पुराने जमाने में राजा लोगों को जहां कोई सुन्दर कन्या दिखी प्रेमपूर्वक या जबरिया अपना लेते थे। अपने रनिवास में स्थापित कर लेते थे । नबाब लोग अपने हरम में डाल लेते थे। उनके लिये कोपभवन की भी व्यवस्था करते थे। इस मामले में कवि /लेखक की प्रवृत्ति भी नबाब टाइप ही होती है। जहां कोई सुन्दर/असुन्दर आइडिया दिखा नहीं कि उसे अपने कब्जे में लेकर लेख/कवितायें निकाल देते हैं। कहा जाये तो कवि/लेखक और आइडिया के गठबंधन से रचनाओं का जन्म होता है।
यही हाल कल योजना भवन वाले आइडिये का हुआ। योजना भवन में मंहगा शौचालय बनने का आइडिया लोगों को दिखा नहीं कि उसे लोगों ने फ़ौरन झपट लिया और इस्तेमाल कर डाला। लेख लिख डाले, कार्टून बना डाले। कुछ वैसे ही जैसे कि शौचालय दिखा नहीं कि लोग सोचते हैं निपट ही लें। वैसे ही लोगों सोचा आइडिया मिला तो यूज ही कर लें। ई-स्वामी ने सही ही कहा था- चीजें अपना उपयोग कराती हैं। :)
आलोक पुराणिक ने आइडिया यूज करते हुये व्यंग्य थ्रो किया- स्मार्ट टॉइलेट में 'बिजी' योजना आयोग।
अपने लेख का नाड़ा काटते हुये वे फ़रमाते हैं:
बताते चलें कि अमित को हम लोग कालेज के से जमाने से ही मारे मोहब्बत के बमबम कहते रहे हैं। मोहब्बत में जबतक अटपटापन न हो तब तक मजा भी तो नहीं आता न। वैसे इस कालेजियट मोहब्त का फ़ायदा बाद में अमित की श्रीमती जी को भी हुआ, जिन्होंने अभी तीन दिन पहले ही घूंघट डालना सीखा है । उनको अपने महीन भाव व्यक्त करने के लिये कोई नया नाम खोजने में सर नहीं खपाना पड़ा।
अब अगर शौचालय को सोचालय कहा जायेगा तो सागर भाई दिल्ली वाले कहेंगे कि इ्सपर तो उनका ब्लागराइट सालों पुराना है।
इस मसले पर आदम और हव्वा के बहाने अपनी बात कहते हुये रवि रतलामी जो कहते हैं वो नीचे देखिये:
देश/दु्निया के पिछड़े पन का जब भी रोना रोया जाता है तो चंद टसुये इस बात पर भी बहते हैं करोड़ों लोग आज भी खुल्ले में निपटते हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 1.1 अरब लोग खुले में करते हैं शौच ।लेकिन यह भी सोचने वाली बात है कि अगर कभी सारा देश बंद में निपटने लगेगा तो क्या होगा।
सोपान जोशी ने सबको शौचालय उपलब्ध होने की स्थिति की कल्पना करते हुये सवाल किया है- खुले में शौच जाये तो शर्म क्यों आये? :
समस्या औ भी होगी और मामला जलसंकट को और बढ़ायेगा:
बात जब शौचालय की चली तो बताते चलें कि निपटने की छोटे पैमाने की प्रक्रिया में चिरकना आता है। इसी नाम के एक शायर उस्ताद चिरकीन का जिक्र बोधिसत्व ने अपने ब्लॉग में किया था। वे लिखते हैं:
मेरी पसन्द
यही हाल कल योजना भवन वाले आइडिये का हुआ। योजना भवन में मंहगा शौचालय बनने का आइडिया लोगों को दिखा नहीं कि उसे लोगों ने फ़ौरन झपट लिया और इस्तेमाल कर डाला। लेख लिख डाले, कार्टून बना डाले। कुछ वैसे ही जैसे कि शौचालय दिखा नहीं कि लोग सोचते हैं निपट ही लें। वैसे ही लोगों सोचा आइडिया मिला तो यूज ही कर लें। ई-स्वामी ने सही ही कहा था- चीजें अपना उपयोग कराती हैं। :)
