मंगलवार, जून 26, 2012

समझ का इकहरापन, जापान के किस्से और अच्छी लड़की

अक्सर एक तरह की किताबें पढने वाले, दूसरी तरह की किताबें पढ़ने वालों को ठीक तरह से समझ नही पाते...........:)   रचना बजाज
यह फ़ेसबुकिया स्टेटस रचना बजाज की दीवार पर दो दिन पहले दिखा। क्या ऊंची बात कह डाली रचनाजी ने। रचनाजी ब्लॉगिंग की दुनिया में अगस्त २००६ से हैं। छोटी-छोटी पोस्टें लिखती हैं। जिनमें छुटकी कवितायें ज्यादा होती हैं।  सहज-सरल टाइप। एक ये  देखिये:
एक दिन वो दिन भी आयेगा,
जब अंधियारे ये कम होंगे,
एक दिन वो दिन भी आयेगा,
जब ये संघर्ष खतम होंगे!

जब हम चाहें वैसा होगा,
थोड़ा सा मन जैसा होगा!
होठों पर खुशियां छायेंगीं,
ना फ़िर से नयना नम होंगे!
एक दिन वो दिन भी आयेगा,
जब ये संघर्ष खतम होंगे!
पता नहीं कब ऐसा होगा लेकिन फ़िलहाल तो हम उनकी ही तरह आशावान हैं। :)

बात फ़ेसबुक स्टेटस की चली तो अभय तिवारी के यहां ये लिखा मिला मुझे आज: 
पता नहीं कैसे लोग हैं हम..एक से हमदर्दी जताने के लिए दूसरे को गरियाने-लतियाने लगते हैं.. यानी या तो आपके साथ, या आपके ख़िलाफ़.. ऊपर से लोग चाहे जितने प्रगतिशील हों, भीतर उनके बुश की आत्मा का वास है.. अभय तिवारी 
 एक और स्टेटस दिखा  अभय तिवारी के यहां:
प्रतिबद्ध लोगो ने दुनिया का कम नुक़्सान नहीं किया है.. वे अपने आदर्शों के समाज को वास्तविक बनाने में सब कुछ झोंक देते हैं, अक्सर कई करोड़ लोगों की जानें.. हिटलर, स्टालिन, माओ, और ओसामा भी अपनी-अपनी तरह के प्रतिबद्ध लोग थे.. इतिहास को ग़ौर से पढ़े तो पाएंगे कि जब दुनिया बदल रही थी तो प्रतिबद्ध लोग अपनी लीक से बंधे रहे और बदलाव रोकने के लिए ख़ून-ख़राबा करते रहे..और अवसरवादियों ने पाला बदल लिया.. ये दीगर बात है कि प्रतिबद्धता के ऊँचे नैतिक मंच से अवसरवाद एक टुच्चा गुण दिखता हो..।
 ये सोचने की बात है। जिसको सही समझते हैं उसके उलट कोई करता है तो उसको निपटा देने की भावना रखना। अभय आजकल कहानी भी लिखते  हैं। रुपया कहानी में रुपये की व्याख्या सी करते हैं:
रुपया चीज़ ही ऐसी है। जितना सरल और समतल दिखता है वैसा है नहीं। रुपया एक ऐसी आभासी शै है जिस के ज़रिये आदमी अपने भौतिक अरमानों का संसार गढ़ता है। रुपये को न खाया जा सकता है, न पहना जा सकता है, न ओढ़ा और बिछाया जा सकता है मगर खाने, पहनने, ओढ़ने, बिछाने से लेकर आकांक्षाओं की सारी सम्भावनाओं अपने भीतर समाए रहता है। 
 लेकिन अब आप हियां की बातैं हियनैं छ्वाडौ औ अब जापान का सुनौ हवाल। रमाअजय शर्मा, जो शायद फ़िलहाल जापान में ही रहती  हैं, अपनी छोटी-छोटी पोस्टों के जरिये जापान के बारे में जानकारी देती हैं। खासकर वहां के स्कूलों के बारे में, साफ़-सफ़ाई के बारे में, अनुशासन के बारे में बताती हैं। जापान की पाठशाला के चित्र देते हुये वे बताती हैं कि कैसे बच्चे वहां पढ़ते हैं। ड्रेस का कोई बधन नहीं। अध्यापक से दोस्ती का रिश्ता। हर स्कूल की बिल्डिंग एक सी होती है।खेल का मैदान जरूरी है। सफ़ाई का पाठ सबसे जरूरी होता है। इस प्राथमिक पाठशाला जिसे शोगाक्को कहते हैं में अमीर-गरीब के बच्चे साथ पढ़ते हैं। कोई भेदभाव नहीं। शिक्षा निशुल्क। बच्चे लाइन से स्कूल जाते हैं। देखिये नीचे का दृश्य :
जापान के बारे में और भी बहुत सी जानकारी वे अपने ब्लॉग में देती हैं। कापी-पेस्ट प्रतिबंधित इस ब्लॉग को  पढना अच्छा अनुभव है। जापान नाम के अपने एक और ब्लॉग में जापान , जो कि हवाई सड़कों का देश कहलाता है,  को दुनिया का सबसे साफ़ देश बताती हैं। लेकिन रमाअजय सिर्फ़ जापान की ही बात नहीं करतीं। वे दिल की बातें भी करती हैं। दिल की सोच, दिल का दर्पण, दिल की हंसी भी हैं उनके यहां।  साखियां दिल से  ( जिसे पहले मैंने सखियां दिल से पढ़ा) में  सिख गुरुओं वे  सिख गुरुओं द्वारा दी गयी सीखों के बारे में बताती हैं।

