानी पीते थे

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  3. मुझे अगर सही से याद है तो आउटलुक पत्रिका का पहला एडीशन भी एक सर्वे था कि कश्मीर मे लोग आज़ादी चाहते है… ऎसे कन्ट्रोवर्सिअल मुद्दो को कन्ट्रोवर्शियल तरीको से उठाना सिर्फ़ इनके प्रचार का तरीका है…

    पंकज जी ने बात तो सही पूछी है.. अब हो सकता है प्रतिशत निकालने का कोई नया फ़ार्मूला हो उनका..

    बहुत गर्मी है :) आपने हल्की फ़ुल्की छीटे तो मार ही दी है ;)..

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  4. भाटिया जी का गावँ घूमा, तोताराम का जज्बा देखा
    मजा आ गया...
    ब्लागर सम्मलेन..संघठन की चर्चा पढ़
    घबड़ा गया...
    और पोस्ट भी अच्छी हैं ...
    पढ़ी नहीं क्या..?
    जैसे..
    http://pittpat.blogspot.com/

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  5. बेनामीमई 29, 2010 8:04 pm

    वाकई देसी तबेले में गर्मी बहुत है...

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