आलोक पुराणिक ने आइडिया यूज करते हुये व्यंग्य थ्रो किया- स्मार्ट टॉइलेट में 'बिजी' योजना आयोग।
अपने लेख का नाड़ा काटते हुये वे फ़रमाते हैं:
योजना आयोग को पूरे देश में स्मार्ट भले ही ना माना जाता हो, पर वह टॉइलेट्स के मामले में तो स्मार्ट हो ही गया। वहां 60 अफसरों को टॉइलेट यूज करने के लिए स्मार्ट कार्ड दिए गए हैं।शु्रुआत भले स्मार्टकार्ड से हुयी लेकिन वे चले उन्हीं कन्दराओं में गये जिनमें आजका व्यंग्यकार का मन रमता है। हाल में हुये घपले-घोटाले उनको उसई तरह परेशान करें हैं जैसे कभी शेन वार्न को सपने में भी तेंदुलकर छेड़ते थे। वे राजा जी, कामनवेल्थ, बोरी/बारदाना घोटाला, गरीबी/अमीरी रेखा के झरोखों से समस्या को निहारते हुये मामला फ़्लश कर देते हैं:
जिसका टॉइलेट स्मार्ट कार्ड से चले, वह स्मार्ट। बाकी सारे गरीब। देश के गरीबों की तरफ से शाप है, तुम्हें योजना आयोग के अफसरों, जिस दिन तुम्हें बहुत जोर से आ रही हो, तुम्हारे स्मार्ट कार्ड खो जाएं, बिलकुल ना मिलें। फिर सड़क पर आना और समझना कि पब्लिक का दर्द क्या है। पाठक माई-बाप, बताना, शाप कुछ ज्यादा तो ना हो गया।अमित श्रीवास्तव इस आइडिये का बमबम उपयोग करते हैं । पहले वे शौचालय को सोचने की जगह बताते हैं और फ़िर बताते हैं
अब अगर यह 'सोचालय' योजना भवन का हो तो जाहिर सी बात है , जहां पूरे देश के १२५ करोड़ लोगों की दिशा दशा सुधारने हेतु नीति निर्धारण करने वाले सोचने का कार्य करते हों तब उनके 'सोचालय' का प्रकार भी उच्च कोटि का होना ही चाहिए | इन भावनाओं के आगे ३५ लाख कुछ भी नहीं | ऐसे लोगों की नीयत में कोई खोट नहीं | अरे जब चिंतन का स्थान उपयुक्त होगा तभी सही और अच्छे विचार उनके मन में उत्पन्न होंगे और बाई प्रोडक्ट के रूप में उत्पन्न उनके विकार " शौचालय'" में विलीन हो जायेंगे और उत्पन्न विचार उसी "सोचालय" में मूर्त रूप धारण करेंगे |
बताते चलें कि अमित को हम लोग कालेज के से जमाने से ही मारे मोहब्बत के बमबम कहते रहे हैं। मोहब्बत में जबतक अटपटापन न हो तब तक मजा भी तो नहीं आता न। वैसे इस कालेजियट मोहब्त का फ़ायदा बाद में अमित की श्रीमती जी को भी हुआ, जिन्होंने अभी तीन दिन पहले ही घूंघट डालना सीखा है । उनको अपने महीन भाव व्यक्त करने के लिये कोई नया नाम खोजने में सर नहीं खपाना पड़ा।
अब अगर शौचालय को सोचालय कहा जायेगा तो सागर भाई दिल्ली वाले कहेंगे कि इ्सपर तो उनका ब्लागराइट सालों पुराना है।
इस मसले पर आदम और हव्वा के बहाने अपनी बात कहते हुये रवि रतलामी जो कहते हैं वो नीचे देखिये:
देश/दु्निया के पिछड़े पन का जब भी रोना रोया जाता है तो चंद टसुये इस बात पर भी बहते हैं करोड़ों लोग आज भी खुल्ले में निपटते हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 1.1 अरब लोग खुले में करते हैं शौच ।लेकिन यह भी सोचने वाली बात है कि अगर कभी सारा देश बंद में निपटने लगेगा तो क्या होगा।