जापान की बात से याद आया कि जापान के एक कोने म्स्तु भी जापान के बारे में रिपोर्टिग करते हैं। जापान में परमाणु दुर्घटना के साल होने के मौके पर वे  लिखते हैं:
हाँ, भूकंप के तुरंत बाद से कई हफ़्तों तक यहाँ की साधारण दैनिक जनजीवन कहीं ठप गई थी, जैसे परमाणु संयत्र दुर्घटना के परिणामस्वरूप बिजली संकट और विकिरण प्रसारण के भय से काफ़ी अफ़रा-तफ़री मची. शहर में हर जगह दुकानों के शेल्फों से कुछ खाद्य उत्पाद गायब हो गए और पेट्रोलियम पंपों पर लंबी लाइन लगी. मीडिया पर हर रोज़ आती थीं त्सुनामी तबाही की भयानक छवियाँ और प्रभावित क्षेत्रों के परिवारों की दर्दनाक कहानियाँ. अखबार पर छपने वाले मृतकों और लापता लोगों के सामयिक आंकड़े प्रतिदिन बढ़ते ही जाते रहे. फिर भी, तब मार्च महीने का मौसम तो ठंडी हवाओं के बीच कहीं ताप और नरमाहट पहुँचाने लग रहा था और पेड़ों की शाखाओं पर कलियाँ साफ़ नज़र आने लगी थीं.
म्त्सु ने दुर्घटना के समय के हालात और उस समय मीडिया की रिपोर्टिंग के अंदाज के बारे में अपने विस्तार से बात करने के बाद अपना निष्कर्ष लिखा:
खैर, जब पिछले महीने परमाणु संयंत्र संकट के खतरे पर हलचल मच रहा था, तभी कई मीडिया वालों ने ठीक से पत्रकार की अपनी भूमिका और सामाजिक दायत्व निभा नहीं पाई, कुछ ग़लती से, कुछ भयभीत मन से, या कुछ लाभ की चाह में. कारण जो भी, सबक़ के लिए याद रखनी होगी. 
जापानी  विभीषिका के समय डा.अरविन्द मिश्र ने जापानी जीवन दर्शन , घुघुती बासूती ने जापानी  चरित्र के बारे में अपने विचार व्यक्त किये। निशांत ने  10 बातें बताईं जो हम जापानियों से सीख सकते हैं! 

