लंबे समय के बाद चिट्ठाचर्चा पर लिखते हुए अच्छा लग रहा है. इस बीच ब्लौगिंग के पांच साल पूरे हो गए और पता भी नहीं चला. चिट्ठाचर्चा की पुरानी पोस्टें खंगाल कर देखीं और पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं. अफ़सोस इस बात का है कि अब पुरानी चर्चाओं में दिए बहुत से लिंक बेकार होने लगे हैं. कई ब्लॉग डिलीट हो गए और बहुत से ब्लौगर परिदृश्य से गायब हैं.
अफ़सोस मेहदी (मेंहंदी?) हसन साब के जाने का भी हुआ हांलांकि बहुत लंबे अरसे से उन्हें सुना न था और अपनी पसंद में वे गुलाम अली और जगजीत सिंह के बाद आते थे. हमेशा यूं लगता रहा कि उनकी आवाज़ में ज्यादा रेंज नहीं है. लगभग तीस साल पहले पिताजी अक्सर ही उनका रिकार्ड बजाते थे. एक घंटे के रिकार्ड में कुल चार ग़ज़लें. एक ही बात को अलग-अलग लय और ताल में गाना उस समय बहुत अच्छा लगा, बाद में उन्हें कुछ ख़ास नहीं सुना. बहादुर शाह ज़फर की लिखी और उनकी गई ग़ज़ल "बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी" मेरे पसंदीदा गजलों में शुमार है. बचपन में जब उर्दू शब्द की जानकारी कम थी तो मैं ग़ज़ल के एक अंश "ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-करार" को समझता था "ले गया छीन के कौन आज तेरा सब रोकड़ा". इसे मनबोल कहते हैं. इसका ज़िक्र कभी ईस्वामी ने किया था.
जगजीत सिंह के बाद अब मेहदी हसन साब ने भी रुखसत ले ली. पिछले साल जगजीत सिंह के गुज़ारने पर बड़ा धक्का-सा लगा था. उनके जाने की कोई आशंका न थी, तब भी जब वे कई दिनों तक कोमा में रहे. मेहदी साब की बिगड़ी तबीयत के बारे में तो कई दिनों से छप ही रहा था.
ब्लॉग जगत में मेहदी साब के इंतकाल पर कई जगह मातमपुर्सी हुई. अब दो दिन हुए नहीं कि चीज़ पुरानी हो जाती है सो लिंक नहीं दे रहा हूँ. उनकी याद में यह ग़ज़ल सुनिए:
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी
ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-क़रार
बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी
उन की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू
के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी
क्या सबब तू जो बिगड़ता है "ज़फ़र" से हर बार
ख़ू तेरी हूर-ए-शमाइल कभी ऐसी तो न थी
चश्म-ए-क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसे अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी
ब्लॉग-ब्लौगर पुरस्कार समारोह को लेकर ही कुछ हलचल होती रही. "आलसी पुरस्कार योजना" के अंतर्गत सर्वप्रिय घोषित ब्लौगों को एलीट/क्लिष्ट ब्लॉग कहा गया पर उनमें से एक भी ब्लॉग ऐसा नहीं है जिसपर भाषा या बोध की दृष्टि से पांडित्यपूर्ण पोस्ट लिखी जातीं हों. प्रथम स्थान पर आया ब्लॉग "मानसिक हलचल" तो सदा से ही भाषा को लेकर प्रयोगधर्मी रहा है और उसमें संस्कृतनिष्ठ हिंदी के स्थान पर सरल, सहज, सुगम भाषा के प्रयोग देखने को मिले हैं. ऐसा ही अन्य ब्लौगों के साथ है. यदि एलीट या क्लास ब्लॉग की बात करें तो हर ब्लॉग का विशिष्ट विषय और पाठकवर्ग होता है. जिन्हें लालित्यपूर्ण भाषा में रची-पगी सबलाइम पोस्टें पढनी हैं वे उन्हें खोजेंगे, पढेंगे, और सराहेंगे. और जिन्हें रोज़मर्रा की ज़िंदगी की हल्की-फुल्की अभिव्यक्तियाँ पढ़ने में रस आता है वे उन्हें पढ़ना ही पसंद करेंगे. इसके इतर जो कुछ भी है वह ब्ला बला ब्ला... ऐसा कुछ नहीं है जो बरसों से नहीं कहा जा रहा है और ये बातें आगे भी कही जाती रहेंगीं.
इस बीच अली सैयद साब के ब्लॉग "उम्मतें" पर बेहतरीन पोस्ट आती रहीं. लोक आख्यान लेबल के तहत उन्होंने शानदार और यादगार पोस्ट लिखीं हैं. दुनिया के बढ़ने और बदलने के साथ हमारा यकीन सृष्टि और सृजन की पिक्चर-बुक वर्जन से उठ चुका है लेकिन इससे उनका महत्व कम नहीं हो जाता. ये हमारे पूर्वजों के अश्रु-स्वेद-रक्त से लिखी गयी गाथाएं हैं जिनके किरदार ईश्वर, नियति, और प्रकृति की मनमानी के शिकार बनते हैं. अली साब की ताज़ा पोस्ट युवा सन्यासी को कलहंस चाहिये ...! अवश्य पढ़िए, सभी कमेंट्स और अली साब के उत्तरों के साथ.
इस बीच समय के ब्लॉग पर और तब ईश्वर का क्या हुआ? नामक अद्वितीय श्रृंखला का समापन हो गया. ईश्वर, धर्म, नास्तिकता, अज्ञेयवाद, और वैज्ञानिकता को बेहतर समझने के लिए इन पोस्ट को बहुत गंभीरतापूर्वक पढ़ें. विषय-वस्तु और कथ्य के शिल्प की दृष्टि से अनुवाद की अपनी सीमायें हैं और उसे एक सीमा से अधिक सरल और सम्प्रेषणीय नहीं रखा जा सकता. यही कारण है कि इन पोस्टों पर लोगों की आवक और कमेंट्स न के बराबर ही दिखते हैं लेकिन हिंदी ब्लौगिंग को समृद्ध करने में ऐसे एक ब्लॉग का योगदान सौ औसत ब्लॉग के बराबर है. इसे पढो तो ऐसा लगता है कि अन्य ब्लौगों के लिखनेवाले कक्षा पांच तो पास हो गए पर अक्षर ज्ञान नहीं है.
पिछली बार की तुलना में इस बार राष्ट्रपति के चुनाव में जबरदस्त मारामारी रही. स्थिति अभी भी क्लियर नहीं है. इसे लेकर भी ब्लॉग जगत में कुछ पोस्ट आईं. उनमें से ताज़ातरीन है प्रवीण शाह की पोस्ट जिसमें इस पूरी व्यवस्था को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है. सवाल लाजिमी है लेकिन हैरत है कि इसे उतनी प्रमुखता से कहीं नहीं उठाया जाता. फुरसतिया जी अपनी खास शैली में इसपर एक पोस्ट लिख सकते हैं जिसका शीर्षक होगा "राष्ट्रपति का पद समाप्त हो जाने के साइड इफेक्ट". उनकी ताज़ा पोस्ट में रवि रतलामी से भोपाल में हुई भेंट का ज़िक्र है. सतीश पंचम के शब्द में कहें तो बमचक है.