सोपान जोशी ने सबको शौचालय उपलब्ध होने की स्थिति की कल्पना करते हुये सवाल किया है- खुले में शौच जाये तो शर्म क्यों आये? :
लेकिन अगर हरेक के पास शौचालय हो जाए तो बहुत बुरा होगा। हमारे सारे जल स्रोत-नदियां और उनके मुहाने, छोटे-बड़े तालाब, जो पहले से ही बुरी तरह दूषित हैं- तब तो पूरी तरह तबाह हो जाएंगे। आज तो केवल एक तिहाई आबादी के पास ही शौचालय की सुविधा है। इनमें से जितना मैला पानी गटर में जाता है, उसे साफ करने की व्यवस्था हमारे पास नहीं है। परिणाम आप किसी भी नदी में देख सकते हैं। जितना बड़ा शहर, उतने ही ज्यादा शौचालय और उतनी ही ज्यादा दूषित नदियां। दिल्ली में यमुना हो चाहे बनारस में गंगा, जो नदियां हमारी मान्यता में पवित्र हैं वो वास्तव में अब गटर बन चुकी हैं। सरकारों ने दिल्ली और बनारस जैसे शहरों में अरबों रुपए खर्च कर मैला पानी साफ करने के संयंत्र बनाए हैं। इन्हें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट कहते हैं। ये संयंत्र चलते हैं और फिर भी नदियां दूषित ही बनी हुई हैं। ये सब संयंत्र दिल्ली जैसे सत्ता के अड्डे में भी गटर का पानी बिना साफ किए यमुना में उंडेल देते हैं।
समस्या औ भी होगी और मामला जलसंकट को और बढ़ायेगा:
जितने शौचालय देश में चाहिए, उतने अगर बन गए तो हमारा जल संकट घनघोर हो जाएगा पर नदियों का दूषण केवल धनवान लोग करते हैं, जिनके पास शौचालय हैं। गरीब बताए गए लोग जो खुले में पाखाने जाते हैं, उनका मल गटर तक पहुंचता ही नहीं है क्योंकि उनके पास सीवर की सुविधा नहीं है फिर भी जब यमुना को साफ करने का जिम्मा सर्वोच्च न्यायालय ने उठाया तो झुग्गी में रहने वालों को ही उजाड़ा गया। न्यायाधीशों ने अपने आप से ये सवाल नहीं किया कि जब वो पाखाने का फ्लश चलाते हैं तो यमुना के साथ कितना न्याय करते हैं।
बात जब शौचालय की चली तो बताते चलें कि निपटने की छोटे पैमाने की प्रक्रिया में चिरकना आता है। इसी नाम के एक शायर उस्ताद चिरकीन का जिक्र बोधिसत्व ने अपने ब्लॉग में किया था। वे लिखते हैं:
लोग बताते हैं कि चिरकीन साहब अलीगढ़ में रहते थे और हर मुद्दे को चिरके से जोड़ने की महारत रखते थे। विद्वानों का मत है कि चिरकीन का मूल अर्थ है बिखरी हुई टट्टी। आप समझदार हैं टट्टी का अर्थ झोपड़े की टाटी नहीं करेंगे ऐसा मुझे भरोसा है। टट्टी मतलब हाजत या कहें कि गू या हगा। चिरकीन की काव्य कला अद्भुत थी। बड़े-बड़े शायर उनसे पनाह माँगते थे। अच्छे-अच्छे मुशायरों में चिरकीन ने चिरका बिखेर दिया था। इस आधार पर कहा जा सकता है कि चिरकीन प्रात काल में स्मरणीय हैं। वंदनीय है।शायद चिरकीन की काव्य कला के विभिन्न पहलुओं के शेर पेश किये बोधि ने:
राष्ट्रीय एकता