लेकिन उस समय जो दुर्घटना हुई थी और परमाणु रिएक्टेर के पिघलने की बात हुई उसको सहज-सरल तौर पर समझाने का काम किया था शिल्पा मेहता ने। शिल्पा अपने बारे में बताती हुई लिखती हैं:
मैं तो मैं हूँ - बस - कुछ कहने जैसा नहीं है | वैसे एक इलेक्ट्रोनिक्स इंजिनियर हूँ, एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाती हूँ | पढने, पढ़ाने और बतियाने का बहुत शौक है :)
बहुत कुछ बतियाने की शौकीन का इतना संक्षिप्त परिचय! बहरहाल देखिये उन्होंने न्यूक्लियर मेल्ट डाउन के बारे में जो बताया।  पूरी प्रक्रिया को सरल चित्रों के बारे में बताने के बाद वे लिखती हैं:
{ fukushima japan (फुकुशीमा जापान ) में एक तो भूकंप और दूसरे सुनामी के चलते यही हुआ कि दोनों ही supply बंद हो गयीं और pump ने काम करना बंद कर दिया था । वहां के कई वर्कर्स ने अपनी जान की परवाह न करते हुए (रेडिओ एक्टिव एक्सपोज़र ) वहां से बाहर आने से इंकार कर दिया था और भीतर ही रह कर अपनी क़ुरबानी दे कर प्रयास किये कि डिजास्टर को टाला जाए । बाद में समुद्र में जहाजो से समुद्र का पानी pump कर के कोर को ठंडा किया गया । }
उनके इस लेख पर स्मार्ट इंडियन का कहना था:
जटिल परन्तु रोचक जानकारी के लिये आभार! ऐसे जानकारीपूर्ण आलेख इस विश्वास को बनाये रखते हैं कि हिन्दी ब्लॉगिंग में भी बहुत कुछ सार्थक हो रहा है।
आपको  भी अगर  कुछ कहना हो पहुंचिये शिल्पा मेहता द इलेक्ट्रानिक्स इंजीनियर के ब्लॉग रेत के महल पर।

मेरी पसंद
कहाँ थे तुम अब तक?
कि गाली सी लगती है
जब मुझे कहते हो 'अच्छी लड़की'
कि सारा दोष तुम्हारा है


तुमने मुझे उस उम्र में
क्यूँ दिए गुलाब के फूल
जबकि तुम्हें पढ़ानी थीं मुझे
अवतार सिंधु पाश की कविताएं


तुमने क्यूँ नहीं बताया
कि बना जा सकता है
धधकता हुआ ज्वालामुखी
मैं बना रही होती थी जली हुयी रोटियां


जब तुम जाते थे क्लास से भाग कर
दोस्त के यहाँ वन डे मैच देखने
मैं सीखती थी फ्रेम लगा कर काढ़ना
तुम्हारे नाम के पहले अक्षर का बूटा


जब तुम हो रहे थे बागी
मैं सीख रही थी सर झुका कर चलना
जोर से नहीं हँसना और
बड़ों को जवाब नहीं देना


तुम्हें सिखाना चाहिए था मुझे
कोलेज की ऊँची दीवार फांदना
दिखानी थीं मुझे वायलेंट फिल्में
पिलानी थी दरबान से मांगी हुयी बीड़ी


तुम्हें चूमना था मुझे अँधेरे गलियारों में
और मुझे मारना था तुम्हें थप्पड़
हमें करना था प्यार
खुले आसमान के नीचे


तुम्हें लेकर चलना था मुझे
इन्किलाबी जलसों में
हमें एक दूसरे के हाथों पर बांधनी थी
विरोध की काली पट्टी