सतीश सक्सेना जी के गीतों की पुस्तक (और उनकी पहली पुस्तक) "मेरे गीत" का विमोचन आज शाम दिल्ली में हुआ. कार्यक्रम कुछ लम्बा ज़रूर हो गया था लेकिन अंत में स्वल्पाहार की बढ़िया व्यवस्था थी. सक्सेना जी ने इस अवसर पर अपने प्रिय गीतों को स्वर दिए. उनकी कविताओं में भावना तत्व प्रधान है ऐसा सब कहते रहे हैं. सतीश जी माइक/मंच पर बहुत लुत्फ़ लेकर गीत सुनाते हैं. उन्हें अपने स्वर में गीत ब्लौग पर पोस्ट करने चाहिए.
इस पोस्ट के लिए प्रकांत के ब्लॉग डीहवारा से यह खूबसूरत कविता पोस्ट करने का विचार था. ब्लॉग पर ताला लगा होने के कारण पोस्ट कॉपी नहीं हो सकी इसलिए उसे वहीं जाकर पढ़ लें. पहले सोचा कि कविता का स्क्रीनशॉट लगा दें लेकिन वह भी चोरी ही कहलायेगी न?
कुछ दिन पहले एक नए ब्लॉग में "ईश्वर की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना" पढ़ने को मिली थी. वह ब्लॉग अब ढूंढें से नहीं मिल रहा. किसी सुधी ब्लौगर को मिले तो उसका लिंक पोस्ट करें.
ब्लॉग जगत में अब वो बात नहीं रही जो चार-पांच साल पहले थी. किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले सोचकर देखें तो पाएंगे कि ऐसा तो हर बात के साथ होता है. कुछ अरसे के बाद दोस्ती-यारी, घर-परिवार, नौकरी-बिजनेस, पूजा-पाठ सब एकरस और कभी तो बेमानी भी हो जाते हैं. यही परिवर्तन है. लेकिन इसे मन मानने को तैयार नहीं होता और दिल में उदासी घर करने लगती है. इसलिए यह सोचने के बजाय कि यहाँ कितने मतलबी, दकियानूस, झूठे, और फरेबी लोग रहते हैं, अपने लिखने-पढ़ने में मस्त-व्यस्त रहें. यहाँ पोस्ट लिखने वाले स्वर्ग से उतरकर नहीं आये हैं. वे हम, आप, और हमारे आसपास के ही लोग हैं.
वाह गजब की चर्चा है आज, और वाकई व्यस्तता की अधिकता होना और रोचकता ना होना भी एक वजह है ब्लॉगिंग का कम होना ।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा। बहुत अच्छा लगा आज की चर्चा को पढ़कर।
जवाब देंहटाएंइसी बहाने ईस्वामी की पोस्ट दुबारा पढ़ ली। सतीश सक्सेना जी के गीत संग्रह का विमोचन हो गया ये बहुत अच्छा हुआ। विमोचन के बाद स्वल्पाहार अच्छा हुआ ये तो और ही अच्छा हुआ क्योंकि पिछली बार शायद स्वल्पाहार वाली बात पर ही बवाल कटा था।
ब्लॉग जगत आज जैसा है वैसा पांच पहले नहीं था और न रहेगा पांच साल बाद। लेकिन बहुत सा अच्छा और बहुत अच्छा लिखा ऐसा है यहां जिन तक हम लोग पहुंच नहीं पाते कभी-कभी क्या अक्सर ही।
चर्चा नियमित रखें तो मजा आये। :)
ब्लॉग जगत में मेहदी साब के इंतकाल पर कई जगह मातमपुर्सी हुई. अब दो दिन हुए नहीं कि चीज़ पुरानी हो जाती है सो लिंक नहीं दे रहा हूँ.
जवाब देंहटाएंयह वाक्य आपत्तिजनक है और ब्लागीय शिष्टाचार के विरुद्ध भी ...जो सचमुच मेहदी साहब के फैन हैं उन्हें यह वाक्य बुरा लग सकता है ..सम्पादन पर विचार करना चाहें!
चीज़ पुरानी से मतलब यह है कि लोगबाग़ वे सारी पोस्टें देख भये. और पोस्टें थीं भी बहुत सी और ऐसी सारी पोस्ट तात्कालिक ही होती हैं. आपने भी बहुत अच्छा लिखा.
हटाएंब्लौगीय शिष्टाचार? अच्छा शाब्दिक प्रयोग है :)
ब्लॉग शिष्टाचार के अंतर्गत इंगित पोस्ट के लिंक देने का प्रावधान है ....यह व्यक्ति की अपनी वैयक्तिक रूचि का मामला है कि वह किसे पसंद करता है या नहीं मगर एक समादृत जाने माने शख्सियत के बारे में ऐसे झाडू छाप वक्तव्य की उनकी मातम पुर्सी कर ली जायेगी खुद ऐसी सोच रखने वाले की परिपक्वता पर सावाल खड़े करती है -आपको इस तरह के अनुचित अशिष्ट वक्तव्य से बचना चाहिए था ....
हटाएंअच्छा है कि इस चिट्ठे के भी दिन फिर से फिरने लगे हैं
जवाब देंहटाएंऔर सत्यनारायण की कथा की तर्ज पर कहा जा सकता है- जैसे उनके दिन फ़िर वैसे सबके फ़िरैं।
हटाएंब्लॉग पर पुरूस्कार को ले कर जो ब्लाह ब्लाह होती हैं उस का हिस्सा आप भी रहे हैं जब तक वो आलसी पुरुस्कार योजना के अंतर्गत नहीं थे . वो सब जो परिकल्पना पुरूस्कार योजना का मजाक बनाते थे और यहाँ तक की कुछ जिनको पिछले साल मिल भी चुका हैं , आलसी पुरूस्कार के साथ अलीट हो गए . वाह .
जवाब देंहटाएंदूसरी बात अगर आप ने तीन ब्लॉग को नापसंद किया हैं तो क्या आप उनके नाम दे सकते हैं ?? इसी चर्चा मंच या क्या आप बता सकते हैं की वो १८ ब्लॉग कौन से हैं जिनको नापसंद किया गया ??
क्या किसी ने अपने ब्लॉग आप के पास "मार्क शीट " बनाने के लिये भेजे थे ??? अगर नहीं तो उनको अंक देने का अधिकार आप को किसने दिया . आप पाठक हैं पाठक रहे , हिंदी के स्कूल मास्टर ना बने . और रही बात ब्लाह ब्लाह करने की तो आप भी करते रहे हैं निशांत जी .
अगर नहीं तो उनको अंक देने का अधिकार आप को किसने दिया . आप पाठक हैं पाठक रहे , हिंदी के स्कूल मास्टर ना बने . और रही बात ब्लाह ब्लाह करने की तो आप भी करते रहे हैं निशांत जी .
हटाएंयहाँ पोस्ट लिखने वाले स्वर्ग से उतरकर नहीं आये हैं. वे हम, आप, और हमारे आसपास के ही लोग हैं. (इसी पोस्ट का अंश)
बाकी नकारात्मक अंक वाले चिट्ठे तो गिरिजेश ने गोपनीयता/निजता के अधिकार के चलते बताये नहीं।
नमस्ते रचना जी. आपकी साफगोई और आपत्तियां विमर्श का बहुत अच्छा अवसर देतीं हैं. उनसे ज़ाहिर होता है कि आप ब्लौग जगत को एक परिपूर्ण स्थल के रूप में देखना चाहतीं हैं जिसमें कम से कम द्वेष और दोष हों.