चिरकिन चने के खेत में चिरका जगा–जगा
रंगत सबकी एक सी , खुशबू जुदा-जुदा।
स्वागत
बाद मुद्दत के आप का मेरे घर पर आना हुआ
तेज की घुमड़न हुई और धड़ से पाखाना हुआ।
इश्क
वस्ल के वक्त महबूबा जो गू कर दे
सुखा के रख लीजे, मंजन किया कीजे।आगे जनता की बेहद मांग पर चिरका समाज का ब्लॉग बना। आगे फ़िर प्रसिद्ध कथाकार सूरजप्रकाश जी चिरकी प्रंसग को आगे बढाते हुये लिखा :
• रूस में चिरकिन कई लोगों का सरनेम हुआ करता है.. इस नाम वाले कवि विद्वान और कवि वहां हुए हैं.
• चिरकीं दुनिया में अकेले ऐसे कवि नहीं थे जो अपनी रचना का आधार वहां से तलाशते थे.. फ्रांस, इंगलैंड में भी ऐसे कवि हुए हैं जिन्होंने गू, पाद, हगने की आदतों, और गू की ईश्वरीय खासियतों को अपनी रचना का आधार बनाया है.
• फ्रांस के Euslrog de Beaulieo, Gilles Corrozal और Piron, इंगलैंड के स्विफ्ट ऐसे ही कवि हैं.
कुछेक बानगियां देखियेइसी क्रम में मनोहरश्याम जोशी की किताब हरिया हरक्यूलीज की हैरानी के किस्से याद आ रहे हैं। लेकिन वो फ़िर कभी।
Gilles Corrozel की कविता हैः
"Recess of great comfort
Whether it is situated
in the fields or in the citys
Recess in which no one dare enter
Except for cleaning his stomach
Recess of great dignity"
मेरी पसन्द
हमने कई बार नोट किया है की लड़कियां अपनी प्रोफाइल या कवर फोटो अकेले वाली
नहीं लगाती हैं, 2-4 और लोग होते ही हैं । इस बात पे जब और सोचा तो लगा की
निम्नलिखित कारण हो सकते हैं इसके :
१. एक कारण जो सीधा सीधा लगा वो ये की कोई उन्हें एक बार में पहचान न पाए ।२. हो सकता है की घर वालों का "फैमिली प्रेशर" हो कि अपनी फोटो नहीं डालोगी । इस तरह की फोटो डालकर वो ये कह के बच जाती हैं कि देखो मैंने कहाँ "केवल" अपनी फोटो डाली है । बबिता, साधना, हेमा, जया भी तो हैं ।३. हो ये भी सकता है की वो कोई ऐसी फोटो लगाती हों जिसमे वो बाकी सबसे ज्यादा खूबसूरत (कम से कम खुद को तो ) लग रही हों, जिससे कोई पूछे की इनमे से तुम कौन हो तो कह सकें "वही जो सबसे खूबसूरत दिख रही है"।
दरसल ये प्यार और फेसबुक का रिश्ता काफी गहरा है । कितनी ही प्रेम कहानियां
यहाँ बनी होंगी । लोगो का कहना है कि सोशल नेटवर्किंग के आने से
प्यार-इश्क का माहौल परवान चढ़ रहा है । कुछ लोग तो इसी चक्कर में सोशल
नेटवर्किंग के विरोध में आ गए हैं । क्या पता आमिर खान को आने वाले टाइम
में सोशल नेटवर्किंग के सपोर्ट में सत्यमेव जयते का एक आध एपिसोड भी करना पड़े
ये कहानी बहुत लम्बी है फिर कभी बताएँगे अभी मन नहीं कर रहा ।पर जाते-जाते आपको एक कालजयी शेर ज़रूर सुना देते हैं :
उन्होंने गरियाया हमें हमारी ही वाल पे, उनकी इनायत है ,
कभी हम उसपे आये कमेंट्स, तो कभी लाइक्स को देखते हैं ।
और अंत में