मुझे भी होना था मुंहजोर
मुझे भी बनना था आवारा
मुझे भी कहना था समाज से कि
ठोकरों पर रखती हूँ तुम्हें


तुम्हारी गलती है लड़के
तुम अकेले हो गए...बुरे
जबकि हम उस उम्र में मिले थे
कि हमें साथ साथ बिगड़ना चाहिए था
पूजा उपाध्याय
और अंत में
आज फ़िलहाल इत्ता ही। नीचे का चित्र जापान के एक कोने  से। :)
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14 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय अनूप जी, आभार आपका |

    अचंभित हूँ | मैं नहीं जानती थी की आपने मुझे कभी पढ़ा है | :)

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    1. शिल्पाजी,
      मैंने आपकी विज्ञान से संबंधित लगभग सारी पोस्टें पढ़ीं हैं ( उत्साही बहस-उहस वाली भी :) ) ज्वालामुखी, न्यूक्लियर मेल्ट डाउन डाउन आदि के बारे में जितनी सहजता से आपने लिखा है उससे लगता है कि आप एक लोकप्रिय अध्यापिका होंगी! मेरे जैसे और भी कई लोग हैं जो आपको पढ़ते होंगे शायद प्रतिक्रिया न व्यक्त करते हों।

      लिखती रहिये विज्ञान चर्चा वाली पोस्टें। :)

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  2. समझ का इकहरापन ना हो तो कोई समस्या भी न रहे.समझ एकतरफा हो जाना खतरनाक है !

    बाकी,शिल्पाजी और घुघूती जी का अच्छा सन्दर्भ दिया है !

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    उत्तर
    1. और डा.अरविन्द मिश्र का संदर्भ? :)
      उनकी ही ब्लॉगपोस्ट से घुघुतीजी का संदर्भ मिला!

      समझ के एकतरफ़ेपन पर याद आया। हरिशंकर परसाई जी ने कहीं लिखा है- लोग कहते हैं कानून अंधा होता है लेकिन यह सच नहीं है। कानून काना होता है। यह जिधर मन होता है उधर देखता है।

      यही बात समझ के बारे में कही जा सकती है शायद। :)

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  3. "नीचे का चित्र जापान के एक कोने से। :)"

    नीचे का चित्र कितने नीचे है?:)

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    1. अरे भाई देखिये जरा टाइम लगता है न भारत से जापान जाने में। बीच में हिमालय भी है। अब देखिए जी भरकर। :)

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  4. जापानी चर्चा तो गज़ब रही पर जापानी के कोने का चित्र तो हमें भी न दिखा :)

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    उत्तर
    1. अब देख लीजिये। आ गया कोने का चित्र सामने। :)

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  5. धीरेन्द्र पाण्डेयजून 26, 2012 8:05 pm

    शिल्पा जी के लेख पढ़े रोचक अनुभव रहा इसके लिए धन्यवाद अनूप जी | शिल्पा जी को बधाई इनका लिखने अ उत्साह बना रहे |

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    उत्तर
    1. पढ़ते रहिये उनके लेख तो शायद उनका लिखने का उत्साह बना रहे।

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  6. हद हुआ...एक दिन चिट्ठाचर्चा नहीं देखे तो इधर 'मेरी पसंद' में फेमस हुए जा रहे हैं. थैंक यू रहेगा अनूप जी :)

    मन तो कर रहा है कि तारीफ कर दें कि आपका कविता में गज़ब का धांसू टेस्ट है मगर क्या करें मेरा कविता छाप के सब मटियामेट कर दिए ;) ;) :) अब ऐसा महान स्टेटमेंट देने के पहले कुछ दिन वेट कर लेंगे :D

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    उत्तर
    1. इसई लिये कहते हैं देखते रहिये चिट्ठाचर्चा! जरा सा चूके नहीं कि फ़ेमस हो जायेंगे।

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    2. haha :D अब से ध्यान रखेंगे :)

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