हटाएंगिरिजेश के विचार का मैं समर्थन करता हूँ. उसमें नवीनता और मौलिकता है. उसका सबसे अच्छा पहलू यह है कि उसमें ब्लौगर की जगह ब्लौग को महत्त्व दिया गया.
सुझाव देने के स्थान पर सुझाव मांगे गए. इससे विकल्प बढ़ गए लेकिन ऋणात्मक मूल्यांकन के कारण ब्लौग का ढेर बनने की नौबत नहीं आई.
परिकल्पना योजना का मजाक नहीं बनाया. सिर्फ यह कहा कि उसकी पद्धति त्रुटिपूर्ण है.
गिरिजेश की योजना में सामने आये ब्लौगों को "एलीट, अभिजात्य, कुलीन, संभ्रात, विद्वत" खुशदीप की पोस्ट में कहा गया है. कहीं और ऐसी बात कही गयी हो ऐसा मुझे ज्ञात नहीं है. यह खुशदीप का अपना औब्ज़र्वेशन है. नो ऑफेंस.
योजना के अनुसार तीन प्रिय और तीन अप्रिय ब्लौगों के नाम बताने थे. बता दिए. किसी भी व्यक्ति दवारा दिए गए मत सार्वजनिक नहीं हुए हैं. होने भी नहीं चाहिए. व्यर्थ का बखेड़ा होता है.
बार-बार कहा जा रहा है कि यह उनका 'नितांत व्यक्तिगत' प्रयास था. मार्कशीट सभी बनाते हैं अपने-अपने तरीकों से. जहाँ वेब रैंकिंग आदि की बात उठती है वहां वे ब्लौग सामने आते हैं जो खबरी पत्रिका जैसे होते हैं.
हर व्यवस्था और आयोजन की अपनी सीमायें हैं. उम्मीद है कि अगली बार बेहतर काम हो पायेगा. परिकल्पना का कार्य बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वह एक स्टैण्डर्ड बनने की प्रक्रिया में है. यदि वे चयन/चुनाव पद्धति में सुधार करें किसी और प्रयास की ज़रुरत नहीं होगी. कोई और व्यक्ति बेहतर करे तो उसका स्वागत है. ऐसे प्रयासों से हिंदी ब्लौग, ब्लौगर, और ब्लौगिंग का प्रसार होता है. होना भी चाहिए.
मुझे कमेन्ट केवल इस लिये करना पडा हैं निशांत जी क्युकी मेरे ब्लॉग का नाम ६६ ब्लॉग की लिस्ट में हैं जबकि मैने कभी अपने ब्लॉग लेखन के लिये किसी को ईमेल भेज कर वोट की राजनीती नहीं खेली हैं . गिरिजेश ने लोगो को ईमेल भेजी हैं , ये मुझे अली जी के कमेन्ट से पता चला जो उन्होने इस विषय पर अरविन्द मिश्र की पोस्ट पर दिया , और मैने इस अलीट होने का विरोध निरंतर किया हैं पिछली चर्चा मै अनूप ने उस लिंक को भी दिया हैं . जहां मैने अलीट और कोम्मोनेर की बात की हैं
हटाएंआप को पसंद का अधिकार भी हैं , ना पसंद का भी हैं पर आप ये क्यूँ भूलते हैं की जिसका ब्लॉग आप पसंद या ना पसंद कर रहे हैं क्या उसने अपने ब्लॉग को सबमिट भी किया हैं इस प्रक्रिया के लिये
सब इतने हिंदी के ज्ञाता हैं जैसे आप कह रहे जिन्हें लालित्यपूर्ण भाषा में रची-पगी सबलाइम पोस्टें तो क्या उन सब को इतना भी नहीं पता हैं की लेखक की किताब को उस पुरूस्कार के लिये सबमिट किया जाता हैं तब ही आप उसके आकलन के अधिकारी बनते हैं .
कितने लोगो को गिरिजेश ने मेल भेजी , उस में कितने सक्रिय ब्लॉगर हैं , कितनी महिला ब्लोग्गर हैं , कहा हैं ये सब आकडे , किस बिना पर आप को लगता हैं ये प्रक्रिया निस्पक्ष हैं
आप लोग ये सब करके ब्लॉग पर केवल राजनीती करते हैं , और कुछ नहीं . आगे क्या होगा ये तो पता नहीं पर केवल खुशदीप ने नहीं बहुतो ने विरोध किया हैं
कुछ नाम बता दूँ
वंदना का ब्लॉग पढ़े और उसपर आये कमेन्ट देखे आप को अहसास होगा आम ब्लोग्गर कितना आजीज आ चुका इन सब से , अब आप कहेगे वंदना कौन , यही हैं अलीट होने का सुख
देवेन्द्र पांडे का ब्लॉग पढ़े और उस पर आये कमेन्ट पढ़े
अरविन्द मिश्र का ब्लॉग पढ़े और उसपर आये कमेन्ट पढ़े
मैने तो अपना ब्लॉग बंद ही कर दिया हैं , उसको आप ईमेल जुडवा कर ही पढ़ सकते हैं
ज़रा पुरुस्कारों की राजनीती से ऊपर उठिये , दूसरो को क्यूँ आकलित करते हैं अपने को कीजिये
और निशांत जी गौतम बुद्ध ने कहा था“Do not believe in anything simply because you have heard it. Do not believe in anything simply because it is spoken and rumored by many. Do not believe in anything simply because it is found written in your religious books. Do not believe in anything merely on the authority of your teachers and elders. Do not believe in traditions because they have been handed down for many generations. But after observation and analysis, when you find that anything agrees with reason and is conducive to the good and benefit of one and all, then accept it and live up to it.”
ये कहना की १८ केवल नेगतीवे वोट से इस लिस्ट में एक विकृत मानसिकता को दर्शाता हैं क्युकी शायद उन १८ को ही सब से ज्यादा पढ़ा जाता हैं . वो ही सब से ज्यादा जाने जाते हैं . और जब ये घोषणा कर ही दी तो नाम बताने में क्या हर्ज़ हैं . कम से कम इतना माद्दा तो फिर रखना ही चाहिये .