कन्नौज के लोकसभा उपचुनाव में लगभग सभी पार्टियों के उम्मीदवारों ने समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार के चलते अपना नाम वापस ले लिया या नामांकन ही नहीं कराया। इस तरह वहां निर्विरोध निर्वाचन होने की बात चल रही है। ब्लागिंग सम्मान में भी जिस गति से लोग अपने नाम वापस ले रहे हैं उससे यहां भी निर्विरोध चुनाव के हाल बन रहे हैं। साहित्य समाज का दर्पण है की तर्ज पर अब हमें कहना शुरू कर देना चाहिये - ब्लॉग समाज का आईना है।
फ़िलहाल इतने ही संतोष करिये। मजे करिये। नीचे वाला फोटो विस्फ़ोट से !
फ़िलहाल इतने ही संतोष करिये। मजे करिये। नीचे वाला फोटो विस्फ़ोट से !
ओह ब्लॉग संसार !!
जवाब देंहटाएंशौचालय में डोल रहा है और पखाने के फोटो जारी कर रहा है...
यह चिंतन सार्थक है, ठीक उसी तरह जब हिटलर के आतंक से दुनिया त्रस्त थी और चार्ली चैप्लिन ने उसी पर एक कॉमेडी फिल्म बनाई थी। महंगाई और फेल होती अर्थव्यवस्था से चिंतित भारतियों के लिए यह शौचालय एक ताजी बयार लेकर आया है....
ब्लॉग्गिंग, इसके अतीत, वर्तमान और भविष्य में आपकी जानकारी बेजोड़ है. इस मामले में आप वैरी वैरी स्पेशल लक्षमण हैं जो मध्ह्यम क्रम का बल्लेबाज है... और उसके सामने कई ओपनर और टेल अंडर्स आये और गए... थाने का दो हत्थे वाला पल्ला भी जो लगातार झूलता रहता है और उससे लोग आते जाते रहते हैं....
जवाब देंहटाएंमेरा तो आज आपका ही तारीफ का मन है एक तो ये कि आप बहुत पढ़ते हैं..... नज़र भी खासी चौकन्नी.. जाने कौन सा मिसाईल लेकिन आकाश, जल और थल तीनो में मारक क्षमता...
बाथरूम से रिलेटेड एन डी टी वी पर कल रविश जी का प्रोग. देख रहे थे... चिकने संगमरमर को देख कर लगा कि सब जल्दी ही फिसल जाएगा और उसमें समय बहुत बचेगा.... सो सरकार कि ये योजना है जो हम सब समझने में चूक रहे हैं... दिक्कत ये है कि सरकार के पास शाहरुख खान जैसी पी आर डिपार्टमेंट नहीं है... है तो मेरा जैसा क्रिएटिव चाटुकार नहीं है :-)
फेसबुक और प्रेम से बहुत सहमत हूँ... हमारे तो छत्तीस सैंतीस प्रेम वहीँ से हुए हैं.... कई बार स्टेटस भी मारा है "गाँव वालों फेसबुक का असली मज़ा तभी है जब फलाना हसीना आपके फ्रेंदलिस्ट में नहीं हो" और कुछ अतीत के दोस्तिनी जो अब किसी और कि पत्नी हैं उनके नाम का पहला अक्षर सर्च में डालते ही फेसबुक याद कर लेता है और उनकी अपडेटेड तस्वीर हमें जलाने के लिए हमारे सामने होती है... झटपट एक खालिस जलन होती है और ये शेर गूंजता है
"वो नहीं आयें तो दिल में खालिस सी होती है
वो आ जाएँ तो खालिस और जवां होती है"
और
(एक ठंढी आह !) "वो तो रखते थे हसरत अपने दिल में सो है"
आज कि चर्चा बेजोड़... अकेले इतनी मेहनत कर रहे हैं.... लगातार चर्चा करना... जबलपुर में जोश बनाए रखिये... हम पढ़ते रहते हैं आपको... सरकार स्लम डॉग मिलेनियर में शौचालय की हालत से काफी चिंतित दिखती है... इस बार हम अमिताभ का सिग्नेचर उसी बाथरूम से निकल कर लेंगे.
