शनिवार, अप्रैल 28, 2007

इंटरनेट के तार के पंछी

अनूप ने डपटकर पूछा क्यों आजकल बड़ा जी चुराते हो चिट्ठा चर्चा से। कहीं ऐसा तो नहीं कि शनिवार को चर्चा न करने का कोई धार्मिक तोड़ निकाल लाये हो। मैंने कहा नहीं चिट्ठे इतने लिखे जाने लगे हैं कि अब चर्चा करना मुशकिल होता जा रहा है। अनूप बोले तुम तो खामखां टेंशन लेते हो ये बोलो कि चिट्ठे पढ़ने का शऊर ही नहीं है तुम्हारे पास, पचास प्रतिशत चिट्ठे तो कवितायें हैं, उसमें से आधी अतुकांत जो तुम्हारी लयकारी के पैमाने पर फिट नहीं बैठतीं पर कम से कम बेजी की कविता देख लो, सरल भाषा में लिखा है, कोई युग्म वुग्म का चक्कर नहीं है। मैंने कहा चलिये कविता न सही बकिया चिट्ठे तो हम बाँच ही लिया करते थे पर अब तो हर तरफ खेमेबाजी है, सारा ब्लॉगमंडल मुहल्ला के नाम पर कब्बडी खेल रहा है, कुछ लोग तो इसी का नाम लेकर झांसा भी दे देते हैं, बात क्रिकेट की नाम मुहल्ला का। अनूप बोले तुम खेमेबाजी से डर रहे हो या गलत खेमे में होने से? मैं बोला, "अनूप ये तो कई लोग कह ही रहे हैं कि हिन्दी चिट्ठाकारी का हनीमून पीरीयड खतम हुआ और पंगेबाजी का शुरु और अपनी तो पंगों से वैसे भी फटती है"। अनूप बोले, "किस ने कहा, हनीमून तो शुरु हुआ है अभी, अब तो लोग ब्लॉगिंग कर ना करें अखबारों में ज़िक्रित हो रहे हैं, गोया पेपर ब्लॉगर कोई जुमला होता तो फिट बैठता"। मैंने कहा, "वई तो, ब्लॉगिंग से ज्यादा मेटा ब्लॉगिंग"। अनूप ने हामी भरी, बोले, "अब बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे, तुम्हारी तरह मैं भी व्यथित हूं, पर इंटरनेट के तार पर हमारे जैसे और भी पंछी हैं ये भरोसा रखो, तुम्हें कोई गुप्त रोग नहीं हुआ है। तुम अकेले नहीं हो जो कंफ्यूज्ड हो, नौ साल आईटी में रहकर मिर्ची सेठ तक समझ नहीं पाये, दुविधा छोड़ो, तुम्हारी ब्लॉगराईन तो वैसे भी मायके में हैं, तो रविश के फ्रिज से एक ग्लास ठंडा पानी पियो और अच्छे बच्चे की तरह लिखने बैठो चर्चा नहीं तो जीतू की जगह नारद का कामकाज तुम्हारे हवाले करवा देता हूं फिर साइबर गलियों में घूमते फिरना हेल्मेट पहने"। मरता क्या न करता।

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7 टिप्‍पणियां:

  1. बढिया है । शनि महाराज आप पर कृपा करं ।आपकी ब्लॉगराइन जिए , आपके बच्चे जिएँ ।
    आप पंछी बन नारद की डाल पर बैठे

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  2. तुमसे तो कुछ कहना-सुनना गुनाह है भाई। जो कहा वो भी सबको बता दिया जो नहीं कहा वह भी। क्या बात है! सस्ते में सबको निबटा दिया। सही है। देखो प्रमोदजी भी खुश होगये। सुजाता जी ने भी शुभकामनायें दे दीं। शनिवार को पत्नी के वियोग की आजादी मनाते हुये एक ब्लागर को इससे अधिक और क्या चाहिये!

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  3. दादा सही चर्चा करे हो, बस हमें ही पता नही चला कि हम किसी के नाम का झांसा देकर बात कर रहे हैं, चलो ये पता चल गया कि किस के नाम का झांसा देकर पोस्ट लिखी जा सकती है ;)। वैसे एक बात तो है सभी एक ही डायरेक्सन में सोच कर आये, वर्ड कप का किसी ने नही सोचा जबकि हम क्रिकेट पर उससे पहले ३ बार पोस्टिया चुके थे।

    चिट्ठों की संख्या बढ़ने की भी आपने बहुत खूब कही, इसके लिये रविजी की पिछली एक चर्चा में मैने सुझाव देते हुए कहा था कि क्या ऐसा किया जा सकता है, गध की चर्चा अलग और पध की अलग। चर्चा करने वाले अपने शौक और अनुभव के आधार पर बता सकते हैं कि वो गध करेंगे या पद्ध।

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  4. अनूप भैया, का सोचे रहे आप कि आप दादा के कान में फुससुसाओ आउर हमको पता न चलेगा? हमको तो छोड़ो, अब तो भर जमाने को पता लग है कि आप का का बतियाते (हड़काते) हो।

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  5. दादा एतो दिन पॉरे आपनाके देखे खूब भालो लागलो . कोथाय छिलेन .. ?? आशा कोरी आपनी एई भावे लिखते थाकबेन.

    वैसे अनूप जी के हड़्काहट से सबकी .... है . 'कानपुरी कंटाप' वैसे भी भयानक ही होता है.

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  6. नोट पेड के समर्थन में देबाशीष के लिये:

    आप पंछी बन नारद की डाल पर बैठे

    और रोज चहचहायें. बाकी के सब आराम करो, अब बस बाबू मुशाय चहकेंगे..हा हा!!! :)

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