ब्लोग्वानी पर नापसंद को लेकर कितना बाय बवेला होता था तब क्यूँ ब्लोग्वानी के संचालक गलत थे और क्यूँ आप सब सही हैं
और
निशांत चलते चलते आप को एक बात बता दूँ
कल एक ब्लोग्गर से बात हुई चैट पर मैने पूछा आप किस किस को पढ़ती हैं , बोली सब बड़े ब्लोग्गर को मैने पूछा किसने कहा वो बड़े हैं , जवाब मिला उन्होने खुद कहा :)
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंhttp://chitthacharcha.blogspot.in/2009/09/blog-post_17.html
हटाएं@अनूप शुक्ल
आप तो इस सब को जस्टिफाई ही करेगे क्युकी आप ने ही ये सब यहाँ शुरू किया हैं आप ने ही एक बार कहा था आप को यहाँ विवेक से बेहतर कवि नहीं मिला , और आज वो विवेक कहा blog par लेकिन उन से निकृष्ट लिखने वाले "आप की नज़र में" आज भी लिख रहे हैं
॒@रचनाजी,
हटाएंये तो अपनी-अपनी पसंद की बात है। किसी को पसंद करने का मतलब दूसरे उससे निकृष्ट कैसे हो जाते हैं यह समझ नहीं आया।
विवेक सिंह मुझे इसलिये प्रिय हैं कि उनके जैसी मौलिक सोच वाली कविता /तुकबंदी और कोई किसी के यहां नहीं दिखती मुझे। बहुत कम शब्दों में बिना तामझाम के बात कहने का सलीका विवेक जैसा मुझे और नहीं दिखता फ़िलहाल।
हटाएंjab aap apni pasand ki tulnaa kartae haen to dusrae ko naa pasand kartae haen
baaki link isiiliyae dae diyaa ki 2009 mae kyaa huaa thaa yaad aajayae
किसी को पसंद करने का मतलब दूसरे को निकृष्ट समझना मेरी समझ में तो नहीं होता। आप ऐसा समझती हैं तो समझ सकती हैं। आपका अपना मामला है!
हटाएंपसंद नापसंद पर किसी का वश नहीं है, न ही इस बारे में कोई thumbrule है कि सिर्फ ऐसी ही चीजों को पसंद किया जाना चाहिए| प्रैक्टिकली इसे हम 'उपलब्ध विकल्पों में से सबसे ज्यादा पसंद' मान सकते हैं, ये उपलब्धता सूची रूप में भी हो सकती है जैसे परिकल्पना में थी और खुले विकल्प के रूप में भी, जैसे आलसी ब्लॉग पर थी| आप किसे और कैसे पसंद करते हैं, ये खुद आप पर निर्भर है|
हटाएंनिगेटिव वोट्स के बारे में मैंने ऐसा मत दिया था कि कोई भी ब्लॉग अप्रिय श्रेणी में नहीं रख सकता क्योंकि हर ब्लॉग कभी न कभी, कहीं न कहीं से अच्छा होता ही है| मैंने ये कहा था तो औरों ने भी ऐसा कहा हो सकता है| और अगर कुछ लोगों ने अपना मत दे भी दिया तो मुझे नहीं लगता कि वहाँ इस बात का बतंगड बनाया गया है| और उससे भी बड़ी बात, किसी के निगेटिव\पोसिटिव मान भर लेने से किसे फर्क पड़ता है?
प्रियता के, लोकप्रियता के अलग अलग मापदंड रहे हैं कभी likes, कभी कमेंट्स| क्या आत्मतुष्टि के बिना ये पैमाने कुछ भी सुकून देते हैं? कमेंट्स तो किलरझपाटा पर भी बहुत ज्यादा ज्यादा रहे हैं| एक ताजा उदाहरण देखिये - चार साल(-१ सप्ताह) पहले लिखी पोस्ट पर इन दो तीन दिनों में अचानक ही सात आठ कमेंट्स आ गए, प्रस्तुति बहुत सुन्दर भी हो ली और चर्चा में भी आ ली, लेकिन इससे हुआ क्या? लिंक ये रहा -
http://www.koshimani.blogspot.in/2008/06/blog-post_24.html
ये रहे वे ब्लॉग। ध्यान रहे कि इनमें वे 18 ब्लॉग भी सम्मिलित हैं जिन्हें केवल ऋणात्मक मतों के साथ नामित किया गया:
जवाब देंहटाएंdkspoet.in (ब्लॉग हिन्दी में है, पहले खुलता था। कल परसो नहीं मैंटीनेंस में दिखा रहा था)
life is beautiful (ब्लॉग हिन्दी में है)
Steam Engine (ब्लॉग हिन्दी में है)
अंतर सोहिल
अंतरिक्ष
अजदक
अनिल का हिन्दी ब्लॉग
अहसास की परतें
उड़नतश्तरी
उन्मुक्त
उम्मतें
ओझा उवाच
कविता (kavyana.blogspot)
कस्बा
काव्य मंजूषा
किशोर चौधरी
क्वचिदन्यतोपि
घुघूती बासुती
चर्चामंच
चलते-चलते
छीटें और बौछारें
जगदीश्वर चतुर्वेदी
ज़िन्दगी की राहें
ज़ील
जो न कह सके
ज्योतिष दर्शन
डा. हरिओम पंवार की कवितायें
डीहवारा
ताऊ
दिल की बात
देशनामा
न दैन्यं न पलायनं
नास्तिकों का ब्लॉग
निरामिष
निर्मल आनन्द
नुक्कड़
परिकल्पना
पाल ले एक रोग
फुरसतिया
बर्ग वार्ता
बिखरे सितारे
ब्लॉग की खबरें
भारत भारती वैभवम
मनोज देसिल बयना
मल्हार
मानसिक हलचल
मेरी कलम से
मेरी भी सुनो
मेरे अंचल की कहावतें
मेरे गीत
मो सम कौन
रचना का ब्लॉग
लखनऊ ब्लॉगर असोसि.
लेखनी (महफूज़)
लोकसंघर्ष
वैतागवाणी
शिप्रा की लहरें
शिव-ज्ञान
संकलन
सच्चा शरणम
सफेद घर
समय के साये में
साई ब्लॉग
हथकढ़
हारमोनियम
हिन्दी ज़ेन
http://girijeshrao.blogspot.com/2012/06/3_10.html?showComment=1339336286074#c2311936479965699267
upaar dii hui list mujhe jahaan sae mili wo link yae haen
मैंने गज़ल सुनने की शुरुआत पंकज उधास से की थी जो जगजीत सिंह से होते हुए गुलाम अली और मेंहदी हसन पर आकर ठहर गई.जगजीत सिंह रोमांटिक ग़ज़लें अच्छी गा लेते थे पर यदि वास्तव में गज़ल जिसे कहते हैं ,जिसमें सुकून मिलता है,अपने दुःख और सुख का भागीदार हमें तलाशना है तो निश्चित ही मेंहदी हसन से ज़्यादा फ़िलहाल कहीं नहीं है.
जवाब देंहटाएं....मेंहदी हसन साब को पसंदगी को लेकर सबके विचार अलग हो सकते हैं,सबका अपना 'टेस्ट' है पर इस समय उनसे सम्बंधित मसले को हल्के में न लिया जाय तो ठीक रहेगा.वो एक संजीदा किस्म के गायक और इंसान थे और हमें उसी संजीदगी से उनको देखना होगा.
...'बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी' मेरी पसंदीदा गज़ल है.उनकी गाई हुई गज़लों की खूबी यही है कि जिस समय जो गज़ल सुनो,वही सबसे बढ़िया लगती है !
.मेरे गीत' का विमोचन ठीक हुआ.इसमें स्वल्पाहार जैसा भी कोई मुद्दा हो सकता है क्या...?
इसमें स्वल्पाहार जैसा भी कोई मुद्दा हो सकता है क्या...?
हटाएंमुद्दे होते कहां हैं वे तो बन जाते हैं/बनाये जाते हैं। निशांत ने एक सूचना दी। हमने उस पर टिपियाया। आपने सवाल पूछा। हम जबाब दे रहे हैं। ऐसे ही एकाध और टिप्पणी/प्रतिटिप्पणी से इसके मुद्दे बनने की संभावना से इंकार तो नहीं किया जा सकता।
पिछले विमोचन में शायद स्वल्पाहार और पानी की बोतलों को लेकर भी तो पोस्टबाजी हुई थी।
लगता है ब्लॉग्गिंग के पुराने दिन लौट रहे हैं .