हा हा। यहाँ भी साबित हुआ - ब्लॉगिंग का कूड़ाघर :)
हटाएंकल योजना आयोग के बयान से इतना अपना सा विषय मिला क्योंकि इससे तो तो सभी को रोज या दिन में कई बार दो चार होना ही पड़ता है. सो बढ़िया मसाला मिला और चर्चा के लिए भी अच्छा विषय और लेख भी अलग अलग तरह के मिल गए . जैसे अलग अलग तरह के अचार डाल रहे हों.मसाले वही वह कुछ सामग्री बदल जाती है ठीक वैसे ही. हम भी काम नहीं है.
जवाब देंहटाएंयोजना आयोग के लोग पढ़े लिखे हें वे गरीबों को तो २८ रुपये में पूरे दिन के बाद अमीर घोषित कर देते हें और खुद के लिए सिर्फ खाने को पचा कर बाहर करने के लिए लाखों खर्च करके भी जी नहीं भरता है.
अरे बातों बातों में ये बताना भूल ही गया कि हमने ग्रामीण विकास मंत्रालय के लिए शौचालय योजना के लिए रेडिओ स्पोट बनाया था. उसका पञ्च लाइन था :-
जवाब देंहटाएं"खुले में शौच!
कुछ तो सोच."
परसों कोटा में एक सार्वजनिक शौचालय तोड़ दिया गया। सड़क चौड़ी करनी थी।
जवाब देंहटाएंयानी चलने और 'करने' दोनो के लिए जगह हो गई...
हटाएंहमारे ओफ्फिसेज़ में लिखा रहता है "टेलगेटिंग इज नाट अलाउड", क्या इसी टाइप का कुछ इन "हाई-फाई" शौचालयों में भी लिखा होगा ??? :) :)
जवाब देंहटाएंतनु वेड्स मनु में भी एक सीन है जब पप्पी भैया ये कह के सुलभ सौचालय वाले को पैसे नहीं देते "यार हुई नहीं" :) :)
ऐसा योजना विभाग तो दुनिया में शायद ही कहीं हो :) :) :)
और हमारी पोस्ट शामिल करने के लिए भी थैंक यू है जी !!!!!
BHAI, WAH,KHOOB KAHI,AB YOJNA AAYOG KI YOJNAON MEN NICHIT HI KUCH VISHESH HOGA,KYONKI BADE AARAM SE FARIG HOKAR UNKA NIRMAN HOGA.
जवाब देंहटाएंYEH JANNE KE LIYE ABHI INTJAR KARNA HOGA KI JANTA KE IS PAISE SE YOJNAKARON KO KITNI RAHAT MILI HAE, AB TAK TO GHAR PAR HI FARIG HONA PADTA THA JO 35 LAKH KE TO NAHIN THE,.. WAIT & WATCH
35 लाख के शौचालय मे क्या करेगे संते बंते यही न कि गोबर ही तो करेगे. एक के गोबर करने के लिये लाख रुपैया का संडास दूसरे के लिये रेल की पटरी का बात है बोलो मन्नू जी मोंटू जी की जय्
जवाब देंहटाएं'शौच-विचार' पर गंभीर चिंतन | निश्चित तौर पे इसकी परिकल्पना जबलपुर के सोचालय में ही अंकुरित हुई होगी |
जवाब देंहटाएंwah ji upyukat chintan hai .............padhkar mazaa aagaya
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंचिरकन के शेर थोड़ा नॉन-वेज हैं,बाकी चर्चा हजम करने लायक है.