जवाब देंहटाएंकुछ ब्लॉग परिदृश्य से गायब हुए तो कुछ लौटे भी हैं.
जैसे ताऊ रामपुरिया जी!
....
बहुत से ऐसे ब्लॉग भी है जिन्होंने सालों से गुणवत्ता और नियमितता अभी तक बनाई हुई है.
....
बाकि परिकल्पना और आलसी प्रतियोगिता में सामने आये ब्लोग उन्हीं पाठकों के द्वारा चुने गए हैं जो उनके स्वयं के पाठक हैं /वहाँ आते-जाते हैं और जिन्हें उस चुनाव प्रक्रिया की सूचना मिली .
यहाँ या वहाँ आने वाले मतदाताओं का एक सीमित दायरा है और सीमित पसंद भी .
जैसे परिकल्पना पर एक साहब ने एक ही लेखिका को हर श्रेणी में 'लगभग सभी ४१ श्रेणियों' में पुरुस्कार दिए जाने की सिफारिश की थी.ऐसी सब्जेक्टिविटी आना स्वाभाविक है.मानवीय स्वभाव है! प्रजातंत्र है.सुझाव स्वीकार करीए .
खैर,ऐसे पुरस्कार समोराह आयोजन करना आसान नहीं है .बहुत समय /श्रम और धैर्य मांगते हैं.
कोई पहले स्थान पर आये या दूसरे.. अन्हें अगर आप पढ़ना पसंद नहीं करते उन पर तो आप फिर भी नहीं जायेंगे.फिर कैसी शिकायत?
कुछ और हो न हो कम से कम ब्लॉगजगत में हलचल तो पैदा कर ही रहे हैं और इस बहाने वाकई कुछ अच्छे ब्लॉग नज़र में आये भी हैं.यह एक बड़ी उपलब्धि है.
बाकि परिकल्पना और आलसी प्रतियोगिता में सामने आये ब्लोग उन्हीं पाठकों के द्वारा चुने गए हैं जो उनके स्वयं के पाठक हैं /वहाँ आते-जाते हैं और जिन्हें उस चुनाव प्रक्रिया की सूचना मिली .
हटाएंयहाँ या वहाँ आने वाले मतदाताओं का एक सीमित दायरा है और सीमित पसंद भी .
आपकी बात से मिलती-जुलती बात मैंने चर्चा में कही थी:
लगभग एक ही समय में रहे दो चुनावों में जो ब्लॉगर सर्वप्रिय पाये गये उनमें केवल रविरतलामी ही एक नाम हैं जो दोनों में रहा। इससे क्या क्या निष्कर्ष निकाला जाये कि दोनों के चुनाव के तरीके अलग-अलग थे इसलिये ऐसा हुआ। दोनों में वोटिंग करने वाले और राय जाहिर करने वाले अलग-अलग रुचि-रुझान वाले थे।
बहुत दिनो बाद इतनी सच्ची और अच्छी ब्लॉग चर्चा पढ़ने को मिली। ब्लॉग चर्चा शब्द पर उखड़ा विश्वास फिर से कुछ-कुछ जमने लगा।..आभार।
जवाब देंहटाएंधीरेन्द्र पाण्डेय ---आपने लिखा ""अपनी पसंद में वे गुलाम अली और जगजीत सिंह के बाद आते थे. हमेशा यूं लगता रहा कि उनकी आवाज़ में ज्यादा रेंज नहीं है"".--------गुलाम अली और जगजीत सिंह तो मेंहदी हसन के पासंग बराबर भी नहीं है | और रेंज तो उनके पास बड़े बड़े नामचीन शास्त्रीय गायकों के जितनी थी वाकई गज़ल के एक युग का अंत हो गया है |आशा करता हूँ कोई नया समर्थ गायक फिर उभरेगा पर ये वर्ष गायकी के लिए संगीत प्रेमियों के लिए बहुत दुःख दाई रहा है कई लोंग बिछड़ गए |
जवाब देंहटाएंबहुत समय के बाद नियमित चिट्ठाचर्चा और फिर टिप्पणी चर्चा देख-पढकर अच्छा लग रहा है| विमर्श होता रहे तो बातों के अलग अलग आयाम दीखते हैं, जो हमारे सोचे नजरिये से मेल खाते भी हो सकते हैं और उनसे अलग भी|
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा पर बात कुछ और छिड़ गई .
जवाब देंहटाएंरचना जी की सारी बातों से सहमत। खासकर इस बात से --
जवाब देंहटाएं“वंदना का ब्लॉग पढ़े और उसपर आये कमेन्ट देखे आप को अहसास होगा आम ब्लोग्गर कितना आजीज आ चुका इन सब से , अब आप कहेगे वंदना कौन , यही हैं अलीट होने का सुख”
हर दूसरे दिन पुरस्कार की चर्चा होते देख सच में हम आजिज आ गए हैं। कई मंच और ब्लॉग पर इसकी लेकर पीठ ठोकना और वाहवाही बटोरना कुछ खास दोस्तों के साथ दो-चार महीने तो चलेगी ही।
** चले। चिट्ठा चर्चा भी एलिटों का ही ब्लॉग है। उन्हें आम लोगों का ब्लॉग कब दिखता है?
रचनाजी के सवाल-जबाब गेस पेपर टाइप के हैं। खुद ही सवाल पूछे और खुद ही जबाब बता दिया (अब आप कहेगे वंदना कौन)। मजे की बात कि आप भी इसी से खासकर सहमत हुये।
हटाएंब्लॉगिंग में इनाम तो तब से बंट रहे हैं जब से हिन्दी ब्लॉगिंग शुरु हुई। हर बार लोग आजिज आते हैं। फ़िर से आयोजन होते रहते हैं। आप बड़ी जल्दी आजिज आ गये। अभी तो न जाने कित्ती बार सम्मानित होना है।
चिट्ठाचर्चा कैसा ब्लॉग है इसके बारे में इसके पाठक ही बता सकते हैं। आप तो चर्चाकार भी रहे हैं। आपको तो पता है कि चर्चाकार ब्लॉग कैसे चुनते हैं चर्चा के लिये। वैसे इस बारे में चिट्ठाचर्चा के सफ़र में लिखा था मैंने: हम तो जैसा बनता है वैसा चर्चा करते रहने वाले घराने के चर्चाकार हैं। उत्कृष्टता या श्रेष्ठता का कोई दावा हम नहीं करते। हमे तो जो चिट्ठे दिख गये, जित्ते हमने पढ़ लिये उनकी चर्चा कर देते हैं। जितना खिड़की से दिखता है/बस उतना ही सावन मेरा है वाले सिद्धान्त के अनुसार जित्ते चिट्ठे बांच लिये उतने लिंक टांच दिये के नारे के हिसाब से चर्चा कर देते हैं। अब उसी में कोई चर्चा अच्छी या बहुत अच्छी निकल जाये तो उसका दोष हमें न दिया जाये।
रचनाजी के सवाल-जबाब गेस पेपर टाइप के हैं। खुद ही सवाल पूछे और खुद ही जबाब बता दिया
हटाएं@अनूप शुक्ल
अगर ये चर्चा निशांत ने की हैं तो मेरा कमेन्ट भी उनके लिये ही था . आप वंदना को जानते हैं आभार पर ये चर्चा आप ने नहीं की हैं ये भी ध्यान दे . संझा ब्लॉग हैं चर्चा मंच और निशांत उत्तर दे रहे हैं तो उनको उनका पक्ष रखने का मौक़ा देना ही चाहिये था ऐसा मुझे लगता हैं . बाकी आप को मेरा कमेन्ट गैस पेपर टाइप लगा और निशांत को नहीं , ये फरक साफ़ दिख रहा हैं
रचना जी,
हटाएंआपके कमेंट्स से यह प्रतीत होता है कि आप कुछ प्रश्नों के उत्तर कायदे से सिर्फ चर्चाकार अर्थात मुझसे ही चाहतीं हैं. मैं प्रयास करूंगा कि आपको कुछ विषयों अपने विचारों से ईमानदारी से परिचित करवा सकूं. इस पोस्ट पर आपके कमेंट्स ब्लॉग जगत में घट रही और घट चुकी अनेक घटनाओं से सम्बद्ध हो सकते हैं और यह ज़रूरी नहीं है कि मुझे सारी बातें सन्दर्भ और प्रसंग सहित पता हों इसलिए मैं केवल उन्हीं बातों पर कुछ कहना चाहूँगा जिन्हें मैंने प्रत्यक्ष रूप से देखा समझा और जाना है. आपने कुछ प्रश्न अपने तौर पर उठाये हैं जिनका मुझे जवाब देना है इसलिए मैं इस मौके पर आपसे भी कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ. संभव है मेरे प्रश्नों में ही आपको अपने उत्तर भी मिल जाएँ.
१. आपका यह कहना है कि ब्लौगों पर पुरस्कार योजना को लेकर जो ब्ला-ब्ला होती है उसका हिस्सा मैं भी रहा हूँ जब तक वह गिरिजेश की पुरस्कार योजना नहीं आई. ठीक है. शायद आप मुझे परिकल्पना पुरस्कार का धुर विरोधी मानती हैं इसलिए ऐसा कह रहीं है. मैं यह पहले भी कह चुका हूँ कि मेरा विरोध परिकल्पना पुरस्कारों का नहीं बल्कि उसकी दोषपूर्ण पद्धति का है. मैं किसी योजना का समर्थन करूं या दूसरी योजना का विरोध. क्या ऐसा करने के पहले मुझे आपकी, योजनाकार की, या ब्लॉग जगत में किन्हीं अन्य व्यक्तियों की अनुमति लेनी होगी?
२. आपने ऊपर कहा है कि पिछले साल परिकल्पना पुरस्कार मिलने पर कुछ लोग एलीट हो गए. क्या आप ऐसे एलीट लोगों के नाम बता सकतीं हैं? यह भी बताइए कि आप या अन्य कोई उन्हें एलीट क्यों मानता है. एलीट ब्लॉग, कौमनर ब्लॉग और अन्य ब्लौगों में क्या अंतर है?
३. आप केवल उन्हीं ब्लौगों के नाम क्यों जानना चाहतीं हैं जिन्हें मैंने या किसी अन्य व्यक्ति ने नापसंद किया है? आपको नापसंद से ही क्यों परेशानी है? क्या आप यह मानतीं हैं कि आपका कोई ब्लॉग केवल नापसंद ही किया गया होगा? गिरिजेश की योजना के अंतर्गत बड़ी संख्या में ब्लौगों के नाम सबमिट किये गए थे. उनमें से कुछ को कुछ लोगों ने और कुछ को शायद बहुत सारे लोगों ने नापसंद किया है (ऐसा गिरिजेश ने बताया), क्या आपको इस बात पर यकीन नहीं है? यदि हाँ, तो क्यों?
४. क्या आप नहीं मानतीं कि किसी भी पुरस्कार योजना में यह ब्लौगरों के विवेकाधीन ही है कि वे अपनी पसंद/नापसंद को किसे और क्यों सूचित करें. उन्हें ऐसा करने से पहले किसी से परामर्श या अनुमति लेने की आवश्यकता क्यों होनी चाहिए?
५. किसी भी पुरस्कार योजना में सर्वोच्च या अग्रणी का चयन अंकों के आधार पर होता है. आप सरलता के लिए केवल एक या शून्य अंक का प्रयोग कर सकते हैं या बेहतर परिणाम के लिए कोई गणितीय सूत्र का उपयोग भी कर सकते हैं. यदि कोई ब्लौगर जन किसी योजना में सहभागिता करना चाहते हैं तो यह उनकी इच्छा का प्रश्न है. गिरिजेश ने किसी को कोई ख़ास ब्लॉग नहीं सुझाये या चुनाव करने के लिए कोई सूची नहीं दी. आपको आपत्ति तब होनी चाहिए जब कोई स्पष्टतया आपको पसंद या नापसंद करने के लिए आपका या आपके ब्लॉग का नाम सुझाए.
जारी...
६. क्या आपको यह बात व्यावहारिक और उचित जान पड़ती है कि किसी को आपके ब्लॉग का नाम किसी भी सन्दर्भ में लेने के लिए आपकी अनुमति लेनी पड़े? क्या आप अपने ब्लॉग में किसी व्यक्ति/ब्लौगर/ब्लॉग/घटना का ज़िक्र करने से पहले उसकी अनुमति लेती हैं? क्या आपके अनुसार ब्लौगरों को केवल अपनी पोस्ट और अपने ब्लॉग से ही मतलब रखना चाहिए और केवल उन्हीं में रूचि लेनी चाहिए? क्या आप ऐसा ही करतीं है? क्या आप अपने कमेंट्स में किसी का ज़िक्र करने से पहले उससे पूछ लेती हैं? आपने अपने कमेंट्स में वंदना जी, खुशदीप, देवेन्द्र पण्डे, और अरविन्द मिश्र जी का नाम लिया है. क्या उनसे अपेक्षित अनुमति ली गयी है? आपने एक ब्लौगर से की गयी चैट का ज़िक्र किया है. उन ब्लौगर का नाम क्या है? जब कभी किसी ने अपने कमेन्ट में आपका नाम लिया है तो आपकी प्रतिक्रिया कैसी रही है?
हटाएं७. क्या गिरिजेश ने लोगों को वोट करने के लिए भेजी मेल में आपका नाम लिया था? क्या प्रिय ब्लौगों का चुनाव और संबंधित पुरस्कार योजना पद्म या ज्ञानपीठ पुरस्कार हैं जिन्हें देने से पहले उसकी मंशा जान ली जाए? यदि आपको यह बता दिया जाए कि गिरिजेश ने कितने लोगो को मेल भेजी, उनमें कितने सक्रिय ब्लॉगर हैं, कितनी महिला ब्लौगर हैं, और अन्य आंकड़े क्या हैं तो आपका निष्कर्ष क्या होगा? यह घोषित करने का आधार क्या है कि कोई पुरस्कार चयन पद्धति कितनी निष्पक्ष है?