जवाब देंहटाएं.....टॉयलेट के पीछे काहे पड़े हो भाई.ऊँचे लोग,ऊँची पसंद |
badhiyaa ....
जवाब देंहटाएंआपने भी तो इस शौच विचार पर काफी सोचविचार कर डाला ।
जवाब देंहटाएंजनहित मेँ जारी माननीय महोदय जी से विन्रम निवेदन है कि जनसंसाधन विकास एवं जीव कल्याण समिति नरसिँहपुर म.प्र. द्रारा संचालित 4/16/01/10298/08 स्वपोषित स्व-रोजगार राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन परियोजना मेँ लोगो से 251 की राशि जमा कराई जाती है तथा लोगो को 10,000 प्रति महीने देने का वादा करती है यह संस्था गरीबी,बेरोजगारी,भुखमरी,अशिक्षा,नशामुक्ति,दहेज प्रथा,कन्या भ्रूण हत्या,जैसी सामाजिक बुराईयो को खत्म करना इसका उद्देश्य है अगर यह NGO है तो शासन क्योँ इस संस्था की मदद नही कर रही।सही है या फर्जी शासन इसकी जाँच कराये जिससे कि गरीब,बेरोजगार व्यक्तियोँ को इससे बचाया जा सके। सरकार इस योजना को अध्ययन करे और इसका संचालन शासन के हाथो मेँ रहे जिससे गरीबी को जड़ से खत्म किया जा सके। मिथलेश वर्मा 9893775163 www.jsvjks.com
जवाब देंहटाएंमाननीय महोदय जी से विन्रम निवेदन है कि जनसंसाधन विकास एवं जीव कल्याण समिति नरसिँहपुर म.प्र. शासन द्रारा संचालित स्वपोषित स्व-रोजगार राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन परियोजना मेँ सदस्यता लेने के लिए 251 की राशि जमा करने पर एक लाख का ओरिएटल कं.का दुर्घटना बीमा एवं अन्य उपहार,तथा पाँच सदस्य बनाने पर 200 नगद कमीशन प्राप्त करे तथा भविष्य मेँ 10,000 महीने पेँसन प्राप्त करे साथ मेँ 40,000 प्रति महीने कमाने का मौका यह संस्था गरीबी,बेरोजगारी, भुखमरी,अशिक्षा, नशामुक्ति,दहेज प्रथा,कन्या भ्रूण हत्या,जैसी सामाजिक बुराईयो को समाज के अंदर से खत्म करना इसका उद्देश्य है शासन इस संस्था की मदद करे जिससे कि गरीब,बेरोजगार व्यक्तियोँ को रोजगार मिल सके। सरकार इस योजना का अध्ययन करे और इसका संचालन शासन के हाथो मेँ रहे जिससे गरीबी को जड़ से खत्म किया जा सके। हमे सभी जनप्रतिनिधियोँ एवं सरकार से सहयोग की आवश्यकता है। मिथलेश वर्मा संभागीय सचिव रीवा म.प्र. 9893775163 www.jsvjks.com
जवाब देंहटाएं' हमेँ दिशा- मैदान की प्राचीन परम्परा को पुनः अपनाना होगा ।' इसके कई लाभ हैँ, प्रथम जल के अपव्यय को रोकना, दूसरा जल स्रोतोँ के प्रदूषण मेँ कमी, तीसरा खेतोँ मेँ मुफ़्त की खाद का इन्तज़ाम, चौथा मिलजुलकर सवेरे नित्यकर्म से निवृत होना जो तन्दुरुस्ती के साथ-साथ भाईचारे मेँ भी इज़ाफा करेगा ।
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