८. यह संभव है कि वाकई पुरस्कारों की आड़ में यहाँ राजनीति की जा रही हो. क्या आप बता सकती हैं कि ऐसा करने के पीछे पुरस्कार दाताओं की क्या नीयत है? क्या किसी व्यक्ति विशेष को अधिक पढ़ने, पसंद करने, या वोट देने मात्र से यह सिद्ध हो जाता है कि हम अन्य ब्लौगरों का अनादर कर रहे हैं और उनके लेखन को स्तरीय नहीं मानते?
९. आपको ब्लौगिंग करते पांच वर्ष हो रहे हैं. इन पांच वर्षों में आपने भाषा/लिपि के मुद्दे पर कई बार अपने आग्रह किये हैं. यहाँ कुछ लोग यथासंभव शुद्ध और त्रुटिपूर्ण लिखते हैं और दूसरों से भी ऐसा ही लिखने का आग्रह करते हैं. क्या उनकी यह मांग अनुचित है? क्या रोमन में लिखी हिंदी या शब्दों की स्पेलिंग में गलतियाँ होना हमें सहज ही स्वीकार होना चाहिए? क्या लंबे अरसे से हिंदी ब्लौगिंग कर रहे व्यक्ति से यह अपेक्षा करना बेमानी है कि वह हिंदी भाषा और लिपि को यथोचित सम्मान दे?
१०. मैं आपके ब्लॉग का नियमित पाठक था. आपने अपनी सुविधानुसार उसे ओपन/क्लोज़ या निजी बना लिया है. ऐसा करने के पीछे आपके विचार क्या हैं? आपके ब्लॉग में ऐसा क्या है जो उसे आप जनसमुदाय को पढवाना नहीं चाहतीं? क्या अपने ब्लॉग को बंद करने या उसे निजी बनाने से पहले आपने उन सभी एग्रेगेटरों या ब्लॉग स्वामियों को सूचित किया है जिन्होंने आपके ब्लौगों की लिंक अपने साइडबार या संकलक में उपलब्ध कराईं हैं?
११. इस पोस्ट पर भी और विगत में भी आपने अनेक स्थानों पर अपने कमेंट्स डिलीट किये हैं और ऐसा अनेक बार किया है. अपने कमेन्ट डिलीट करने का विवेक आपके ऊपर ही है लेकिन ऐसा करने से पोस्ट के पाठकों को जो असुविधा और असमंजस होता है उसका ख्याल आपको क्यों नहीं आता?
मुझे विश्वास है कि उपरोक्त प्रश्नों में मैंने आपकी या अन्य किसी व्यक्ति की निजता का अतिक्रमण नहीं किया है. मुझे लगता है कि आपके कमेन्ट के उत्तर में मैंने आपको अपने विचारों से अवगत कराने की असफल चेष्टा की क्योंकि मैं आपके प्रतिबद्धताओं को समझ नहीं पा रहा हूँ. यदि आप उपरोक्त प्रश्नों का उत्तर देंगीं तो मेरी कतिपय भान्तियों और आशंकाओं का निर्मूलन हो जायेगा. आशा है अन्यथा न लेंगीं.
prashna 1 kaa uttar
हटाएंbaat virodh ki nahin haen blah blah kaa arth virodh nahin hota ahen aap ki post mae blah blah kaa arth kewal vaad samvaad haen jo mae samjhi wahii kehaa
prashn 2 kaa uttar
हटाएंmaene yae nahin kehaa haen ki jinko parikalpana mila wo elite hogaye
please wo hissa dubara padhae
prashn 3 kaa uttar
हटाएंjab 18 blog ko napasnd kaa bataa diyaa gaya to naam daene mae kyaa aaptti honi chaiyae
haa mae unkaa naam jannaa chahtee hun
prashan 4 aur 5
हटाएंmaene pasand yaa napasand ki baat nahin ki haen
maenae voting ki baat ki haen
agar vote karvana haen to pehlae blog / blog post submission hona chahiyae
prashan 6
हटाएंmae kyaa kisi bhi blog ko vot karnae sae pehlae permission lena jaruru haen agar aap us voting ko . uskae parinaamo ko saarvjanik kartae haen
ham apnae ghar me kuchh bhi kar saktae haen par bahari logo ko kae upar voting karvaa ne kaa hame adhikaar nahin haen
ham apni pasand naa pasand sab jaahir kar saktae haen par kisi par vot karvaanae sae pehlae ussae puchhna jaruri haen kyuki vot gupt hotaa haen
prashn 7
हटाएंmaene maatr itna kehaa haen ki ali ji kaa kament sae pataa chalaa ki unsae vot karnae ko kehaa gayaa
yaani logo ko invite kiyaa voting kae liyae
prashn 8
agar logo ko invite kiyaa voting kae liyae to kis anupaat sae
kitni mahila kitna purush kyuki ek bhi mahila pratham 7 tak nahin haen
prashn 9
हटाएंmaene vot ki rajneeti ki baat ki haen puruskaar ki nahin
roman lipi bhasha
हटाएंkyaa aap jaantae haen 2007 mae gyanpandey ne hi is mith ko todaa thaa aur anup shukl aur masijeevi unkae virudh likhtae they ki gyan pandey inglish paeltae haen
aaj unhi gyanpandey ko aap best maantaey haen
baat bhasha ki nahin haen baat haen kisi ki galtiyaan ginaane ki
aaj masijeevi kehaa haen pataa nahin blog par to sakriyae nahin haen
par gyan pandey jikae yahaan english comment bhi welcom haen kehaa haen aap khud hi vot kar chukae haen
prashn 10
हटाएंnishant ji blog ko paathako kae liyae is liyae kar diyaa taaki mae jaan sakun kitnae mujhae padhna chahtey haen
yae suvidha legal parameters kae andar haen
maene apna blog kisi ko kahin joodnae kae liyae nahin kehaa haen
hamarivani par bhi mujhae mail mili thee tab hi jodaa
hindi blog jagat ityadi par apnae aap judaa haen
prashn 11
हटाएंcomment delet karna
is blog par shyaad duplicate hogaya thaa
anyay blog par agar baat vyaktigat hojaatii haen yaani jahaan maere upar vyaktigat aakraman hotaa haen maeri jeevan sheli par , maere parents par ityadi wahaan mae kament delet kar daeti hun
रचना जी,
हटाएंमैं आपके उत्तरों से सहमत/संतुष्ट नहीं हूँ.
मुझे लगता है कि आपने बहुत से उत्तर प्रश्नों को पूरा पढ़े बिना, जल्दबाजी में, और अपनी सुविधानुसार दिए हैं.
आप लंबे अरसे से ब्लौगिंग में हैं. इस दौरान आप अनेक विचारधाराओं, घटनाओं, प्रसंगों, से प्रभावित हुई होंगीं और कुछ ब्लौगरों से आपका बढ़िया संवाद और संपर्क भी हुआ होगा. इनमें से जो कुछ भी आपके चिंतन, रुचियों, और विचारधारा के अनुरूप हुआ उसके प्रति आपने अच्छी राय कायम कर ली और जो कुछ इसके विपरीत हुआ उसका आपने विरोध/आलोचना की.
आपके विरोध और आलोचना करने के कारण आपके कुछ लोग आपने प्रशंसक भी बने तो कुछ कटु आलोचक भी बन गए. अपनी बात को सही साबित करने की प्रक्रिया में आपने अपने आलोचकों को कई दफा घेरने की कोशिश की और यह प्रयास भी किया कि इन कार्यों में आपको आपके प्रसंशकों और सहयोगियों का साथ मिले. कभी ऐसा हुआ और कभी नहीं भी हुआ. 'चित भी मेरी और पट भी मेरी' हर समय संभव नहीं है.
मुझे लगता है कि रियेक्शनिस्ट बने रहना आपको नुकसान पहुंचा रहा है. मैं समझ सकता हूँ कि आपको जो बातें पसंद नहीं है उन्हें नज़रंदाज़ करना आपके लिए मुश्किल है पर आपको यह बात भी समझनी चाहिए कि बहुत सी बातें समय के साध सुधरती भी हैं. इसके प्रतिवाद में आप कुछ पुरानी लिंक्स लाकर बता सकतीं हैं कि "देखो पांच साल पहले भी ऐसा होता था और आज भी वही हो रहा है". लेकिन ऐसा नहीं है. ऐसा बहुत कुछ है जो अच्छा और बेहतर है पर हमने उसे देखना नहीं सीखा है क्योंकि हम अपनी प्राथमिकताओं और प्रतिबद्धताओं को लेकर जड़वत हो गए हैं.
आपके लिए क्या बेहतर है यह मैं नहीं बता सकता. मैं जानता हूँ कि मेरे चाहे अनचाहे बहुत कुछ यहाँ होता रहता है और हर चीज़ को मैं कंट्रोल नहीं कर सकता और ऐसा करने का प्रयास भी नहीं करना चाहिए. मैं चाहता हूँ कि दुनिया/माहौल/चीज़ें सुधरें पर उससे पहले मेरे लिए यह ज़रूरी है कि मैं पहले अपनी खामियों को दुरुस्त करूं.
क्षमा प्रार्थी हूँ की आप को उत्तर पसंद नहीं आये
हटाएंरियेक्शनिस्ट
परिकल्पना पुरूस्कार प्रक्रिया सही नहीं हैं इसके रिएक्शन का परिणाम ये आलसी पुरूस्कार तो जिन्होने वो दिये ,जिन्होंने उसमे वोट दिया वो सब भी अपनी अपनी जगह "रियेक्शनिस्ट" ही हैं ना , और ये सब उनको अगर फायदा दे सकता हैं तो मेरा "रियेक्शनिस्ट" होना मुझे मंजूर हैं क्युकी मै शुरू से एक सी हूँ और रहूंगी .
बहुत दिनों बाद चिट्ठाचर्चा फिर से नियमित होती लग रही है। निशांत का आभार और सभी ब्लॉगरों को शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएं@ले गया छीन के कौन आज तेरा सब रोकड़ा
जवाब देंहटाएंनिर्मल हास्य अच्छा लगा। इस वाक्य पर एक रोचक ब्लॉग पोस्ट बनाई जा सकती है।
मुझे ब्लाग पुरस्कारों में एक और कैटेगरी का इंतजार है - "वष्र के सव्रश्रेष्ठ ब्लाग पुरस्कार वितरक".
जवाब देंहटाएंबाकी लिखने-पढ़ने का काम भी होता रहेगा।
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले, खुदा महफ़ूज़ रखे हर बला से!
हटाएंनिशांत जी - चर्चा अच्छी लगी | मेहंदी हसन साहब का जाना ब्लॉगजगत से ही जाना मैंने तो - और आप की चर्चा से साफ़ ही झलक रहा है की आपके निजी पसंद में न होते हुए भी आपको उनके जाने का अफ़सोस है |
जवाब देंहटाएं@ पुरस्कार / सु-पुरस्कार / कु-पुरस्कार -
जब हम एक सार्वजनिक मंच पर कुछ लिखते हैं - जब हम दूसरो के लिखे पर अपना निर्णय / judgement देते हैं - उसी के साथ हम अपने काम को भी आकलन के लिए खोल देते हैं | यह कोई एक तरफा ट्राफिक नहीं है |
परिकल्पना ब्लॉग का पुरस्कार के लिए चयन का अपना तरीका हो सकता है, आलसी पुरस्कार का अपना | यदि हमने एक को अच्छा कहा - तो दुसरे को 'अच्छा' कह सकते हैं, 'बुरा' कह सकते हैं, या 'चुप्पी' भी साधे रख सकते हैं | इसमें कोई जबरदस्ती कैसे हो सकती है ? हम सब को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है - जब तक हम गाली गलौज पर न उतर रहे हों / क़ानून न तोड़ रहे हों - हममे से हर एक को अधिकार है पसंद /नापसंद / अभिव्यक्ति / चुप्पी / आपत्ति / सहमती / criticism / praise .... आदि आदि का |
one more point to be considered is - मत की गोपनीयता - हमारा यह भी अधिकार है की हम अपना मत गोपनीय रखें | यदि उसे सार्वजनिक करना चाहें - तो वह भी हमारा अधिकार है | इसमें कोई किसी पर जबरदस्ती नहीं कर सकता | if girijesh ji names the negatively marked ones - how shall he prove that without encroaching upon the confidentiality of the vote ?
आलसी पुरूस्कार उनके पाठको की पसंद / नापसंद पर हैं
हटाएंलेकिन पुरूस्कार के लिये नामित ब्लॉग क्या सबमिट किये गये थे शिल्पा जी ???
क्या मेरी अनुमति नहीं लेनी चाहिये मेरे ब्लॉग का नाम वहाँ देने से पहले ???
किसी को भी पूरा अधिकार हैं अपने घर में अपने मित्रो के साथ तम्बोला खेलने का पर दूसरे के नाम का टिकेट कटा कर तो आप नहीं खेल सकते हैं
if girijesh ji names the negatively marked ones - how shall he prove that without encroaching upon the confidentiality of the vote ?
आलसी पुरूस्कार अगर व्यक्तिगत थे तो उनको आपस में ही बांटना . चुनना चाहिये था . आप किसी को वोट तभी दे जब वो वोट मांगे ये हमारा संविधान कहता हैं और क्युकी आप संविधान को मानती है मुझे आशा हैं आप उसके अपमान में किसी का साथ नहीं देगी
confidentiality of the vote ? is the second step first is the need to submit ourwork / self for voting
ये वोट दे कर / मांग कर / अच्छा बुरा मत दान करा कर केवल राजनीती हैं और कुछ नहीं
हममे से हर एक को अधिकार है पसंद /नापसंद / अभिव्यक्ति / चुप्पी / आपत्ति / सहमती / criticism / praise
yes we all have but we have no right to vote till the time the work/ person submits the work/self for voting
KUCH NIRNAYA PATHKON PAR BHI CHORA JA SAKTA HAI???????
जवाब देंहटाएंPRANAM.
saachi kah rahe hain aap :)
हटाएंkiskae paathak sanjay jee kisi aleet kae yaa kisi commoner kae ????
हटाएंpathak bole to pathak na ratti jyada na tola kam..............
हटाएंyse lekkha sikshak evam pathak prasikshu ke roop me hote hain....
pathak sikhta hai lekhak ke abhivyakti evam vicharon se prerna leta hai ......
bakiya agli charcha me fursatiyaji ne trivedi ji ko bataya hai
koi vichar mudde kaise ban jate hain ......
pranam.
रचना जी और आप के बीच की बातचीत के बाद दूसरों के लिखने को कुछ नहीं बचता है
जवाब देंहटाएं